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Adultery मायके का जायका
#37
तनी आउर ठहर के देख लेल जाता,कहीं सड़क चालू हो जाई।होने त एक त एगारह बारह किलोमीटर जादा के घुमाव हो जाई और दूसर सुनसान कहके रमेश भैया हमलोगों के तरफ देखने लगे जैसे हमलोगों से राय या रजामंदी चाहते हों।तभी दामू बोल बैठा आ हो रमेश भाई एकदम सुनसान ना बाटे।सहनी/मल्लाह लोग मिल के एगो बर सहन डाल के चाय के दुकनिया खोल देले बा,आउर त आउर मछली दारू सब मिलता वहां ।रमेश भैया धमकते हुए बोले आ एत्ता रात में तोहार गांड मारेला बईठल होखिहें।तु त बिगड़ जाला,अरे रात में रहेला न ,नहरिया से.मछरिया जे चोरी हो.जाई। ऊषा भाभी बोली ऐजी दामुजी त ठिके बोलत हईं।चलींं ,काहेला टाईम बेकार.कैल जाला।ठीक कहनी ह न मीरा बबुनी मेरी ओर देखते हुए बोली।हम का कहीं न हम एने के रसता देखले बारी ना ओने के,जैसन आउर लोग पसंद करी ,मै भाभी को बोली।ऐसे में वहां के माहौल यानी कि जैसी बातें ट्रक के पास खरे लोग बातचीत कर रहे थे,ऊससे भीतर ही भीतर हम तीनो ही गिली होने लगी थी,हालांकि उपर से ऐसी जाहिर कर रही थी,मानो उनलोगों की बात हमलोग सुन ही न पा रही हो।रमेश भैया मानो ईसी सहमति का ईंतजार कर रहे थे,उन्होनकई बार आगे पिछे कर आटो को मोड़कर जाम से निकाला,और वापस उसी रास्ते पर लौट चले।धीमी  चाल से चलते हुए आटो वापस लौट रही थी क्योंकि पचिसो ट्रक और अन्य वाहन जाम खुलने के ईंतजार में लगे हुए थे।करिब पौन किलोमीटर चलने के बाद रास्ता खाली मिलने लगी।थोड़ी देर में ही वह मोड़ भी आ गई जहां से हमलोग मुरकर नहर वाले रास
ते पर आ गए।कौन रोड ठिके बा रे ऊतरही कि दखिन वाला,रमेश भैया ने दामु से.पुछा।ऊतरवारी से चलीं,एही पार सब ठिकाना बनैले बारन,कोई दिक्कत ना होखी।अब आटो नहर पर बने सड़क पर चल रही थी।नहर पर कहीं ईट बिछी हुई थी कही सिर्फ मट्टी।आटो कभी बाएं झूकती कभी दाएं,कभी किसी गड्ढे में चक्का पर जाती तो एक दूसरे से टकरा जाते।ऊषा भाभी को ईसमें भी मजाक करने में मजा आ रहा था।ए मीरा बबुनी जानतानी ,सबसे मजा में सीमा रानी बारी ,देखी.ना कैसे जकरले बाटि भाई के,अरे हम सब ना देखब,हमार देवरजी के.लौड़ा टनटनाएले है,आगे पिछे जहाँ मन करे ठंसवा लिहीं और जमके आटो के झटका के मजा लिहीं।बड अनुभव राखी ले हे भौजी,अपन भाई से पेलवैले रहींका,सीमा हंसते हुए बोली।रास्ता सुनसान मिलने के कारण अब हम सभी खुल गई और मैं भी अब खुल चुकी  थी,और ईन सब के बातों का आनंद लेनी आरंभ कर दि थी.और बोली भाभी अपने भी जाईं आ रमेश भैया के डंडा पर बैठ के आटो चलाई न भैया के हाथ में आपन दुनो हारन पकरा के।तोहनी के बतकुच्चन खतम ना होई त हम आटो रोकी रमेश भाई डांट भरे स्वर से बोले।चट से भाभी बोली,हां रोकी ना एक चोट हमनी के खा लिहीं,बरी देर से आटो के हैनडल पकरले बानी,तनिक रुक के दूनो बहिनिया के हारन पर हाथ चलाईं,हाथों के नरम गरम लागी और जोर से ठहाका लगाई। ए रमेशभाई भौजी ठिके कहत बानी,ई सीमुआ के भरल भरल चूंची पकरा गईल रहे तब से हमार साहेब झटका मारत तंग कर दिहलस ह।का बोलत बाटे रे दामु एक त ओखनी से कभी हमार चुतर पर हाथ फेरत हिया कभी छाती पकर करमसलत हौवे आ हमरे दोष दिहल जातिया वाह। हमलोग काफी दुर आ चुकी थी नहर पर।अचानक सामने से एक टार्च कि तेज रोशनी आई सामने से,रोशनी एकाएक परने से रमेशभाई नेआटो की रफ्तार कम कर दी,थोरी सी डर हमसभी को हो आई।धीरे धीरे कर आटो टार्च वाले के पास पहुंची तो यह देख कर कि वहां तीन सिक्युरिटी के वर्दी धारी खरे थे,तो भय दूर हो गई।जब आटो रुकी तो उन का एक सिपाही रमेशभाई से पुछने लगा,कहां से आ रहे हो,रमेश भैया ने उससे सारी बात बताई,फिर बताया कि अगले गांव बनियापुर में संबंधी रहते हैं,अतःईस रास्ते को पकर लिए थे। गांव कानाम सुनके वह सिपाही थोरी दुर खरे अपने अन्य साथियों के पास गया और धिमी आवाज में कुछ बात करने लगा,पर उन सब कि नजरें बार बार आटो के तरफ थी और ईशारे.भी कर रहे थे।
