27-12-2019, 06:08 PM
Update 22
"चूत फट जाएगी तेरी...इतना बड़ा ले भी लेगी" सौरभ फिर धीरे से बोला
"जब गान्ड में ले लिया तेरा पूरा तो क्या चूत में नही जाएगा" श्रद्धा ज़ोर से बोली.
"चुप कर मैं कुछ और पूछ रहा हूँ और तू कुछ और जवाब दे रही है" सौरभ ने अपर्णा की ओर देखते हुए कहा.
"तुम लोग मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो मैं जा रही हूँ" श्रद्धा ने कहा.
तभी उन्हे दरवाजे के बाहर कुछ आहट सुनाई दी.
"सस्शह लगता है बाहर कोई है...." आशु ने धीरे से कहा.
सौरभ ने तुरंत कमरे की लाइट बंद कर दी.
"कॅटा कहा है?" सौरभ ने आशु से पूछा.
"तुम्हे ही तो दिया था भोलू के घर पे वही छोड़ आए क्या"
सौरभ ने अपने कपड़े टटोले.
"उफ्फ वो मैने भोलू से बात करते करते टॉयलेट के वॉश बेसिन पर रख दिया था. उठाना याद ही नही रहा.
"गयी भंस पानी में अब बाहर निकलना ठीक नही है" आशु ने कहा.
"कोई बात नही हॉकी तो है ना अपने पास"
"देख लो मुझ बाहर निकलना ठीक नही लग रहा बाकी तुम्हारी मर्ज़ी" आशु ने कहा.
"तू चिंता मत कर देखा जाएगा जो होगा"
"ठीक है फिर खोलो दरवाजा" आशु ने कहा.
सौरभ धीरे से दरवाजा खोलता है और दाए बाए झाँक कर देखता है, "यहा तो कोई नही है"
"गुरु चलो अंदर वो गेम खेल रहा है हमारे साथ...हम इस गेम में नही फसेंगे...चलो सुबह देखेंगे कि आगे क्या करना है"
"ठीक कह रहे हो" सौरभ कहकर दरवाजा बंद कर देता है.
"क्या हुआ....दीखा कोई" अपर्णा ने पूछा.
"नही कोई नही दीखा" सौरभ ने कहा.
"मुझे घर छोड़ आओ मैं यहा एक पल भी नही रुकूंगी....तुम लोगो के पीछे है वो ." श्रद्धा ने कहा.
"भूल गयी यहा तक उसे तू लेकर आई थी" सौरभ ने कहा.
"मुझे नही पता मुझे अपने घर जाना है" श्रद्धा ने कहा.
"श्रद्धा इस वक्त घर से बाहर निकलना ठीक नही है....वो बाहर ही घूम रहा है...तुम आज यही रूको"
"पर पूजा घर में अकेली है" श्रद्धा ने कहा.
"तो क्या हुआ...वो कल भी तो अकेली थी....तू यही सो जा आज...मैं भी यही रुक रहा हूँ" आशु ने कहा.
"चल ठीक है तू कहता है तो रुक जाती हूँ....पर अपने गुरु को समझा देना मेरे साथ कोई ऐसी वैसी हरकत ना करे" श्रद्धा ने सौरभ की ओर देखते हुए कहा.
"हे भगवान अब ये रात कैसे कटेगी ये तो कल से भी ज़्यादा भयानक बन गयी है" अपर्णा ने डबल मीनिंग बात कही.
"बीत जाएगी मैं हूँ ना साथ तुम्हारे...तुम डरो मत" श्रद्धा ने कहा.
"तुम हो तभी तो डर है" अपर्णा धीरे से बड़बड़ाई.
"क्या कहा तुमने?" श्रद्धा ने पूछा.
"कुछ नही यही की बिस्तर एक है और हम चार" अपर्णा ने कहा.
"कोई बात नही हम दोनो यहा बिस्तर पर लेट जाएँगे और ये दोनो नीचे चटाई पर"
"तुम्हारे साथ नही लेटुंगी मैं" अपर्णा ने कहा.
"तो क्या इन दोनो के साथ लेटोगी हे..हे..."
"चुप करो श्रद्धा परेशान मत करो अपर्णा जी को" आशु बोला.
"भाई मैं तो सोने जा रही हूँ जिसे मेरे साथ सोना हो आ जाए" श्रद्धा ने कहा और रज़ाई में घुस गयी. घुसते हुए उसने सौरभ को आँख मारी. सौरभ उसकी तरफ हंस दिया.
मरती क्या ना करती अपर्णा पैर पटक कर रज़ाई का दूसरा कौना पकड़ कर घुस गयी. रज़ाई डबल बेड वाली थी इसलिए दोनो आराम से उसमे समा गये.
