01-01-2020, 12:55 PM
"छोड़ ना उसे तू. क्यों बेकार में परेशान हो रहा है उसके लिए. मैं तेरे लिए कुछ अलग करने आई थी और तू ये रोना लेकर बैठ गया. चल मुख मैथुन का आनंद ले." श्रद्धा वापिस आ कर आशुतोष के लंड पर झुक गयी और उसे मूह में लेकर चूसने लगी.
"और क्या बता रखा है मेरे बारे में तूने?"
श्रद्धा आशुतोष का लंड मूह से निकालती है और कहती है, "तेरे लंड का साइज़, तेरे प्यार करने का तरीका सब बता रखा है. ये भी बता रखा है कि कैसे गान्ड पकड़ कर तुम चूत में लंड घुसाते हो. और ये भी बता रखा है कि तुम चुचियों को बहुत अच्छे से चूस्ते हो. तुम्हारे बारे में बातो बातो में सब बता रखा है."
"मतलब कि बहुत अच्छे तरीके से मिट्टी पलीट कर रखी है तूने मेरी. तुझे शरम नही आई उनसे ये बाते करते हुए. वो तो ये बाते सुनती ही नही होंगी. तूने ज़बरदस्ती सुनाई होंगी."
"मुझे बोलने की आदत है. बोल दिया सब बातो बातो में. क्यों परेशान हो रहे हो."
"परेशान होने की बात ही है. मेरी छवि खराब हो रखी है उनकी नज़रो में.. सीधे मूह बात भी नही करती वो मुझसे. आज बहुत दुख हुआ मुझे तू नही समझेगी."
"मैं सब समझ गयी. तेरा मन मुझसे भर गया है और अब तू अपर्णा जी की लेना चाहता है. हां मानती हूँ बहुत सुंदर है वो लेकिन जैसा मज़ा मैं देती हूँ तुझे वो सात जनम भी नही दे सकती."
"श्रद्धा! चुप रहो." आशुतोष चिल्लाता है. "कुछ भी बोल देती हो. मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ उनकी. ऐसा कुछ नही है जो तू समझ रही है."
"बस अब यही कमी रह गयी थी. अब अपर्णा के लिए मुझे डाँट भी पड़ रही है. ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुझ पर. सच सच बता तू कही प्यार तो नही करने लगा अपर्णा जी को."
"प्यार नाम के शब्द से भी कोसो दूर रहता हूँ मैं तू ये अच्छे से जानती है. मैने अपर्णा जैसी लड़की नही देखी दुनिया में कही. मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बस."
"आशुतोष मैने कभी प्यार नही पाया किसी का. कोई मिला ही नही जो मुझे प्यार करे. सब मेरे शरीर के पीछे थे. मैने भी कोशिश नही की प्यार पाने की. पर प्यार के अहसास को समझती हूँ मैं. हिन्दी फ़िल्मो में खूब देखा है प्यार का जलवा मैने. तुम्हारी बातो से यही लगता है कि तुम अपर्णा को चाहने लगे हो. वरना तुम भला क्यों परवाह करोगे कि वो तुम्हारे बारे में क्या सोचती है. जिस तरह से तुम बाते कर रहे हो, कोई भी बता सकता है कि तुम अपर्णा के प्रेम-जाल में फँस चुके हो. मेरा अब यहाँ कोई काम नही है. मैं चलती हूँ. अपना ख्याल रखना."
श्रद्धा उठ कर चल देती है.
आशुतोष अपने लिंग को वापिस पंत में डालता है और उठ कर श्रद्धा का हाथ पकड़ लेता है.
"तू तो नाराज़ हो गयी. बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रही है पगली कही की. चल आ बैठ तो सही."
"नही आशुतोष, तुम्हारी आँखो में अब अपर्णा का चेहरा दीख रहा है मुझे. तुम खुद सोच कर देखो. क्यों करते हो इतनी परवाह और चिंता अपर्णा की तुम."
"शायद इंसानियत के नाते."
"आज क्यों गये थे अपर्णा के ऑफीस तुम."
"मुझे उनकी चिंता हो रही थी. मुझे डर था की कही साइको उन्हे नुकसान ना पहुँचा दे."
"पूरे पोलीस महकमे में तुम्हे ही ये ख़याल आया. क्या कोई और नही है पोलीस में जिसे अपर्णा की चिंता हो."
"कैसी बाते करती है. मुझे उनका ख़याल आया और मैं चला गया. हर कोई अपर्णा जी की चिंता क्यों करेगा."
"वही तो मैं कहना चाहती हूँ. दिल में बस चुकी है अपर्णा तुम्हारे. अपने आप को धोका मत दो."
