01-01-2020, 11:56 AM
आशु सौरभ के पास ही बैठ जाता है. कुछ देर तक तो वो जागा रहता है लेकिन धीरे धीरे नींद उसे घेर ही लेती है और वो बैठा बैठा कुर्सी पर झूलने लगता है. कुर्सी के लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाता है. आख़िर कार वो लूड़क जाता है और उसकी आँख खुल जाती है.
"12:30 हो गये...देखता हूँ एक बार ट्राइ करके क्या पता बात बन जाए...अब तो वो उसी कमरे में होगी."
आशु उसी कमरे पर पहुँच जाता है. वो दरवाजा खोल कर देखता है पर स्निग्धा वहाँ नही मिलती.
"कहा गयी ये...छोड़ो यार क्यों अपना वक्त खराब कर रहा हू इसके लिए...छाए पी कर आता हूँ वरना फिर नींद आ जाएगी."
आशु हॉस्पिटल की कॅंटीन में आकर चाय ऑर्डर करता है. वही उसे स्निग्धा दीख जाती है. स्निग्धा के साथ एक नर्स और थी और वो भी चाय पी रहे थे.
आशु चाय लेकर स्निग्धा के पास आ जाता है. आशु को देख कर स्निग्धा कहती है,"मैं थोड़ी देर पहले आई तो आपके दोस्त को देखने. ग्लूकोस की नयी बॉटल लगा कर आई हूँ. आप सो रहे थे."
"ओह हां मुझे नींद आ गयी थी...मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है"
"हां बोलिए"
"अकेले में बात करनी है."
"ओके...मैं चाय पी लू क्या?" स्निग्धा मुस्कुरा कर बोली.
"हां-हां बिल्कुल मेरी भी चाय बाकी है"आशु भी मुस्कुरा दिया.
"लाइन क्लियर लगती है...यही मोका है पासा फेकने का...इसकी चाय कब ख़तम होगी कप है या बाल्टी मेरी तो ख़तम भी हो गयी."
"आप मेरे कप को क्यूँ घूर रहे हैं"स्निग्धा ने पूछा.
"अच्छा कप है काफ़ी चाय आ जाती है इसमे...वही देख रहा था."
स्निग्धा हँसने लगती है और बोलती है, "आपके पास भी सेम कप था...चलिए मेरी चाय ख़तम हो गयी."
"शूकर है." आशु ने कहा.
स्निग्धा ने अपने साथ आई नर्स को बाय किया और आशु के साथ चल दी.
"कहिए क्या ज़रूरी बात थी."
"कोई ज़रूरी बात नही है...आपके साथ कुछ पल बिताने थे बस."
"ह्म्म...चाय कैसी लगी आपको इस कॅंटीन की चाय बहुत अच्छी है."
"चाय पी कौन रहा था...मेरी नज़र तो बस आप पर थी."
स्निग्धा शर्मा जाती है और बोलती है, "छोड़िए ऐसी बाते मत कीजिए."
"इतनी खूबसूरत हैं आप और उस सेक्यूरिटी गार्ड के साथ छी...आपके लायक नही है वो ना शक्ल ना सूरत."
स्निग्धा ने आशु की बात का कोई जवाब नही दिया.
"मैने कुछ ग़लत कहा क्या?"
"नही सर ऐसी बात नही है आप ये सब क्यों बोल रहे हैं"
आशु और स्निग्धा बाते करते करते कॅंटीन से काफ़ी दूर आ गये थे. वो अब अंधेरी सड़क पर चल रहे थे.
"वैसे ही बोल रहा हूँ."
"सर इस सड़क पर रोशनी नही है वापिस चलते हैं...अंधेरे से मुझे डर लगता है." स्निग्धा ने कहा.
आशु ने स्निग्धा का हाथ थाम लिया और बोला, "डरने की कोई ज़रूरत नही है मैं हू ना साथ."
"मुझे लगता है आप मुझे ब्लॅकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं. छोड़िए मेरा हाथ."
आशु ने हाथ छोड़ दिया. "आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"पहले आपने मेरी बॅक पर हाथ मारा था...मैने कुछ नही कहा अब आप ये सब घुमा फिरा कर बोल रहे हैं."
"मैं आपको ब्लॅकमेल नही कर रहा हूँ...पटा रहा हूँ इतना भी नही समझती..तुम जाना चाहो तो जा सकती हो मैं तो यही घूमूंगा अभी."
"मुझे पता रहे हैं पर क्यों?"
"क्योंकि मुझे आपकी चूत लेनी है इसलिए...अब साफ साफ बोल दिया फिर मत कहना."