"चूत फट जाएगी तेरी...इतना बड़ा ले भी लेगी" सौरभ फिर धीरे से बोला
"जब गान्ड में ले लिया तेरा पूरा तो क्या चूत में नही जाएगा" श्रद्धा ज़ोर से बोली.
"चुप कर मैं कुछ और पूछ रहा हूँ और तू कुछ और जवाब दे रही है" सौरभ ने अपर्णा की ओर देखते हुए कहा.
"तुम लोग मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो मैं जा रही हूँ" श्रद्धा ने कहा.
तभी उन्हे दरवाजे के बाहर कुछ आहट सुनाई दी.
"सस्शह लगता है बाहर कोई है...." आशु ने धीरे से कहा.
सौरभ ने तुरंत कमरे की लाइट बंद कर दी.
"कॅटा कहा है?" सौरभ ने आशु से पूछा.
"तुम्हे ही तो दिया था भोलू के घर पे वही छोड़ आए क्या"
सौरभ ने अपने कपड़े टटोले.
"उफ्फ वो मैने भोलू से बात करते करते टॉयलेट के वॉश बेसिन पर रख दिया था. उठाना याद ही नही रहा.
"गयी भंस पानी में अब बाहर निकलना ठीक नही है" आशु ने कहा.
"कोई बात नही हॉकी तो है ना अपने पास"
"देख लो मुझ बाहर निकलना ठीक नही लग रहा बाकी तुम्हारी मर्ज़ी" आशु ने कहा.
"तू चिंता मत कर देखा जाएगा जो होगा"
"ठीक है फिर खोलो दरवाजा" आशु ने कहा.
सौरभ धीरे से दरवाजा खोलता है और दाए बाए झाँक कर देखता है, "यहा तो कोई नही है"
"गुरु चलो अंदर वो गेम खेल रहा है हमारे साथ...हम इस गेम में नही फसेंगे...चलो सुबह देखेंगे कि आगे क्या करना है"
"ठीक कह रहे हो" सौरभ कहकर दरवाजा बंद कर देता है.
"क्या हुआ....दीखा कोई" अपर्णा ने पूछा.
"नही कोई नही दीखा" सौरभ ने कहा.
"मुझे घर छोड़ आओ मैं यहा एक पल भी नही रुकूंगी....तुम लोगो के पीछे है वो ." श्रद्धा ने कहा.
"भूल गयी यहा तक उसे तू लेकर आई थी" सौरभ ने कहा.
"मुझे नही पता मुझे अपने घर जाना है" श्रद्धा ने कहा.
"श्रद्धा इस वक्त घर से बाहर निकलना ठीक नही है....वो बाहर ही घूम रहा है...तुम आज यही रूको"
"पर पूजा घर में अकेली है" श्रद्धा ने कहा.
"तो क्या हुआ...वो कल भी तो अकेली थी....तू यही सो जा आज...मैं भी यही रुक रहा हूँ" आशु ने कहा.
"चल ठीक है तू कहता है तो रुक जाती हूँ....पर अपने गुरु को समझा देना मेरे साथ कोई ऐसी वैसी हरकत ना करे" श्रद्धा ने सौरभ की ओर देखते हुए कहा.
"हे भगवान अब ये रात कैसे कटेगी ये तो कल से भी ज़्यादा भयानक बन गयी है" अपर्णा ने डबल मीनिंग बात कही.
"बीत जाएगी मैं हूँ ना साथ तुम्हारे...तुम डरो मत" श्रद्धा ने कहा.
"तुम हो तभी तो डर है" अपर्णा धीरे से बड़बड़ाई.
"क्या कहा तुमने?" श्रद्धा ने पूछा.
"कुछ नही यही की बिस्तर एक है और हम चार" अपर्णा ने कहा.
"कोई बात नही हम दोनो यहा बिस्तर पर लेट जाएँगे और ये दोनो नीचे चटाई पर"
"तुम्हारे साथ नही लेटुंगी मैं" अपर्णा ने कहा.
"तो क्या इन दोनो के साथ लेटोगी हे..हे..."
"चुप करो श्रद्धा परेशान मत करो अपर्णा जी को" आशु बोला.
"भाई मैं तो सोने जा रही हूँ जिसे मेरे साथ सोना हो आ जाए" श्रद्धा ने कहा और रज़ाई में घुस गयी. घुसते हुए उसने सौरभ को आँख मारी. सौरभ उसकी तरफ हंस दिया.
मरती क्या ना करती अपर्णा पैर पटक कर रज़ाई का दूसरा कौना पकड़ कर घुस गयी. रज़ाई डबल बेड वाली थी इसलिए दोनो आराम से उसमे समा गये.
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