01-01-2020, 12:53 PM
Update 54
रात के कोई 2 बजे आँख खुल गयी बेचारी अपर्णा की.
स्वीट ड्रीम्स की जगह वेट ड्रीम्स हो गया था. इस बार फिर कारण आशुतोष ही था. सपने में अपर्णा ने देखा कि आशुतोष उसके उभारो को चूम रहा है और उसने आशुतोष के सर को थाम रखा है. वो आशुतोष को बार बार कह रही थी 'आइ लव यू....आइ लव यू'
"उफ्फ फिर से वही भयानक सपना. पर ये सच नही होगा. रात के 2 बजे हैं. सुबह के सपने ही सच होते हैं. पर पहले वाला सपना सुबह आया था. नही नही आशुतोष के साथ ये सब छी....कभी नही. पता नही ये आशुतोष मेरे पीछे क्यों पड़ गया है. मैं उसके इरादे कभी कामयाब नही होने दूँगी.
आशुतोष अपर्णा को घर छोड़ कर सीधा घर पहुँचा था. घर पहुँचते ही उसे श्रद्धा का फोन आया. "पोलीस वाला बनके तू तो भूल ही गया मुझे."
"नही श्रद्धा तुझे कैसे भूल सकता हूँ. बताओ क्या बात है."
"बापू गये फिर से किसी काम से बाहर आ रही हूँ मैं तेरे पास."
"नही श्रद्धा सुन." पर श्रद्धा फोन काट चुकी थी.
आशुतोष तो अपर्णा जी के ख़यालो में खोया था. वो परेशान हो रहा था कि पता नही क्यों अपर्णा जी उस से ऐसा बर्ताव करती हैं जबकि उसकी इंटेन्षन तो हमेशा उनकी मदद करने की रहती है. बार-बार अपर्णा जी का चेहरा उसकी आँखो में घूम जाता है. वो कुछ हैरान सा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन अपर्णा जी के रूप का जादू कुछ अजीब सा असर कर रहा था आशुतोष के दिलो दीमाग पर. हालाँकि अपना आशुतोष इन बातों से बिल्कुल बेख़बर था.
श्रद्धा ने दरवाजा खड़काया तो आशुतोष परेशान हो गया. दरअसल पता नही क्यों वो अकेला रहना चाहता था. खूबसूरत ख़यालो में जो खोया था.
"खोलता हूँ बाबा."
दरवाजा खुलते ही श्रद्धा आशुतोष से लिपट गयी.
"बहुत दिन हो गये तुमसे मिले आशुतोष. तुमसे मिलने आई हूँ मैं आज."
"ग़लत वक्त पर आई है तू. थोड़ा परेशान सा था मैं."
"क्या हुआ मेरे आशुतोष को?"
"कुछ नही बस यू ही."
"अभी इलाज़ करती हूँ मैं तेरा. चल बिस्तर पर."
"नही श्रद्धा आज कुछ मूड नही है."
"बहुत दिन हो गये तू मुझसे एक बार भी नही मिला और आज मूड नही है तेरा. कोई बहाना नही चलेगा तेरा. और हां मुझे कुछ नही चाहिए तुझसे. कुछ देना ही चाहती हूँ तुझे."
"क्या देना चाहती हो श्रद्धा?"
"चलो तो सही बिस्तर पे बताती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष को पीछे धक्का देते हुए बिस्तर के नज़दीक ले आती है और फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा देती है. वो आशुतोष की टाँगो के बीच बैठ जाती है और उसकी ज़िप खोलने लगती है.
"क्या कर रही है. मेरा सच में मूड नही है."
"रुक तो सही देखता जा मैं क्या करती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष का लंड निकाल लेती है बाहर. "ये तो शोया पड़ा है. पहले तो मेरा हाथ लगते ही उठ जाता था. चलो कोई बात नही अभी जाग जाएगा ये."
श्रद्धा शोए हुए, मुरझाए हुए लंड को मूह में ले लेती है और चूसने लगती है.
"तू तो कभी नही लेती थी मूह में. आज क्या हो गया."
"वो कमीना भोलू काई बार चुस्वा चुका है मुझसे. जब उसका चूस लिया तो क्या मेरे आशुतोष का नही चुसुन्गि क्या?"
"ग़लत टाइम पे आई तू ये करने आज थोड़ा व्यथित हूँ मैं."
श्रद्धा आशुतोष के लंड को मूह से निकाल कर उसके उपर लेट जाती है और उसकी आँखो में झाँक कर पूछती है, "क्या हुआ मेरे आशुतोष को. बताओ मुझे."
"कुछ नही तू नही समझेगी."
"समझूंगी क्यों नही तू बता तो."
"आज अपर्णा जी से मिला था. पता नही क्यों. वो मुझसे सीधे मूह बात ही नही करती." आशुतोष पूरी बात बताता है श्रद्धा को.
"बस इतनी सी बात है. अरे वो डरती होगी कि कही तुम किसी दिन झुका कर उसे उसकी गान्ड ना मार लो. सब बता रखा है मैने उसे की कैसे झुका कर लेते हो तुम...हा...हा...हा...हे...हे."
"क्या! कैसी कैसी बाते बता रखी हैं तूने मेरे बारे में अपर्णा जी को. तभी कहु वो इतना दूर क्यों भागती है मुझसे."
