26-12-2019, 05:50 PM
जीतूजी ने अपर्णा को उठाकर धीरे से उसकी चूत को अपने ऊपर की और टेढ़े हुए लण्ड के पास सटा दिया। फिर एक ही धक्के में अपने लण्ड को अपर्णा की चूत में घुसा दिया। अपर्णा फिर मारे दर्द के चीख उठी। पर अपने आपको सम्हाले हुए वह आगे झुकी और जीतूजी के होंठ पर अपने होँठ रख कर जीतूजी के सर को अपनी बाँहों में समेट कर अपनी चूत में जीतूजी का लण्ड महसूस करती हुई उनको बेतहाशा चूमने लगी और पागल की तरह प्यार करने लगी। जीतूजी अपर्णा को अपनी बाँहों में उठाकर बड़े ही प्यार से अपनी कमर से धक्का मार कर अपर्णा को खड़े खड़े ही चोदने लगे। अपर्णा भी जीतूजी के हाथों से अपने बदन को ऊपर निचे कर जीतूजी का लण्ड अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए, रगड़ते हुए अजीबो गरीब रोमांच का अनुभव कर रही थी। रोहित कैसे बैठे बैठे यह नजारा देख सकते थे? वह भी खड़े हो गए और खड़े हुए कुछ देर जीतूजी से अपनी बीबी की चुदाई का नजारा देखते रहे। फिर थोडा सा करीब जाकर रोहित ने अपर्णा के दोनों स्तनोँ को पकड़ा और वह उन्हें दबाने और मसलने में मशगूल हो गए। जीतूजी के ऊपर की और धक्के मारने के कारण अपर्णा का पूरा बदन और साथ साथ उसके मम्मे भी उछल रहे थे। कुछ देर बाद जीतूजी ने अपर्णा को धीरे से फिर से पलंग पर रखा। तब तक अपर्णा की अच्छी खासी चुदाई हो चुकी थी।
अपर्णा के लिए खड़े हुए जीतूजी से उनकी बाँहों को अपनी बगलमें लेकर एक फूल की तरह अपने नंगे बदन को ऊपर उठाकर अपनी चुदाई करवाने का मज़ा कुछ और ही था। अपर्णा को महसूस हुआ जैसे उसको गुरुत्वाकर्षण का कोई नियम ही लागू नहीं हो रहा था। जैसे वह हवा में लहराती हुई जीतूजीका मोटा तगड़ा लण्ड अपनी चूतमें से अंदर बाहर होते हुए महसूस कर रही थी। अपर्णा को अपने प्रियतम जीतूजी के बाजुओं में कितनी ताकत थी उसका एहसास भी हुआ। जैसे अपर्णा कोई फूल हो उस तरह उसे जीतूजी ने आसानी से अपनी कमर तक उठा लिया था। उसके बाद उन्होंने अपर्णा के दोनों पॉंव अपनी कमर पर लिपटा कर अपर्णा की रस भरी चूत में अपना मोटा और काफी लंबा लण्ड डाल दिया था। अपर्णा ने अपनी बाहें जीतूजी के गले में लपेट रखीं थीं। जीतूजी की कमर के सहारे अपर्णा टिकी हुई थी। जीतूजी के होँठ से अपने होंठ मिलाकर अपर्णा ऊपर निचे होकर जीतूजी से बड़े प्यार से चुदवा भी रही थी और उनके लण्ड को अपनी चूत में कूद कूद कर घुसेड़ कर उन्हें चोद भी रही थी। जीतूजी से चुदाई करवाते हुए साथ ही साथ में अपर्णा जीतूजी के मूंछों से घिरे हुए रसीले होँठ चूसकर उनका मजा भी ले रही थी। कभी कभी उत्तेजना में वह जीतूजी की मूँछों कोचुम लेतीथी और कुछ बालोंको दांतोंमें दबाकर उन्हें खींचकर जीतूजी को छेड़ती भी रहती थी। अपर्णा की ऐसी अठखेलियों के कारण जीतूजी