26-12-2019, 05:35 PM
उनका सेक्स का भाव अब परिपक्व हो गया है। वह भी तुम्हारी तरह हो गए हैं। वह मानने लगे हैं की चुदाई याने सेक्स, वह मन के मिलने से होना चाहिए। रोहित का उस लड़की से सम्बन्ध भी उसी कक्षा में था भले ही एक ही रात में हुआ हो। तुम्हारे पति ने अगर उस लड़की को चोदा भी होगा तो उन्होंने खुद बताया की दोनों ने एक दूसरे के लिए जान न्यौछावर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अफ़सोस इस बात का है की वह लड़की अपनी जान गँवा बैठी। ख़ुशी इस बात की है की रोहित बाल बाल बच गए।"
जीतूजी की बात सुन अपर्णा कुछ झेंप सी गयी और जीतूजी के होँठों से होंठ मिलाती हुई बोली, "जीतूजी आप बड़े ही परिपक्व और सुलझे हुए इंसान हो। मैं अपने पति को नहीं समझ पायी। आपने उन्हें सही समझा। वाकई आप ठीक कहते हैं।" जीतूजी ने अपर्णा के होँठों को चूमते हुए कहा, "तुम जाओ और अपने पतिको प्यार से उठाओ। पहले उनको खाना खिलाते हैं। बाद में ठंडा हो जाएगा। फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं।" अपर्णा अपने पति रोहित के पास गयी और उनके बालों को हलके से संवारते हुए उनके कानों में प्यार भरे शब्दों में बोली, "जानेमन रोहित, उठो तो, खाना आ गया है। थोड़ा खालो प्लीज? अभी गरम है। फिर ठंडा हो जाएगा।" रोहित ने आँखें खोलीं और आधी नींद में ही दोनों की और देखा। फिर बिना बोले ही बिस्तरमें लुढ़क पड़े।" यह बहुत थक गए हैं और वैसे भी उनको आराम की सख्त जरुरत है। उनको सोने देते हैं। जब वह जग जाएंगे तो मैं उनके लिए खाना गरम कर दूंगी। अभी हम दोनों खा लेते हैं और फिर हम भी आराम करते हैं। आप भी बहुत थके हुए हो। आखिर फौजियों को भी आराम की जरुरत होती है। मैं तो थकान और आधी अधूरी नींद के कारण चकनाचूर हो चुकी हूँ। बस बिस्तर में जाकर औंधी होकर सो जाउंगी। आज पूरा दिन और पूरी रात बस सोना ही है।"
अपर्णा ने फ़ौरन खाना परोसा और जीतूजी और अपर्णा दोनों ने खाना खाया। अपर्णा ने जीतूजी से पलंग की और इशारा कर कहा, "आप पलंग पर सो जाओ। मैं निचे फर्श पर इस गद्दे पर सो जाउंगी।" जीतूजी, "क्यों? तुम्हें फर्श पर बहुत ठण्ड लगेगी। मैं गद्दे पर क्यों नहीं सो सकता?" अपर्णा, "तो क्या आपको ठण्ड नहीं लगेगी? तो फिर क्या करें?" जीतूजी, "तो हम दोनों भी पलंग पर सो जाते हैं। वैसे भी यह पलंग काफी बड़ा है। तुम अपने पति के साथ सो जाना मैं हट के सो जाऊंगा।" यह कह कर जीतूजी ने निचे रक्खी हुई रजाई उठायी और पलंग एक छोर पर सो गए। अपर्णा ने कहा, "ठीक है। मैं अपने पति के साथ सो जाउंगी।" यह कह कर अपर्णा ने सारे बर्तन उठाये और उन्हें साफ़ कर रोहित का खाना अलग से रख कर हाथ धो कर गाउन पहने हुए बिस्तर पर जा पहुंची। पलंग पर एक कोने में रोहित सो रहे थे, दूसे छोर पर जीतूजी थे। अपर्णा बिच में जा कर लेट गयी। बिस्तर में पहुँच कर अपर्णा ने जीतूजी की रजाई खींची और अपने ऊपर ओढ़दी। अपना हाथ पीछेकर अपर्णा ने जीतूजी को अपनी और खिंच लिया। जीतूजी ने धीमे शब्दों में कुछ हलकी सी कड़वाहट के साथ कहा, "अरे! तुम अपने पति के पास सो जाओ ना? मेरा क्या है? मैं यहीं ठीक हूँ।" अपर्णा ने जवाब दिया, "मैं अपने पतियों के साथही तो सोई हुई हूँ। मैंने तुम्हें भी मेरे पति के रूप में स्वीकार किया है। अब तुम मुझसे बच नहीं सकते।" जीतूजी के मुंह पर बरबस मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने कहा, "नहीं। सिर्फ सोना ही नहीं है। अभी तो हमारा मिलन पूरा नहीं हुआ। उसे भी तो पूरा करना है।"
