01-01-2020, 12:00 PM
"अब तो खुश होंगे आप डाल दिया ना पूरा आआहह कितना दर्द हो रहा है."
"थोड़ी देर में जैसे चूत का दर्द गया था गान्ड का भी चला जाएगा"
आशु कुछ देर तक स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा. स्निग्धा भी चुपचाप गान्ड में लिए पेड़ का सहारा ले कर झुकी रही. कुछ देर बाद आशु हल्का हल्का हिलने लगा.
"आआहह व्हाट ए बट यू हॅव आआहह फक इट आआहह"
"ऊऊओह आआहह योर लंड ईज़ गोयिंग सो डीप आआहह"
"डीप तो जाएगा ही बड़ा जो है....हे..हे..हे."
"प्लीज़ हँसिए मत."
"ओह सॉरी...आप चिंता मत करो...खो जाओ मेरे लंड के धक्को में...आआहह"
"मैं कब से झुकी हुई हूँ...कमर दुखने लगी है मेरी आआहह."
"खड़ी हो जाओ फिर....और पेड़ से चिपक जाओ मैं खड़े खड़े मार लूँगा गान्ड तुम्हारी."
स्निग्धा लंड को गान्ड में लिए-लिए खड़ी हो गयी और पेड़ से चिपक गयी. आशु अब स्निग्धा को खड़े खड़े ठोक रहा था.
"कब तक करेंगे आप मैं थक गयी हूँ."
"कर दू क्या ख़तम?"
"और नही तो क्या मुझे ड्यूटी भी करनी है अपनी और मैं थक भी गयी हूँ."
"पेड़ को कस के पकड़ लो अब ज़ोर ज़ोर से मारूँगा मैं आआहह"
आशु अब अपने ऑर्गॅज़म के लिए स्निग्धा की गान्ड पर पिल जाता है.
"आआआहह ऊऊऊहह थोड़ा धीएरे कीजिए अयाया दर्द हो रहा है फिर से आआहह"
पर आशु अपने चरम के नज़दीक था. उसके धक्को की स्पीड और बढ़ती गयी.
"ऊऊओह ये लो छोड़ रहा हूँ मैं अपना वीर्य तुम्हारी सेक्सी गान्ड में आआअहह ऊओह"
और आख़िर कार आशु का ऑर्गॅज़म हो ही गया. कुछ देर तक आशु यू ही स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा.
"निकालिए भी अब ...मुझे जाना है...ड्यूटी भी करनी है." स्निग्धा ने कहा.
"ओह सॉरी...अभी निकालता हूँ." आशु स्निग्धा की गान्ड से लंड बाहर खींच लेता है.
"आआहह." स्निग्धा लंड के निकालने पर कराह उठती है.
दोनो वापिस हॉस्पिटल की ओर चल देते हैं.
"आप से एक बात पूछनी थी." आशु ने कहा.
"मेरे दोस्त ने साइको किलर के पेट में चाकू मारा था. पर किसी भी हॉस्पिटल या क्लिनिक में ऐसा व्यक्ति नही आया जिसके पेट में चाकू लगा हो."
"हो सकता है वो अपना इलाज़ घर पर करवा रहा हो." स्निग्धा ने कहा
"ओह हां...ऐसा हो सकता है इस बात पर तो मेरा ध्यान ही नही गया."
"क्या इस से कुछ मदद मिलेगी."
"बिल्कुल मिलेगी"
स्निग्धा सौरभ को एक और ग्लूकोस की बॉटल लगा देती है. सौरभ अभी भी गहरी नींद में सोया है.
जब स्निग्धा जाने लगती है तो आशु उसका हाथ पकड़ लेता है.
"थॅंक यू.... मुझे आपके अंदर लगाया हर धक्का याद रहेगा."
"बहुत स्टॅमिना है आप में... आपने तो जान निकाल दी मेरी"
"मोका मिला तो फिर लूँगा तुम्हारी मेरा दोस्त यहा हफ्ते के लिए है."
"ह्म्म सोचूँगी की आपको दुबारा दी जाए या नही आप तो जान निकाल देते हो."
"मज़ा भी तो उतना ही देता हूँ."
"वो तो है...इतने ऑर्गॅज़म एक बार में आज तक नही हुए मुझे जालिम हो तुम तो."
