28-12-2019, 06:59 PM
update 75
रात का खाना बनने तक मैं नेहा को अपनी छाती से चपकाये रहा और घर के सब मर्दों के बीच रह कर बातें करता रहा| चूँकि ये घर के एकलौते कुंवारे लड़के की शादी थी और वो भी परिवार की आखरी शादी तो सब के मन में उत्साह भरा हुआ था| रितिका की दूसरी शादी की तरफ किसी ने तवज्जो नहीं दी थी क्योंकि अब घर वालों को रितिका के पागलपन से पीछा छुड़ाना था| ताऊ जी ने पूरे घर का रंग-रोगन का काम चन्दर भैया को सौंप दिया, और परसों के दिन जो अनु के मम्मी-डैडी का स्वागत होना था उसकी जिम्मेदारी उन्होंने पिताजी और अपने सर ले ली थी| "बेटा एक बात तो बता?" पिताजी थोड़ा हिचकते हुए बोले| "हाँ जी बोलिये?" मैंने नेहा से अपना ध्यान उनकी तरफ करते हुए कहा| "बेटा....तू हमारा रहन-सहन तो जानता है| अब बहु के घरवाले वो क्या सोचेंगे? क्या उन्हें ये रंग-ढंग जमेगा? मेरा मतलब ....वो ठहरे शहर में रहने वाले और हम ठहरे देहाती!" पिताजी बोले और ताऊ जी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| "ताऊ जी, पिताजी वो लोग बस आपका अपनी बेटी के लिए प्यार देखना चाहते हैं| बाकी उन्हें हमारे रहन-सहन से कोई परेशान नहीं होगी| वो लोग जमीन से जुड़े लोग हैं और किसी भी तरह का कोई दिखावा नहीं करते|" मैंने सब सच ही कहा था, क्योंकि जितने भी दिन मैं वहां रहा था उतने दिन मुझे मम्मी-डैडी के बर्ताव में कोई भेदभाव या घमंड नजर नहीं आया था|
उधर माँ ने अनु को अपने साथ बिठा रखा था और उससे उसकी पसंद-नापसंद पूछी जा रही थी| जो सवाल मुझसे यहाँ पुछा गया था वही सवाल अनु से माँ ने पुछा| मेरे माँ-बाप खुद को अनु के मम्मी-डैडी के सामने कम आंक रहे थे| "माँ कोई अंतर् नहीं है? बस बुलाने का फर्क है, मैं मम्मी-डैडी कहती हूँ और 'ये' (अर्थात मैं) माँ-पिताजी कहते हैं!" अनु ने माँ के सवाल का जवाब देते हुए कहा| पर भाभी को अनु की टांग खींचने का मौका फिर से मिल गया; "ये? भला 'ये' कौन है?" भाभी ने थोड़ा जोर से कहा ताकि मैं भी सुन लूँ| "भाभी नाम नहीं ले सकती ना इसलिए!" अनु ने शर्माते हुए कहा| अनु का जवाब सुन सभी हँस पड़े| "बहु तू ज्यादा टाँग न खींच!" ताई जी प्यार से भाभी को डाँटा| "माँ एक बात बताओ, जब देवर भाभी का रिश्ता हंसी-मजाक का हो सकता है तो देवरानी और भाभी का रिश्ता ऐसा क्यों नहीं हो सकता?" भाभी ने पुछा तो अनु बोल पड़ी; "बिलकुल भाभी!" अनु का जवाब सुन माँ ने अनु के सर पर हाथ फेरा|
यहाँ ये हँसी मजाक चल रहा था और वहाँ ये हँसी-मजाक रितिका के दर्द का सबब बन चूका था| जब रितिका मानु के साथ थी तब भी उसे अनु से चिढ होती थी और अब तो मानु उससे शादी कर रहा है तो उसका जल भून कर राख होना तय था! मानु को चाचा कहने में उसे मौत आती थी और अनु को चाची कहने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी! वो बेसब्री से इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगी, पर उसके लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चके थे! जिस दर्द से मानु ने विदेश जाने के बहाने खुद को बचा लिया था अब वही दुःख रितिका को अपने आगोश में लेने को मचल रहा था! वो तो आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि ऐसा करने से मानु और अनु नेहा को अपना लेते और मरने के बाद भी रितिका को शान्ति नहीं मिलती! वो तो बस यही चाहती थी की मानु भी उसी की तरह आग में जले, तड़पे और मर जाए! जहाँ एक तरफ नीचे सारा परिवार नई खुशियों के साथ नई उमंग में मानु और अनु के लिए नई जिंदगी की दुआ कर रहा था, वहीँ ऊपर बैठी रितिका बस मानु की मनोकामना कर रही थी| "मुझसे तो तूने सब कुछ छीन लिया? कम से कम मेरे दुश्मन को तो चैन से मत रहने दे? कुछ दिन पहले ही मैंने उसे इतना तड़पाया था और जो सुकून मुझे मिला उसे तो मैं ब्यान भी नहीं कर सकती| आज भी वो मौत के इतने करीब था पर तूने उसे मरने नहीं दिया! क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा?" रोती बिलखती रितिका भगवान् से मानु की मौत माँग रही थी| "बस एक मौका मिल जाए और मैं खुद इस आदमी को तेरे पास भेज दूँगी! कम्भख्त पैसे भी नहीं मेरे पास वरना इसे मरवा देती!" रितिका ने अपनी किस्मत को कोसते हुए कहा|
इधर इस सब से बेखबर मैं अपनी और अनु की शादी को ले कर खुश था और अब तो मेरे पास नेहा भी थी! मैं जानता था की अब रितिका में इतनी हिम्मत नहीं की वो ताऊ जी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत करे, वरना ताऊ जी की दुनाली में अभी भी एक गोली loaded थी और उन्हें वो रितिका को आशीर्वाद स्वरुप देने में जरा भी हिचक नहीं होती! खेर रात का खाना हुआ और आज बरसों बाद सब ने एक साथ बैठ कर खाया| माँ, ताई जी और भाभी ने मिलकर अनु को इतना खिलाया जितना उसने आज तक नहीं खाया था| रितिका अपना खाना ले कर राजसी में बैठी थी और सब को इस तरह अनु को प्यार देते देख जलन से मरी जा रही थी पर बेबस थी और कुछ कह नहीं सकती| खाने के बाद उसने नेहा को दूध पिलाया और नेहा को ले कर ऊपर जाने लगी तो ताई जी ने उसे रोका और नीचे ही सब के साथ सोने को कहा पर वो अपनी अकड़ी गर्दन ले कर ऊपर जाने लगी| "नेहा को दे यहाँ!" ताई जी ने उससे रूखे स्वर में कहा तो ताऊ जी के डर के मारे उसने बेमन से नेहा को ताई जी को दे दिया| सब जानते थे की रितिका का दिमाग सनका हुआ और वो गुस्से में कहीं नेहा के साथ कुछ गलत ना करे| ताई जी ने नेहा को मेरी गोदी में दिया और मैं उसे ले कर ताऊ जी वाले कमरे में अंगीठी के सामने बैठ गया| वहाँ अभी भी मेरी शादी की बातें हो रही थीं और शादी के लिए मेरे कमरे में खरीदारी करने की चर्चा चल रही थी|
इधर अनु के मन में नेहा के लिए प्यार उमड़ पड़ा था| इन कुछ घंटों में ही उसका मन नेहा ने मोह लिया था; "माँ.... आज नेहा को मैं अपने साथ सुला लूँ?"
