29-01-2019, 11:31 PM
प्रवीण भी थक गया था। वो उठकर बाथरूम में चला गया और मैं कपड़े पहनकर अपनी बर्थ पर लेट गई। मेरे लेटते ही मुझे नींद आ गई, और जब मेरी आँखें खुली तो सुबह हो चुकी थी और सभी उठ चुके थे।
मैं बाथरूम में जाकर फ्रेश होने लगी और फ्रेश होने के बाद मैं बाहर आ गई। मैं मोहित के साथ एक अंजान लड़के को देखकर हैरान रह गई। करुणा और मोहित हँस-हँसकर उससे बातें कर रहे थे। मेरे वहाँ पहुँचते ही मोहित ने उस लड़के से मेरा परिचय कराते हुए कहा- “यह है मनीष... और मनीष यह है धन्नो...”
उस लड़के ने मुझे हाय कहते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। मैंने भी अपना हाथ बढ़ाकर उसे हेलो कहा। मैं उनके साथ ही एक बर्थ पर बैठ गई। मैंने बैठते ही पूछा- “मनीष कहाँ से आ गया?”
मेरी बात सुनते ही करुणा बोल पड़ी- “दीदी रात को उनकी बोगी में आग लग गई थी और रात वाली सारी बात बता दी...”
करुणा की बात सुनकर मैं खामोश हो गई।
मोहित- “मनीष तुम कहाँ जा रहे हो, और तुम कहाँ के रहने वाले हो?”
मनीष- “यार मैं करमपुर गाँव जा रहा हूँ और वहीं का रहने वाला हूँ, मुंबई पढ़ने के लिए गया था। अब छुट्टियां हैं तो वापस घर जा रहा हूँ...”
मोहित- “करमपुर... तुम किस करमपुर की बात कर रहे हो, और तुम्हारे गाँव के ठाकुर का नाम क्या है?”
मनीष- मेरे गाँव का ठाकुर मेरा बाप है उसका नाम है प्रताप सिंह।
मोहित- “प्रताप सिंह? मनीष, मैं भी करमपुर का रहने वाला हूँ तुमने मुझे पहुँचाना नहीं? मैं सीता का बेटा हूँ, बचपन में हम साथ में खेलते थे। तुम्हारा एक छोटा भाई भी तो है जिसके साथ मेरा झगड़ा हुआ था। क्या नाम है उसका?”
मनीष- रवी नाम है उसका। तुम सीता मौसी के बेटे हो?
मोहित- हाँ मनीष, मैं सीता का बेटा हूँ।
मनीष- यार तुम तो बहुत बड़े हो गये हो पहचान ही नहीं पाया। मगर तुम कहाँ से आ रहे हो?
मोहित- मैंने पढ़ने के लिए मुंबई में एडमिशन ले लिया है और वहाँ सोनाली आँटी के घर में रहता हूँ, यह करुणा उसकी बेटी है और धन्नो उसकी भतीजी।
मनीष- सोनाली... यह वोही है ना जिसका पति बैंक में था और वो तो मर चुका है।
मोहित- हाँ सही पहचाना वोही सोनाली आँटी। मनीष अब हमसे बातें करने लगा और हम सब आपस में बातें करने लगे।
मगर मेरी नजर बार-बार इधर-उधर प्रवीण को ढूँढ़ रही थी।
मुझे ऐसे बेचैन देखकर मोहित ने कहा- “क्या हुआ धन्नो किसे ढूँढ़ रही हो?”
मैंने मोहित को कहा- “प्रवीण और राधा नजर नहीं आ रहे हैं..”
मोहित ने कहा- “यार वो चले गये। सुबह उनका स्टेशन आ गया था तुम सो रही थी...”
