26-12-2019, 05:14 PM
जीतूजी ने एक धक्का और दिया। धक्का देते ही जीतूजी का लंड का टोपा अपर्णा की चूत को फाड़ कर घुस गया। ना चाहते हुए भी अपर्णा चीख उठी। अपर्णा की चीख सुनकर जीतूजी नर्वस हो गए और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। जब जीतूजीने अपना लण्ड बाहर निकाला तो अपर्णा बड़ी झल्लायी। पर फिर उसे जीतूजी पर प्यार भी आया। अपर्णाने जीतू जी से प्यार से कहा, "मेरे राजा! यह क्या कर रहे हो? डालो अंदर। मेरी चिंता मत करो। मैं तो ऐसे चीखती रहूंगी। प्लीज चोदो ना मुझे!" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मन में ही मुस्काये। औरतों को समझना बड़ा मुश्किल होता है। जीतूजी ने धीरे से अपना लण्ड अपर्णा की चूत में घुसेड़ा और एक हल्का सा धक्का मारा। अपर्णा ने अपनी आँखें मूँद लीं। जीतूजीने फिर एक धक्का और मारा। अपर्णा के कपाल पर पसीने की बूँद दिखाई देने लगी। अपर्णा का हाल देख कर जीतू जी थोड़ा घबरा से गए और झुक कर अपर्णा से पूछा, "क्या चालु रखूं?"
अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं और मुस्करा कर थोड़ा सा हाँफते हुए बोली, "जीतूजी, आपने कभी किसी औरत को बच्चे को जनम देते हुए देखा है? आज मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है। यह दर्द नहीं सुख है मेरे लिए। जैसे आप और आपके जवान देश के लिए जखम खा कर भी हँसते हैं, वैसे ही आज मुझे आप मत रोकिये। आज मैं आपसे चुदकर जैसे माँ को दिया हुआ मेरा प्रण साकार कर रही हूँ। प्लीज आप चोदिये मुझे मत रुकिए।" जीतूजी ने धीरे धीरे अपना लण्ड अंदर घुसेड़ना जारी रखा। उनकी नजर अपर्णा के चेहरे पर हर वक्त टिकी रहती थी। अपर्णा ने भी जब यह देखा तो अपना दर्द छुपाते हुए वह मुस्कुराने लगी और कृत्रिम दिखावा करती रही की जैसे उसे कोई दर्द नहीं हुआ। पर अपने कपाल पर इकट्ठा हुआ पसीना कैसे छुपाती? वह अपर्णा के दर्द की चुगली कर देता था। जीतूजी अपर्णा की जांबाजी पर फ़िदा हो गए। भगवान् ने औरतों को कैसा बनाया है? इतना सहन करने पर भी वह अपने चेहरे पर एक सिकन भी नहीं आने देती?" जीतूजी ने धीरे धीरे अपर्णा की चूत में अपना लण्ड ज्यादा गहरा घुसेड़ना जारी रखा। एक धक्का मारते ही उनका आधा लण्ड अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। जीतूजी ने देखा की उनके धक्के से अपर्णा पलंग से ही उछल पड़ी। उसके मुंह से एक बड़ी जोर की चीख निकलने वाली ही थी पर अपर्णा ने बड़ी जबर्दश्त कोशिश कर उसे रोक ली। जीतूजी अपर्णा की सहनशीलता देख हैरान रह गए। उन्हें पता था की अपर्णा को कितना ज्यादा दर्द अनुभव हो रहा होगा। उनके लण्ड को अपर्णा की चूत ने जितनी मजबूत पकड़ से जकड़ा हुआ था उससे यह पता लगाना मुश्किल नहीं था की अपर्णा की चूत की त्वचा को कितना ज्यादा चौड़ा और खींचना पड़ रहा होगा। यह भगवान् की ही दें है की औरत की चूत को भगवान् ने पता नहीं कितनी माहिम और मजबूत चमड़ी से बनाया होगा की इतनी ज्यादा हद तक चौड़ी हो सकतीथी। इतनी ज्यादा खिंचाई होने के कारण अपर्णाको कितना दर्द महसूस हो रहा होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।
