30-01-2019, 08:26 PM
नंदोई दो सलहज एक
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“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...” कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|
“अरे ये ये...तो मेरा भाई है...”
मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनों झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी| सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी, मेरी रात भर की प्यासी चूत में वीर्य की बारिश हो रही थी|
और ऊपर से नंदोई अभी भी कस के उसकी गांड़ मार रहे थे|
हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब झड़ कर हटे तब वो मुझसे अलग हो पाया|
“क्यों भाभी, मेरे भैया से तो रोज चुदवाती थीं...कैसा लगा अपने भैया से चुदवाना? चलिए कोई बात नहीं...बुरा ना मानो होली है...अब जरा मेरे सैंया से भी तो चुदवा के देख लीजिए|” ननद ने छेड़ा|
“चल देख लूंगी उनको भी...” रस भरी निगाहों से नंदोई को देखते हुए मैं बोली|
आगे
तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|
वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|
कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|
तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,
“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”
“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|
“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों एक साथ बोले|
मैंने रंग से जवाब दिया, पास रखी रंग की बाल्टी उठा के सीधे दोनों पर एक साथ और दोनों नंदोई रंग से सराबोर हो गये|
दूसरी बाल्टी का निशाना मैंने सीधे उनके खूंटे पे...पर तब तक वो दोनों भी संभल गए थे| एक ने मुझे पीछे से पकड़ा और दूसरे ने पहले गालों पे, फिर मेरी लपेटी, देह से चिपकी साड़ी के ऊपर से हीं मेरे जोबन पे रंग लगाना शुरू कर दिया|
“अरे एक साथ दोनों डालियेगा क्या?” मैंने हँस के पूछा|
“मन मन भावे...अरे भाभी मन की बात जुबान पे आ गई| साफ साफ क्यों नहीं कहती कि एक साथ आगे पीछे दोनों ओर का मजा लेना चाहती हैं|”
ननद ने हँस के चिढ़ाया|
“हम दोनों तैयार हैं|” दोनों साथ साथ बोले|
“आगे वाली तेरी, पीछे वाली मेरी..”
नंदोई ने टुकड़ा लगाया|
तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे (जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था) नंदोई गिरे और उन्हें पकड़े पकड़े उनके ऊपर मैं गिरी| रंग से सराबोर|
नंदोई ने मेरी साड़ी खींच के मुझे वस्त्रहीन कर दिया| लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया| मेरे नीचे दबे छोटे नंदोई का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया| (कुरता बनियान तो दोनों का हमलोग पहले हीं फाड़ के टॉपलेस कर चुके थे और नंदोई ने मेरी ननद को भी... तो अब हम चारो एक हालत में थे|)
क्या लंड था, खूब मोटा, एक बालिश्त सा लंबा और एकदम खड़ा|
ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस-कस के पोत दिया|
मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुँह के पास नंदोई जी का मोटा लंड था|
मैंने दोनों हाथों से कस-कस के लाल पक्का रंग पोत दिया| खड़ा तो वो पहले से हीं था, मेरा हाथ लग के वो लोहे का रॉड हो गया, लाल रंग का| मेरे नीचे दबे नंदोई मेरी चूत और चूचि दोनों पे रंग लगा रहे थे|
“अरे चूत के बाहर तो बहुत लगा चुके, जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को|” ननद ने ललकारा|
“अरे चूत क्या, मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा, याद रहेगी ये पहली होली गाँव की|” वो बोले|
जब तक मैं संभलूं संभलूं, उन्होंने मेरी पतली कमर को पकड़ के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाड़े से रगड़ खा रही थी|
ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और नंदोई ने ऊपर से कन्धों को पकड़ के कस के धक्का दिया और एक बार में हीं गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर|
मैंने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया|
मेरे हाथ का रंग तो खत्म हो गया था...जमीन पे गिरे लाल रंग को मैंने हाथ में लिया और कस-कस के पक्के लाल रंग को नंदोई के लंड पे पोत के बोलने लगी,
“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”