"बेटी कोशिश कर ले! ना तो मानु नेहा को गोद से उतारेगा और ना ही नेहा उसकी गोद से उतरेगी! दोनों में बिलकुल बाप-बेटी वाला प्यार है!" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा| पर अनु कहाँ हार मानने वाली थी, वो माँ के कमरे से बाहर आई पर उसकी हिम्मत नहीं हुई ताऊ जी कमरे में घुसने की, क्योंकि वहाँ सब मर्द बैठे थे और ताऊ जी और पिताजी से उसकी शर्म उसे अंदर नहीं आने दे रही थी| वो कमरे के बाहर ही चक्कर लगाने लगी, तभी भाभी ने बाहर से मुझे आवाज दी और मैं उठ कर कमरे के बाहर आया| अनु ने पहले भाभी को देखा और थैंक यू कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली; "आज मुझे भी मेरी बेटी के साथ सोने दो?" अनु की बात सुन कर मैं मंत्र-मुग्ध सा उसे देखने लगा| इतनी जल्दी अनु ने नेहा को अपना लिया था इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी! मैंने एक बार नेहा के मस्तक को चूमा और उसे अनु की तरफ बढ़ा दिया, पर नेहा के नन्हे हाथों ने मेरी कमीज पकड़ ली थी| मैंने धीरे से उसके कान में खुसफुसाते हुए कहा; "बेटा आज रात आपको मम्मी के पास सोना है!" मेरा इतना कहाँ था की नेहा ने मेरी कमीज छोड़ दी और अनु ने उसे अपनी छाती से लगा लिया| अनु की आँखें बंद हो गईं, ऐसा लगा जैसे उसके जलते माँ के कलेजे को सुकून मिल गई हो| मेरी आँखें अनु के चेहरे पर टिकी थीं और मैं उस सुकून को महसूस कर पा रहा था| जब अनु ने आँखें खोली और मुझे खुद को देखते हुए पाया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गये| उसने मुस्कुरा कर मुझे थैंक यू कहा और माँ के कमरे में चली गई| मैं मुस्कुराता हुआ वापस ताऊ जी के कमरे में आ गया और उधर जैसे ही माँ ने अनु की गोद में नेहा को देखा वो बोल पड़ीं; "लो भाई! आज पहलीबार मानु ने किसी को नेहा की जिम्मेदारी दी है वरना रात को तो नेहा उसी के पास सोती थी|" ये सुन कर अनु को खुद पर गर्व होने लगा! रात को सोने का इंतजाम कुछ ऐसा था की माँ के कमरे में साड़ी औरतें सोने वाली थीं और ताऊ जी के कमरे में सारे मर्द| मेरा बिस्तर आज ताऊ जी और पिताजी के बीच था, देर रात तक हमारी बातें चलती रहीं| अगली सुबह सब जल्दी उठे, अनु भी आज सब के साथ उठी और नेहा को ले कर मेरे पास आई जो रो रही थी| "मेरा बच्चा क्यों रो रहा है?" उस समय मैं अकेला ताऊ जी के कमरे में बिस्तर ठीक कर रहा था और मौके का फायदा उठाते हुए मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "आप कहाँ जा रहे हो? नेहा बेटा आपने मम्मी को तंग तो नहीं किया?" मैंने कहा|
"रात में तो बड़े आराम से सोई पर सुबह उठते ही रोने लगी!" अनु बोली और मेरे थोड़ा नजदीक आ गई| हम दोनों की नजरें बस एक दूसरे पर टिकी थीं; "वो क्या है ना सुबह होते ही नेहा को पापा की गुड मॉर्निंग वाली kissi चाहिए होती है!" मैंने कहा|
"अच्छा? और नेहा के पापा को मेरी गुड मॉर्निंग वाली kissi नहीं चाहिए होती?" अनु ने शर्माते हुए मुझे उस दिन वाली kissi याद दिलाई!
"चाहिए तो होती है.....पर .....!!!" मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही भाभी आ गईं जो बाहर से हमारी बातें सुन रही थीं|
"हाय राम! तुम दोनों तो बड़े बेशर्म हो? शादी से पहले ही किस्सियाँ कर रहे हो? रुको अभी बताती हूँ सबको!" भाभी बोलीं और बाहर जाने लगीं की अनु ने उनका हाथ पकड़ लिया; "नहीं भाभी प्लीज!!!" अनु घबरा गई थी और ये देख कर भाभी हँस पड़ी तब जा कर अनु को पता चला की वो बस उसकी टाँग खींच रही हैं! "अच्छा सच्ची-सच्ची बता तुझे kissi चाहिए?" भाभी ने मुझसे पुछा और ये सुन कर मेरे गाल लाल हो गए और गर्दन झुक गई| "समझ गई! चलो अब भाभी हूँ तो कुछ तो करना पड़ेगा! हम्म्म्म...." ये कहते हुए भाभी कुछ सोचने लगी| "रहने दो भाभी! अभी इन्हें मुझे छोड़ने भी तो जाना है|" अनु ने कहा|
"हाय राम! तो तुम दोनों क्या बाहर खुले में सबके सामने....... लाज नहीं आती तुम्हें!" भाभी मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं|
"नहीं नहीं भाभी... क्या बात कर रहे हो?" मैंने अनु का बचाव किया तब जा कर अनु को एहसास हुआ की वो क्या बोल गई थी!
