26-12-2019, 05:14 PM
जीतूजी अपर्णा के ऊपर बैठ कर उनके बिलकुल दो जाँघों के बिच निचे लेटी हुई अपर्णा के नंगे बदन को प्यार से देखने लगे। अपर्णा के चेहरे पर एक अजीब सा रोमांच का भाव था। जीतूजी अपना लण्ड उसकी चूत में डालेंगे यह अपर्णा के लिए अनोखा अवसर था। बार बार अपर्णा इसी के बारे में सोच रही थी। उसने सपने में यह कई बार देखा था जब जीतूजी अपना यह मोटा लण्ड अपर्णा की चूत में डाल कर उसे चोद रहे थे। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी उंगलियों में लेनेकी कोशिश की।
जीतूजी का लण्ड पूरा फुला हुआ और अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका हुआ था। जीतू जी का लण्ड देख कर अपर्णा को डर से ज्यादा प्यार उमड़ पड़ा। कालिया का लण्ड देखनेके बाद अपर्णा को जीतूजी का लण्ड बड़ा प्यारा लग रहा था। जीस लण्ड से पहले अपर्णा काँप जाती थी, वही लण्ड अब उसे सही लग रहा था। कालिया का गैण्डाके लण्ड के जैसा लण्ड देख कर अपर्णा को यकीन हो गया की दर्द तो खूब होगा, पर वह जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में जरूरले पाएगी। अपर्णा ने प्यार से जीतूजी की आँखों से नजरें मिलायीं और मुस्काती हुई जीतूजी के लण्ड को प्यार से सहलाने लगी। सहलाते सहलाते उसे जीतूजी पर प्यार उमड़ पड़ा और अपर्णा ने जीतू जी के सामने अपने हाथ लम्बाए और उन्हें अपने आगोश में लेने के लिए मचल उठी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूतपर टिकाते हुए झुक कर अपर्णाके होँठोंसे होँठ मिलाये। जीतू जी का लण्ड अपर्णा की चूत के आसपास इधर उधर फैल गया और जीतूजी ने भी अपर्णा को अपने आगोश में ले लिया। दोनों प्रेमी एक दूसरे की बाँहों में ऐसे लिपट गए और उनके होंठ ऐसे एक दूसरे से भींच गए जैसे कभी वह जुदा थे ही नहीं।
अपर्णाने जीतूजीको फिर खड़ाकिया और शर्माते हुए इशारा किया की वह अपना लण्ड अपर्णा की चूत में डाले। पर आज जीतूजी कोई ख़ास मूड़ में लग रहे थे। उन्होंने अपर्णाके इशारे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह चुपचाप ऐसे ही बूत बनकर बैठे रहे जैसे कुछ सोच रहे हों। जीतूजी की यह करतूत देखकर अपर्णा झल्लायी। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड उँगलियों में पकड़ कर उसमें हलकी सी चूँटी भरी। चूँटी भरने पर दर्द के कारण जीतूजीके मुंहसे "आउच..." निकल गया। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उनकी चिकनाहट पुरे लण्ड पर फैलानी शुरू की। उसके बाद अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत की सतह पर थोड़ी देर तक हलके से घिसती रही। जीतूजी का हाथ अपर्णा ने अपने मम्मों पर रख दिया। वह चाहती थी की जब जीतूजी का मोटा कड़क फौलादी लण्ड अपर्णा की चूत में दाखिल हो और तब जो दर्द वह महसूस करे तब जीतूजी की उंगलियां उसकी चूँचियों के सहलाती रहे, ताकि उससे हो रही उत्तेजना में अपर्णा को दर्द महसूस ना हो।
जब जीतूजी का लण्ड काफी चिकना हो चुका तब अपर्णा ने अपना पेंडू ऊपर उठाकर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ने की हलकी कोशिश की। जीतूजी ने महसूस किया की उनका लण्ड अंदर घुसने में दिक्कत हो रही थी। पर अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेचैनथी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में एक हल्का सा धक्का दे कर थोड़ा सा घुसेड़ा। अपर्णा के मुंह स एक छोटी सी आह.... निकल पड़ी। जीतूजी अपर्णा की आह सुन कर रुक गए। उन्होंने चिंता से अपर्णा की और देखा। अपर्णा ने जीतूजी के चहरे पर परेशानी के भाव देखे तो मुस्कुरायी और फिर अपना पेंडू और ऊपर उठाकर जीतूजी को लण्ड अंदर डालने के लिए इशारा किया।
