27-12-2019, 02:26 PM
Update 1
'मेमसाहब रात बहुत हो चुकी है आप कब तक रहेंगी यहा' राज कुमार ने पूछा.
'बस काका जा रही हूँ' अपर्णा ने टेबल पर बिखरे कागजॉ को एक फाइल कवर में रखते हुवे कहा.
अपर्णा ऑफीस के चोकीदार को काका कह कर ही बुलाती थी.
जैसे ही अपर्णा अपने केबिन से बाहर निकली ऑफीस के सन्नाटे को देख कर उसका डर के मारे गला सुख गया. 'ओह... कितनी देर हो गयी. पर क्या करूँ ये असाइनमेंट भी तो पूरी करनी ज़रूरी थी वरना वो कमीना सक्सेना मेरी जान ले लेता कल. भगवान ऐसा बॉस किसी को ना दे' अपर्णा पार्किंग की तरफ तेज़ी से बढ़ती हुई बड़बड़ा रही है.
कार में बैठते ही उसने अपने पापा को फोन लगाया,'पापा मैं आ रही हूँ. 20 मिनिट में घर पहुँच जाउंगी.
अपर्णा शादी शुदा होते हुवे भी 5 महीने से अपने मायके में थी. कारण बहुत ही दुखद था. उसका पति ऋषि उसे दहेज के लिए ताने देता था. हर रोज उसकी नयी माँग होती थी. माँगे पूरी करते करते अपर्णा के परिवार वाले थक चुके थे. जब पानी सर से उपर हो गया तो अपर्णा अपने ससुराल (देल्ही) से मायके (देहरादून) चली आई.
'उह आज बहुत ठंड है. सड़के भी सुनसान है. मुझे इतनी देर तक ऑफीस नही रुकना चाहिए था.' रात के 10:30 बज रहे थे. सर्दी में जन्वरी के महीने में इस वक्त सभी लोग अपने-अपने घरो में रज़ाई में दुबक जाते हैं.
पहली बार अपर्णा इतनी देर तक घर से बाहर थी. कार चलाते वक्त उसका दिल धक-धक कर रहा था. जो रास्ते दिन में जाने पहचाने लगते थे वो रात को किसी खौफनाक खंडहर से कम नही लग रहे थे.
अपर्णा के हाथ स्टीरिंग पर काँप रहे थे.'ऑल ईज़ वेल...ऑल ईज़ वेल' वो बार बार दोहरा रही थी.
अचानक उसे सड़क पर एक साया दीखाई दिया. अपर्णा ने पहले तो राहत की साँस ली कि चलो सुनसांसड़क पर उसे कोई तो दिखाई दिया. पर अचानक उसकी राहत घबराहट में बदल गयी. वो सामने बिल्कुल सड़क के बीच आ गया था और हाथ हिला कर गाड़ी रोकने का इशारा कर रहा था.
अपर्णा को समझ नही आया कि क्या करे. जब वो उस साए के पास पहुँची तो पाया कि एक कोई 28-30 साल का हॅटा कॅटा आदमी उसे कार रोकने का इशारा कर रहा था.
अपर्णा को समझ नही आ रहा था कि क्या करे क्या ना करे. पर वो शख्स बिल्कुल उसकी कार के आगे आ गया था. ना चाहते हुवे भी अपर्णा को ब्रेक लगाने पड़े.
जैसी ही कार रुकी वो आदमी अपर्णा के कार को ज़ोर-ज़ोर से ठप-थपाने लगा. वो बहुत घबराया हुवा लग रहा था.
अपर्णा को भी उसके चेहरे पर डर की शिकन दीखाई दे रही थी. अपर्णा ने अपनी विंडो का शीशा थोड़ा नीचे सरकाया और पूछा, “क्या बात है, पागल हो क्या तुम.”
'मेमसाहब रात बहुत हो चुकी है आप कब तक रहेंगी यहा' राज कुमार ने पूछा.
'बस काका जा रही हूँ' अपर्णा ने टेबल पर बिखरे कागजॉ को एक फाइल कवर में रखते हुवे कहा.
अपर्णा ऑफीस के चोकीदार को काका कह कर ही बुलाती थी.
जैसे ही अपर्णा अपने केबिन से बाहर निकली ऑफीस के सन्नाटे को देख कर उसका डर के मारे गला सुख गया. 'ओह... कितनी देर हो गयी. पर क्या करूँ ये असाइनमेंट भी तो पूरी करनी ज़रूरी थी वरना वो कमीना सक्सेना मेरी जान ले लेता कल. भगवान ऐसा बॉस किसी को ना दे' अपर्णा पार्किंग की तरफ तेज़ी से बढ़ती हुई बड़बड़ा रही है.
कार में बैठते ही उसने अपने पापा को फोन लगाया,'पापा मैं आ रही हूँ. 20 मिनिट में घर पहुँच जाउंगी.
अपर्णा शादी शुदा होते हुवे भी 5 महीने से अपने मायके में थी. कारण बहुत ही दुखद था. उसका पति ऋषि उसे दहेज के लिए ताने देता था. हर रोज उसकी नयी माँग होती थी. माँगे पूरी करते करते अपर्णा के परिवार वाले थक चुके थे. जब पानी सर से उपर हो गया तो अपर्णा अपने ससुराल (देल्ही) से मायके (देहरादून) चली आई.
'उह आज बहुत ठंड है. सड़के भी सुनसान है. मुझे इतनी देर तक ऑफीस नही रुकना चाहिए था.' रात के 10:30 बज रहे थे. सर्दी में जन्वरी के महीने में इस वक्त सभी लोग अपने-अपने घरो में रज़ाई में दुबक जाते हैं.
पहली बार अपर्णा इतनी देर तक घर से बाहर थी. कार चलाते वक्त उसका दिल धक-धक कर रहा था. जो रास्ते दिन में जाने पहचाने लगते थे वो रात को किसी खौफनाक खंडहर से कम नही लग रहे थे.
अपर्णा के हाथ स्टीरिंग पर काँप रहे थे.'ऑल ईज़ वेल...ऑल ईज़ वेल' वो बार बार दोहरा रही थी.
अचानक उसे सड़क पर एक साया दीखाई दिया. अपर्णा ने पहले तो राहत की साँस ली कि चलो सुनसांसड़क पर उसे कोई तो दिखाई दिया. पर अचानक उसकी राहत घबराहट में बदल गयी. वो सामने बिल्कुल सड़क के बीच आ गया था और हाथ हिला कर गाड़ी रोकने का इशारा कर रहा था.
अपर्णा को समझ नही आया कि क्या करे. जब वो उस साए के पास पहुँची तो पाया कि एक कोई 28-30 साल का हॅटा कॅटा आदमी उसे कार रोकने का इशारा कर रहा था.
अपर्णा को समझ नही आ रहा था कि क्या करे क्या ना करे. पर वो शख्स बिल्कुल उसकी कार के आगे आ गया था. ना चाहते हुवे भी अपर्णा को ब्रेक लगाने पड़े.
जैसी ही कार रुकी वो आदमी अपर्णा के कार को ज़ोर-ज़ोर से ठप-थपाने लगा. वो बहुत घबराया हुवा लग रहा था.
अपर्णा को भी उसके चेहरे पर डर की शिकन दीखाई दे रही थी. अपर्णा ने अपनी विंडो का शीशा थोड़ा नीचे सरकाया और पूछा, “क्या बात है, पागल हो क्या तुम.”