01-01-2020, 01:00 PM
Update 55
"पछदे में तो तू पड़ ही चुका है. तेरा दिल अपर्णा ले गयी मेरा दिल पूजा ले गयी. हम दोनो ही फँस गये यार."
"तेरा तो कुछ हो भी सकता है. मेरा तो दिल ऐसी जगह लगा है जहा कोई चान्स नही है. अच्छा मैं चलता हूँ. 9 बज रहे हैं, ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूँ. अरे हां एक बात और करनी थी."
"हां बोलो."
"मुझे लगता है जंगल में कुछ गड़बड़ है. वो साइको जंगल के पास ही वारदात करता है अधिकतर. तुझे क्या लगता है क्या कारण हो सकता है."
"बात तो सही कह रहे हो...हो सकता है कि कुछ आशु छुपा हो जंगल में." सौरभ ने कहा.
तभी सौरभ के रूम का दरवाजा खड़का. सौरभ ने आकर देखा. वो तो भोंचक्का रह गया.
"तुम! यहाँ कैसे."
"पूजा से अड्रेस लिया तुम्हारा और पहुँच गयी." कविता ने कहा और कमरे में घुस गयी. उसने आशुतोष को पहचान लिया. वो बोली, "ओह आप भी यहाँ है, कल आप ना आते वक्त पर तो ये हमें मार डालते."
आशुतोष फ़ौरन खड़ा हो गया और चल दिया, "अच्छा गुरु मैं चलता हूँ."
"आशुतोष रूको यार अकेला छोड़ कर मत जाओ मुझे." सौरभ ने कहा.
"हन रुक जाओ ना आप...मेरे आते ही क्यों भाग रहे हैं." कविता ने कहा.
"मोहतार्मा अभी हमारा मन ज़रा व्यथित है वरना आपका वो हाल करते कि आप हमें कभी रुकने को ना कहती. गुरु सम्भालो इस जंजाल को मैं लेट हो रहा हूँ." आशुतोष कह कर कमरे से निकल जाता है.
"तुम्हारा दोस्त तो बड़ा आरोगेंट है. तमीज़ ही नही बात करने की." कविता बोली.
"यहाँ क्यों आई हो अब मेरी मा. ले तो ली थी कल तुम्हारी मैने. अड्रेस भी पूजा से लेकर आई हो. क्यों बिगाड़ने पे तूलि हो मेरा काम तुम. तुम्हे क्या कमी है लड़को की जो मेरे पीछे पड़ गयी."
"लड़के तो बहुत हैं पर आप जैसा शायर नही मिला कोई."
"मैं कोई शायर नही हूँ...वो तो यू ही बोल दी थी कुछ लाइन्स मैने."
दरवाजा खुला ही था. श्रद्धा आ गयी अंदर.
"अरे श्रद्धा तुम आओ...आओ बहुत अच्छे वक्त पर आई हो." सौरभ तो खुश हो गया श्रद्धा को देख कर.
"ये कौन है?" कविता ने पूछा. कविता पूजा की बहन से मिली नही थी इसलिए श्रद्धा को नही जानती थी.
"ये मेरी गर्ल फ्रेंड है...श्रद्धा"
"गुड फिर तो बहुत अच्छी ऑपर्चुनिटी है. लेट्स हॅव आ फन टुगेदर."
"क्या बकवास कर रही हो. मेरी गर्ल फ्रेंड के सामने ऐसी बाते मत करो." सौरभ ने कहा और श्रद्धा के पास आकर उसके कान में कहा,"इस से छुटकारा दिलवा तो श्रद्धा, मेरे पीछे पड़ी है."
श्रद्धा कविता के पास आई और बोली, "चली जाओ यहाँ से, मेरे बॉय फ्रेंड को अकेला छोड़ दो."
"तू भी यहाँ मस्ती करने आई है ना. साथ में मस्ती करते हैं. हम आपस में भी कुछ....." कविता श्रद्धा की तरफ बढ़ी.
"एक साथ मस्ती, ये क्या बकवास है. दफ़ा हो जाओ यहाँ से." श्रद्धा ने पीछे हट-ते हुए कहा.
लेकिन श्रद्धा दीवार से टकरा कर रुक गयी. कविता उसके बहुत करीब आ गयी. इतना करीब की दोनो के बूब्स आपस में टकरा रहे थे. श्रद्धा की तो हालत पतली हो गयी. इस से पहले की वो कुछ कर पाती कविता ने उसके होंठो पर अपने होठ टिका दिए. श्रद्धा तो सकपका गयी और उसने कविता को ज़ोर से धक्का मारा. कविता फर्श पर गिर गयी.
"उफ्फ ये क्या बला है...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की." श्रद्धा ने कहा और टूट पड़ी कविता पर. बाल नोच लिए उसने उसके.
"बच्चाओ मुझे आअहह." कविता सौरभ की तरफ देख कर गिड़गिडाई.
"भुगतो अब...मेरी गर्ल फ्रेंड को लेज़्बीयन आक्ट बिल्कुल पसंद नही है" सौरभ ने कहा.
"छोड़ तो मुझे आअहह." कविता ने कहा.
"मेरी किस क्यों ली तूने बता मुझे. जींदा नही छोड़ूँगी तुझे मैं." श्रद्धा ने कहा.
श्रद्धा तो छोड़ ही नही रही थी कविता को. मामला गंभीर होता देख सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ कर कविता के उपर से खींच लिया. "छोड़ दो बहुत हो गया. सारे बाल नोच लोगि क्या बेचारी के."
कविता फ़ौरन उठी और वहाँ से रफू चक्कर हो गयी. उसने पीछे मूड कर भी नही देखा. कविता नाम की बला सौरभ के सर से शायद टल गयी थी.
