26-12-2019, 05:12 PM
उसने देखा तो जीतूजी कुर्सी पर बैठे बैठे खर्राटे मार रहे थे। अपर्णा उठी और उसने अपने बदन एक चद्दर से ढका। जीतूजी की और मुंह कर के बोली, "क्या हुआ? बिस्तरे में क्यों नहीं आ रहे हो?" जीतूजी ने कहा, "जब मैं तुम्हारे पास आता हूँ तो अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रखपाता। अब मैं तुम्हारी चाल में नहीं आने वाला। अगर मैं वहाँ आ गया तो मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं कर सकूंगा। तुम सोजाओ। मैं यहां परही सो जाऊंगा ।" यह कह कर जीतूजी ने सोफा पर ही अपने पाँव लंबे किये। अपर्णाको बड़ा गुस्सा आने लगा। अब तक वह चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी, तब तो जीतूजी फनफना रहे थे। अब वह तैयार हुई तो यह साहब नखरे क्यों कर रहे थे? जब जीतू जी ने कहा, "तुम वहीँ सो जाओ। मैं यहीं ठीक हूँ।" तब अपर्णा अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पायी। उसने ने गुस्से हो कर कहा, "तुम क्या सोच रहे हो? मैं तुम्हें वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़ कर यह कहूं की यहां आओ और मुझे करो......? मैंने तुम्हें नहीं कहा की मैंने तुम्हें अपने पति की जगह पर स्वीकार किया है। तुमने मेरी जान अपनी जान जोखिम में डाल कर बचाई और मेरा प्रण पूरा किया है।"
अपर्णा कुछ देर रुक गयी। फिर कुछ सोच कर बोली, "पर तुमने भी तो प्रण लिया था की जब तक मैं अपर्णा हाथ जोड़ कर तुम्हें यह नहीं कहूँ की आओ और मुझे प्यार करो.... तब तक तुम मुझे मजबूर नहीं करोगे। तो लो मैं हाथ जोड़ती हूँ और कहती हूँ की आओ, और मुझे करो....। मैं तुमसे करवाना चाहती हूँ। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हँस पड़े। जल्दी से उठ कर वह बिस्तर पर आ गए और अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर बोले, "मानिनीयों को कभी हाथ नहीं जोड़ने चाहिए। हाथ जोड़ने का काम हम पुरुषों का है। मैं तुम्हें मेरे हाथ जोड़कर तुम्हारे खूबसूरत पाँव पकड़ कर प्रार्थना करता हूँ और पूछता हूँ की हे मानिनी क्या तुम आज रात मुझसे चुदवाओगी? देखो अपर्णा अगर तुमने मुझे स्वीकार किया है तो मुझसे खुल कर बात करो। मैं प्यार करो यह शब्द नहीं सुनना चाहता। मैं साफ़ साफ़ सुनना चाहता हूँ की तुम क्या चाहती हो?" "अपर्णा ने जीतूजी के कपडे निकालते हुए कहा," छोडोजी। आप जो सुनना चाहते हो मैं बोलने वाली नहीं। खैर मैं भले ही ना बोलूं पर आपने तो बोल ही दिया है ना? मैं एक बार नहीं, आज रात कई बार मुझे करना है। जब तक मैं थक कर ढेर ना हो जाऊं तब तक तुम मुझे करते ही रहना। आजसे मैं तुम्हारी सामाजिक बीबी ना सही, पर मैं तुम्हारी शारीरक बीबी जरूर हूँ। और यह हक मुझे कोई भी नहीं छीन सकता , श्रेया भी नहीं। ओके?"
जीतूजी अपर्णा के जोश को देखते ही रह गए। उन्होंने कहा, "ओके, मैडम। आपका अधिकार कोई भी छीन नहीं सकता। पर आपके पति? क्या वह नाराज नहीं होंगे?" अपर्णाने जीतूजी की ओर देखतेहुए कहा, "कमाल है? आप यह सवाल मुझसे पूछते हो? श्रेया आपसे कुछतो छुपाती नहीं है। मेरे पति को मेरी फ़िक्र कहाँ? कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर।? मैं तो घर की मुर्गी हूँ। जब वह चाहेंगे मैं तो हूँ ही। आप मेरे पति की नहीं अपनी बीबी की चिंता कीजिये जनाब। मेरे पति आपकी बीबी के पीछे लगे हुए हैं। आगे आपकी मर्जी।" जीतूजी ने कहा, "मैं श्रेया की चिंता नहीं करता। वह पूरी तरह आज़ाद है। मेरी बीबी को मेरी तरह से पूरी छूट है। क्या आप को ऐसी छूट है?" अपर्णाने कुछ खिसियाते हुए कहा, "देखोजी, मेरा मूड़ खराब मत करो। जब मेरे पति को पता लगेगा तो देखा जाएगा। दोष तो उनका ही है। जब मैं नदी में डूबने लगी थी तो वह क्यों नहीं कूद पड़े? दुसरा उन्होंने मुझे आपकी देख-भाल का जिम्मा क्यों दिया? इसका मतलब यह की वह कैसे ना कैसे मुझसे छुटकारा पाना चाहते थे। उन्होंने श्रेया के साथ रहने की जिम्मेवारी ली। आपभी तो उनके षड्यंत्र में शामिल हो ना? वरना आप श्रेया के साथ पिक्चर में क्यों नहीं बैठे थे?
