01-01-2020, 11:20 AM
आशु ने ध्यान से देखा तो पाया कि अपर्णा के पैरो में काग़ज़ में लिपटा एक पत्थर पड़ा था. आशु ने फ़ौरन उसे उठाया और काग़ज़ को पत्थर से अलग करके पत्थर एक तरफ फेंक दिया. आशु ने काग़ज़ फैलाया. उस पर लिखा था "यू कैन रन बट यू कैन नेवेर हाइड"
आशु ने काग़ज़ अपर्णा को दिया और फ़ौरन बाहर आकर देखा. कुत्ते ज़ोर ज़ोर से भोंक रहे थे और चारो तरफ सन्नाटा था. आशु को कुछ दीखाई नही दिया.
अपर्णा ने काग़ज़ पर लिखे शब्द पढ़े तो वो थर थर काँपने लगी. रौ दरवाजा बंद करके वापिस अंदर आ गया. थोड़ा वो भी डरा हुआ था.
"उस रात जंगल में वो चिल्ला चिल्ला कर यही बोल रहा था जो इस काग़ज़ पर लिखा है" अपर्णा ने कहा.
आशु ने फ़ौरन खिड़की बंद की और बोला,"उफ्फ वो कॅटा भी नही है आज...गुरु को भी आज ही पीनी थी"
"अरे आपके सर से तो खून निकल आया है" आशु ने कहा.
अपर्णा ने सर पर हाथ रखा तो उसकी उंगली पर खून की कुछ बूंदे लग गयी.
आशु ने फोन निकाला और इनस्पेक्टर चौहान को फोन लगाया. पर उनका नंबर नही मिला. फिर उसने सब इनस्पेक्टर विजय को फोन किया. उन्होने फोन नही उठाया.
"उफ्फ कैसे पोलीस वाले हैं ये...कोई भी एमर्जेन्सी हो ये नही मिलेंगे" आशु बड़बड़ाया.
हार कर आशु ने सौरभ को फोन किया. पर नशे की हालत में उसने भी फोन नही उठाया.
"सब के सब निक्कममे हैं मुझे ही कुछ करना होगा." आशु ने कहा और कुण्डी खोलने लगा.
"क्या कर रहे हो बाहर मत जाओ...वो बहुत ख़तरनाक है" अपर्णा ने कहा.
आशु रुक गया और बोला, "पर उसे पकड़ने को अच्छा मोका था."
अपर्णा जी यहा कुछ नही है सर पे लगाने को आप ऐसा करो थोड़ा ठंडा पानी डाल लो चोट पर खून बंद हो जाएगा."
"कोई बात नही खून बंद हो चुका है मामूली सी चोट है ठीक हो जाएगी"
"अपर्णा जी आप की जगह कोई और होता तो ना जाने क्या हाल होता उसका. आप बड़ी बहादुरी से सब सह रही हो"
"बस बस मक्खन मत लगाओ मैं जानती हूँ तुम क्या कोशिश कर रहे हो"
"आप ऐसा क्यों बोलती हैं मुझे...मैं तो बस..."
"उसे पता है की मैं यहा हूँ" अपर्णा ने कहा.
"शायद"
"शायद नही...उसे पता है वरना वो ये पत्थर क्यों फेंकता"
"श्रद्धा के पीछे आया था वह कल यहा...हो सकता है वो उसके पीछे हो. कल आपको उसने नही पहचाना होगा. आज तो वो खिड़की के पास आया ही नही बस पत्थर फेंका है दूर से."
"हां पर ये तुम्हारा अंदाज़ा है...मैं एक पल भी यहा नही रुकूंगी मैं इसी वक्त घर जा रही हूँ"
"ये आप क्या कह रही हैं...ये वक्त कही आने जाने का नही है"
"तो क्या करूँ इस कमरे में बैठे बैठे अपनी किस्मत को रोती रहूं...मुझे अब यहा से जाना ही होगा."
"अपर्णा जी आप समझ नही रही हैं वो बाहर ही कही है" आशु ने कहा.
