26-12-2019, 05:25 PM
अपर्णा की चूत तो पहले से ही जीतूजी के लण्ड से लबालब भरी हुई थी। जीतूजी का गरम वीर्य इतनी तादाद में था की अपर्णा की चूत की सुरंग में उसके लिए कोई जगह ही नहीं होगी। पर फिर भी वह शायद अपर्णा की चूत में से उसकी बच्चे दानी में प्रवेश कर गया। शायद अपर्णा के स्त्री अंकुर से जीतूजी का पुरुष अंकुर मिल गया और शायद एक नयी जिंदगी का उदय इस धरती पर होने के आगाज़ होने लगे। जीतूजी अपने लण्ड के कुछ और प्यार भरे धक्के मार के रुक गए। उनका वीर्य उनके एंड कोष से निकल कर अपर्णा की पूरी चूत को पूरी तरह भर चुका था। अपर्णा और जीतूजी एक दूसरे से चिपके हुए ऐसे ही कुछ देर तक उसी पोजीशन में खड़े रहे। धीरे से फिर जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर निकाला और कुछ देर तक नंगी अपर्णा की चूत में से रिस रहे अप्पने मलाई से वीर्य को देखते रहे। अपर्णा ने देखा की ढीला होने के बावजूद भी जीतूजी का लण्ड इतना मोटा और लंबा एक अजगर की तरह चिकनाहट से लथपथ उनकी टांगों के बिच में से लटक रहा था।
अपर्णा ने फुर्ती से लपक कर जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और अपना मुंह झुकाकर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाटना शुरू किया और देखते ही देखते अपनी जीभ से अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया। जीतूजी का मलाई सा वीर्य वह गटक कर निगल गयी। थके हुए जीतूजी निढाल हो कर पलंग पर गिर पड़े और कुछ ही देर में खर्राटे मारने लगे। अपर्णा ने बाथरूम में जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ किया। जीतूजी का वीर्य अपनी चूत में लेकर अपर्णा बड़ी ही संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। उसे उम्मीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह जरूर माँ बनेगी और जीतूजी की निशानी उसके गर्भ में होगी। अपने आप को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की जरुरत ना समझते हुए, अपर्णा वैसी ही नंगी जीतूजी की बाहों में उनकी रजाई में घुस कर लेट गयी। कुछ ही देर में दोनों प्रेमी गहरी नींद के आगोश में जा पहुं
सुबह की लालिमा आसमान में हलकी फुलकी दिख रही थी।
अपर्णा और जीतूजी को सोये हुए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। जीतूजी गहरी नींद में से अचानक जाग गए और अपने सूखे हुए कपडे अपने बदन पर डालते हुए दरवाजे की और भागे। वह नहीं चाहते थे की इतनी जल्द्दी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर की मंजिल से निचे उतरना पड़े। अफरा-तफ़री में अपने कपडे पहनते हुए जीतूजी ने दरवाजा खोला तो देख कर हैरान रह गए की सामने रोहित लहूलुहान हालात में सारे कपडे लाल लहू से रंगे हुए उनके सामने खड़ेथे।
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अपर्णा ने फुर्ती से लपक कर जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और अपना मुंह झुकाकर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाटना शुरू किया और देखते ही देखते अपनी जीभ से अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया। जीतूजी का मलाई सा वीर्य वह गटक कर निगल गयी। थके हुए जीतूजी निढाल हो कर पलंग पर गिर पड़े और कुछ ही देर में खर्राटे मारने लगे। अपर्णा ने बाथरूम में जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ किया। जीतूजी का वीर्य अपनी चूत में लेकर अपर्णा बड़ी ही संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। उसे उम्मीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह जरूर माँ बनेगी और जीतूजी की निशानी उसके गर्भ में होगी। अपने आप को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की जरुरत ना समझते हुए, अपर्णा वैसी ही नंगी जीतूजी की बाहों में उनकी रजाई में घुस कर लेट गयी। कुछ ही देर में दोनों प्रेमी गहरी नींद के आगोश में जा पहुं
सुबह की लालिमा आसमान में हलकी फुलकी दिख रही थी।
अपर्णा और जीतूजी को सोये हुए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। जीतूजी गहरी नींद में से अचानक जाग गए और अपने सूखे हुए कपडे अपने बदन पर डालते हुए दरवाजे की और भागे। वह नहीं चाहते थे की इतनी जल्द्दी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर की मंजिल से निचे उतरना पड़े। अफरा-तफ़री में अपने कपडे पहनते हुए जीतूजी ने दरवाजा खोला तो देख कर हैरान रह गए की सामने रोहित लहूलुहान हालात में सारे कपडे लाल लहू से रंगे हुए उनके सामने खड़ेथे।
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