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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
अब आप चुप हो जाओ और जो होता है उसे देखते जाओ।" ऐसा कह कर अपर्णा ने हाथ बढ़ाया और जीतूजी के पयजामा उतरने की कोशिश करने लगी। अपर्णा जीतूजी के कपडे क्या निकालती? जीतूजी के कपडे तो वैसे ही नकली हुए थे। मोटे डॉ. खान के बड़े कपडे शशक्त बदन वाले पर पतले मजबूत जीतूजी को कहाँ फिट होते? कपड़ों के बटन खोलने की भी जरुरत नहीं पड़ी। निचे खिसकाते ही जीतूजी का पयजामा निचे गिर गया। अंदर तो कुछ पहना था नहीं। जीतूजी का अजगर सा लण्ड आधा सोया और आधा जगा बाहर अपर्णा के हाथोंमें आगया। आधा सोया हुआ भी काफी लंबा और मोटा था। अपर्णा ने वैसे तो उसे देखा ही था। जब अपर्णा ने उसे अपने हाथों में लिया तब उसे पता चला की जीतूजी का लण्ड कितना भरी था वह भी तब जब अभी पूरा कड़क भी नहीं हुआ था। पर अब सोचने की बात यह थी की उसे अपनी चूत में कैसे डलवायेगी? यह सवाल था।

देखने की बात और है और करने की और। बच्चे की सीज़ेरियन डिलीवरीके समय डॉक्टरने उसकी चूत के छिद्र को टाइट सीलाथा। उसके बाद अपने पति रोहित से चुदवाते भी उसे कष्ट होता था। रोहित जी का लण्ड भी कोई कम नहीं था। पर जीतू जीके लण्डकी बातही कुछ औरथी। अपर्णा ने तय किया था की हालांकि वह दोनों थके हुए थे और उन्हें शायद सेक्ससे ज्यादा आरामकी जरुरत थी, पर वह एक बार जीतूजी से चुदवाना जरूर चाहती थी। सुनता ने जीतूजी को कई बार हड़का दिया था। अब वह उनको एक सम्मान देना चाहती थी। माँ का वचन तो अब पूरा हो ही गया था। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और प्यार से उसे धीरे धीरे हिलाने लगी। अपर्णा के हाथमें ही अपना लण्ड आते ही जीतू जी मारे उत्तेजना से मचलने लगे। उनको महीनो का सपना शायद आज पूरा होने जा रहा था। जीतूजी ने पलट कर अपर्णा की और देखा और अपर्णा के मुंह को अपने हाथों में पकड़ कर उसे बड़ी गर्मजोशी से चूमा। अपर्णा की आँखों में आँखें डाल कर जीतूजी ने पूछा, "अपर्णा, अगर मैं नदी में नहीं कूदता तो क्या मुझे यह मौक़ा मिलता?" अपर्णा ने मुस्काते हुए कहा, "मैं अब आपको अच्छी तरह जान गयी हूँ। ऐसा हो ही नहीं सकता की मेरी जान खतरे में हो और आप मुझे बचाने के लिए पहल ना करें। जहां तक मौके की बात है तो मेरी माँ को भी शायद इस बात का पूरा अंदेशा होगा की मेरी जिंदगी में एक नौजवान आएगा और मुझे मौत के मुंह में से वापस निकाल लाएगा। अब मेरी जिंदगी ही आपकी है तो मेरा बदन और मेरी जवानी की तो बात ही क्या? मेरी माँ ने भी यही सोचकर मुझसे वह वचन लिया था। जो आपने पूरा किया।"

जीतूजी प्यार से अपर्णा का चेहरा देखते रहे और अपर्णा की करारी गाँड़ के ऊपर प्यार से अपना एक हाथ फेरते रहे। अपर्णा जीतूजी के लण्ड में से निकल रहा प्रवाही स्राव को अनुभव कर रही थी। स्राव से जीतूजी का लण्ड चिकनाहट से पूरी तरह सराबोर हो गया था। अपर्णा की चूत भी जीतूजी से मिलन से काफी उत्तेजित होने के कारण अपना स्त्री रस रिस रही थी। अपर्णा ने जीतूजी की मूंछ पर होने होंठ फिराते हुए एक हाथ से जीतूजी का लण्ड सहलाती और दूसरे हाथ से जीतूजी की पीठ पर अपना हाथ ऊपर निचे कर के जीतूजी के स्नायुओं का मुआइना कर रही थी। जीतूजी का कड़ा लण्ड पूरा कड़क हो गया था। जीतूजीके बगलमें ही लेटकर अपर्णा ने अपनी बाजुओं को ऊंचा कर लम्बाया और जीतूजी को अपनी बाँहों में आने का निमत्रण दिया। जीतूजी पलंग पर उठ खड़े हुए। उन्होने अपना कुर्ता और पयजामा निकाल फेंका और पलंग पर लेटी हुई अपर्णा की जाँघों के इर्दगिर्द, अपर्णा की जाँघों को अपनी टाँगों के बिच में रखे हुए अपने घुटने पर बैठ गए।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 05:13 PM



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