26-12-2019, 05:49 PM
जैसे जैसे समय हो रहा था जीतूजी के अंडकोष में उनका वीर्य फर्राटे मार रहा था। सुबह का हुआ उनका वीर्य स्रावकी पूर्ति जैसे हो चुकी थी। उनके अंडकोष की थैली में फिर से वीर्य लबालब भरा हुआ लग रहा था। रोहित को लगा की जीतू जी उनके होते हुए अपर्णा को चोदने में कुछ हिचकिचाहट महसूस कर रहे थे। जब अपर्णा ने रोहित का हाथ पकड़ कर जीतूजी के लण्ड के पास रखा था तो रोहित को महसूस हुआ था की उनके ऐसा करनेसे जीतूजीका आत्म-विश्वास कुछ बढ़ा हुआ था। रोहित को लगा की अपर्णा को और जीतूजी को भरोसा दिलाने के लिए की उन्हें अपर्णा को जीतूजी से चुदवाने में कोई आपत्ति नहीं थी; रोहित को कुछ और करना पडेगा। रोहित ने जीतूजी को अपर्णा को चोदने से रोका। फिर आगे बढ़ कर उन्होंने जीतूजी को थोड़ा पीछे हटाया और झुक कर रोहित ने जीतूजी के लण्ड को अपने होँठों से चूमा। यह देख कर अपर्णा के होँठों पर बरबस मुस्कान आगयी। जीतूजी के तो तोते उड़ गये हों ऐसे देखते ही रहे। पर इसका एक नतीजा यह हुआ की जीतूजी ने भी रोहित का लटकता लण्ड अपना हाथ लंबा कर पकड़ा और उसे धीरे धीरे बड़े प्यार से सहलाने लगे।
अपने दोनों प्रियतम को इस तरह से एक दूसरे से प्यार करे हुए देखकर अपर्णाकी ख़ुशीका ठिकाना नहीं रहा। अब उसे यकीन हो गया की उसके दोनों मर्द एक दूसरे से और अपर्णा से भी खूब प्यार करते थे। अब उसे जैसे पूरी खुली छूट मिल गयी थी की वह अपने दोनों प्रियतम से जैसे चाहे प्यार करे और जैसे चाहे चुदाई करवाए। अपर्णा ने फ़ौरन आगे बढ़कर जीतूजी के सामने घुटनों के बल बैठ गयी। जब उसके पति ने खुद जीतूजी का लण्ड अपने होँठों से चूमा था तो फिर उसे जीतूजी का लण्ड चूमने से परहेज करने की क्या जरुरत थी? अपर्णा जीतूजी को ऐसा प्यार करना चाहती थी की वह एक बार तो श्रेया को भी भूल जाएँ। अपर्णा ने जीतूजी का खड़ा मोटा और तगड़ा लण्ड का सिरा अपने होँठों के बिच लिया और प्यार से उसके ऊपर अपनी जीभ घुमाने लगी। जीतूजी का पूर्व वीर्य से और अपनी चूत के स्राव से लिपटा हुआ जीतूजी के लण्ड की चिकनाहट अपर्णा अपनी जीभ से चाटने लगी। जीतूजी का लंड ऐसा खम्भे जैसा था की उसे पूरा मुंह में लेना किसी भी औरत के लिए बड़ा ही मुश्किल था। फिर भी अपर्णाने जीतूजी का लण्ड अपने मुंहमें मुश्किलसे ही सही पर घुसाया जरूर। जीतूजीभी बड़ेही आश्चर्यसे अपर्णाका यह कार-नामा देखते रहे। उनका लण्ड तो अपर्णा की यह करतूत से फुला नहीं समा रहा था। जीतूजी का लण्ड अपर्णा की यह हरकत बर्दाश्त करने में मुश्किल अनुभव कर रहा था। लण्ड के मन में शायद यह विचार आया होगा की अगर ऐसा ज्यादा देर चला तो उसे अपना वीर्य जल्दी ही छोड़ना पडेगा। अपर्णा ने जीतूजी की कुंल्हों को अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था और वह धीरे धीरे जीतूजी से अपना मुंह चोदने के लिए इंगित कर रही थी।
जीतूजी ने कभी सोचा भी नहीं था की अपर्णा उनका लण्ड कभी अपने मुंह में भी लेगी। आज अपनी प्रियतमा से अपना लण्ड चुसवा कर वह चुदाई से भी ज्यादा रोमांच का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने अपर्णा की इच्छा पूरी करते हुए अपर्णा के मुंह को धीरे धीरे चोदना शुरू किया। अपर्णाके गाल ऐसे फुले हुएथे की यह स्वाभाविक था की वह जीतूजी का लण्ड बड़ी ही मुश्किल से अपने मुंह में ले पा रही थी। घुटनों पर बैठे बैठे वह बार बार जीतूजी के चहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी। क्या उसके प्रियतम को उसकी यह हरकत अच्छी लग रही थी? जीतूजी के चेहरे के भाव देख कर यह समझना मुश्किल नहीं था की जीतूजी अपर्णा की यह हरकत का भरपूर आनंद उठा रहे थे। जीतूजी ने देखा की उनका लण्ड अपने मुंह में घुसाने में अपर्णा को काफी कष्ट हो रहा था। वह फ़ौरन फर्श पर उठ खड़े हुए। उन्होंने ने अपर्णा की दोनों बगल में अपना हाथ डाल कर अपर्णा का हल्का फुल्का बदन एक ही झटके में ऊपर उठा लिया। जीतूजी की तगड़ी बाँहों को अपर्णा को उठाने में कोई कष्ट महसूस नहीं हुआ।
अपने दोनों प्रियतम को इस तरह से एक दूसरे से प्यार करे हुए देखकर अपर्णाकी ख़ुशीका ठिकाना नहीं रहा। अब उसे यकीन हो गया की उसके दोनों मर्द एक दूसरे से और अपर्णा से भी खूब प्यार करते थे। अब उसे जैसे पूरी खुली छूट मिल गयी थी की वह अपने दोनों प्रियतम से जैसे चाहे प्यार करे और जैसे चाहे चुदाई करवाए। अपर्णा ने फ़ौरन आगे बढ़कर जीतूजी के सामने घुटनों के बल बैठ गयी। जब उसके पति ने खुद जीतूजी का लण्ड अपने होँठों से चूमा था तो फिर उसे जीतूजी का लण्ड चूमने से परहेज करने की क्या जरुरत थी? अपर्णा जीतूजी को ऐसा प्यार करना चाहती थी की वह एक बार तो श्रेया को भी भूल जाएँ। अपर्णा ने जीतूजी का खड़ा मोटा और तगड़ा लण्ड का सिरा अपने होँठों के बिच लिया और प्यार से उसके ऊपर अपनी जीभ घुमाने लगी। जीतूजी का पूर्व वीर्य से और अपनी चूत के स्राव से लिपटा हुआ जीतूजी के लण्ड की चिकनाहट अपर्णा अपनी जीभ से चाटने लगी। जीतूजी का लंड ऐसा खम्भे जैसा था की उसे पूरा मुंह में लेना किसी भी औरत के लिए बड़ा ही मुश्किल था। फिर भी अपर्णाने जीतूजी का लण्ड अपने मुंहमें मुश्किलसे ही सही पर घुसाया जरूर। जीतूजीभी बड़ेही आश्चर्यसे अपर्णाका यह कार-नामा देखते रहे। उनका लण्ड तो अपर्णा की यह करतूत से फुला नहीं समा रहा था। जीतूजी का लण्ड अपर्णा की यह हरकत बर्दाश्त करने में मुश्किल अनुभव कर रहा था। लण्ड के मन में शायद यह विचार आया होगा की अगर ऐसा ज्यादा देर चला तो उसे अपना वीर्य जल्दी ही छोड़ना पडेगा। अपर्णा ने जीतूजी की कुंल्हों को अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था और वह धीरे धीरे जीतूजी से अपना मुंह चोदने के लिए इंगित कर रही थी।
जीतूजी ने कभी सोचा भी नहीं था की अपर्णा उनका लण्ड कभी अपने मुंह में भी लेगी। आज अपनी प्रियतमा से अपना लण्ड चुसवा कर वह चुदाई से भी ज्यादा रोमांच का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने अपर्णा की इच्छा पूरी करते हुए अपर्णा के मुंह को धीरे धीरे चोदना शुरू किया। अपर्णाके गाल ऐसे फुले हुएथे की यह स्वाभाविक था की वह जीतूजी का लण्ड बड़ी ही मुश्किल से अपने मुंह में ले पा रही थी। घुटनों पर बैठे बैठे वह बार बार जीतूजी के चहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी। क्या उसके प्रियतम को उसकी यह हरकत अच्छी लग रही थी? जीतूजी के चेहरे के भाव देख कर यह समझना मुश्किल नहीं था की जीतूजी अपर्णा की यह हरकत का भरपूर आनंद उठा रहे थे। जीतूजी ने देखा की उनका लण्ड अपने मुंह में घुसाने में अपर्णा को काफी कष्ट हो रहा था। वह फ़ौरन फर्श पर उठ खड़े हुए। उन्होंने ने अपर्णा की दोनों बगल में अपना हाथ डाल कर अपर्णा का हल्का फुल्का बदन एक ही झटके में ऊपर उठा लिया। जीतूजी की तगड़ी बाँहों को अपर्णा को उठाने में कोई कष्ट महसूस नहीं हुआ।