"भाभी मेरा मतलब था की हम अभी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं!" अनु ने बात संभालनी चाही|
"अरे रहने दे! तू मुझे उल्लू समझती है!" भाभी ने अनु की पीठ पर प्यार से थपकी मारते हुए कहा|
"सच भाभी आपकी कसम हमने आजतक वैसा कुछ नहीं किया.... बस कुछ दिन पहले से ही ये 'kissi' शुरू हुई है|" मैंने कहा| भाभी जानती थी की मैं कभी झूठी कसम नहीं खाता था इसलिए उन्होंने अनु की टाँग और नहीं खींची| तभी बाहर से ताई जी की आवाज आई; 'अरे तुम तीनों अंदर कौन सी खिचड़ी पका रहे हो?" उनकी बात सुन कर हम सब बाहर आये और भाभी बोलीं; "माँ मैं तो नजर रख रही थी की ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं!" भाभी बोलीं और खिलखिला कर हँस पड़ी और इधर हम दोनों के गाल लाल हो गए|
नाश्ता कर के हम निकलने लगे तो ताऊ जी बोले; "वहाँ पहुँच कर हमें कॉल करना और कल निकलने से पहले भी कॉल करना|" अनु ने सब के पाँव छुए और हम दोनों मुस्कुराते हुए घर से निकले| जहाँ कल आते हुए हमारे प्राण सूख रहे थे की नजाने क्या होगा वहीँ आज हम इतने खुश थे की उसे व्यक्त करने के लिए हम ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया| बस स्टैंड पहुंचे तो अनु ने बात शुरू की;
अनु: तो घर पर क्या बोलना है?
मैं: जो हुआ वो सब बताना है|
अनु: पर इतनी डिटेल की क्या जर्रूरत है? हम बस इतना कह देते हैं की सब राज़ी हैं| वैसे भी माँ का कल शाम को फ़ोन आया था और मैंने उन्हें बता दिया था की यहाँ सब शादी के लिए राज़ी हैं और हम कल आ रहे हैं|
मैं: बेबी बात को समझो! कल को ये बात अगर सामने आई तो पता नहीं डैडी जी कैसे रियेक्ट कर्नेगे! फिर वो चुड़ैल (रितिका) भी है जो इस बात को मिर्च-मसाला लगा कर कहेगी!
अनु: ये सुन कर डैडी डर जायेंगे और फिर उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया तो?
मैं: कुछ नहीं होगा....मैं उन्हें समझा दूँगा|
अनु को मुझ पर तो विश्वास था पर वो अपने डैडी को भी जानती थी, इसीलिए वो मना कर रही थी|
पर एक बात थी जो सब से छिप्पी थी, वो थी मेरा और रितिका का रिश्ता जो अगर सबके सामने आता तो सब कुछ तहस-नहस हो जाता| बस आई और हम दोनों बैठ गए, मेरे मन में जो बात चल रही थी उससे मेरी शक्ल पर बारह बज रहे थे|
अनु: क्या सोच रहे हो?
मैं: यही की क्या हमारे घरवालों को सब कुछ पता होना नहीं चाहिए?
अनु: सब कुछ.....नहीं! थोड़ा बहुत...हाँ! आप जब गाँव आये हुए थे तब मम्मी ने मुझसे आपके पास्ट के बारे में पुछा था| तो मैंने बता दिया पर रितिका का नाम और आपसे रिश्ता नहीं! इतना ही उनके लिए जानना काफी है, इससे ज्यादा कुछ भी बताना मतलब सब कुछ खत्म कर देना और मुझ में आपको खोने की ताक़त नहीं है| ना तो मैं उन्हें कुछ बताऊँगी और ना ही आपको बताने दूँगी!
मैं: पर क्या ये सही है?
अनु: सही है...बिलकुल सही है| सच मुझे जानना जर्रूरी था उन्हें नहीं, जिंदगी हमें साथ बितानी है उन्हें नहीं! जो बात दबी है उसे दबी रहने दो!
अनु ने मुझे आगे कुछ कहने नहीं दिया पर वो भूल रही थी की दुनिया में और भी लोग हैं जो मेरे और रितिका के रिश्ते के बारे में सब जानते हैं| अब चूँकि हमारा (मेरा और अनु का) रिश्ता सब के सामने आ रहा था तो ऐसे में रितिका और मेरे रिश्ते को ले कर कीचड उछलना स्वाभाविक था|
पर अभी के लिए हम दोनों अपने आँखों में शादी के सपने लिए बस के झटके खाते हुए घर पहुँचे| वहाँ मैंने डैडी जी को साड़ी बात बताई और सब सुन कर उन्हें ख़ुशी तो हुई पर साथ ही उन्हें चिंता भी हुई! ख़ुशी का कारन हमारी शादी के लिए मेरे घर वालों का मान जाना था और चिंता मेरे ताऊ जी का गुस्सैल स्वभाव था! "डैडी जी आप को घबराने की कोई जर्रूरत नहीं है, जो होना था वो स्वाभविक था| उसके पीछे का कारन है हमारे ही गाँव और मेरे ही घर में घाटी एक घटना|" फिर मैंने उन्हें भाभी वाले काण्ड की सारी बात बता दी; "अब उनकी जगह आप होते तो आप भी शायद नाराज होते| पर अब ताऊ जी का दिल साफ़ है| उन्होंने अनु को हमारे घर की बहु के रूप में स्वीकार लिया है| मेरी माँ तो अनु से मुझसे भी ज्यादा प्रेम करती है और सिर्फ वे ही नहीं बल्कि घर के सब लोग अनु से बहुत प्यार करते हैं!" मैंने कहा और फिर अनु ने उन्हें मेरी माँ से हुई सारी बातें बताईं, तब जा कर उनके दिल को सुकून मिला| "डैडी जी मैं आप से वादा करता हूँ की अनु हमेशा खुश रहेगी और मैं उस पर कोई आंच नहीं आने दूँगा!" मेरी बात सुन कर डैडी जी की चिंता दूर हुई और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया| डैडी जी से बात होने के बाद मैंने घर फ़ोन कर के कल आने का समय बता दिया और ये सुनते ही मेरे घर में तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं| तम्बू-कनात वालों को बुला लिया गया, घर में कालीन बिछ गया, रसोइयों को ख़ास पकवानों की फरमाइश कर दी गई, घर पर लाइटें लग गईं, छत पर और आंगन की क्यारियों में नए-नए पौधे लगा दिए गए| बैठने-उठने के लिए कुर्सियाँ-टेबल साफ़ करा दिए गए, घर के सारे कमरों की सफाई ढंग से हुई और सब कुछ सजा-धजा के रखा गया| पेंट नहीं हो पाया क्योंकि समय नहीं था पर घर इतना चमक गया था की पेंट ना होने पर किसी का ध्यान ही ना जाये| वहाँ बस हमारा इंतजार हो रहा था|