जीतूजी अपर्णा को इतना दर्द नहीं देना चाहते थे। पर दो चीज़ें उनको मजबूर कर रहीं थीं। पहले तो अपर्णा का दुराग्रह। अपर्णा उनसे चुदवाना चाहती थी। बस आगे पीछे कोई बात वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी। दुसरा जीतूजी का साला कमीना लण्ड। पता नहीं इससे पहले किसी भी औरत के लिए उसने इतना तूफ़ान नहीं मचाया था। पर अपर्णा को देखते ही (भले ही वह पूरी तरह कपडे पहने ही क्यों ना हो?) जीतूजी का लण्ड ऐसे फनफनाने लगता था जैसे कोई कई महीनों से भूखा आदमी अपने सामने स्वादिष्ट मनपसंद व्यंजनों से भरा हुआ थाल देख कर फनफनाता है। जीतूजी के इस लण्ड घुसाने की प्रक्रिया के दरम्यान अपर्णा की आँखें बंद ही रही थी। कभी कभी अपर्णा की भौंहें सिकुड़ जातीं थीं। फिर जीतूजी कहीं देख ना ले यह डर से वह अपने चेहरे पर एक मुस्कान ला देती थी। अपर्णा की चूत की सुरंग में जैसे जैसे जीतूजी का लण्ड घुसता गया, वैसे वैसे अपर्णा के अंगों में फड़कन और रोमांच बढ़ताही जा रहा था।
अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं और मुस्करा कर थोड़ा सा हाँफते हुए बोली, "जीतूजी, आपने कभी किसी औरत को बच्चे को जनम देते हुए देखा है? आज मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है। यह दर्द नहीं सुख है मेरे लिए। जैसे आप और आपके जवान देश के लिए जखम खा कर भी हँसते हैं, वैसे ही आज मुझे आप मत रोकिये। आज मैं आपसे चुदकर जैसे माँ को दिया हुआ मेरा प्रण साकार कर रही हूँ। प्लीज आप चोदिये मुझे मत रुकिए।" जीतूजी ने धीरे धीरे अपना लण्ड अंदर घुसेड़ना जारी रखा। उनकी नजर अपर्णा के चेहरे पर हर वक्त टिकी रहती थी। अपर्णा ने भी जब यह देखा तो अपना दर्द छुपाते हुए वह मुस्कुराने लगी और कृत्रिम दिखावा करती रही की जैसे उसे कोई दर्द नहीं हुआ। पर अपने कपाल पर इकट्ठा हुआ पसीना कैसे छुपाती? वह अपर्णा के दर्द की चुगली कर देता था। जीतूजी अपर्णा की जांबाजी पर फ़िदा हो गए। भगवान् ने औरतों को कैसा बनाया है? इतना सहन करने पर भी वह अपने चेहरे पर एक सिकन भी नहीं आने देती?" जीतूजी ने धीरे धीरे अपर्णा की चूत में अपना लण्ड ज्यादा गहरा घुसेड़ना जारी रखा। एक धक्का मारते ही उनका आधा लण्ड अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। जीतूजी ने देखा की उनके धक्के से अपर्णा पलंग से ही उछल पड़ी। उसके मुंह से एक बड़ी जोर की चीख निकलने वाली ही थी पर अपर्णा ने बड़ी जबर्दश्त कोशिश कर उसे रोक ली। जीतूजी अपर्णा की सहनशीलता देख हैरान रह गए। उन्हें पता था की अपर्णा को कितना ज्यादा दर्द अनुभव हो रहा होगा। उनके लण्ड को अपर्णा की चूत ने जितनी मजबूत पकड़ से जकड़ा हुआ था उससे यह पता लगाना मुश्किल नहीं था की अपर्णा की चूत की त्वचा को कितना ज्यादा चौड़ा और खींचना पड़ रहा होगा। यह भगवान् की ही दें है की औरत की चूत को भगवान् ने पता नहीं कितनी माहिम और मजबूत चमड़ी से बनाया होगा की इतनी ज्यादा हद तक चौड़ी हो सकतीथी। इतनी ज्यादा खिंचाई होने के कारण अपर्णाको कितना दर्द महसूस हो रहा होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।
जीतूजी अपर्णा को इतना दर्द नहीं देना चाहते थे। पर दो चीज़ें उनको मजबूर कर रहीं थीं। पहले तो अपर्णा का दुराग्रह। अपर्णा उनसे चुदवाना चाहती थी। बस आगे पीछे कोई बात वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी। दुसरा जीतूजी का साला कमीना लण्ड। पता नहीं इससे पहले किसी भी औरत के लिए उसने इतना तूफ़ान नहीं मचाया था। पर अपर्णा को देखते ही (भले ही वह पूरी तरह कपडे पहने ही क्यों ना हो?) जीतूजी का लण्ड ऐसे फनफनाने लगता था जैसे कोई कई महीनों से भूखा आदमी अपने सामने स्वादिष्ट मनपसंद व्यंजनों से भरा हुआ थाल देख कर फनफनाता है। जीतूजी के इस लण्ड घुसाने की प्रक्रिया के दरम्यान अपर्णा की आँखें बंद ही रही थी। कभी कभी अपर्णा की भौंहें सिकुड़ जातीं थीं। फिर जीतूजी कहीं देख ना ले यह डर से वह अपने चेहरे पर एक मुस्कान ला देती थी। अपर्णा की चूत की सुरंग में जैसे जैसे जीतूजी का लण्ड घुसता गया, वैसे वैसे अपर्णा के अंगों में फड़कन और रोमांच बढ़ताही जा रहा था।