26-12-2019, 05:28 PM
रोहित ने सूना की आयेशा पहले ड़र के मारे रोहित की और देख रही थी। पर जब उन्होंने एक आतंकवादी को मार गिराया तो वह अनायास ही ताली बजाने और नाचने लगी। आयेशा भाग कर आयी और रोहित के गले लिपट गयी। दोनों प्रेमी कुछ देर तक ऐसे ही एक दूसरे के बाहुपाश में जुड़े रहे। अचानक ही एक गोली की सनसनाहट सुनी गयी, आयेशा के मुंह से चीख निकली और आयेशा बल खा कर रोहित के ऊपर गिर पड़ी। उसकी छाती में से खून का फव्वारा छूट पड़ा जिससे रोहित के कपडे खून से लाल लाल हो गए। रोहित वहाँ ही लड़खड़ा कर गिर पड़े। आयेशा की साँस फूल रही थी। उसे शायद फेफड़े में गोली लगी थी। अचानक एक और गोली रोहित की बाँहों में जा लगी। दुसरा खून का फव्वारा रोहित की बाँहों में से फुट पड़ा। आयेशा ने जब रोहित की बाँहों में से खून निकलते हुए देखा तो वह अपना दर्द भूल गयी और अपने कुर्ते का एक छोर फाड़ कर उसने रोहित को बाँहों पर पट्टी बाँध दी। रोहित की बाँहों में काफी दर्द हो रहा था।
इस तरफ आयेशा की साँसे टूट रही थीं। आयेशा ने रोहित का हाथ पकड़ा। उससे ठीक से बोला नहीं जारहा था। फिर भी आयेशा ने कहा, "परदेसी, लगता है हम यहां तक ही हमसफर रहेंगे। लगता है मेरा सफर यहां खत्म हो रहा है। हम राहों में चलते चलते मिले और एक रात के लिए ही सही पर हम हम बिस्तर बने। मुकद्दर तो देखिये। मैंने सोचा था की शायद तुम मुझे छोड़ कर अपने वतन को चले जाओगे। पर हुआ उलटा ही। आज यह सफर में हम तुम्हें छोड़ कर जा रहे हैं। अल्लाह तुम्हारा इकबाल बुलंद रखे। और हाँ, तुम छुपतेछिपाते निचे वह कुटिया के पास पहुँच जाना। वहाँ डॉ. खान हैं। बड़े ही भले आदमी हैं। वह तुम्हारा इलाज कर देंगे। तुम जरूर वहाँ जाना।" यह कह कर आयेशा ने आखरी सांस ली और रोहित की हाथ में से उसका हाथ छूट कर निचे गिर पड़ा। रोहित अपने आपको मजबूत ह्रदय के मानते थे। पर आयेशा का हाथ जब उनके हाथ के निचे गिर पड़ा तो उन्हें ऐसा सदमा लगा की जैसे उनका बड़ा ही करीबी कोई चला गया हो। एक ही रात की बात थी जब उनका और आयेशा का मिलन हुआ। पर उनको ऐसा लगा जैसे सालों का साथ हो। पर एक ही पल में वह साथ छूट गया। रोहित अपने आपको रोक नहीं पाए और जोर शोर से फफक फफक कर रोने लगे। उनको रोते हुए सुनने वाला और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था। रोहित एक चट्टान के पीछे आयेशा का बदन घसीट कर ले गए। फायरिंग जारी था और रुकने का नाम नहीं ले रहा था। रोहित का वहाँ दुश्मनों की सरहद में रुकना खतरे से खाली नहीं था। कैसे भी कर उन्हें हिन्दुस्तान की सरहद में दाखिल होना जरुरी था। उनके पास आयेशा की बॉडी को दफनाने का समय ही नहीं था।