इधर मैं, अनु और मम्मी-डैडी निकले, बस की जगह हमने डैडी जी की गाडी ही ली| ड्राइविंग सीट पर मैं था और मेरे साथ डैडी जी थे, पीछे मम्मी जी और अनु बैठे थे| पूरे रास्ते हम सब बस बातें करते रहे, इधर हर एक घंटे में मेरे घर से फ़ोन आ रहा था| वो तो फ़ोन अनु के पास था जो पिताजी को हमारी एक्सएक्ट लोकेशन बता रही थी| मैंने गाडी सीधा अपने घर के बाहर रोकी और इधर मेरे सारे घर वाले स्वागत करने के लिए बाहर खड़े हो गए| मैंने सब का परिचय करवाया और वहीँ खड़े-खड़े सब ने एक दूसरे को गले लगाना और आशीर्वाद देना शुरू कर दिया| आस-पड़ोस वाले जो इतनी तैयारी देख कर हैरान थे वो ये मिलनी का सीन देख के समझ गए थे की यहाँ मेरे रिश्ते की बात चल रही है| फिर सब अंदर आये और आंगन में बैठ गए और बातों का सिलसिला शुरू हुआ| दाद्दी जी और ताऊ जी ने एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाई और दोनों परिवार एक दूसरे की गलतियों और खामियों को समझ चुके थे| जहाँ एक तरफ डैडी जी ने अपनी गलती मानी की उन्होंने अनु के साथ ज्यादती करते हुए उसे घर से निकाल दिया वहीँ मेरे पाटजी ने मेरा अमरीका जाने पर मुझे घर से निकालने की बात कबूली|
डैडी जी ने मेरी बड़ाई करनी शुरू की; "भाईसाहब आपका लड़का सच में हीरा है, पहली नजर में ही हमारे दिल में घर कर गया| जिस तरह से इसने अनु को हम से फिर से मिलाया वो काबिले तारीफ है!" ये सुन कर मेरे ताऊ जी भी अनु की बधाई करने से नहीं चूके; "भाईसाहब इसका सारा श्रेय सिर्फ अनुराधा बेटी को ही जाता है| जिस तरह उसने मानु को संभाला वो भी तब जब हम उसके पास नहीं थे....मेरे पास तो उसे धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं! बल्कि मैं तो उसका कसूरवार हूँ!" ताऊ जी ने अनु के आगे हाथ जोड़े तो अनु ने फ़ौरन उठ कर उनके हाथ पकड़ लिए; "ताऊ जी कोई कसूरवार नहीं हैं आप! क्या बड़ों को बच्चों को डांटने या मारने का हक़ नहीं होता?" अनु को ताऊ जी की हिमायत करते देख ताई जी संग सभी की आँखें नम हो गईं, अब मुझे सब का मूड ठीक करना था सो मैं उठ कर ऊपर गया तो देखा रितिका छत पर अकेली बैठी है और अपना सर परपेट वॉल से टकरा रही है| नीचे मिलनी होने के बाद वो ऊपर आ गई थी, पर मैं यहाँ उसे नहीं बल्कि अपनी बेटी को लेने आया था| मैंने नेहा को गोद में उठाया जो अकेली कमरे में लेटी छत की ओर देख कर अपने हाथ-पाँव हिला रहे थी| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे शिकायत कर रही हो की पापा आप मुझे बहूल गए| मैंने तुरंत उसे अपनी गोद में उठाया ओर उससे बोला; "मेरा बच्चा! मैं आपको नहीं भूला, चलो आपको सब से मिलवाता हूँ|" मैं फटाफट नेहा को ले कर नीचे उतरा और उसे मम्मी-डैडी से मिलवाया; "ये है हमारे घर की सबसे छोटी ओर प्यारी सदस्य, नेहा!" उसे देखते ही मम्मी-डैडी ने उसे बड़ा प्यार दिया और फिर पूरे घर का माहौल वापस से खुशनुमा हो गया|
शादी की तारीक तो पहले से ही तय थी 23 फरवरी तो घर में सब के पास काफी समय था तैयारी के लिए| जैसे ही डैडी जी ने दहेज़ की बात राखी तो ताऊ जी ने इस बात को सिरे से नकार दिया; "भाईसाहब ऐसी गुणवान बहु के इलावा हमें और कुछ नहीं चाहिए!" ये सुन कर तो मैं भी हैरान था, क्योंकि गाँव-देहात में आज भी ये प्रथा चलती है और गाँव क्या शहर में भी यही प्रथा चल रही है| बाद में जब मैं ताऊजी से इसका कारन पुछा तो वो बोले; "बेटा मैंने तेरा और अनुराधा का प्यार देखा है और इसके चलते मैं या हमारे परिवार से कोई भी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जिससे इस शादी में कोई बाधा आये| फिर हमें दहेज़ की क्या जर्रूरत है? तेरे और बहु के लिए सारी तैयारी मैं कर रहा हूँ, तू बस देखता जा!" ताऊ जी ने इतने गर्व से कहा की मैं उनके गले लग गया| खेर खाने का समय हुआ और फिर इतने मजेदार पकवान परोसे गए की क्या कहूँ! खाने के बाद ताऊ जी डैडी जी के साथ सब को हमारी जमीन दिखाने निकले और रास्ते में जो कोई भी मिला उससे डैडी जी का तार्रुफ़ अपने समधी के रूप में करवाया| सब कुछ देख कर हम सब ऊपर छत पर बैठे, शाम की चाय भी सब ने ऊपर पी| इस दौरान रितिका अपने कमरे में छुपी रही और इन खुशियों से जलती रही! इधर पिताजी ने एक अलाव ऊपर जलवाया और सब उसके इर्द-गिर्द बैठ गए| हँसी-मजाक हुआ और फिर डैडी जी ने मँगनी करने की बात की| हमारे गांव में ऐसी कोई रस्म नहीं थी, इसकी जगह हम 'बरेछा' की रस्म करते हैं| इस रस्म में दुल्हन के घर वाले दूल्हे का तिलक कर उसे कुछ उपहार देते हैं और इसी के साथ शादी की बात पक्की मानी जाती है| मुझे लगा की ताऊ जी मना कर देंगे पर पिताजी और ताऊ जी दोनों ही इस बात के लिए तैयार हो गए और चन्दर भैया से पंडित जी को बुलाने को कहा| पंडित जी अपनी पोथी-पटरी ले कर आये और गुना-भाग कर 10 दिन बाद का मुहुरत निकाल दिया|