और भी उत्तेजित हो जाते थे और अपर्णा की और फुर्ती से चुदाई करने लगते थे। जीतूजीके बाजुओं के स्नायु फुले हुए दिख रहे थे। अपर्णा की गाँड़ के निचे अपनी दोनों हथेलियां रखे जीतूजी ने आसानी से उसे ऊपर उठा रखा था। अपने दोनों हाथों की ताकत से अपर्णा को थोड़ा सा ऊपर उठाकर और फिर निचे लाकर अपर्णा को जैसे हवा में ही चोदना, यह उनके और अपर्णा दोनों के लिए एक कामाग्नि के धमाके की तरह नशेसे भरा हुआ था। जीतूजी कभी अपर्णा को ऊपर निचे लाकर तो कभी अपर्णा को वैसे ही हवा में रख कर अपनी कमर आगे पीछे कर अपना लण्ड अपर्णा की चूत में पेले जा रहे थे। यह नजारा कोई पोर्न चलचित्र से कम नहीं था।
अपर्णा के लिए खड़े हुए जीतूजी से उनकी बाँहों को अपनी बगलमें लेकर एक फूल की तरह अपने नंगे बदन को ऊपर उठाकर अपनी चुदाई करवाने का मज़ा कुछ और ही था। अपर्णा को महसूस हुआ जैसे उसको गुरुत्वाकर्षण का कोई नियम ही लागू नहीं हो रहा था। जैसे वह हवा में लहराती हुई जीतूजीका मोटा तगड़ा लण्ड अपनी चूतमें से अंदर बाहर होते हुए महसूस कर रही थी। अपर्णा को अपने प्रियतम जीतूजी के बाजुओं में कितनी ताकत थी उसका एहसास भी हुआ। जैसे अपर्णा कोई फूल हो उस तरह उसे जीतूजी ने आसानी से अपनी कमर तक उठा लिया था। उसके बाद उन्होंने अपर्णा के दोनों पॉंव अपनी कमर पर लिपटा कर अपर्णा की रस भरी चूत में अपना मोटा और काफी लंबा लण्ड डाल दिया था। अपर्णा ने अपनी बाहें जीतूजी के गले में लपेट रखीं थीं। जीतूजी की कमर के सहारे अपर्णा टिकी हुई थी। जीतूजी के होँठ से अपने होंठ मिलाकर अपर्णा ऊपर निचे होकर जीतूजी से बड़े प्यार से चुदवा भी रही थी और उनके लण्ड को अपनी चूत में कूद कूद कर घुसेड़ कर उन्हें चोद भी रही थी। जीतूजी से चुदाई करवाते हुए साथ ही साथ में अपर्णा जीतूजी के मूंछों से घिरे हुए रसीले होँठ चूसकर उनका मजा भी ले रही थी। कभी कभी उत्तेजना में वह जीतूजी की मूँछों कोचुम लेतीथी और कुछ बालोंको दांतोंमें दबाकर उन्हें खींचकर जीतूजी को छेड़ती भी रहती थी। अपर्णा की ऐसी अठखेलियों के कारण जीतूजी और भी उत्तेजित हो जाते थे और अपर्णा की और फुर्ती से चुदाई करने लगते थे। जीतूजीके बाजुओं के स्नायु फुले हुए दिख रहे थे। अपर्णा की गाँड़ के निचे अपनी दोनों हथेलियां रखे जीतूजी ने आसानी से उसे ऊपर उठा रखा था। अपने दोनों हाथों की ताकत से अपर्णा को थोड़ा सा ऊपर उठाकर और फिर निचे लाकर अपर्णा को जैसे हवा में ही चोदना, यह उनके और अपर्णा दोनों के लिए एक कामाग्नि के धमाके की तरह नशेसे भरा हुआ था। जीतूजी कभी अपर्णा को ऊपर निचे लाकर तो कभी अपर्णा को वैसे ही हवा में रख कर अपनी कमर आगे पीछे कर अपना लण्ड अपर्णा की चूत में पेले जा रहे थे। यह नजारा कोई पोर्न चलचित्र से कम नहीं था।