26-12-2019, 05:24 PM
जीतूजी को अपर्णा की प्यार भरे पागलपन पर हँसी आ गयी। वह सोचने लगे, भगवान् ने औरतों को पता नहीं कैसा बनाया है। वह दर्द को भी प्यार के लिए सहन कर अपने प्रियतम को आनंद देना चाहती हैं। उन्हें अपने प्रियतमके आनंद में ही अपना आनंद महसूस होता है चाहे उसमें उनको कितना भी दर्द क्यों नाहो। उन्होंने बरबस ही झुक कर सारी स्त्री जाती को अपनी सलूट मारी और अपने लण्ड को अपर्णा की चूत में पेलने में लग गए। एक और धक्का दे कर जीतूजी ने अपर्णा की चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। धीरे धीरे बढती चिकनाहट के कारण एक के बाद एक धीरे धक्के से उनका लण्ड और अंदर और अंदर घुसता चला गया और देखते ही देखते वह पूरा अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। अपर्णा की चूत की पूरी सुरंग जीतूजी के लण्ड से पूरी तरह भर गयी। अपर्णा को खुद ऐसा महसूस हुआ जैसे जीतूजी उसके बदन में प्रवेश कर चुके थे और वह और जीतूजी एक हो चुके थे। अपर्णा अब जीतूजी से अलग नहीं थी। दो बदन प्यार में एक हो गए थे। सारी दूरियां ख़त्म हो चुकी थीं।
अपर्णा की चूत पुरे तनाव में इतनी दर्द भरे तरीके से खींची हुई होनेके बावजूद भी अपर्णाके उन्माद का कोई ठिकाना ना था। उसे अपने स्त्री होने का गर्व था की उसने अपने प्रेमी को वह आनंद दिया था जो शायद ही उसके पहले किसी स्त्री ने उनको दिया हो। और अपने प्रियतम के उन्माद भरे प्यार के कारण अपर्णा भी अपने जहन में एक गजब के उन्माद का अनुभव कर रही थी। उसका जीतूजी से चुदवाने का सपना पूरा हुआ था यह उसके लिए एक अद्भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो उसका प्यार एक जान का संचार भी कर देता है। अपर्णा की दिली गूढ़ इच्छा थी की वह जीतूजी का बच्चा अपने पेट में पाले। जब जीतूजी ने पीछे से अपर्णा की चूत में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तो अपर्णा जीतूजी के प्यार को अपने बदन से छोड़ना नहीं चाहती थी भले ही क्यों ना जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में से निकल जाए। अपर्णा जीतूजी की ज़िंदा निशानी पूरी जिंदगी गले से लगा कर रखना चाहती थी। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी के वीर्य से उसे एक नयी जिंदगी देने का मौक़ा मिले। उसे पता नहीं था की उसके पति उसकी इजाजत देंगे या नहीं। पर अपर्णा एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान लिया तो फिर वह उसे पूरा करेगी ही।
जीतूजी अपर्णा की चूत में अपना लण्ड जोश खरोश से पेले जा रहेथे। उनके अंडकोष में उनका गरम वीर्य खौल रहा था। अपर्णा की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फव्वारे के रूप में निकलने के लिए बेताब था। अपर्णा की चूत की अद्भुत पकड़ के कारण जीतूजी का धैर्य जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी हुई गर्मी और वीर्य को खाली कर अपना उन्माद से कुछ देर के लिए ही सही पर निजात पाएं। अपर्णा ने जीतूजी के बदन के तनाव और चोदते हुए उनकी हूँकार की तीव्रता से यह महसूस किया की उसके प्रियतम भी अपने चरम पर पहुँचने वाले हैं। तब उसने जीतूजी के लण्ड के पिस्टन के धक्कों को झेलते हुए पीछे गर्दन कर एक शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "मेरे प्रियतम, मेरी जान, तुम्हें अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही उंडेलना है। अगर मैं तुम्हारे वीर्य से गर्भवती हुई तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। चाहे इसके लिए श्रेया और रोहित सहमत हों या नहीं। बोलो क्या तुम मुझे गर्भवती बना सकते हो? तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं ना?" जीतूजी उन्माद के मारे कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे। उनका गरम वीर्य जो उनक अंडकोष और उनके लण्ड की रग़ों में खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़नाही था। और अगर उसे अपर्णा की चूत में छोड़ा जाए तो उससे और अच्छी बात क्या हो सकती है? उस समय उन्हें सही या गलत सोचने की सूझबूझ नहीं थी। जीतूजी उस समय अपने लण्ड के गुलाम थे। अपर्णा भी अपने उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी। जीतूजी के धक्कों के साथ साथ अपर्णा भी अपनी गाँड़ को पीछे धक्का मार कर अपनी उत्तेजना दिखा रही थी। जीतूजी के एक जोरदार धक्के से जीतूजी के लण्ड के केंद्रबिंदु स्थित छिद्र से उनके गरम गरम वीर्य का फव्वारा अपर्णा ने अपनी चूत में फैलते हुए महसूस किया।