रात का खाना बनने तक मैं नेहा को अपनी छाती से चपकाये रहा और घर के सब मर्दों के बीच रह कर बातें करता रहा| चूँकि ये घर के एकलौते कुंवारे लड़के की शादी थी और वो भी परिवार की आखरी शादी तो सब के मन में उत्साह भरा हुआ था| रितिका की दूसरी शादी की तरफ किसी ने तवज्जो नहीं दी थी क्योंकि अब घर वालों को रितिका के पागलपन से पीछा छुड़ाना था| ताऊ जी ने पूरे घर का रंग-रोगन का काम चन्दर भैया को सौंप दिया, और परसों के दिन जो अनु के मम्मी-डैडी का स्वागत होना था उसकी जिम्मेदारी उन्होंने पिताजी और अपने सर ले ली थी| "बेटा एक बात तो बता?" पिताजी थोड़ा हिचकते हुए बोले| "हाँ जी बोलिये?" मैंने नेहा से अपना ध्यान उनकी तरफ करते हुए कहा| "बेटा....तू हमारा रहन-सहन तो जानता है| अब बहु के घरवाले वो क्या सोचेंगे? क्या उन्हें ये रंग-ढंग जमेगा? मेरा मतलब ....वो ठहरे शहर में रहने वाले और हम ठहरे देहाती!" पिताजी बोले और ताऊ जी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| "ताऊ जी, पिताजी वो लोग बस आपका अपनी बेटी के लिए प्यार देखना चाहते हैं| बाकी उन्हें हमारे रहन-सहन से कोई परेशान नहीं होगी| वो लोग जमीन से जुड़े लोग हैं और किसी भी तरह का कोई दिखावा नहीं करते|" मैंने सब सच ही कहा था, क्योंकि जितने भी दिन मैं वहां रहा था उतने दिन मुझे मम्मी-डैडी के बर्ताव में कोई भेदभाव या घमंड नजर नहीं आया था|
उधर माँ ने अनु को अपने साथ बिठा रखा था और उससे उसकी पसंद-नापसंद पूछी जा रही थी| जो सवाल मुझसे यहाँ पुछा गया था वही सवाल अनु से माँ ने पुछा| मेरे माँ-बाप खुद को अनु के मम्मी-डैडी के सामने कम आंक रहे थे| "माँ कोई अंतर् नहीं है? बस बुलाने का फर्क है, मैं मम्मी-डैडी कहती हूँ और 'ये' (अर्थात मैं) माँ-पिताजी कहते हैं!" अनु ने माँ के सवाल का जवाब देते हुए कहा| पर भाभी को अनु की टांग खींचने का मौका फिर से मिल गया; "ये? भला 'ये' कौन है?" भाभी ने थोड़ा जोर से कहा ताकि मैं भी सुन लूँ| "भाभी नाम नहीं ले सकती ना इसलिए!" अनु ने शर्माते हुए कहा| अनु का जवाब सुन सभी हँस पड़े| "बहु तू ज्यादा टाँग न खींच!" ताई जी प्यार से भाभी को डाँटा| "माँ एक बात बताओ, जब देवर भाभी का रिश्ता हंसी-मजाक का हो सकता है तो देवरानी और भाभी का रिश्ता ऐसा क्यों नहीं हो सकता?" भाभी ने पुछा तो अनु बोल पड़ी; "बिलकुल भाभी!" अनु का जवाब सुन माँ ने अनु के सर पर हाथ फेरा|
यहाँ ये हँसी मजाक चल रहा था और वहाँ ये हँसी-मजाक रितिका के दर्द का सबब बन चूका था| जब रितिका मानु के साथ थी तब भी उसे अनु से चिढ होती थी और अब तो मानु उससे शादी कर रहा है तो उसका जल भून कर राख होना तय था! मानु को चाचा कहने में उसे मौत आती थी और अनु को चाची कहने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी! वो बेसब्री से इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगी, पर उसके लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चके थे! जिस दर्द से मानु ने विदेश जाने के बहाने खुद को बचा लिया था अब वही दुःख रितिका को अपने आगोश में लेने को मचल रहा था! वो तो आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि ऐसा करने से मानु और अनु नेहा को अपना लेते और मरने के बाद भी रितिका को शान्ति नहीं मिलती! वो तो बस यही चाहती थी की मानु भी उसी की तरह आग में जले, तड़पे और मर जाए! जहाँ एक तरफ नीचे सारा परिवार नई खुशियों के साथ नई उमंग में मानु और अनु के लिए नई जिंदगी की दुआ कर रहा था, वहीँ ऊपर बैठी रितिका बस मानु की मनोकामना कर रही थी| "मुझसे तो तूने सब कुछ छीन लिया? कम से कम मेरे दुश्मन को तो चैन से मत रहने दे? कुछ दिन पहले ही मैंने उसे इतना तड़पाया था और जो सुकून मुझे मिला उसे तो मैं ब्यान भी नहीं कर सकती| आज भी वो मौत के इतने करीब था पर तूने उसे मरने नहीं दिया! क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा?" रोती बिलखती रितिका भगवान् से मानु की मौत माँग रही थी| "बस एक मौका मिल जाए और मैं खुद इस आदमी को तेरे पास भेज दूँगी! कम्भख्त पैसे भी नहीं मेरे पास वरना इसे मरवा देती!" रितिका ने अपनी किस्मत को कोसते हुए कहा|
इधर इस सब से बेखबर मैं अपनी और अनु की शादी को ले कर खुश था और अब तो मेरे पास नेहा भी थी! मैं जानता था की अब रितिका में इतनी हिम्मत नहीं की वो ताऊ जी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत करे, वरना ताऊ जी की दुनाली में अभी भी एक गोली loaded थी और उन्हें वो रितिका को आशीर्वाद स्वरुप देने में जरा भी हिचक नहीं होती! खेर रात का खाना हुआ और आज बरसों बाद सब ने एक साथ बैठ कर खाया| माँ, ताई जी और भाभी ने मिलकर अनु को इतना खिलाया जितना उसने आज तक नहीं खाया था| रितिका अपना खाना ले कर राजसी में बैठी थी और सब को इस तरह अनु को प्यार देते देख जलन से मरी जा रही थी पर बेबस थी और कुछ कह नहीं सकती| खाने के बाद उसने नेहा को दूध पिलाया और नेहा को ले कर ऊपर जाने लगी तो ताई जी ने उसे रोका और नीचे ही सब के साथ सोने को कहा पर वो अपनी अकड़ी गर्दन ले कर ऊपर जाने लगी| "नेहा को दे यहाँ!" ताई जी ने उससे रूखे स्वर में कहा तो ताऊ जी के डर के मारे उसने बेमन से नेहा को ताई जी को दे दिया| सब जानते थे की रितिका का दिमाग सनका हुआ और वो गुस्से में कहीं नेहा के साथ कुछ गलत ना करे| ताई जी ने नेहा को मेरी गोदी में दिया और मैं उसे ले कर ताऊ जी वाले कमरे में अंगीठी के सामने बैठ गया| वहाँ अभी भी मेरी शादी की बातें हो रही थीं और शादी के लिए मेरे कमरे में खरीदारी करने की चर्चा चल रही थी|
इधर अनु के मन में नेहा के लिए प्यार उमड़ पड़ा था| इन कुछ घंटों में ही उसका मन नेहा ने मोह लिया था; "माँ.... आज नेहा को मैं अपने साथ सुला लूँ?"
