26-12-2019, 06:19 PM
अपर्णा ने इस बार जीतूजी के वीर्य के कुछ हिस्से को अपने मुंहमें पाया। शायद पहली बार अपर्णा उसे निगल गयी। हालांकि वीर्य निगलने में उसे कोई ख़ास स्वाद का अनुभव तो नहीं हुआ, पर अपर्णा अपने प्रियतम को शायद यह अहसास दिलाना चाहती थी की वह उन्हें कितना प्यार करती थी। एक औरत जब अपने प्रिय मर्द का लण्ड मुंह में डाल कर चुस्ती है तो वह अपने मर्द को यह अहसास दिलाना चाहती है की उसका प्यार कितना गहरा और घना है। मर्द होने के नाते मेरा यह मानना है की अपना लण्ड चुसवाने में मर्द को औरत को चोदने से ज्यादा मजा नहीं आता। पर हाँ लण्ड चुसवाने से उसका अहम् संतुष्ट होता है। इसमें औरत की मर्द के लण्ड को चूसने की कला में कितनी काबिलियत है यह भी एक जरुरी पहलु है। हालांकि औरत का उलटा है। अपनी चूत अपने मर्द से चुसवाने में औरत को कहीं ज्यादा रोमांच और आनंद की अनुभूति होती है ऐसा मुझे मेरी सारी सैया भागिनिओं ने कहा है। जब जब मैंने अपना मुंह उनकी टांगों के बिच में रखा है, तब तब वह इतनी मचल जातीं हैं की बस, उन्हें मचलती देख कर ही मजा आ जाता है।
अपर्णा हैरान रह गयी की काफी समय तक जीतूजी का गाढ़ा वीर्य उनके लण्ड के छिद्र से निकलता ही रहा। जीतूजी के वीर्य का घनापन देखते हुए अपर्णा के जेहन में एक सिहरन सी फ़ैल गयी। उसे लगभग यकीं हो गया की जब ऐसा गाढ़ा वीर्य जितनी मात्रा में उसकी चूत के सारे कोनों में फ़ैल गया था तो वह कहीं ना कहीं अपर्णा के स्त्री बीज से मिलकर जरूर फलीभूत होगा। क्या अपर्णा को जीतूजी गर्भवती बना पाएंगे? यह प्रश्न अपर्णाके मन में घूमने लगा। खैर कुछ देर वैसे ही खड़े रहने के बाद जीतूजी ने अपर्णा को पकड़ कर खड़ा किया और उसे कस कर अपनी बाँहों में लिया। अपर्णा और जीतूजी के नग्न बदन एक दूसरे से रगने लगे। अपर्णा के गोल गुम्बज जीतूजी के घने बालों से भरे सीने से पिचक कर दब गए थे।
रोहित यह दृश्य कुछ दूर हट कर खड़े रह कर देख रहे थे। अपर्णा अपना मुंह जीतूजी के मुंह के पास लायी और अपने होँठ जीतूजी के होँठों से मिला दिए। एक बार फिर दोनों प्रेमी प्रमिका घने आलिंगन में बंधे एक दूसरे के होँठों और जिह्वा को चूसने और एक दूसरी के लार चूसने और निगलने में जुट गए। जीतूजी अपनी प्रेमिका और अपने दोस्त रोहित की पत्नीको अपने आगोश में लेकर काफी देर तक उसे गहरा चुम्बन करते रहे। फीर थोड़ा सा हट कर अपर्णा के गालों पर एक हलकी सी पप्पी देकर हल्का सा मुस्करा कर बोले, "अपर्णा, आज तुमने मुझे जिंदगी की बहुत बड़ी चीज दी है। मुझे तुमने एक अमूल्य पारितोषिक दिया है। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी भी नहीं पाउँगा।" अपर्णा ने फ़ौरन जीतूजी के होँठों पर अपनी पतली सी हथेली रखते हुए कहा, "जीतूजी, यह पारितोषिक मैंने नहीं, आपने मुझे दिया है और उसमें मेरे पति का बहुमूल्य योगदान रहा है। यदि वह मुझे बार बार प्रोत्साहित ना करते तो मुझमें यह हिम्मत नहीं थी की मैं थोडीसी भी आगे बढ़ पाती। और दूसरी बात प्यार में प्रेमी कभी भी एक दूसरे का धन्यवाद नहीं करते। मैं सदा आपकी हूँ और आप सदा मेरे रहेंगे।" यह कहकर अपर्णाने अपने पतिकी और देखा, रोहित जी ने अपना सर हिलाते हुए कहा, "बिलकुल। अब हम चारों एक दूसरे के हो चुके हैं। हम चारों में कोई भेद या अन्तर का भाव नहीं आना चाहिये । मैं श्रेया भी इसमें शामिल कर रहा हूँ।"
अपने पति रोहित की बात सुनकर अपर्णा भावविभोर हो गयी। उसे अपने पति पर गर्व हुआ। वह आगे बढ़कर अपने पति को लिपट गयी और उनके गले में बाँहें डाल कर बोली, "मुझे आप की पत्नी होने का गर्व है। शायद ही कोई पति अपनी पत्नी को इतना सम्मान देता होगा। अब तक मैं पुरानी रूढ़िवादी विचारों में खोई हुई थी। मैं अब भी मानती हूँ की पुराने विचारों में भी बुराई नहीं है। पर आज जो हमने अनुभव किया वह एक तरहसे कहें तो अलौकिक अनुभव है। आज हम दो जोड़ियाँ एक हो गयीं।"