"ओह गॉड आप कैसी बाते करते हैं."
"देखो मैने तुम्हे डिस्टर्ब किया था...आपका काम अधूरा रह गया था. मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपका काम पूरा किया जाए."
"12:30 हो गये...देखता हूँ एक बार ट्राइ करके क्या पता बात बन जाए...अब तो वो उसी कमरे में होगी."
आशु उसी कमरे पर पहुँच जाता है. वो दरवाजा खोल कर देखता है पर स्निग्धा वहाँ नही मिलती.
"कहा गयी ये...छोड़ो यार क्यों अपना वक्त खराब कर रहा हू इसके लिए...छाए पी कर आता हूँ वरना फिर नींद आ जाएगी."
आशु हॉस्पिटल की कॅंटीन में आकर चाय ऑर्डर करता है. वही उसे स्निग्धा दीख जाती है. स्निग्धा के साथ एक नर्स और थी और वो भी चाय पी रहे थे.
आशु चाय लेकर स्निग्धा के पास आ जाता है. आशु को देख कर स्निग्धा कहती है,"मैं थोड़ी देर पहले आई तो आपके दोस्त को देखने. ग्लूकोस की नयी बॉटल लगा कर आई हूँ. आप सो रहे थे."
"ओह हां मुझे नींद आ गयी थी...मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है"
"हां बोलिए"
"अकेले में बात करनी है."
"ओके...मैं चाय पी लू क्या?" स्निग्धा मुस्कुरा कर बोली.
"हां-हां बिल्कुल मेरी भी चाय बाकी है"आशु भी मुस्कुरा दिया.
"लाइन क्लियर लगती है...यही मोका है पासा फेकने का...इसकी चाय कब ख़तम होगी कप है या बाल्टी मेरी तो ख़तम भी हो गयी."
"आप मेरे कप को क्यूँ घूर रहे हैं"स्निग्धा ने पूछा.
"अच्छा कप है काफ़ी चाय आ जाती है इसमे...वही देख रहा था."
स्निग्धा हँसने लगती है और बोलती है, "आपके पास भी सेम कप था...चलिए मेरी चाय ख़तम हो गयी."
"शूकर है." आशु ने कहा.
स्निग्धा ने अपने साथ आई नर्स को बाय किया और आशु के साथ चल दी.
"कहिए क्या ज़रूरी बात थी."
"कोई ज़रूरी बात नही है...आपके साथ कुछ पल बिताने थे बस."
"ह्म्म...चाय कैसी लगी आपको इस कॅंटीन की चाय बहुत अच्छी है."
"चाय पी कौन रहा था...मेरी नज़र तो बस आप पर थी."
स्निग्धा शर्मा जाती है और बोलती है, "छोड़िए ऐसी बाते मत कीजिए."
"इतनी खूबसूरत हैं आप और उस सेक्यूरिटी गार्ड के साथ छी...आपके लायक नही है वो ना शक्ल ना सूरत."
स्निग्धा ने आशु की बात का कोई जवाब नही दिया.
"मैने कुछ ग़लत कहा क्या?"
"नही सर ऐसी बात नही है आप ये सब क्यों बोल रहे हैं"
आशु और स्निग्धा बाते करते करते कॅंटीन से काफ़ी दूर आ गये थे. वो अब अंधेरी सड़क पर चल रहे थे.
"वैसे ही बोल रहा हूँ."
"सर इस सड़क पर रोशनी नही है वापिस चलते हैं...अंधेरे से मुझे डर लगता है." स्निग्धा ने कहा.
आशु ने स्निग्धा का हाथ थाम लिया और बोला, "डरने की कोई ज़रूरत नही है मैं हू ना साथ."
"मुझे लगता है आप मुझे ब्लॅकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं. छोड़िए मेरा हाथ."
आशु ने हाथ छोड़ दिया. "आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"पहले आपने मेरी बॅक पर हाथ मारा था...मैने कुछ नही कहा अब आप ये सब घुमा फिरा कर बोल रहे हैं."
"मैं आपको ब्लॅकमेल नही कर रहा हूँ...पटा रहा हूँ इतना भी नही समझती..तुम जाना चाहो तो जा सकती हो मैं तो यही घूमूंगा अभी."
"मुझे पता रहे हैं पर क्यों?"
"क्योंकि मुझे आपकी चूत लेनी है इसलिए...अब साफ साफ बोल दिया फिर मत कहना."
"ओह गॉड आप कैसी बाते करते हैं."
"देखो मैने तुम्हे डिस्टर्ब किया था...आपका काम अधूरा रह गया था. मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपका काम पूरा किया जाए."