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Adultery मेहमान बेईमान
#31
रोमांच के सागर मे गोते लगाने ऑर योनि के लगातार बहने के कारण मेरी दोनो टांगे एक दूसरे से चिपक सी गयी थी.. दोनो टाँगो के बीच मे पकड़ ऐसी थी कि मेरी योनि से उठने वाली चाहत को वो अंदर ही बाँध कर रखना चाहती हो.. यही सोच कर मेरे हाथो का दवाब मेरे उरोजो पर भी सख़्त होता चला गया..

मैने अपनी साड़ी को फॉरन अपने शरीर से अलग किया ऑर बेड के उपर फेंक दिया.. सारी को उतारने के बाद मैने धीरे धीरे अपने पेटिकोट को इस तरह से अपने जिस्म से अलग किया जैसे कोई बोहोत मुश्किल काम कर रही हू.. हल्के हाथ से मैने अपना पेटिकोट भी उतार कर बेड की तरफ उच्छाल कर फेंक दिया..

अब मेरे शरीर पर सिर्फ़ एक पिंक कलर की पॅंटी थी.. मैने जब पॅंटी मे शीशे के अंदर खुद को निहारा तो शरम से मेरे दोनो हाथ अपने आप मेरे चेहरे पर आ गये.. पॅंटी ने मेरी योनि को तो धंक लिया था पर उसके आजू बाजू जो हल्के हल्के बाल थे जिन्हे कुछ दिन पहले ही मनीष ने साफ किया था उगे हुए थे.. मुझे बाल सॉफ करने मे बड़ी गुदगुदी होती थी पर मनीष को योनि के उपर बाल ज़रा भी अच्छे नही लगते थे.. कल ही सेक्स करते समय उन्होने कहा था कि “निशा तुम्हारे बाल फिर से बड़े हो गये है कहो तो सॉफ कर दू” पर मैने घर मे अमित के होने का नाम ले कर मना कर दिया था..

जब मैने शीशे मे खुद को देखा तो मेरी आँखे एक दम गुलाबी हो गयी थी जैसी किसी शराबी की नशा करने के बाद हो जाती है, ठीक वैसी ही आँखे हो रही थी मेरी भी.. ऑर उसी नशे मे डूब कर मैने अपने जिस्म से अपनी पॅंटी को भी अलग कर दिया..
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 01-01-2020, 10:30 AM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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