"थोड़ी देर में जैसे चूत का दर्द गया था गान्ड का भी चला जाएगा"
आशु कुछ देर तक स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा. स्निग्धा भी चुपचाप गान्ड में लिए पेड़ का सहारा ले कर झुकी रही. कुछ देर बाद आशु हल्का हल्का हिलने लगा.
"आआहह व्हाट ए बट यू हॅव आआहह फक इट आआहह"
"ऊऊओह आआहह योर लंड ईज़ गोयिंग सो डीप आआहह"
"डीप तो जाएगा ही बड़ा जो है....हे..हे..हे."
"प्लीज़ हँसिए मत."
"ओह सॉरी...आप चिंता मत करो...खो जाओ मेरे लंड के धक्को में...आआहह"
"मैं कब से झुकी हुई हूँ...कमर दुखने लगी है मेरी आआहह."
"खड़ी हो जाओ फिर....और पेड़ से चिपक जाओ मैं खड़े खड़े मार लूँगा गान्ड तुम्हारी."
स्निग्धा लंड को गान्ड में लिए-लिए खड़ी हो गयी और पेड़ से चिपक गयी. आशु अब स्निग्धा को खड़े खड़े ठोक रहा था.
"कब तक करेंगे आप मैं थक गयी हूँ."
"कर दू क्या ख़तम?"
"और नही तो क्या मुझे ड्यूटी भी करनी है अपनी और मैं थक भी गयी हूँ."
"पेड़ को कस के पकड़ लो अब ज़ोर ज़ोर से मारूँगा मैं आआहह"
आशु अब अपने ऑर्गॅज़म के लिए स्निग्धा की गान्ड पर पिल जाता है.
"आआआहह ऊऊऊहह थोड़ा धीएरे कीजिए अयाया दर्द हो रहा है फिर से आआहह"
पर आशु अपने चरम के नज़दीक था. उसके धक्को की स्पीड और बढ़ती गयी.
"ऊऊओह ये लो छोड़ रहा हूँ मैं अपना वीर्य तुम्हारी सेक्सी गान्ड में आआअहह ऊओह"
और आख़िर कार आशु का ऑर्गॅज़म हो ही गया. कुछ देर तक आशु यू ही स्निग्धा की गान्ड में लंड फ़साए खड़ा रहा.
"निकालिए भी अब ...मुझे जाना है...ड्यूटी भी करनी है." स्निग्धा ने कहा.
"ओह सॉरी...अभी निकालता हूँ." आशु स्निग्धा की गान्ड से लंड बाहर खींच लेता है.
"आआहह." स्निग्धा लंड के निकालने पर कराह उठती है.
दोनो वापिस हॉस्पिटल की ओर चल देते हैं.
"आप से एक बात पूछनी थी." आशु ने कहा.
"मेरे दोस्त ने साइको किलर के पेट में चाकू मारा था. पर किसी भी हॉस्पिटल या क्लिनिक में ऐसा व्यक्ति नही आया जिसके पेट में चाकू लगा हो."
"हो सकता है वो अपना इलाज़ घर पर करवा रहा हो." स्निग्धा ने कहा
"ओह हां...ऐसा हो सकता है इस बात पर तो मेरा ध्यान ही नही गया."
"क्या इस से कुछ मदद मिलेगी."
"बिल्कुल मिलेगी"
स्निग्धा सौरभ को एक और ग्लूकोस की बॉटल लगा देती है. सौरभ अभी भी गहरी नींद में सोया है.
जब स्निग्धा जाने लगती है तो आशु उसका हाथ पकड़ लेता है.
"थॅंक यू.... मुझे आपके अंदर लगाया हर धक्का याद रहेगा."
"बहुत स्टॅमिना है आप में... आपने तो जान निकाल दी मेरी"
"मोका मिला तो फिर लूँगा तुम्हारी मेरा दोस्त यहा हफ्ते के लिए है."
"ह्म्म सोचूँगी की आपको दुबारा दी जाए या नही आप तो जान निकाल देते हो."
"मज़ा भी तो उतना ही देता हूँ."
"वो तो है...इतने ऑर्गॅज़म एक बार में आज तक नही हुए मुझे जालिम हो तुम तो."