"बेटी कोशिश कर ले! ना तो मानु नेहा को गोद से उतारेगा और ना ही नेहा उसकी गोद से उतरेगी! दोनों में बिलकुल बाप-बेटी वाला प्यार है!" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा| पर अनु कहाँ हार मानने वाली थी, वो माँ के कमरे से बाहर आई पर उसकी हिम्मत नहीं हुई ताऊ जी कमरे में घुसने की, क्योंकि वहाँ सब मर्द बैठे थे और ताऊ जी और पिताजी से उसकी शर्म उसे अंदर नहीं आने दे रही थी| वो कमरे के बाहर ही चक्कर लगाने लगी, तभी भाभी ने बाहर से मुझे आवाज दी और मैं उठ कर कमरे के बाहर आया| अनु ने पहले भाभी को देखा और थैंक यू कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली; "आज मुझे भी मेरी बेटी के साथ सोने दो?" अनु की बात सुन कर मैं मंत्र-मुग्ध सा उसे देखने लगा| इतनी जल्दी अनु ने नेहा को अपना लिया था इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी! मैंने एक बार नेहा के मस्तक को चूमा और उसे अनु की तरफ बढ़ा दिया, पर नेहा के नन्हे हाथों ने मेरी कमीज पकड़ ली थी| मैंने धीरे से उसके कान में खुसफुसाते हुए कहा; "बेटा आज रात आपको मम्मी के पास सोना है!" मेरा इतना कहाँ था की नेहा ने मेरी कमीज छोड़ दी और अनु ने उसे अपनी छाती से लगा लिया| अनु की आँखें बंद हो गईं, ऐसा लगा जैसे उसके जलते माँ के कलेजे को सुकून मिल गई हो| मेरी आँखें अनु के चेहरे पर टिकी थीं और मैं उस सुकून को महसूस कर पा रहा था| जब अनु ने आँखें खोली और मुझे खुद को देखते हुए पाया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गये| उसने मुस्कुरा कर मुझे थैंक यू कहा और माँ के कमरे में चली गई| मैं मुस्कुराता हुआ वापस ताऊ जी के कमरे में आ गया और उधर जैसे ही माँ ने अनु की गोद में नेहा को देखा वो बोल पड़ीं; "लो भाई! आज पहलीबार मानु ने किसी को नेहा की जिम्मेदारी दी है वरना रात को तो नेहा उसी के पास सोती थी|" ये सुन कर अनु को खुद पर गर्व होने लगा! रात को सोने का इंतजाम कुछ ऐसा था की माँ के कमरे में साड़ी औरतें सोने वाली थीं और ताऊ जी के कमरे में सारे मर्द| मेरा बिस्तर आज ताऊ जी और पिताजी के बीच था, देर रात तक हमारी बातें चलती रहीं| अगली सुबह सब जल्दी उठे, अनु भी आज सब के साथ उठी और नेहा को ले कर मेरे पास आई जो रो रही थी| "मेरा बच्चा क्यों रो रहा है?" उस समय मैं अकेला ताऊ जी के कमरे में बिस्तर ठीक कर रहा था और मौके का फायदा उठाते हुए मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "आप कहाँ जा रहे हो? नेहा बेटा आपने मम्मी को तंग तो नहीं किया?" मैंने कहा|
"रात में तो बड़े आराम से सोई पर सुबह उठते ही रोने लगी!" अनु बोली और मेरे थोड़ा नजदीक आ गई| हम दोनों की नजरें बस एक दूसरे पर टिकी थीं; "वो क्या है ना सुबह होते ही नेहा को पापा की गुड मॉर्निंग वाली kissi चाहिए होती है!" मैंने कहा|
"अच्छा? और नेहा के पापा को मेरी गुड मॉर्निंग वाली kissi नहीं चाहिए होती?" अनु ने शर्माते हुए मुझे उस दिन वाली kissi याद दिलाई!
"चाहिए तो होती है.....पर .....!!!" मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही भाभी आ गईं जो बाहर से हमारी बातें सुन रही थीं|
"हाय राम! तुम दोनों तो बड़े बेशर्म हो? शादी से पहले ही किस्सियाँ कर रहे हो? रुको अभी बताती हूँ सबको!" भाभी बोलीं और बाहर जाने लगीं की अनु ने उनका हाथ पकड़ लिया; "नहीं भाभी प्लीज!!!" अनु घबरा गई थी और ये देख कर भाभी हँस पड़ी तब जा कर अनु को पता चला की वो बस उसकी टाँग खींच रही हैं! "अच्छा सच्ची-सच्ची बता तुझे kissi चाहिए?" भाभी ने मुझसे पुछा और ये सुन कर मेरे गाल लाल हो गए और गर्दन झुक गई| "समझ गई! चलो अब भाभी हूँ तो कुछ तो करना पड़ेगा! हम्म्म्म...." ये कहते हुए भाभी कुछ सोचने लगी| "रहने दो भाभी! अभी इन्हें मुझे छोड़ने भी तो जाना है|" अनु ने कहा|
"हाय राम! तो तुम दोनों क्या बाहर खुले में सबके सामने....... लाज नहीं आती तुम्हें!" भाभी मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं|
"नहीं नहीं भाभी... क्या बात कर रहे हो?" मैंने अनु का बचाव किया तब जा कर अनु को एहसास हुआ की वो क्या बोल गई थी!