तीनों प्रेमी शारीरिक थकान के मारे कुछ देर सो गए। कुछ देर सोने के पश्चात उन्हें बाहर कुछ हड़बड़ाहट महसूस हुई। सबसे पहले अपर्णा फुर्ती से उठी और भाग कर बाथरूम में जाकर अपने बदन को साफ़कर उसने अपने कपडे पहन लिए।
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अपर्णा हैरान रह गयी की काफी समय तक जीतूजी का गाढ़ा वीर्य उनके लण्ड के छिद्र से निकलता ही रहा। जीतूजी के वीर्य का घनापन देखते हुए अपर्णा के जेहन में एक सिहरन सी फ़ैल गयी। उसे लगभग यकीं हो गया की जब ऐसा गाढ़ा वीर्य जितनी मात्रा में उसकी चूत के सारे कोनों में फ़ैल गया था तो वह कहीं ना कहीं अपर्णा के स्त्री बीज से मिलकर जरूर फलीभूत होगा। क्या अपर्णा को जीतूजी गर्भवती बना पाएंगे? यह प्रश्न अपर्णाके मन में घूमने लगा। खैर कुछ देर वैसे ही खड़े रहने के बाद जीतूजी ने अपर्णा को पकड़ कर खड़ा किया और उसे कस कर अपनी बाँहों में लिया। अपर्णा और जीतूजी के नग्न बदन एक दूसरे से रगने लगे। अपर्णा के गोल गुम्बज जीतूजी के घने बालों से भरे सीने से पिचक कर दब गए थे।
रोहित यह दृश्य कुछ दूर हट कर खड़े रह कर देख रहे थे। अपर्णा अपना मुंह जीतूजी के मुंह के पास लायी और अपने होँठ जीतूजी के होँठों से मिला दिए। एक बार फिर दोनों प्रेमी प्रमिका घने आलिंगन में बंधे एक दूसरे के होँठों और जिह्वा को चूसने और एक दूसरी के लार चूसने और निगलने में जुट गए। जीतूजी अपनी प्रेमिका और अपने दोस्त रोहित की पत्नीको अपने आगोश में लेकर काफी देर तक उसे गहरा चुम्बन करते रहे। फीर थोड़ा सा हट कर अपर्णा के गालों पर एक हलकी सी पप्पी देकर हल्का सा मुस्करा कर बोले, "अपर्णा, आज तुमने मुझे जिंदगी की बहुत बड़ी चीज दी है। मुझे तुमने एक अमूल्य पारितोषिक दिया है। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी भी नहीं पाउँगा।" अपर्णा ने फ़ौरन जीतूजी के होँठों पर अपनी पतली सी हथेली रखते हुए कहा, "जीतूजी, यह पारितोषिक मैंने नहीं, आपने मुझे दिया है और उसमें मेरे पति का बहुमूल्य योगदान रहा है। यदि वह मुझे बार बार प्रोत्साहित ना करते तो मुझमें यह हिम्मत नहीं थी की मैं थोडीसी भी आगे बढ़ पाती। और दूसरी बात प्यार में प्रेमी कभी भी एक दूसरे का धन्यवाद नहीं करते। मैं सदा आपकी हूँ और आप सदा मेरे रहेंगे।" यह कहकर अपर्णाने अपने पतिकी और देखा, रोहित जी ने अपना सर हिलाते हुए कहा, "बिलकुल। अब हम चारों एक दूसरे के हो चुके हैं। हम चारों में कोई भेद या अन्तर का भाव नहीं आना चाहिये । मैं श्रेया भी इसमें शामिल कर रहा हूँ।"
अपने पति रोहित की बात सुनकर अपर्णा भावविभोर हो गयी। उसे अपने पति पर गर्व हुआ। वह आगे बढ़कर अपने पति को लिपट गयी और उनके गले में बाँहें डाल कर बोली, "मुझे आप की पत्नी होने का गर्व है। शायद ही कोई पति अपनी पत्नी को इतना सम्मान देता होगा। अब तक मैं पुरानी रूढ़िवादी विचारों में खोई हुई थी। मैं अब भी मानती हूँ की पुराने विचारों में भी बुराई नहीं है। पर आज जो हमने अनुभव किया वह एक तरहसे कहें तो अलौकिक अनुभव है। आज हम दो जोड़ियाँ एक हो गयीं।"
तीनों प्रेमी शारीरिक थकान के मारे कुछ देर सो गए। कुछ देर सोने के पश्चात उन्हें बाहर कुछ हड़बड़ाहट महसूस हुई। सबसे पहले अपर्णा फुर्ती से उठी और भाग कर बाथरूम में जाकर अपने बदन को साफ़कर उसने अपने कपडे पहन लिए।
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