26-12-2019, 05:20 PM
अपर्णा ने जीतूजी की और ऊपर आँखें उठा कर देखा। अपर्णा को अपनी चूत में जीतूजी का फड़फड़ाता हुआ कड़क छड़ सा सख्त लण्ड महसूस कर यकीन हुआ की जीतूजी इस ब्रेक के कारण ढीले नहीं पड़ेंगे और उसकी चुदाई में कोई कमी नहीं आएगी।
कुछ देर आराम करने के बाद अपर्णा एकदम फुर्ती से उठी और जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ही गड़े हुए रखते हुए जीतूजी के होँठों को चूमकर जीतूजी को कहने लगी, "जीतूजी मैं तैयार हूँ। मैं भले ही झड़ जाऊं। पर आपको ढीला नहीं पड़ना है। मुझे पूरी रात और पुरे दिन भर चोदना है।" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी के होँठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने भी अपर्णा के होँठों को चूसते हुए कहा, "अपर्णा, तुम क्या समझती हो? क्या मैं इतनी आसानी से मेरी महीनों की अधूरी कामाग्नि को ऐसे ही छोड़ दूंगा? मुझे भी मेरी अपर्णा को रात भर चोदना है।" यह कह कर जीतूजी ने अपर्णा को धीरे से सुलाया और फिर उसके ऊपर ठीक से सवार हो कर अपर्णा के दोनों फुले हुए बॉल (स्तनोँ) को अपनी हथेली और उँगलियों में मसलते हुए अपर्णा की चूत में अपना लण्ड अंदर बाहर करते हुए उसे चोदने में एक बार फिर से मशगूल हो गए। जीतूजी एक के बाद एक फुर्ती से अपना लण्ड अपर्णा की चूत में पेले जा रहे थे। अपर्णा भी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर जीतूजी के मोटे तगड़े लण्ड को अपनी चूत में पूरा अंदर तक लेने का प्रयास करती थी। जीतूजी के हर एक धक्के को अपर्णा "उँह... उँह..." करती हुई कराहती। जीतूजी भी हर एक धक्के के साथ साथ "उफ... उफ़..." करते हुए अपर्णा को चोदे जा रहे थे।
अपर्णा ने अपनी टाँगें उठाकर जीतूजी के कंधे की दोनों तरफ चौड़ी कर फैला रखीं थीं जिससे जीतूजी को उसकी टाँगों के बिच में घुसने में कोई दिक्कत ना हो। पुरे कमरे में चुदाई की "फच्च... फच्च..." आवाज का उद्घोषहो रहाथा। जीतूजी का इतना मोटा लण्ड भी अपर्णा की चूत में समा गया और अपर्णा को कोई खून नहीं निकला यह अपर्णा के लिए एक राहत की बात थी। उस रात अपर्णा ने जीतूजी को उस रात तक जितना तड़पाया था उसका पूरा मुआवजा देना चाहती थी। अपर्णा उन्हें वह आनंद देना चाहती थी जो श्रेया उन्हें नहीं दे पायी हो। इस लिए अलग अलग कोने से अपना बदन इधर उधर कर अपर्णा जीतूजी का लन्ड अपनी चूत के हर कोने में महसूस करना चाहती थी। जीतूजी भी अपर्णा के ऐसा करने से अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। कुछ देर की चुदाई के बाद अपर्णा ने जीतूजी को रोका। अपर्णाने अपना सर ऊपर उठाकर जीतू जी के होँठ अपने होँठों प् रखे और उन्हें चूमते हुए अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज से मेरे इस बदन पर आपका उतना ही हक़ है जितना की मेरे पति का। हाँ, क्यूंकि मैं रोहित की सामाजिक पत्नी हूँ इस लिए मैं रोज आपके साथ सो नहीं सकती, पर आप जब चाहे मुझे चुदाई के लिए बुला सकते हैं या फिर मेरे बैडरूम में आ सकते हैं। मैं जानती हूँ की मेरे पति को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। जहां तक श्रेया का सवाल है तो वह भी तो आपसे मेरी चुदाई करवाने के लिए बड़ी उत्सुक थीं।" जीतूजी ने अपर्णा को प्यार से चूमते हुए कहा, "अपर्णा, श्रेया ने मुझे वचन दिया था की एक ना एक दिन वह तुम्हें मेरे बिस्तर में मुझसे चुदवाने के लिए मना ही लेगी। यह आपसी समझौता मेरे और श्रेया के बिच में तो पहले से ही थी। अपर्णा तुम इतना समझ लो की मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम मुझ से करती हो। हमारे सिर्फ बदन ही नहीं मिले, आज हमारे ह्रदय भी मिले हैं।"