कुछ आपस में बात करने के बाद एक सिपाही आकर रमेश भैया से बोला,भाई अभी थोरी देर में साहेब आएंगे तभी आटो को आगे जाने कि आर्डर देंगें।तब तक हम लोग आटो की तलाशी लेंगे,और यह कहकर वह पिछे आकर वह बैग खोलने को कहा,ऊषा भाभी बैग खोलने निचे झूकीं तोउनके आंचल निचे गिर गई,और.उनकी कसी और बरे गले के ब्लाऊज से बरी.बरी चूंचिया और निपुल के भुरी गोलाई साफ दिखने लगी,और वह सिपाही तो बस एकटक उसे ही देखे जा रहा था,और.उसके पैन्ट के उभार.साफ नजर आने लगी थी।फिर उसने बैग के सामान जो सिर्फ हमलोगों के कपरे भर धे को हिबंद करता हुआ सिट को हिला कर देखने के बहाने अपना हाथ ऊषा भाभी और मेरी.दोनोँ कें जांघो केबिच में घुसाकरहम दोने के चुतर पर हाथ फेरने लगा,आखिर मैं बोल परी,ओ सिपाहीजी रूक जाईए हम लोग उतर जाती हैं तब आप चेक कर लें।नहि नहि आपलोग बैठे रहिए सब चौकस है कहके बरे अश्लिल भाव से हंसते हुए आगे के सीट देखने बढा।ऊधर.सीमा और दामु पहले ही औटो से ऊतर कर एक किनारे खरे थे,ऊन्हे निचे देख कर मैं भी भाभी कि हाथ पकर कर ऊन्ही लोगों के पास चली आई।अभी वह सिपाही सिट के गद्दे कोउठाया ही था कि एक मोटरसाइकिल कि आवाज आई और देखते ही देखते एक आदमी बाईक चलाता आ पहुंचा।उसे बाईक से उतरते देख दो सिपाही बढकर उस को सैल्युट दे रहे थे।फिर हमलोगों कि ओर ईशारा कर कुछ कहा।फिर वह ऊन दोनो को साथ लिए हम सभी के तरफ बढ आया,और पुछा औटो कौन चला रहा था।रमेश भैया अपने पाकेट से.लाईसेंस.निकाल कर उसके हाथ कि ओर बढाया और कहा सर यह आटो मेरी है और हमलोग बनियापुर संबंधी केघर जा रहे थे.और ऊसे रास्तें में लगे जाम के बारे में बताने लगे।रमेश भाई की बात सुनकर वह बोला तुम्हारे संबंधी का नाम केया है तो भाभी बोली कि गांव के...वर बाबु मेरे मामा हैं। अच्छा वही...वर बाबु न जिके घर के बगल में स्कुल है उस आदमी ने कहा। भाभी यह सोच कर ऊत्साहित होकर बोली जी सर,जी सर।भाभी कि बात सुनकर वह आदमी जो वहां का ईंचार्ज था,बरे कुत्सित भाव से मुशकरा कर हम लोगों को गौर से देखने लगा और बोला ठिक है,और ए दोनो औरते कौन है,फिर मेरी तरफ देख कर बोला,तुम बताओ ,उसकी बरी बरी मुंछे,लाल लाल आंख को देख कर मुझे डर तो लग रही थी,मै ने बीना उसके तरफ देखे बोली जी मैं मीरा हूं ए हमारे मुहल्ले के हैं,फिर वह सीमा के तरफ ताकते हुए बोला और तुम।सीमा भी अपना नाम बता कर चुप हो गई और दामु के तरफ देखने लगी।फिर ऊस ने अपने सिपाहियों से कहा,ए सब गड़बर लगते हैं ,ईनसबको लालू के जसहन में ले चलो वहीँ अच्छे से पुछताछ करेंगे।सिपाहियों के ईशारे पर रमेश भैया आटो स्टार्ट करने लगे,एक सिपाही मेरी और भाभी के बीच बैठ गया दूसरा आगे के सिट पर सीमा को बाईं तरफकरता हुआबिच मेंही बैठा,जिससे सीमा ऊसके बांए तरफ और दामू दाहिने तरफ हो गया।तीसरा रमेश भैया के बाजू मेंबैठ गया,और भैया को आटो बढाने को कहा।आटो के चलते ही हमारे बीच में बैठे सिपाही ने अपने हाथों को आटो के दोनो तरफ के डनडो को ईस तरह पकर लिया जिससे ऊसकी दोनो बाहों कि कोहनी हम लोगों कि छातियों को लगभग छु रही थी।ऊधर सीमा भी एकदम किनारे से सटी हुई थी और उसके साथ वाला सिपाही अपना एक हाथ बाऐंवाली हाथ से सीमा के ओर वाले छतरी के डनडे को.और दूसरे हाथ से आटो के सिट वाले डनटे को।थोरी दूर चलने के बाद ही वह सहन आ गया,सामने बाईक लगी थी,आटो के रुकते ही हमलोगों के बीच बैठा सिपाही उतरने के लिए अपने एक हाथ के पंजे को मेरी जांघो के मथ्य और दुसरे हाथ के पंजे को भाभी के जांघो के मध्य रख कर उतरने लगा,उसके हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि सब अनजाने में हो रहा है,ऊसके उतरने के पश्चात हम सभी ऊतर कर सहन कि तरफ बढें।उस सिपाही के हाथ जो मेरे जांघो के बीच डाले थे,मेरी चूत में हलचल मचा रही थी,और ऊपर से सिक्युरिटी का भय।
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RE: मायके का जायका - by Meerachatwani111 - 28-12-2019, 08:54 PM



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