28-12-2019, 02:55 PM
मैं मनीष से कह कर कि मैं बाथरूम मे नहाने जा रही हू.. अलमारी से अपने कपड़े निकाल कर बाथरूम मे आ गयी.. बाथरूम के अंदर कदम रखते ही मेरा पूरा दिमाग़ खराब हो गया उस देहाती ने पूरा का पूरा फर्श गीला कर दिया था.. ऑर साबुन भी वही बीच फर्श मे ही छ्चोड़ दिया था.. एक जगह बैठ कर नही नहा सकता था.. चारो तरफ गीला कर दिया ओर साबुन भी यही छ्चोड़ दिया अगर किसी का पैर पड़ जाता ऑर वो गिर जाता तो.. मैने वो साबुन उठा कर वापस साबुन दानी मे रखते हुए बड़बड़ा रही थी..
नहा कर मैं चुप चाप अपने बेडरूम मे वापस आ गयी ओर शीशे के आगे बैठ कर अपने बाल सही करने लग गयी.. मेरे आते ही मनीष बाथरूम के अंदर चले गये. शीशे के आगे बैठने के बाद उसकी हेवानियत भरी हसी बार बार मेरे आँखो के आगे दिखाई देने लगी जब वो मुझे ऑर मनीष को देख कर मुस्कुरा रहा था..
बाल ठीक करने के बाद दोफर का खाना बनाने के लिए मैं किचन मे आ गयी.. अगर आज ये देहाती नही आता तो मैं मनीष के साथ बाहर खाना खाती ऑर ढेर सारी शॉपिंग करती यही ख़याल खाना बनाते हुए मेरे दिमाग़ मे चल रहा था. पर उसके आने की वजह से मुझे गर्मी मे किचन मे खड़े हो कर खाना बनाना पड़ रहा था.. दोपहर तक मैने सब खाना बना लिया था. ओर मनीष से खाना खाने के लिए बोल दिया..
मनीष खाना खाने के लिए उस अमित को जगा कर अपने साथ ले आए.. मैं वही ड्रॉयिंग रूम मे बैठी हुई खाने की टेबल पर मनीष का इंतजार कर रही थी. वो अपनी उसी गंदी सी हसी के साथ मुस्कुराता हुआ मुझे घूरे जा रहा था..
मुझे खाना सर्व करते हुए वो लगतार देख कर घूरे जा रहा था. उसकी नज़र देख कर सॉफ पता चल रहा था कि वो मेरे बारे मे कुछ ना कुछ ग़लत सोच रहा था.. उसकी नज़रे मेरे पूरे जिस्म पर किसी तलवार की तरह से चल रही थी..
जब मैने दोनो को खाना सर्व कर दिया तो मनीष ने आवाज़ लगा कर मुझसे कहा.. अरे निशा आओ तुम भी हमारे साथ ही बैठ कर खाना खा लो.. अभी मनीष अपनी बात ख़तम नही कर पाए थे उस से पहले ही वो अमित बोल उठा हां.. हां.. भाभी जी आप भी साथ मे ही खाना खा लो..
एक तो मेरा मूड पहले से ही खराब था उस पर उसकी गंदी सी हसी.. नही आप खा लो मैं बाद मे खा लूँगी.. मैने मनीष से कहा..
पर मनीष नही माने ऑर ज़बरदस्ती मुझे खाना खाने बैठना पड़ा.. मनीष ऑर अमित एक साथ मेरे सामने बैठे हुए थे.. वो मुझे अब भी लगातार घूरे जा रहा था. उसकी नज़र कभी मेरे चेहरे पर कभी मेरी छाती पर होती थी.. वो खाना इस तरह से खा रहा था जैसे की बरसो बाद खाना मिला हो ऑर अब कभी उसे खाना नही मिलेगा मैने जल्दी जल्दी अपना खाना ख़तम किया ऑर उठ कर हाथ धोने चली गयी तभी वो भी मेरे पीछे ही वाहा से उठ कर चला आया.. मैं हाथ धो ही रही थी थी मुझे मेरे नितंब पर किसी ने हाथ फेरा हो ऐसा महसूस हुआ.. मैने पलट कर देखा तो मेरे पीछे वो देहाती खड़ा हुआ था ऑर मुझे देख कर अजीब तरह से मुस्कुराए जा रहा था..
भाभी जी आप के हाथो मे तो सच मे जादू है.. खाना तो एक दम बोहोत बढ़िया बनाया है आप ने.. तबीयत हरी हो गयी खाना खा कर.. उसने मुझे देख कर अपना एक हाथ अपने पेंट की ज़िप के उपर फिराने लग गया..
उसे वाहा अपने पीछे देख कर मेरा खून खौल गया.. मैं उसकी तरफ नफ़रत भरी निगाह से देखती हुई वाहा से अपने बेडरूम मे आ गयी.. ज़रा सी भी शरम नही है मेरे सामने ही इस तरह की गंदी हरकत कर रहा है.. मैं उसकी किसी भी बात का जवाब दिए बिना ही वाहा से सीधे अपने बेडरूम मे चली आई..
मनीष उसके साथ उसके कमरे मे चले गये ओर मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी.. खाना खा कर ऑर दोपहर का खाना बनाने की वजह से थकान हो रही थी ऑर लेटने के बाद कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नही चला.. जब मेरी आँख खुली तो शाम हो गयी थी ओर मनीष ऑर अमित अब अभी बैठ कर बात कर रहे थे ऑर ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे..