आशुतोष का सर घूमने लगता है और वो वापिस बिस्तर पर आकर सर पकड़ कर बैठ जाता है. श्रद्धा आशुतोष के पास आती है और उसके सर पर हाथ रखती है.
"क्या हुआ आशुतोष?"
"सर घूम रहा है मेरा. कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या कह रही हो तुम."
"मुझे जो लगा मैने बोल दिया. मैं ग़लत भी हो सकती हूँ. असली बात तो तुम ही जानते हो."
"मुझे कुछ नही पता श्रद्धा, सच में कुछ नही पता."
"क्या मैं यही रुक जाऊ तेरे पास. मुझे तेरी चिंता हो रही है. परेशान नही कारूगी बिल्कुल भी. आओ तुम्हारे सर की मालिस किए देती हूँ. अभी ठीक हो जाएगा."
"श्रद्धा बुरा मत मान-ना. तुम्हारी बातो ने मुझे झकझोर दिया है. मैं अकेला रहना चाहता हूँ."
"मुबारक हो. मैं बिल्कुल सही थी. तुम्हे सच में प्यार हो गया है. प्यार में डूबे आशिक अक्सर ऐसी बाते बोलते हैं. ठीक है अपना ख़याल रखना. कोई भी बात हो मुझे फोन कर देना मैं तुरंत आ जाउंगी."
"मैं तुम्हे छोड़ आउ."
"नही मैं चली जवँगी. अभी तो 9 ही बजे हैं."
श्रद्धा चली गयी और आशुतोष किन्ही गहरे ख़यालो में खो गया. कब उसने बाहों में तकिया दबोच लिया उसे पता ही नही चला. "अपर्णा जी ठीक से कुछ कह नही सकता. पर हां शायद आपसे प्यार हो गया है. भगवान भली करें अब मेरी. फिर से कही मैं बर्बाद ना हो जाऊ प्यार में."
आशुतोष को तो नींद ही नही आई सारी रात. ताकिया बाहों में दबाए कभी इस करवे कभी उस करवट. "आशुतोष सो जा आराम से कुछ मिलने वाला नही है प्यार में. पहले जब ये आया था जिंदगी में तो बहुत गहरी चोट दे गया था. अब क्या सितम ढाएगा पता नही. अपर्णा जी तुझे पसंद नही करती हैं समझ ले. तू उनके लायक भी नही है. ऐसे में क्यों सर दर्द मोल लेते हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो. कोई ख़तरनाक एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नही है, जान पर बन सकती है. सो जाओ कल को ड्यूटी पर भी जाना है. रात के 2 बज गये हैं....उफ्फ."
"और क्या बता रखा है मेरे बारे में तूने?"
श्रद्धा आशुतोष का लंड मूह से निकालती है और कहती है, "तेरे लंड का साइज़, तेरे प्यार करने का तरीका सब बता रखा है. ये भी बता रखा है कि कैसे गान्ड पकड़ कर तुम चूत में लंड घुसाते हो. और ये भी बता रखा है कि तुम चुचियों को बहुत अच्छे से चूस्ते हो. तुम्हारे बारे में बातो बातो में सब बता रखा है."
"मतलब कि बहुत अच्छे तरीके से मिट्टी पलीट कर रखी है तूने मेरी. तुझे शरम नही आई उनसे ये बाते करते हुए. वो तो ये बाते सुनती ही नही होंगी. तूने ज़बरदस्ती सुनाई होंगी."
"मुझे बोलने की आदत है. बोल दिया सब बातो बातो में. क्यों परेशान हो रहे हो."
"परेशान होने की बात ही है. मेरी छवि खराब हो रखी है उनकी नज़रो में.. सीधे मूह बात भी नही करती वो मुझसे. आज बहुत दुख हुआ मुझे तू नही समझेगी."
"मैं सब समझ गयी. तेरा मन मुझसे भर गया है और अब तू अपर्णा जी की लेना चाहता है. हां मानती हूँ बहुत सुंदर है वो लेकिन जैसा मज़ा मैं देती हूँ तुझे वो सात जनम भी नही दे सकती."
"श्रद्धा! चुप रहो." आशुतोष चिल्लाता है. "कुछ भी बोल देती हो. मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ उनकी. ऐसा कुछ नही है जो तू समझ रही है."
"बस अब यही कमी रह गयी थी. अब अपर्णा के लिए मुझे डाँट भी पड़ रही है. ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुझ पर. सच सच बता तू कही प्यार तो नही करने लगा अपर्णा जी को."
"प्यार नाम के शब्द से भी कोसो दूर रहता हूँ मैं तू ये अच्छे से जानती है. मैने अपर्णा जैसी लड़की नही देखी दुनिया में कही. मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बस."