"तुम भी नही समझ रहे हो मेरा यहा रहना भी ठीक नही है"
"मैं समझ रहा हूँ पर...एक मिनट"
"क्या हुआ" अपर्णा ने पूछा.
"एक काम हो सकता है"
"क्या?"
आशु ने काग़ज़ अपर्णा को दिया और फ़ौरन बाहर आकर देखा. कुत्ते ज़ोर ज़ोर से भोंक रहे थे और चारो तरफ सन्नाटा था. आशु को कुछ दीखाई नही दिया.
अपर्णा ने काग़ज़ पर लिखे शब्द पढ़े तो वो थर थर काँपने लगी. रौ दरवाजा बंद करके वापिस अंदर आ गया. थोड़ा वो भी डरा हुआ था.
"उस रात जंगल में वो चिल्ला चिल्ला कर यही बोल रहा था जो इस काग़ज़ पर लिखा है" अपर्णा ने कहा.
आशु ने फ़ौरन खिड़की बंद की और बोला,"उफ्फ वो कॅटा भी नही है आज...गुरु को भी आज ही पीनी थी"
"अरे आपके सर से तो खून निकल आया है" आशु ने कहा.
अपर्णा ने सर पर हाथ रखा तो उसकी उंगली पर खून की कुछ बूंदे लग गयी.
आशु ने फोन निकाला और इनस्पेक्टर चौहान को फोन लगाया. पर उनका नंबर नही मिला. फिर उसने सब इनस्पेक्टर विजय को फोन किया. उन्होने फोन नही उठाया.
"उफ्फ कैसे पोलीस वाले हैं ये...कोई भी एमर्जेन्सी हो ये नही मिलेंगे" आशु बड़बड़ाया.
हार कर आशु ने सौरभ को फोन किया. पर नशे की हालत में उसने भी फोन नही उठाया.
"सब के सब निक्कममे हैं मुझे ही कुछ करना होगा." आशु ने कहा और कुण्डी खोलने लगा.
"क्या कर रहे हो बाहर मत जाओ...वो बहुत ख़तरनाक है" अपर्णा ने कहा.
आशु रुक गया और बोला, "पर उसे पकड़ने को अच्छा मोका था."
अपर्णा जी यहा कुछ नही है सर पे लगाने को आप ऐसा करो थोड़ा ठंडा पानी डाल लो चोट पर खून बंद हो जाएगा."
"कोई बात नही खून बंद हो चुका है मामूली सी चोट है ठीक हो जाएगी"
"अपर्णा जी आप की जगह कोई और होता तो ना जाने क्या हाल होता उसका. आप बड़ी बहादुरी से सब सह रही हो"
"बस बस मक्खन मत लगाओ मैं जानती हूँ तुम क्या कोशिश कर रहे हो"
"आप ऐसा क्यों बोलती हैं मुझे...मैं तो बस..."
"उसे पता है की मैं यहा हूँ" अपर्णा ने कहा.
"शायद"
"शायद नही...उसे पता है वरना वो ये पत्थर क्यों फेंकता"
"श्रद्धा के पीछे आया था वह कल यहा...हो सकता है वो उसके पीछे हो. कल आपको उसने नही पहचाना होगा. आज तो वो खिड़की के पास आया ही नही बस पत्थर फेंका है दूर से."
"हां पर ये तुम्हारा अंदाज़ा है...मैं एक पल भी यहा नही रुकूंगी मैं इसी वक्त घर जा रही हूँ"
"ये आप क्या कह रही हैं...ये वक्त कही आने जाने का नही है"
"तो क्या करूँ इस कमरे में बैठे बैठे अपनी किस्मत को रोती रहूं...मुझे अब यहा से जाना ही होगा."
"अपर्णा जी आप समझ नही रही हैं वो बाहर ही कही है" आशु ने कहा.
"तुम भी नही समझ रहे हो मेरा यहा रहना भी ठीक नही है"
"मैं समझ रहा हूँ पर...एक मिनट"
"क्या हुआ" अपर्णा ने पूछा.
"एक काम हो सकता है"
"क्या?"