"भाभी मेरा मतलब था की हम अभी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं!" अनु ने बात संभालनी चाही|
"अरे रहने दे! तू मुझे उल्लू समझती है!" भाभी ने अनु की पीठ पर प्यार से थपकी मारते हुए कहा|
"सच भाभी आपकी कसम हमने आजतक वैसा कुछ नहीं किया.... बस कुछ दिन पहले से ही ये 'kissi' शुरू हुई है|" मैंने कहा| भाभी जानती थी की मैं कभी झूठी कसम नहीं खाता था इसलिए उन्होंने अनु की टाँग और नहीं खींची| तभी बाहर से ताई जी की आवाज आई; 'अरे तुम तीनों अंदर कौन सी खिचड़ी पका रहे हो?" उनकी बात सुन कर हम सब बाहर आये और भाभी बोलीं; "माँ मैं तो नजर रख रही थी की ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं!" भाभी बोलीं और खिलखिला कर हँस पड़ी और इधर हम दोनों के गाल लाल हो गए|
नाश्ता कर के हम निकलने लगे तो ताऊ जी बोले; "वहाँ पहुँच कर हमें कॉल करना और कल निकलने से पहले भी कॉल करना|" अनु ने सब के पाँव छुए और हम दोनों मुस्कुराते हुए घर से निकले| जहाँ कल आते हुए हमारे प्राण सूख रहे थे की नजाने क्या होगा वहीँ आज हम इतने खुश थे की उसे व्यक्त करने के लिए हम ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया| बस स्टैंड पहुंचे तो अनु ने बात शुरू की;
अनु: तो घर पर क्या बोलना है?
मैं: जो हुआ वो सब बताना है|
अनु: पर इतनी डिटेल की क्या जर्रूरत है? हम बस इतना कह देते हैं की सब राज़ी हैं| वैसे भी माँ का कल शाम को फ़ोन आया था और मैंने उन्हें बता दिया था की यहाँ सब शादी के लिए राज़ी हैं और हम कल आ रहे हैं|
मैं: बेबी बात को समझो! कल को ये बात अगर सामने आई तो पता नहीं डैडी जी कैसे रियेक्ट कर्नेगे! फिर वो चुड़ैल (रितिका) भी है जो इस बात को मिर्च-मसाला लगा कर कहेगी!
अनु: ये सुन कर डैडी डर जायेंगे और फिर उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया तो?
मैं: कुछ नहीं होगा....मैं उन्हें समझा दूँगा|
अनु को मुझ पर तो विश्वास था पर वो अपने डैडी को भी जानती थी, इसीलिए वो मना कर रही थी|
पर एक बात थी जो सब से छिप्पी थी, वो थी मेरा और रितिका का रिश्ता जो अगर सबके सामने आता तो सब कुछ तहस-नहस हो जाता| बस आई और हम दोनों बैठ गए, मेरे मन में जो बात चल रही थी उससे मेरी शक्ल पर बारह बज रहे थे|
अनु: क्या सोच रहे हो?
मैं: यही की क्या हमारे घरवालों को सब कुछ पता होना नहीं चाहिए?
अनु: सब कुछ.....नहीं! थोड़ा बहुत...हाँ! आप जब गाँव आये हुए थे तब मम्मी ने मुझसे आपके पास्ट के बारे में पुछा था| तो मैंने बता दिया पर रितिका का नाम और आपसे रिश्ता नहीं! इतना ही उनके लिए जानना काफी है, इससे ज्यादा कुछ भी बताना मतलब सब कुछ खत्म कर देना और मुझ में आपको खोने की ताक़त नहीं है| ना तो मैं उन्हें कुछ बताऊँगी और ना ही आपको बताने दूँगी!
मैं: पर क्या ये सही है?
अनु: सही है...बिलकुल सही है| सच मुझे जानना जर्रूरी था उन्हें नहीं, जिंदगी हमें साथ बितानी है उन्हें नहीं! जो बात दबी है उसे दबी रहने दो!
अनु ने मुझे आगे कुछ कहने नहीं दिया पर वो भूल रही थी की दुनिया में और भी लोग हैं जो मेरे और रितिका के रिश्ते के बारे में सब जानते हैं| अब चूँकि हमारा (मेरा और अनु का) रिश्ता सब के सामने आ रहा था तो ऐसे में रितिका और मेरे रिश्ते को ले कर कीचड उछलना स्वाभाविक था|
पर अभी के लिए हम दोनों अपने आँखों में शादी के सपने लिए बस के झटके खाते हुए घर पहुँचे| वहाँ मैंने डैडी जी को साड़ी बात बताई और सब सुन कर उन्हें ख़ुशी तो हुई पर साथ ही उन्हें चिंता भी हुई! ख़ुशी का कारन हमारी शादी के लिए मेरे घर वालों का मान जाना था और चिंता मेरे ताऊ जी का गुस्सैल स्वभाव था! "डैडी जी आप को घबराने की कोई जर्रूरत नहीं है, जो होना था वो स्वाभविक था| उसके पीछे का कारन है हमारे ही गाँव और मेरे ही घर में घाटी एक घटना|" फिर मैंने उन्हें भाभी वाले काण्ड की सारी बात बता दी; "अब उनकी जगह आप होते तो आप भी शायद नाराज होते| पर अब ताऊ जी का दिल साफ़ है| उन्होंने अनु को हमारे घर की बहु के रूप में स्वीकार लिया है| मेरी माँ तो अनु से मुझसे भी ज्यादा प्रेम करती है और सिर्फ वे ही नहीं बल्कि घर के सब लोग अनु से बहुत प्यार करते हैं!" मैंने कहा और फिर अनु ने उन्हें मेरी माँ से हुई सारी बातें बताईं, तब जा कर उनके दिल को सुकून मिला| "डैडी जी मैं आप से वादा करता हूँ की अनु हमेशा खुश रहेगी और मैं उस पर कोई आंच नहीं आने दूँगा!" मेरी बात सुन कर डैडी जी की चिंता दूर हुई और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया| डैडी जी से बात होने के बाद मैंने घर फ़ोन कर के कल आने का समय बता दिया और ये सुनते ही मेरे घर में तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं| तम्बू-कनात वालों को बुला लिया गया, घर में कालीन बिछ गया, रसोइयों को ख़ास पकवानों की फरमाइश कर दी गई, घर पर लाइटें लग गईं, छत पर और आंगन की क्यारियों में नए-नए पौधे लगा दिए गए| बैठने-उठने के लिए कुर्सियाँ-टेबल साफ़ करा दिए गए, घर के सारे कमरों की सफाई ढंग से हुई और सब कुछ सजा-धजा के रखा गया| पेंट नहीं हो पाया क्योंकि समय नहीं था पर घर इतना चमक गया था की पेंट ना होने पर किसी का ध्यान ही ना जाये| वहाँ बस हमारा इंतजार हो रहा था|