"आशुतोष मैने कभी प्यार नही पाया किसी का. कोई मिला ही नही जो मुझे प्यार करे. सब मेरे शरीर के पीछे थे. मैने भी कोशिश नही की प्यार पाने की. पर प्यार के अहसास को समझती हूँ मैं. हिन्दी फ़िल्मो में खूब देखा है प्यार का जलवा मैने. तुम्हारी बातो से यही लगता है कि तुम अपर्णा को चाहने लगे हो. वरना तुम भला क्यों परवाह करोगे कि वो तुम्हारे बारे में क्या सोचती है. जिस तरह से तुम बाते कर रहे हो, कोई भी बता सकता है कि तुम अपर्णा के प्रेम-जाल में फँस चुके हो. मेरा अब यहाँ कोई काम नही है. मैं चलती हूँ. अपना ख्याल रखना."
श्रद्धा उठ कर चल देती है.
आशुतोष अपने लिंग को वापिस पंत में डालता है और उठ कर श्रद्धा का हाथ पकड़ लेता है.
"तू तो नाराज़ हो गयी. बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रही है पगली कही की. चल आ बैठ तो सही."
"नही आशुतोष, तुम्हारी आँखो में अब अपर्णा का चेहरा दीख रहा है मुझे. तुम खुद सोच कर देखो. क्यों करते हो इतनी परवाह और चिंता अपर्णा की तुम."
"शायद इंसानियत के नाते."
"आज क्यों गये थे अपर्णा के ऑफीस तुम."
"मुझे उनकी चिंता हो रही थी. मुझे डर था की कही साइको उन्हे नुकसान ना पहुँचा दे."
"पूरे पोलीस महकमे में तुम्हे ही ये ख़याल आया. क्या कोई और नही है पोलीस में जिसे अपर्णा की चिंता हो."
"कैसी बाते करती है. मुझे उनका ख़याल आया और मैं चला गया. हर कोई अपर्णा जी की चिंता क्यों करेगा."
"वही तो मैं कहना चाहती हूँ. दिल में बस चुकी है अपर्णा तुम्हारे. अपने आप को धोका मत दो."
आशुतोष का सर घूमने लगता है और वो वापिस बिस्तर पर आकर सर पकड़ कर बैठ जाता है. श्रद्धा आशुतोष के पास आती है और उसके सर पर हाथ रखती है.
"क्या हुआ आशुतोष?"
"सर घूम रहा है मेरा. कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या कह रही हो तुम."
"मुझे जो लगा मैने बोल दिया. मैं ग़लत भी हो सकती हूँ. असली बात तो तुम ही जानते हो."
"मुझे कुछ नही पता श्रद्धा, सच में कुछ नही पता."
"क्या मैं यही रुक जाऊ तेरे पास. मुझे तेरी चिंता हो रही है. परेशान नही कारूगी बिल्कुल भी. आओ तुम्हारे सर की मालिस किए देती हूँ. अभी ठीक हो जाएगा."
"श्रद्धा बुरा मत मान-ना. तुम्हारी बातो ने मुझे झकझोर दिया है. मैं अकेला रहना चाहता हूँ."
"मुबारक हो. मैं बिल्कुल सही थी. तुम्हे सच में प्यार हो गया है. प्यार में डूबे आशिक अक्सर ऐसी बाते बोलते हैं. ठीक है अपना ख़याल रखना. कोई भी बात हो मुझे फोन कर देना मैं तुरंत आ जाउंगी."
"मैं तुम्हे छोड़ आउ."
"नही मैं चली जवँगी. अभी तो 9 ही बजे हैं."
श्रद्धा चली गयी और आशुतोष किन्ही गहरे ख़यालो में खो गया. कब उसने बाहों में तकिया दबोच लिया उसे पता ही नही चला. "अपर्णा जी ठीक से कुछ कह नही सकता. पर हां शायद आपसे प्यार हो गया है. भगवान भली करें अब मेरी. फिर से कही मैं बर्बाद ना हो जाऊ प्यार में."
आशुतोष को तो नींद ही नही आई सारी रात. ताकिया बाहों में दबाए कभी इस करवे कभी उस करवट. "आशुतोष सो जा आराम से कुछ मिलने वाला नही है प्यार में. पहले जब ये आया था जिंदगी में तो बहुत गहरी चोट दे गया था. अब क्या सितम ढाएगा पता नही. अपर्णा जी तुझे पसंद नही करती हैं समझ ले. तू उनके लायक भी नही है. ऐसे में क्यों सर दर्द मोल लेते हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो. कोई ख़तरनाक एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नही है, जान पर बन सकती है. सो जाओ कल को ड्यूटी पर भी जाना है. रात के 2 बज गये हैं....उफ्फ."