31-12-2019, 03:16 PM
हल्कू ने बात बनाई। मैं मरते-मरते बच्चा। तुझे अपने खेत की पड़ी है पेट में ऐसा दर्द उठा कि मैं ही जानता हूँ।
दोनों फिर खेत के डांडे पर आए। देखा खेत में एक पौदे का नाम नहीं और जबरा मंडिया के नीचे चित्त पड़ा है। गोया बदन में जान नहीं है। दोनों खेत की तरफ़ देख रहे थे। मुन्नी के चेहरा पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू ख़ुश था।
मुन्नी ने फ़िक्रमंद हो कर कहा। अब मजूरी करके मालगुजारी देनी पड़ेगी।
हल्कू ने मस्ताना अंदाज़ से कहा, “रात को ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा।”
“मैं इस खेत का लगान न दूँगी, ये कहे देती हूँ जीने के लिए खेती करते हैं मरने के लिए नहीं करते।”
“जबरा अभी तक सोया हुआ है। इतना तो कभी ना सोता था।”
“आज जाकर शहना से कह दे, खेत जानवर चर गए हम एक पैसा न देंगे।”
“रात बड़े गजब की सर्दी थी।”
“मैं क्या कहती हूँ, तुम क्या सुनते हो।”
“तू गाली खिलाने की बात कह रही है। शहना को इन बातों से क्या सरोकार ,तुम्हारा खेत चाहे जानवर खाएँ चाहे आग लग जाये, चाहे ओले पड़ जाएं, उसे तो अपनी मालगुजारी चाहिए।”
“तो छोड़ दो खेती, में ऐसी खेती से बाज़ आई।”
हल्कू ने मायूसाना अंदाज़ से कहा, “जी मन में तो मेरे भी यही आता है कि खेती बाड़ी छोड़ दूं। मुन्नी तुझसे सच्च कहता हूँ मगर मजूरी का ख़्याल करता हूँ तो जी घबरा उठता है। किसान का बेटा हो कर अब मजूरी न करूँगा। चाहे कितनी ही दुर्गत हो जाये। खेती का मर्द जाद नहीं बिगाडूँगा। जबरा, जबरा। क्या सोता ही रहेगा,चल घर चलें।”
दोनों फिर खेत के डांडे पर आए। देखा खेत में एक पौदे का नाम नहीं और जबरा मंडिया के नीचे चित्त पड़ा है। गोया बदन में जान नहीं है। दोनों खेत की तरफ़ देख रहे थे। मुन्नी के चेहरा पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू ख़ुश था।
मुन्नी ने फ़िक्रमंद हो कर कहा। अब मजूरी करके मालगुजारी देनी पड़ेगी।
हल्कू ने मस्ताना अंदाज़ से कहा, “रात को ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा।”
“मैं इस खेत का लगान न दूँगी, ये कहे देती हूँ जीने के लिए खेती करते हैं मरने के लिए नहीं करते।”
“जबरा अभी तक सोया हुआ है। इतना तो कभी ना सोता था।”
“आज जाकर शहना से कह दे, खेत जानवर चर गए हम एक पैसा न देंगे।”
“रात बड़े गजब की सर्दी थी।”
“मैं क्या कहती हूँ, तुम क्या सुनते हो।”
“तू गाली खिलाने की बात कह रही है। शहना को इन बातों से क्या सरोकार ,तुम्हारा खेत चाहे जानवर खाएँ चाहे आग लग जाये, चाहे ओले पड़ जाएं, उसे तो अपनी मालगुजारी चाहिए।”
“तो छोड़ दो खेती, में ऐसी खेती से बाज़ आई।”
हल्कू ने मायूसाना अंदाज़ से कहा, “जी मन में तो मेरे भी यही आता है कि खेती बाड़ी छोड़ दूं। मुन्नी तुझसे सच्च कहता हूँ मगर मजूरी का ख़्याल करता हूँ तो जी घबरा उठता है। किसान का बेटा हो कर अब मजूरी न करूँगा। चाहे कितनी ही दुर्गत हो जाये। खेती का मर्द जाद नहीं बिगाडूँगा। जबरा, जबरा। क्या सोता ही रहेगा,चल घर चलें।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.