26-12-2019, 05:21 PM
जीतूजी अपर्णा को देखते ही रहे। अपर्णा की आँखों में से भाव के प्यार भरे आँसूं बह रहे थे। उन्होंने अपर्णा की चूत में ही अपने लण्ड को गाड़े रखे हुए अपर्णा को चूमा और बोले, "प्रिया, तुम मेरी अपनी हो। तुम मेरी पत्नी नहीं उससेभी कहीं अधिक हो। तुम ना सिर्फ मेरी शैय्या भागिनी हो, तुम मेरी अंतर आत्मा हो। तुम्हें पा कर आज मैं खुद धन्य हो गया। पर जैसा की तुमने सबसे पहले कहा, अभी हमें अपना ध्यान प्यार से भी ज्यादा चुदाई में लगाना है क्यूंकि हमारे पास अभी भी ज्यादा समय नहीं। कहीं ऐसा ना हो, हमारा पीछा करते हुए दुश्मन के सिपाही यहां आ पहुंचे। यह भी हो सकता है की हमारी ही सेना के जवान हमें ढूंढते हुए यहां आ पहुंचे।" अपर्णा ने जीतूजी के मुंह में अपनी जीभ डाली और जीतूजी के मुंह को अपर्णा जोश खरोश के साथ चोदने लगी। चोदते हुए एक बार जीभ हटा कर अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज मुझे आप ऐसे चोदिये जैसे आपने पहले किसीको भी चोदा नहींहोगा। श्रेया जी को भी नहीं। आपका यह मोटा तगड़ा लण्ड मैं ना सिर्फ मेरी चूत के हर गलियारे और कोने में, बल्कि मेरे बदन के हर हिस्से में महसूस करना चाहती हूँ।" यह कह कर अपर्णा ने जीतूजी का वीर्य से लबालब भरा लण्ड जो की अपर्णा की चूत की गुफा में खोया हुआ था, उसे अपनी उँगलियों में पकड़ा। अपर्णा की चूत और जीतूजी के लण्ड के बिच उंगली डाल कर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड और अपनी चूत को अपनी कोमल उँगलियों से रगड़ा। अपर्णा की नाजुक उँगलियों को छूने से जीतूजी का वीर्य उनके अंडकोषों में फुंफकार मारते हुए उनके लण्ड की रगों में उछलने लगा। जीतूजी ने अपनी प्रियतमा की इच्छा पूरी करते हुए अपना लण्ड अपर्णा की प्यासी चूत में फिर से पेलना शुरू किया।
जीतूजी का लण्ड पूरी तरह फुला हुआ अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका था। अपर्णा की चूत के हर मोहल्ले और गलियारे में वह जैसे एक बादशाह अपनी रियाया (प्रजा) के इलाके में उन्मत्त सैर करता है वैसे ही जीतूजी का लण्ड अपनी प्रियतमा अपर्णा की चूत की सुरंग के हर कोने में हर सुराख में जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता हुआ अपर्णा की चूत के द्वार में से अंदर बाहर हो रहा था। अपर्णा के स्त्री रस से सराबोर और जीतूजी के पूर्व स्राव की चिकनाहट से लथपथ जीतूजी के मोटे लण्ड को अपर्णा की चूत के अंदर बाहर जाने आने में पहले की तरह ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। पर फिर भी अपर्णा की चूत की दीवारों को जीतूजी का लण्ड काफी तनाव में रखे हुए था। और इसके कारण ही अपर्णा को अपनी चूत में एक अनोखा उन्माद हो रहा था। अपर्णा उछल उछल कर जीतूजी के लण्ड को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस लण्ड को आज इतने महीनों से ना चुदवाने की कसर जो निकालनी थी। अपर्णा ने थोड़ा ऊपर उठ कर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए देखना चाहा। वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँखों से देखना भी चाहती थी।
जीतूजी का चिकनाहट भरा लण्ड उसने अपनी चूत में से घुसते हुए और निकलते हुए देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ की जीतूजी का इतना मोटा लण्ड अंदर लेने के लिये उसकी चूत कितनी फूली हुई थी। अपर्णा ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की इतना मोटा लण्ड लेने के लिए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ले भी पाएगी। जीतूजी का लण्ड सफ़ेद चिकनाहट से लथपथ देख अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी ने अपना वीर्य तो नहीं छोड़ दिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर जीतूजी ढीले पड़ जायेंगे और वह अपर्णा नहीं चाहती थी।
जीतूजी का लण्ड पूरी तरह फुला हुआ अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका था। अपर्णा की चूत के हर मोहल्ले और गलियारे में वह जैसे एक बादशाह अपनी रियाया (प्रजा) के इलाके में उन्मत्त सैर करता है वैसे ही जीतूजी का लण्ड अपनी प्रियतमा अपर्णा की चूत की सुरंग के हर कोने में हर सुराख में जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता हुआ अपर्णा की चूत के द्वार में से अंदर बाहर हो रहा था। अपर्णा के स्त्री रस से सराबोर और जीतूजी के पूर्व स्राव की चिकनाहट से लथपथ जीतूजी के मोटे लण्ड को अपर्णा की चूत के अंदर बाहर जाने आने में पहले की तरह ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। पर फिर भी अपर्णा की चूत की दीवारों को जीतूजी का लण्ड काफी तनाव में रखे हुए था। और इसके कारण ही अपर्णा को अपनी चूत में एक अनोखा उन्माद हो रहा था। अपर्णा उछल उछल कर जीतूजी के लण्ड को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस लण्ड को आज इतने महीनों से ना चुदवाने की कसर जो निकालनी थी। अपर्णा ने थोड़ा ऊपर उठ कर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए देखना चाहा। वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँखों से देखना भी चाहती थी।
जीतूजी का चिकनाहट भरा लण्ड उसने अपनी चूत में से घुसते हुए और निकलते हुए देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ की जीतूजी का इतना मोटा लण्ड अंदर लेने के लिये उसकी चूत कितनी फूली हुई थी। अपर्णा ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की इतना मोटा लण्ड लेने के लिए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ले भी पाएगी। जीतूजी का लण्ड सफ़ेद चिकनाहट से लथपथ देख अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी ने अपना वीर्य तो नहीं छोड़ दिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर जीतूजी ढीले पड़ जायेंगे और वह अपर्णा नहीं चाहती थी।