रात के कोई 2 बजे आँख खुल गयी बेचारी अपर्णा की.
स्वीट ड्रीम्स की जगह वेट ड्रीम्स हो गया था. इस बार फिर कारण आशुतोष ही था. सपने में अपर्णा ने देखा कि आशुतोष उसके उभारो को चूम रहा है और उसने आशुतोष के सर को थाम रखा है. वो आशुतोष को बार बार कह रही थी 'आइ लव यू....आइ लव यू'
"उफ्फ फिर से वही भयानक सपना. पर ये सच नही होगा. रात के 2 बजे हैं. सुबह के सपने ही सच होते हैं. पर पहले वाला सपना सुबह आया था. नही नही आशुतोष के साथ ये सब छी....कभी नही. पता नही ये आशुतोष मेरे पीछे क्यों पड़ गया है. मैं उसके इरादे कभी कामयाब नही होने दूँगी.
आशुतोष अपर्णा को घर छोड़ कर सीधा घर पहुँचा था. घर पहुँचते ही उसे श्रद्धा का फोन आया. "पोलीस वाला बनके तू तो भूल ही गया मुझे."
"नही श्रद्धा तुझे कैसे भूल सकता हूँ. बताओ क्या बात है."
"बापू गये फिर से किसी काम से बाहर आ रही हूँ मैं तेरे पास."
"नही श्रद्धा सुन." पर श्रद्धा फोन काट चुकी थी.
आशुतोष तो अपर्णा जी के ख़यालो में खोया था. वो परेशान हो रहा था कि पता नही क्यों अपर्णा जी उस से ऐसा बर्ताव करती हैं जबकि उसकी इंटेन्षन तो हमेशा उनकी मदद करने की रहती है. बार-बार अपर्णा जी का चेहरा उसकी आँखो में घूम जाता है. वो कुछ हैरान सा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन अपर्णा जी के रूप का जादू कुछ अजीब सा असर कर रहा था आशुतोष के दिलो दीमाग पर. हालाँकि अपना आशुतोष इन बातों से बिल्कुल बेख़बर था.
श्रद्धा ने दरवाजा खड़काया तो आशुतोष परेशान हो गया. दरअसल पता नही क्यों वो अकेला रहना चाहता था. खूबसूरत ख़यालो में जो खोया था.
"खोलता हूँ बाबा."
दरवाजा खुलते ही श्रद्धा आशुतोष से लिपट गयी.
"बहुत दिन हो गये तुमसे मिले आशुतोष. तुमसे मिलने आई हूँ मैं आज."
"ग़लत वक्त पर आई है तू. थोड़ा परेशान सा था मैं."
"क्या हुआ मेरे आशुतोष को?"
"कुछ नही बस यू ही."
"अभी इलाज़ करती हूँ मैं तेरा. चल बिस्तर पर."
"नही श्रद्धा आज कुछ मूड नही है."
"बहुत दिन हो गये तू मुझसे एक बार भी नही मिला और आज मूड नही है तेरा. कोई बहाना नही चलेगा तेरा. और हां मुझे कुछ नही चाहिए तुझसे. कुछ देना ही चाहती हूँ तुझे."
"क्या देना चाहती हो श्रद्धा?"
"चलो तो सही बिस्तर पे बताती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष को पीछे धक्का देते हुए बिस्तर के नज़दीक ले आती है और फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा देती है. वो आशुतोष की टाँगो के बीच बैठ जाती है और उसकी ज़िप खोलने लगती है.
"क्या कर रही है. मेरा सच में मूड नही है."
"रुक तो सही देखता जा मैं क्या करती हूँ."
श्रद्धा आशुतोष का लंड निकाल लेती है बाहर. "ये तो शोया पड़ा है. पहले तो मेरा हाथ लगते ही उठ जाता था. चलो कोई बात नही अभी जाग जाएगा ये."
श्रद्धा शोए हुए, मुरझाए हुए लंड को मूह में ले लेती है और चूसने लगती है.
"तू तो कभी नही लेती थी मूह में. आज क्या हो गया."
"वो कमीना भोलू काई बार चुस्वा चुका है मुझसे. जब उसका चूस लिया तो क्या मेरे आशुतोष का नही चुसुन्गि क्या?"
"ग़लत टाइम पे आई तू ये करने आज थोड़ा व्यथित हूँ मैं."
श्रद्धा आशुतोष के लंड को मूह से निकाल कर उसके उपर लेट जाती है और उसकी आँखो में झाँक कर पूछती है, "क्या हुआ मेरे आशुतोष को. बताओ मुझे."
"कुछ नही तू नही समझेगी."
"समझूंगी क्यों नही तू बता तो."
"आज अपर्णा जी से मिला था. पता नही क्यों. वो मुझसे सीधे मूह बात ही नही करती." आशुतोष पूरी बात बताता है श्रद्धा को.
"बस इतनी सी बात है. अरे वो डरती होगी कि कही तुम किसी दिन झुका कर उसे उसकी गान्ड ना मार लो. सब बता रखा है मैने उसे की कैसे झुका कर लेते हो तुम...हा...हा...हा...हे...हे."
"क्या! कैसी कैसी बाते बता रखी हैं तूने मेरे बारे में अपर्णा जी को. तभी कहु वो इतना दूर क्यों भागती है मुझसे."