इधर मैं, अनु और मम्मी-डैडी निकले, बस की जगह हमने डैडी जी की गाडी ही ली| ड्राइविंग सीट पर मैं था और मेरे साथ डैडी जी थे, पीछे मम्मी जी और अनु बैठे थे| पूरे रास्ते हम सब बस बातें करते रहे, इधर हर एक घंटे में मेरे घर से फ़ोन आ रहा था| वो तो फ़ोन अनु के पास था जो पिताजी को हमारी एक्सएक्ट लोकेशन बता रही थी| मैंने गाडी सीधा अपने घर के बाहर रोकी और इधर मेरे सारे घर वाले स्वागत करने के लिए बाहर खड़े हो गए| मैंने सब का परिचय करवाया और वहीँ खड़े-खड़े सब ने एक दूसरे को गले लगाना और आशीर्वाद देना शुरू कर दिया| आस-पड़ोस वाले जो इतनी तैयारी देख कर हैरान थे वो ये मिलनी का सीन देख के समझ गए थे की यहाँ मेरे रिश्ते की बात चल रही है| फिर सब अंदर आये और आंगन में बैठ गए और बातों का सिलसिला शुरू हुआ| दाद्दी जी और ताऊ जी ने एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाई और दोनों परिवार एक दूसरे की गलतियों और खामियों को समझ चुके थे| जहाँ एक तरफ डैडी जी ने अपनी गलती मानी की उन्होंने अनु के साथ ज्यादती करते हुए उसे घर से निकाल दिया वहीँ मेरे पाटजी ने मेरा अमरीका जाने पर मुझे घर से निकालने की बात कबूली|
डैडी जी ने मेरी बड़ाई करनी शुरू की; "भाईसाहब आपका लड़का सच में हीरा है, पहली नजर में ही हमारे दिल में घर कर गया| जिस तरह से इसने अनु को हम से फिर से मिलाया वो काबिले तारीफ है!" ये सुन कर मेरे ताऊ जी भी अनु की बधाई करने से नहीं चूके; "भाईसाहब इसका सारा श्रेय सिर्फ अनुराधा बेटी को ही जाता है| जिस तरह उसने मानु को संभाला वो भी तब जब हम उसके पास नहीं थे....मेरे पास तो उसे धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं! बल्कि मैं तो उसका कसूरवार हूँ!" ताऊ जी ने अनु के आगे हाथ जोड़े तो अनु ने फ़ौरन उठ कर उनके हाथ पकड़ लिए; "ताऊ जी कोई कसूरवार नहीं हैं आप! क्या बड़ों को बच्चों को डांटने या मारने का हक़ नहीं होता?" अनु को ताऊ जी की हिमायत करते देख ताई जी संग सभी की आँखें नम हो गईं, अब मुझे सब का मूड ठीक करना था सो मैं उठ कर ऊपर गया तो देखा रितिका छत पर अकेली बैठी है और अपना सर परपेट वॉल से टकरा रही है| नीचे मिलनी होने के बाद वो ऊपर आ गई थी, पर मैं यहाँ उसे नहीं बल्कि अपनी बेटी को लेने आया था| मैंने नेहा को गोद में उठाया जो अकेली कमरे में लेटी छत की ओर देख कर अपने हाथ-पाँव हिला रहे थी| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे शिकायत कर रही हो की पापा आप मुझे बहूल गए| मैंने तुरंत उसे अपनी गोद में उठाया ओर उससे बोला; "मेरा बच्चा! मैं आपको नहीं भूला, चलो आपको सब से मिलवाता हूँ|" मैं फटाफट नेहा को ले कर नीचे उतरा और उसे मम्मी-डैडी से मिलवाया; "ये है हमारे घर की सबसे छोटी ओर प्यारी सदस्य, नेहा!" उसे देखते ही मम्मी-डैडी ने उसे बड़ा प्यार दिया और फिर पूरे घर का माहौल वापस से खुशनुमा हो गया|
शादी की तारीक तो पहले से ही तय थी 23 फरवरी तो घर में सब के पास काफी समय था तैयारी के लिए| जैसे ही डैडी जी ने दहेज़ की बात राखी तो ताऊ जी ने इस बात को सिरे से नकार दिया; "भाईसाहब ऐसी गुणवान बहु के इलावा हमें और कुछ नहीं चाहिए!" ये सुन कर तो मैं भी हैरान था, क्योंकि गाँव-देहात में आज भी ये प्रथा चलती है और गाँव क्या शहर में भी यही प्रथा चल रही है| बाद में जब मैं ताऊजी से इसका कारन पुछा तो वो बोले; "बेटा मैंने तेरा और अनुराधा का प्यार देखा है और इसके चलते मैं या हमारे परिवार से कोई भी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जिससे इस शादी में कोई बाधा आये| फिर हमें दहेज़ की क्या जर्रूरत है? तेरे और बहु के लिए सारी तैयारी मैं कर रहा हूँ, तू बस देखता जा!" ताऊ जी ने इतने गर्व से कहा की मैं उनके गले लग गया| खेर खाने का समय हुआ और फिर इतने मजेदार पकवान परोसे गए की क्या कहूँ! खाने के बाद ताऊ जी डैडी जी के साथ सब को हमारी जमीन दिखाने निकले और रास्ते में जो कोई भी मिला उससे डैडी जी का तार्रुफ़ अपने समधी के रूप में करवाया| सब कुछ देख कर हम सब ऊपर छत पर बैठे, शाम की चाय भी सब ने ऊपर पी| इस दौरान रितिका अपने कमरे में छुपी रही और इन खुशियों से जलती रही! इधर पिताजी ने एक अलाव ऊपर जलवाया और सब उसके इर्द-गिर्द बैठ गए| हँसी-मजाक हुआ और फिर डैडी जी ने मँगनी करने की बात की| हमारे गांव में ऐसी कोई रस्म नहीं थी, इसकी जगह हम 'बरेछा' की रस्म करते हैं| इस रस्म में दुल्हन के घर वाले दूल्हे का तिलक कर उसे कुछ उपहार देते हैं और इसी के साथ शादी की बात पक्की मानी जाती है| मुझे लगा की ताऊ जी मना कर देंगे पर पिताजी और ताऊ जी दोनों ही इस बात के लिए तैयार हो गए और चन्दर भैया से पंडित जी को बुलाने को कहा| पंडित जी अपनी पोथी-पटरी ले कर आये और गुना-भाग कर 10 दिन बाद का मुहुरत निकाल दिया|