मैं मोहित की बात सुनकर खामोश हो गई। हम सब ऐसे ही बातें करते रहे। कब हमारा स्टेशन आ गया पता ही नहीं चला। हम सभी अपना-अपना सामान उठाकर अपने स्टेशन पर उतरने लगे। ट्रेन से उतरते ही हमारा गाँव कोई 20 कीलोमीटर दूर था। वहाँ से एक बस हमारे गाँव जाती थी। हम बस की तरफ बढ़ने लगे।
मैं बाथरूम में जाकर फ्रेश होने लगी और फ्रेश होने के बाद मैं बाहर आ गई। मैं मोहित के साथ एक अंजान लड़के को देखकर हैरान रह गई। करुणा और मोहित हँस-हँसकर उससे बातें कर रहे थे। मेरे वहाँ पहुँचते ही मोहित ने उस लड़के से मेरा परिचय कराते हुए कहा- “यह है मनीष... और मनीष यह है धन्नो...”
उस लड़के ने मुझे हाय कहते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। मैंने भी अपना हाथ बढ़ाकर उसे हेलो कहा। मैं उनके साथ ही एक बर्थ पर बैठ गई। मैंने बैठते ही पूछा- “मनीष कहाँ से आ गया?”
मेरी बात सुनते ही करुणा बोल पड़ी- “दीदी रात को उनकी बोगी में आग लग गई थी और रात वाली सारी बात बता दी...”
करुणा की बात सुनकर मैं खामोश हो गई।
मोहित- “मनीष तुम कहाँ जा रहे हो, और तुम कहाँ के रहने वाले हो?”
मनीष- “यार मैं करमपुर गाँव जा रहा हूँ और वहीं का रहने वाला हूँ, मुंबई पढ़ने के लिए गया था। अब छुट्टियां हैं तो वापस घर जा रहा हूँ...”
मोहित- “करमपुर... तुम किस करमपुर की बात कर रहे हो, और तुम्हारे गाँव के ठाकुर का नाम क्या है?”
मनीष- मेरे गाँव का ठाकुर मेरा बाप है उसका नाम है प्रताप सिंह।
मोहित- “प्रताप सिंह? मनीष, मैं भी करमपुर का रहने वाला हूँ तुमने मुझे पहुँचाना नहीं? मैं सीता का बेटा हूँ, बचपन में हम साथ में खेलते थे। तुम्हारा एक छोटा भाई भी तो है जिसके साथ मेरा झगड़ा हुआ था। क्या नाम है उसका?”
मनीष- रवी नाम है उसका। तुम सीता मौसी के बेटे हो?
मोहित- हाँ मनीष, मैं सीता का बेटा हूँ।
मनीष- यार तुम तो बहुत बड़े हो गये हो पहचान ही नहीं पाया। मगर तुम कहाँ से आ रहे हो?
मोहित- मैंने पढ़ने के लिए मुंबई में एडमिशन ले लिया है और वहाँ सोनाली आँटी के घर में रहता हूँ, यह करुणा उसकी बेटी है और धन्नो उसकी भतीजी।
मनीष- सोनाली... यह वोही है ना जिसका पति बैंक में था और वो तो मर चुका है।
मोहित- हाँ सही पहचाना वोही सोनाली आँटी। मनीष अब हमसे बातें करने लगा और हम सब आपस में बातें करने लगे।
मगर मेरी नजर बार-बार इधर-उधर प्रवीण को ढूँढ़ रही थी।
मुझे ऐसे बेचैन देखकर मोहित ने कहा- “क्या हुआ धन्नो किसे ढूँढ़ रही हो?”
मैंने मोहित को कहा- “प्रवीण और राधा नजर नहीं आ रहे हैं..”
मोहित ने कहा- “यार वो चले गये। सुबह उनका स्टेशन आ गया था तुम सो रही थी...”
मैं मोहित की बात सुनकर खामोश हो गई। हम सब ऐसे ही बातें करते रहे। कब हमारा स्टेशन आ गया पता ही नहीं चला। हम सभी अपना-अपना सामान उठाकर अपने स्टेशन पर उतरने लगे। ट्रेन से उतरते ही हमारा गाँव कोई 20 कीलोमीटर दूर था। वहाँ से एक बस हमारे गाँव जाती थी। हम बस की तरफ बढ़ने लगे।