कुछ देर आराम करने के बाद अपर्णा एकदम फुर्ती से उठी और जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ही गड़े हुए रखते हुए जीतूजी के होँठों को चूमकर जीतूजी को कहने लगी, "जीतूजी मैं तैयार हूँ। मैं भले ही झड़ जाऊं। पर आपको ढीला नहीं पड़ना है। मुझे पूरी रात और पुरे दिन भर चोदना है।" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी के होँठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने भी अपर्णा के होँठों को चूसते हुए कहा, "अपर्णा, तुम क्या समझती हो? क्या मैं इतनी आसानी से मेरी महीनों की अधूरी कामाग्नि को ऐसे ही छोड़ दूंगा? मुझे भी मेरी अपर्णा को रात भर चोदना है।" यह कह कर जीतूजी ने अपर्णा को धीरे से सुलाया और फिर उसके ऊपर ठीक से सवार हो कर अपर्णा के दोनों फुले हुए बॉल (स्तनोँ) को अपनी हथेली और उँगलियों में मसलते हुए अपर्णा की चूत में अपना लण्ड अंदर बाहर करते हुए उसे चोदने में एक बार फिर से मशगूल हो गए। जीतूजी एक के बाद एक फुर्ती से अपना लण्ड अपर्णा की चूत में पेले जा रहे थे। अपर्णा भी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर जीतूजी के मोटे तगड़े लण्ड को अपनी चूत में पूरा अंदर तक लेने का प्रयास करती थी। जीतूजी के हर एक धक्के को अपर्णा "उँह... उँह..." करती हुई कराहती। जीतूजी भी हर एक धक्के के साथ साथ "उफ... उफ़..." करते हुए अपर्णा को चोदे जा रहे थे।
अपर्णा ने अपनी टाँगें उठाकर जीतूजी के कंधे की दोनों तरफ चौड़ी कर फैला रखीं थीं जिससे जीतूजी को उसकी टाँगों के बिच में घुसने में कोई दिक्कत ना हो। पुरे कमरे में चुदाई की "फच्च... फच्च..." आवाज का उद्घोषहो रहाथा। जीतूजी का इतना मोटा लण्ड भी अपर्णा की चूत में समा गया और अपर्णा को कोई खून नहीं निकला यह अपर्णा के लिए एक राहत की बात थी। उस रात अपर्णा ने जीतूजी को उस रात तक जितना तड़पाया था उसका पूरा मुआवजा देना चाहती थी। अपर्णा उन्हें वह आनंद देना चाहती थी जो श्रेया उन्हें नहीं दे पायी हो। इस लिए अलग अलग कोने से अपना बदन इधर उधर कर अपर्णा जीतूजी का लन्ड अपनी चूत के हर कोने में महसूस करना चाहती थी। जीतूजी भी अपर्णा के ऐसा करने से अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। कुछ देर की चुदाई के बाद अपर्णा ने जीतूजी को रोका। अपर्णाने अपना सर ऊपर उठाकर जीतू जी के होँठ अपने होँठों प् रखे और उन्हें चूमते हुए अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज से मेरे इस बदन पर आपका उतना ही हक़ है जितना की मेरे पति का। हाँ, क्यूंकि मैं रोहित की सामाजिक पत्नी हूँ इस लिए मैं रोज आपके साथ सो नहीं सकती, पर आप जब चाहे मुझे चुदाई के लिए बुला सकते हैं या फिर मेरे बैडरूम में आ सकते हैं। मैं जानती हूँ की मेरे पति को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। जहां तक श्रेया का सवाल है तो वह भी तो आपसे मेरी चुदाई करवाने के लिए बड़ी उत्सुक थीं।" जीतूजी ने अपर्णा को प्यार से चूमते हुए कहा, "अपर्णा, श्रेया ने मुझे वचन दिया था की एक ना एक दिन वह तुम्हें मेरे बिस्तर में मुझसे चुदवाने के लिए मना ही लेगी। यह आपसी समझौता मेरे और श्रेया के बिच में तो पहले से ही थी। अपर्णा तुम इतना समझ लो की मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम मुझ से करती हो। हमारे सिर्फ बदन ही नहीं मिले, आज हमारे ह्रदय भी मिले हैं।"