"पछदे में तो तू पड़ ही चुका है. तेरा दिल अपर्णा ले गयी मेरा दिल पूजा ले गयी. हम दोनो ही फँस गये यार."
"तेरा तो कुछ हो भी सकता है. मेरा तो दिल ऐसी जगह लगा है जहा कोई चान्स नही है. अच्छा मैं चलता हूँ. 9 बज रहे हैं, ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूँ. अरे हां एक बात और करनी थी."
"हां बोलो."
"मुझे लगता है जंगल में कुछ गड़बड़ है. वो साइको जंगल के पास ही वारदात करता है अधिकतर. तुझे क्या लगता है क्या कारण हो सकता है."
"बात तो सही कह रहे हो...हो सकता है कि कुछ आशु छुपा हो जंगल में." सौरभ ने कहा.
तभी सौरभ के रूम का दरवाजा खड़का. सौरभ ने आकर देखा. वो तो भोंचक्का रह गया.
"तुम! यहाँ कैसे."
"पूजा से अड्रेस लिया तुम्हारा और पहुँच गयी." कविता ने कहा और कमरे में घुस गयी. उसने आशुतोष को पहचान लिया. वो बोली, "ओह आप भी यहाँ है, कल आप ना आते वक्त पर तो ये हमें मार डालते."
आशुतोष फ़ौरन खड़ा हो गया और चल दिया, "अच्छा गुरु मैं चलता हूँ."
"आशुतोष रूको यार अकेला छोड़ कर मत जाओ मुझे." सौरभ ने कहा.
"हन रुक जाओ ना आप...मेरे आते ही क्यों भाग रहे हैं." कविता ने कहा.
"मोहतार्मा अभी हमारा मन ज़रा व्यथित है वरना आपका वो हाल करते कि आप हमें कभी रुकने को ना कहती. गुरु सम्भालो इस जंजाल को मैं लेट हो रहा हूँ." आशुतोष कह कर कमरे से निकल जाता है.
"तुम्हारा दोस्त तो बड़ा आरोगेंट है. तमीज़ ही नही बात करने की." कविता बोली.
"यहाँ क्यों आई हो अब मेरी मा. ले तो ली थी कल तुम्हारी मैने. अड्रेस भी पूजा से लेकर आई हो. क्यों बिगाड़ने पे तूलि हो मेरा काम तुम. तुम्हे क्या कमी है लड़को की जो मेरे पीछे पड़ गयी."
"लड़के तो बहुत हैं पर आप जैसा शायर नही मिला कोई."
"मैं कोई शायर नही हूँ...वो तो यू ही बोल दी थी कुछ लाइन्स मैने."
दरवाजा खुला ही था. श्रद्धा आ गयी अंदर.
"अरे श्रद्धा तुम आओ...आओ बहुत अच्छे वक्त पर आई हो." सौरभ तो खुश हो गया श्रद्धा को देख कर.
"ये कौन है?" कविता ने पूछा. कविता पूजा की बहन से मिली नही थी इसलिए श्रद्धा को नही जानती थी.
"ये मेरी गर्ल फ्रेंड है...श्रद्धा"
"गुड फिर तो बहुत अच्छी ऑपर्चुनिटी है. लेट्स हॅव आ फन टुगेदर."
"क्या बकवास कर रही हो. मेरी गर्ल फ्रेंड के सामने ऐसी बाते मत करो." सौरभ ने कहा और श्रद्धा के पास आकर उसके कान में कहा,"इस से छुटकारा दिलवा तो श्रद्धा, मेरे पीछे पड़ी है."
श्रद्धा कविता के पास आई और बोली, "चली जाओ यहाँ से, मेरे बॉय फ्रेंड को अकेला छोड़ दो."
"तू भी यहाँ मस्ती करने आई है ना. साथ में मस्ती करते हैं. हम आपस में भी कुछ....." कविता श्रद्धा की तरफ बढ़ी.
"एक साथ मस्ती, ये क्या बकवास है. दफ़ा हो जाओ यहाँ से." श्रद्धा ने पीछे हट-ते हुए कहा.
लेकिन श्रद्धा दीवार से टकरा कर रुक गयी. कविता उसके बहुत करीब आ गयी. इतना करीब की दोनो के बूब्स आपस में टकरा रहे थे. श्रद्धा की तो हालत पतली हो गयी. इस से पहले की वो कुछ कर पाती कविता ने उसके होंठो पर अपने होठ टिका दिए. श्रद्धा तो सकपका गयी और उसने कविता को ज़ोर से धक्का मारा. कविता फर्श पर गिर गयी.
"उफ्फ ये क्या बला है...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की." श्रद्धा ने कहा और टूट पड़ी कविता पर. बाल नोच लिए उसने उसके.
"बच्चाओ मुझे आअहह." कविता सौरभ की तरफ देख कर गिड़गिडाई.
"भुगतो अब...मेरी गर्ल फ्रेंड को लेज़्बीयन आक्ट बिल्कुल पसंद नही है" सौरभ ने कहा.
"छोड़ तो मुझे आअहह." कविता ने कहा.
"मेरी किस क्यों ली तूने बता मुझे. जींदा नही छोड़ूँगी तुझे मैं." श्रद्धा ने कहा.
श्रद्धा तो छोड़ ही नही रही थी कविता को. मामला गंभीर होता देख सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ कर कविता के उपर से खींच लिया. "छोड़ दो बहुत हो गया. सारे बाल नोच लोगि क्या बेचारी के."
कविता फ़ौरन उठी और वहाँ से रफू चक्कर हो गयी. उसने पीछे मूड कर भी नही देखा. कविता नाम की बला सौरभ के सर से शायद टल गयी थी.