जीतूजी का लण्ड पूरा फुला हुआ और अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका हुआ था। जीतू जी का लण्ड देख कर अपर्णा को डर से ज्यादा प्यार उमड़ पड़ा। कालिया का लण्ड देखनेके बाद अपर्णा को जीतूजी का लण्ड बड़ा प्यारा लग रहा था। जीस लण्ड से पहले अपर्णा काँप जाती थी, वही लण्ड अब उसे सही लग रहा था। कालिया का गैण्डाके लण्ड के जैसा लण्ड देख कर अपर्णा को यकीन हो गया की दर्द तो खूब होगा, पर वह जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में जरूरले पाएगी। अपर्णा ने प्यार से जीतूजी की आँखों से नजरें मिलायीं और मुस्काती हुई जीतूजी के लण्ड को प्यार से सहलाने लगी। सहलाते सहलाते उसे जीतूजी पर प्यार उमड़ पड़ा और अपर्णा ने जीतू जी के सामने अपने हाथ लम्बाए और उन्हें अपने आगोश में लेने के लिए मचल उठी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूतपर टिकाते हुए झुक कर अपर्णाके होँठोंसे होँठ मिलाये। जीतू जी का लण्ड अपर्णा की चूत के आसपास इधर उधर फैल गया और जीतूजी ने भी अपर्णा को अपने आगोश में ले लिया। दोनों प्रेमी एक दूसरे की बाँहों में ऐसे लिपट गए और उनके होंठ ऐसे एक दूसरे से भींच गए जैसे कभी वह जुदा थे ही नहीं।
अपर्णाने जीतूजीको फिर खड़ाकिया और शर्माते हुए इशारा किया की वह अपना लण्ड अपर्णा की चूत में डाले। पर आज जीतूजी कोई ख़ास मूड़ में लग रहे थे। उन्होंने अपर्णाके इशारे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह चुपचाप ऐसे ही बूत बनकर बैठे रहे जैसे कुछ सोच रहे हों। जीतूजी की यह करतूत देखकर अपर्णा झल्लायी। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड उँगलियों में पकड़ कर उसमें हलकी सी चूँटी भरी। चूँटी भरने पर दर्द के कारण जीतूजीके मुंहसे "आउच..." निकल गया। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उनकी चिकनाहट पुरे लण्ड पर फैलानी शुरू की। उसके बाद अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत की सतह पर थोड़ी देर तक हलके से घिसती रही। जीतूजी का हाथ अपर्णा ने अपने मम्मों पर रख दिया। वह चाहती थी की जब जीतूजी का मोटा कड़क फौलादी लण्ड अपर्णा की चूत में दाखिल हो और तब जो दर्द वह महसूस करे तब जीतूजी की उंगलियां उसकी चूँचियों के सहलाती रहे, ताकि उससे हो रही उत्तेजना में अपर्णा को दर्द महसूस ना हो।
जब जीतूजी का लण्ड काफी चिकना हो चुका तब अपर्णा ने अपना पेंडू ऊपर उठाकर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ने की हलकी कोशिश की। जीतूजी ने महसूस किया की उनका लण्ड अंदर घुसने में दिक्कत हो रही थी। पर अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेचैनथी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में एक हल्का सा धक्का दे कर थोड़ा सा घुसेड़ा। अपर्णा के मुंह स एक छोटी सी आह.... निकल पड़ी। जीतूजी अपर्णा की आह सुन कर रुक गए। उन्होंने चिंता से अपर्णा की और देखा। अपर्णा ने जीतूजी के चहरे पर परेशानी के भाव देखे तो मुस्कुरायी और फिर अपना पेंडू और ऊपर उठाकर जीतूजी को लण्ड अंदर डालने के लिए इशारा किया।