रोहित ने आयेशा की बॉडी को खिसका कर चट्टान के पीछे ले जाकर कुछ डाल और पत्तों से उसे ढक दिया। फिर धीरे धीरे वह उस कुटिया की ओर जमीन पर रेंगते हुए चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद घनी झाडी में उन्हें वही नदी दिखाई दी। बिना सोचे समझे रोहित उसमें कूद पड़े। उतनी ही देर में उनपर फायरिंग होने लगी। रोहित ने पानी में डुबकी लगा कर गोलियों से बचने फुर्ती से पानी के अंदर तैरने लगे। पानी का बहाव तेज था। पहाड़ों से पानी निकल कर निचे की और फुर्ती से बह रहा था। बहाव इतना तेज था और पानी इतना गहरा था की कोई भी तैराक उस में कूदने का साहस नहीं करेगा। यही जगह थी जहां पर सरहद में कुछ झरझरापन था। यहाँ सैनिक निगरानी कुछ कमजोर थी। इसका फायदा दुशमन के फौजी और आतंकवादी अक्सर उठाते रहते थे।
इस तरफ आयेशा की साँसे टूट रही थीं। आयेशा ने रोहित का हाथ पकड़ा। उससे ठीक से बोला नहीं जारहा था। फिर भी आयेशा ने कहा, "परदेसी, लगता है हम यहां तक ही हमसफर रहेंगे। लगता है मेरा सफर यहां खत्म हो रहा है। हम राहों में चलते चलते मिले और एक रात के लिए ही सही पर हम हम बिस्तर बने। मुकद्दर तो देखिये। मैंने सोचा था की शायद तुम मुझे छोड़ कर अपने वतन को चले जाओगे। पर हुआ उलटा ही। आज यह सफर में हम तुम्हें छोड़ कर जा रहे हैं। अल्लाह तुम्हारा इकबाल बुलंद रखे। और हाँ, तुम छुपतेछिपाते निचे वह कुटिया के पास पहुँच जाना। वहाँ डॉ. खान हैं। बड़े ही भले आदमी हैं। वह तुम्हारा इलाज कर देंगे। तुम जरूर वहाँ जाना।" यह कह कर आयेशा ने आखरी सांस ली और रोहित की हाथ में से उसका हाथ छूट कर निचे गिर पड़ा। रोहित अपने आपको मजबूत ह्रदय के मानते थे। पर आयेशा का हाथ जब उनके हाथ के निचे गिर पड़ा तो उन्हें ऐसा सदमा लगा की जैसे उनका बड़ा ही करीबी कोई चला गया हो। एक ही रात की बात थी जब उनका और आयेशा का मिलन हुआ। पर उनको ऐसा लगा जैसे सालों का साथ हो। पर एक ही पल में वह साथ छूट गया। रोहित अपने आपको रोक नहीं पाए और जोर शोर से फफक फफक कर रोने लगे। उनको रोते हुए सुनने वाला और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था। रोहित एक चट्टान के पीछे आयेशा का बदन घसीट कर ले गए। फायरिंग जारी था और रुकने का नाम नहीं ले रहा था। रोहित का वहाँ दुश्मनों की सरहद में रुकना खतरे से खाली नहीं था। कैसे भी कर उन्हें हिन्दुस्तान की सरहद में दाखिल होना जरुरी था। उनके पास आयेशा की बॉडी को दफनाने का समय ही नहीं था।
रोहित ने आयेशा की बॉडी को खिसका कर चट्टान के पीछे ले जाकर कुछ डाल और पत्तों से उसे ढक दिया। फिर धीरे धीरे वह उस कुटिया की ओर जमीन पर रेंगते हुए चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद घनी झाडी में उन्हें वही नदी दिखाई दी। बिना सोचे समझे रोहित उसमें कूद पड़े। उतनी ही देर में उनपर फायरिंग होने लगी। रोहित ने पानी में डुबकी लगा कर गोलियों से बचने फुर्ती से पानी के अंदर तैरने लगे। पानी का बहाव तेज था। पहाड़ों से पानी निकल कर निचे की और फुर्ती से बह रहा था। बहाव इतना तेज था और पानी इतना गहरा था की कोई भी तैराक उस में कूदने का साहस नहीं करेगा। यही जगह थी जहां पर सरहद में कुछ झरझरापन था। यहाँ सैनिक निगरानी कुछ कमजोर थी। इसका फायदा दुशमन के फौजी और आतंकवादी अक्सर उठाते रहते थे।