जीतूजी की बात सुन अपर्णा कुछ झेंप सी गयी और जीतूजी के होँठों से होंठ मिलाती हुई बोली, "जीतूजी आप बड़े ही परिपक्व और सुलझे हुए इंसान हो। मैं अपने पति को नहीं समझ पायी। आपने उन्हें सही समझा। वाकई आप ठीक कहते हैं।" जीतूजी ने अपर्णा के होँठों को चूमते हुए कहा, "तुम जाओ और अपने पतिको प्यार से उठाओ। पहले उनको खाना खिलाते हैं। बाद में ठंडा हो जाएगा। फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं।" अपर्णा अपने पति रोहित के पास गयी और उनके बालों को हलके से संवारते हुए उनके कानों में प्यार भरे शब्दों में बोली, "जानेमन रोहित, उठो तो, खाना आ गया है। थोड़ा खालो प्लीज? अभी गरम है। फिर ठंडा हो जाएगा।" रोहित ने आँखें खोलीं और आधी नींद में ही दोनों की और देखा। फिर बिना बोले ही बिस्तरमें लुढ़क पड़े।" यह बहुत थक गए हैं और वैसे भी उनको आराम की सख्त जरुरत है। उनको सोने देते हैं। जब वह जग जाएंगे तो मैं उनके लिए खाना गरम कर दूंगी। अभी हम दोनों खा लेते हैं और फिर हम भी आराम करते हैं। आप भी बहुत थके हुए हो। आखिर फौजियों को भी आराम की जरुरत होती है। मैं तो थकान और आधी अधूरी नींद के कारण चकनाचूर हो चुकी हूँ। बस बिस्तर में जाकर औंधी होकर सो जाउंगी। आज पूरा दिन और पूरी रात बस सोना ही है।"
अपर्णा ने फ़ौरन खाना परोसा और जीतूजी और अपर्णा दोनों ने खाना खाया। अपर्णा ने जीतूजी से पलंग की और इशारा कर कहा, "आप पलंग पर सो जाओ। मैं निचे फर्श पर इस गद्दे पर सो जाउंगी।" जीतूजी, "क्यों? तुम्हें फर्श पर बहुत ठण्ड लगेगी। मैं गद्दे पर क्यों नहीं सो सकता?" अपर्णा, "तो क्या आपको ठण्ड नहीं लगेगी? तो फिर क्या करें?" जीतूजी, "तो हम दोनों भी पलंग पर सो जाते हैं। वैसे भी यह पलंग काफी बड़ा है। तुम अपने पति के साथ सो जाना मैं हट के सो जाऊंगा।" यह कह कर जीतूजी ने निचे रक्खी हुई रजाई उठायी और पलंग एक छोर पर सो गए। अपर्णा ने कहा, "ठीक है। मैं अपने पति के साथ सो जाउंगी।" यह कह कर अपर्णा ने सारे बर्तन उठाये और उन्हें साफ़ कर रोहित का खाना अलग से रख कर हाथ धो कर गाउन पहने हुए बिस्तर पर जा पहुंची। पलंग पर एक कोने में रोहित सो रहे थे, दूसे छोर पर जीतूजी थे। अपर्णा बिच में जा कर लेट गयी। बिस्तर में पहुँच कर अपर्णा ने जीतूजी की रजाई खींची और अपने ऊपर ओढ़दी। अपना हाथ पीछेकर अपर्णा ने जीतूजी को अपनी और खिंच लिया। जीतूजी ने धीमे शब्दों में कुछ हलकी सी कड़वाहट के साथ कहा, "अरे! तुम अपने पति के पास सो जाओ ना? मेरा क्या है? मैं यहीं ठीक हूँ।" अपर्णा ने जवाब दिया, "मैं अपने पतियों के साथही तो सोई हुई हूँ। मैंने तुम्हें भी मेरे पति के रूप में स्वीकार किया है। अब तुम मुझसे बच नहीं सकते।" जीतूजी के मुंह पर बरबस मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने कहा, "नहीं। सिर्फ सोना ही नहीं है। अभी तो हमारा मिलन पूरा नहीं हुआ। उसे भी तो पूरा करना है।"