01-01-2020, 12:44 PM
अंकिता पिस्टल ताने आगे बढ़ रही थी. आशुतोष उसके पीछे पीछे था.
"कहाँ गया वो?" अंकिता ने कहा.
"इतना बड़ा जंगल है मेडम कही भी जा सकता है वो."
"हर तरफ नज़र रखो तुम वो यही कही छुपा हो सकता है."
"ठीक है मेडम मैं नज़र रखे हुए हूँ." आशुतोष ने कहा.
अचानक कुछ हलचल होती है और अंकिता थम जाती है. आशुतोष का ध्यान दूसरी तरफ रहता है वो सीधा ए एस पी साहिबा से टकराता है. उनका सर पेड़ की एक डाली से टकराता है और उनका पारा चढ़ जाता है. आशुतोष के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल जाती है. उस से कुछ कहे नही बनता. चेहरा लटक जाता है बेचारे का.
"ध्यान कहाँ है तुम्हारा कभी मेरे उपर गिर जाते हो कभी पीछे से टकराते हो. ये सारी की सारी गोलिया तुम्हारे भेजे में उतार दूँगी अभी. पता नही किस लंगूर को साथ ले आई मैं."
"सॉरी मेडम मेरा ध्यान दूसरी तरफ था डाँट लीजिए मुझे जितना भी पर लंगूर मत कहिए."
"क्यों ना कहु?"
"लंगूर मुझे अच्छे नही लगते किसी और जानवर का नाम दे दीजिए." आशुतोष ने गंभीर मुद्रा में कहा.
"जीसस...चुप रहो अभी तुम. क्या तुम्हे कुछ हलचल सुनाई दी सामने की झाड़ियों में."
"हां सुनाई तो दी मेडम"
"बिल्कुल चुपचाप दबे कदमो से चलो आवाज़ मत करना कोई."
"आवाज़ निकालने लायक छोड़ा है आपने जो आवाज़ करूँगा." आशुतोष धीरे से फुसफुसाया.
"कुछ कहा तुमने?"
"नही नही कुछ नही कहा..चलिए देखते हैं क्या हैं इन झाड़ियों में." आशुतोष ने धीरे से कहा.
अंकिता दबे पाँव पिस्टल ताने झाड़ियों की और बढ़ी आशुतोष बिल्कुल उसके पीछे था. झाड़ियों को हटाते हुए अंकिता आगे बढ़ रही थी. झाड़ियों के पीछे कुछ और नही बल्कि एक जुंगली बिल्ली थी अंकिता को देखते ही वो भाग खड़ी हुई. बस दिक्कत ये रही कि वो अंकिता के पाँव के बिल्कुल करीब से भागी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की अंकिता और आशुतोष थोड़ा सकपका गये. अंकिता से तो थमा ही नही गया और वो बिल्ली को देखते ही आशुतोष की तरफ घूमी और कब वो आशुतोष को लेकर गिर गयी उसे पता ही नही चला. इस बार अपना आशुतोष नीचे था और ए एस पी साहिबा उपर. "खड़े खड़े देख रहे थे कुछ कर नही सकते थे तुम." अंकिता फ़ौरन उठ खड़ी हुई.
"आप ही ने तो कहा था कि आपको किसी की मदद की ज़रूरत नही. मैने इस लिए नही थामा आपको कि कही मैं सस्पेंड ना हो जाऊ."
"शट अप चलो आगे बढ़ते हैं."
"सॉरी मेडम...चलिए."
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"कहाँ गया वो?" अंकिता ने कहा.
"इतना बड़ा जंगल है मेडम कही भी जा सकता है वो."
"हर तरफ नज़र रखो तुम वो यही कही छुपा हो सकता है."
"ठीक है मेडम मैं नज़र रखे हुए हूँ." आशुतोष ने कहा.
अचानक कुछ हलचल होती है और अंकिता थम जाती है. आशुतोष का ध्यान दूसरी तरफ रहता है वो सीधा ए एस पी साहिबा से टकराता है. उनका सर पेड़ की एक डाली से टकराता है और उनका पारा चढ़ जाता है. आशुतोष के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल जाती है. उस से कुछ कहे नही बनता. चेहरा लटक जाता है बेचारे का.
"ध्यान कहाँ है तुम्हारा कभी मेरे उपर गिर जाते हो कभी पीछे से टकराते हो. ये सारी की सारी गोलिया तुम्हारे भेजे में उतार दूँगी अभी. पता नही किस लंगूर को साथ ले आई मैं."
"सॉरी मेडम मेरा ध्यान दूसरी तरफ था डाँट लीजिए मुझे जितना भी पर लंगूर मत कहिए."
"क्यों ना कहु?"
"लंगूर मुझे अच्छे नही लगते किसी और जानवर का नाम दे दीजिए." आशुतोष ने गंभीर मुद्रा में कहा.
"जीसस...चुप रहो अभी तुम. क्या तुम्हे कुछ हलचल सुनाई दी सामने की झाड़ियों में."
"हां सुनाई तो दी मेडम"
"बिल्कुल चुपचाप दबे कदमो से चलो आवाज़ मत करना कोई."
"आवाज़ निकालने लायक छोड़ा है आपने जो आवाज़ करूँगा." आशुतोष धीरे से फुसफुसाया.
"कुछ कहा तुमने?"
"नही नही कुछ नही कहा..चलिए देखते हैं क्या हैं इन झाड़ियों में." आशुतोष ने धीरे से कहा.
अंकिता दबे पाँव पिस्टल ताने झाड़ियों की और बढ़ी आशुतोष बिल्कुल उसके पीछे था. झाड़ियों को हटाते हुए अंकिता आगे बढ़ रही थी. झाड़ियों के पीछे कुछ और नही बल्कि एक जुंगली बिल्ली थी अंकिता को देखते ही वो भाग खड़ी हुई. बस दिक्कत ये रही कि वो अंकिता के पाँव के बिल्कुल करीब से भागी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की अंकिता और आशुतोष थोड़ा सकपका गये. अंकिता से तो थमा ही नही गया और वो बिल्ली को देखते ही आशुतोष की तरफ घूमी और कब वो आशुतोष को लेकर गिर गयी उसे पता ही नही चला. इस बार अपना आशुतोष नीचे था और ए एस पी साहिबा उपर. "खड़े खड़े देख रहे थे कुछ कर नही सकते थे तुम." अंकिता फ़ौरन उठ खड़ी हुई.
"आप ही ने तो कहा था कि आपको किसी की मदद की ज़रूरत नही. मैने इस लिए नही थामा आपको कि कही मैं सस्पेंड ना हो जाऊ."
"शट अप चलो आगे बढ़ते हैं."
"सॉरी मेडम...चलिए."
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