अपर्णा कुछ देर रुक गयी। फिर कुछ सोच कर बोली, "पर तुमने भी तो प्रण लिया था की जब तक मैं अपर्णा हाथ जोड़ कर तुम्हें यह नहीं कहूँ की आओ और मुझे प्यार करो.... तब तक तुम मुझे मजबूर नहीं करोगे। तो लो मैं हाथ जोड़ती हूँ और कहती हूँ की आओ, और मुझे करो....। मैं तुमसे करवाना चाहती हूँ। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हँस पड़े। जल्दी से उठ कर वह बिस्तर पर आ गए और अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर बोले, "मानिनीयों को कभी हाथ नहीं जोड़ने चाहिए। हाथ जोड़ने का काम हम पुरुषों का है। मैं तुम्हें मेरे हाथ जोड़कर तुम्हारे खूबसूरत पाँव पकड़ कर प्रार्थना करता हूँ और पूछता हूँ की हे मानिनी क्या तुम आज रात मुझसे चुदवाओगी? देखो अपर्णा अगर तुमने मुझे स्वीकार किया है तो मुझसे खुल कर बात करो। मैं प्यार करो यह शब्द नहीं सुनना चाहता। मैं साफ़ साफ़ सुनना चाहता हूँ की तुम क्या चाहती हो?" "अपर्णा ने जीतूजी के कपडे निकालते हुए कहा," छोडोजी। आप जो सुनना चाहते हो मैं बोलने वाली नहीं। खैर मैं भले ही ना बोलूं पर आपने तो बोल ही दिया है ना? मैं एक बार नहीं, आज रात कई बार मुझे करना है। जब तक मैं थक कर ढेर ना हो जाऊं तब तक तुम मुझे करते ही रहना। आजसे मैं तुम्हारी सामाजिक बीबी ना सही, पर मैं तुम्हारी शारीरक बीबी जरूर हूँ। और यह हक मुझे कोई भी नहीं छीन सकता , श्रेया भी नहीं। ओके?"
जीतूजी अपर्णा के जोश को देखते ही रह गए। उन्होंने कहा, "ओके, मैडम। आपका अधिकार कोई भी छीन नहीं सकता। पर आपके पति? क्या वह नाराज नहीं होंगे?" अपर्णाने जीतूजी की ओर देखतेहुए कहा, "कमाल है? आप यह सवाल मुझसे पूछते हो? श्रेया आपसे कुछतो छुपाती नहीं है। मेरे पति को मेरी फ़िक्र कहाँ? कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर।? मैं तो घर की मुर्गी हूँ। जब वह चाहेंगे मैं तो हूँ ही। आप मेरे पति की नहीं अपनी बीबी की चिंता कीजिये जनाब। मेरे पति आपकी बीबी के पीछे लगे हुए हैं। आगे आपकी मर्जी।" जीतूजी ने कहा, "मैं श्रेया की चिंता नहीं करता। वह पूरी तरह आज़ाद है। मेरी बीबी को मेरी तरह से पूरी छूट है। क्या आप को ऐसी छूट है?" अपर्णाने कुछ खिसियाते हुए कहा, "देखोजी, मेरा मूड़ खराब मत करो। जब मेरे पति को पता लगेगा तो देखा जाएगा। दोष तो उनका ही है। जब मैं नदी में डूबने लगी थी तो वह क्यों नहीं कूद पड़े? दुसरा उन्होंने मुझे आपकी देख-भाल का जिम्मा क्यों दिया? इसका मतलब यह की वह कैसे ना कैसे मुझसे छुटकारा पाना चाहते थे। उन्होंने श्रेया के साथ रहने की जिम्मेवारी ली। आपभी तो उनके षड्यंत्र में शामिल हो ना? वरना आप श्रेया के साथ पिक्चर में क्यों नहीं बैठे थे?