मैं अपने बेडरूम से निकल कर जब मैं उस कमरे की तरफ गयी तो वो देहाती मुझे देखते ही बोला कि अरे वाह भाभी जी अभी आप की ही बात चल रही थी.. आइए बैठिए..
नहा कर मैं चुप चाप अपने बेडरूम मे वापस आ गयी ओर शीशे के आगे बैठ कर अपने बाल सही करने लग गयी.. मेरे आते ही मनीष बाथरूम के अंदर चले गये. शीशे के आगे बैठने के बाद उसकी हेवानियत भरी हसी बार बार मेरे आँखो के आगे दिखाई देने लगी जब वो मुझे ऑर मनीष को देख कर मुस्कुरा रहा था..
बाल ठीक करने के बाद दोफर का खाना बनाने के लिए मैं किचन मे आ गयी.. अगर आज ये देहाती नही आता तो मैं मनीष के साथ बाहर खाना खाती ऑर ढेर सारी शॉपिंग करती यही ख़याल खाना बनाते हुए मेरे दिमाग़ मे चल रहा था. पर उसके आने की वजह से मुझे गर्मी मे किचन मे खड़े हो कर खाना बनाना पड़ रहा था.. दोपहर तक मैने सब खाना बना लिया था. ओर मनीष से खाना खाने के लिए बोल दिया..
मनीष खाना खाने के लिए उस अमित को जगा कर अपने साथ ले आए.. मैं वही ड्रॉयिंग रूम मे बैठी हुई खाने की टेबल पर मनीष का इंतजार कर रही थी. वो अपनी उसी गंदी सी हसी के साथ मुस्कुराता हुआ मुझे घूरे जा रहा था..
मुझे खाना सर्व करते हुए वो लगतार देख कर घूरे जा रहा था. उसकी नज़र देख कर सॉफ पता चल रहा था कि वो मेरे बारे मे कुछ ना कुछ ग़लत सोच रहा था.. उसकी नज़रे मेरे पूरे जिस्म पर किसी तलवार की तरह से चल रही थी..
जब मैने दोनो को खाना सर्व कर दिया तो मनीष ने आवाज़ लगा कर मुझसे कहा.. अरे निशा आओ तुम भी हमारे साथ ही बैठ कर खाना खा लो.. अभी मनीष अपनी बात ख़तम नही कर पाए थे उस से पहले ही वो अमित बोल उठा हां.. हां.. भाभी जी आप भी साथ मे ही खाना खा लो..
एक तो मेरा मूड पहले से ही खराब था उस पर उसकी गंदी सी हसी.. नही आप खा लो मैं बाद मे खा लूँगी.. मैने मनीष से कहा..
पर मनीष नही माने ऑर ज़बरदस्ती मुझे खाना खाने बैठना पड़ा.. मनीष ऑर अमित एक साथ मेरे सामने बैठे हुए थे.. वो मुझे अब भी लगातार घूरे जा रहा था. उसकी नज़र कभी मेरे चेहरे पर कभी मेरी छाती पर होती थी.. वो खाना इस तरह से खा रहा था जैसे की बरसो बाद खाना मिला हो ऑर अब कभी उसे खाना नही मिलेगा मैने जल्दी जल्दी अपना खाना ख़तम किया ऑर उठ कर हाथ धोने चली गयी तभी वो भी मेरे पीछे ही वाहा से उठ कर चला आया.. मैं हाथ धो ही रही थी थी मुझे मेरे नितंब पर किसी ने हाथ फेरा हो ऐसा महसूस हुआ.. मैने पलट कर देखा तो मेरे पीछे वो देहाती खड़ा हुआ था ऑर मुझे देख कर अजीब तरह से मुस्कुराए जा रहा था..
भाभी जी आप के हाथो मे तो सच मे जादू है.. खाना तो एक दम बोहोत बढ़िया बनाया है आप ने.. तबीयत हरी हो गयी खाना खा कर.. उसने मुझे देख कर अपना एक हाथ अपने पेंट की ज़िप के उपर फिराने लग गया..
उसे वाहा अपने पीछे देख कर मेरा खून खौल गया.. मैं उसकी तरफ नफ़रत भरी निगाह से देखती हुई वाहा से अपने बेडरूम मे आ गयी.. ज़रा सी भी शरम नही है मेरे सामने ही इस तरह की गंदी हरकत कर रहा है.. मैं उसकी किसी भी बात का जवाब दिए बिना ही वाहा से सीधे अपने बेडरूम मे चली आई..
मनीष उसके साथ उसके कमरे मे चले गये ओर मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी.. खाना खा कर ऑर दोपहर का खाना बनाने की वजह से थकान हो रही थी ऑर लेटने के बाद कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नही चला.. जब मेरी आँख खुली तो शाम हो गयी थी ओर मनीष ऑर अमित अब अभी बैठ कर बात कर रहे थे ऑर ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे..
मैं अपने बेडरूम से निकल कर जब मैं उस कमरे की तरफ गयी तो वो देहाती मुझे देखते ही बोला कि अरे वाह भाभी जी अभी आप की ही बात चल रही थी.. आइए बैठिए..