अपर्णा की चूत पुरे तनाव में इतनी दर्द भरे तरीके से खींची हुई होनेके बावजूद भी अपर्णाके उन्माद का कोई ठिकाना ना था। उसे अपने स्त्री होने का गर्व था की उसने अपने प्रेमी को वह आनंद दिया था जो शायद ही उसके पहले किसी स्त्री ने उनको दिया हो। और अपने प्रियतम के उन्माद भरे प्यार के कारण अपर्णा भी अपने जहन में एक गजब के उन्माद का अनुभव कर रही थी। उसका जीतूजी से चुदवाने का सपना पूरा हुआ था यह उसके लिए एक अद्भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो उसका प्यार एक जान का संचार भी कर देता है। अपर्णा की दिली गूढ़ इच्छा थी की वह जीतूजी का बच्चा अपने पेट में पाले। जब जीतूजी ने पीछे से अपर्णा की चूत में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तो अपर्णा जीतूजी के प्यार को अपने बदन से छोड़ना नहीं चाहती थी भले ही क्यों ना जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में से निकल जाए। अपर्णा जीतूजी की ज़िंदा निशानी पूरी जिंदगी गले से लगा कर रखना चाहती थी। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी के वीर्य से उसे एक नयी जिंदगी देने का मौक़ा मिले। उसे पता नहीं था की उसके पति उसकी इजाजत देंगे या नहीं। पर अपर्णा एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान लिया तो फिर वह उसे पूरा करेगी ही।
जीतूजी अपर्णा की चूत में अपना लण्ड जोश खरोश से पेले जा रहेथे। उनके अंडकोष में उनका गरम वीर्य खौल रहा था। अपर्णा की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फव्वारे के रूप में निकलने के लिए बेताब था। अपर्णा की चूत की अद्भुत पकड़ के कारण जीतूजी का धैर्य जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी हुई गर्मी और वीर्य को खाली कर अपना उन्माद से कुछ देर के लिए ही सही पर निजात पाएं। अपर्णा ने जीतूजी के बदन के तनाव और चोदते हुए उनकी हूँकार की तीव्रता से यह महसूस किया की उसके प्रियतम भी अपने चरम पर पहुँचने वाले हैं। तब उसने जीतूजी के लण्ड के पिस्टन के धक्कों को झेलते हुए पीछे गर्दन कर एक शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "मेरे प्रियतम, मेरी जान, तुम्हें अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही उंडेलना है। अगर मैं तुम्हारे वीर्य से गर्भवती हुई तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। चाहे इसके लिए श्रेया और रोहित सहमत हों या नहीं। बोलो क्या तुम मुझे गर्भवती बना सकते हो? तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं ना?" जीतूजी उन्माद के मारे कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे। उनका गरम वीर्य जो उनक अंडकोष और उनके लण्ड की रग़ों में खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़नाही था। और अगर उसे अपर्णा की चूत में छोड़ा जाए तो उससे और अच्छी बात क्या हो सकती है? उस समय उन्हें सही या गलत सोचने की सूझबूझ नहीं थी। जीतूजी उस समय अपने लण्ड के गुलाम थे। अपर्णा भी अपने उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी। जीतूजी के धक्कों के साथ साथ अपर्णा भी अपनी गाँड़ को पीछे धक्का मार कर अपनी उत्तेजना दिखा रही थी। जीतूजी के एक जोरदार धक्के से जीतूजी के लण्ड के केंद्रबिंदु स्थित छिद्र से उनके गरम गरम वीर्य का फव्वारा अपर्णा ने अपनी चूत में फैलते हुए महसूस किया।