26-12-2019, 05:03 PM
कमरे का दरवाजा बंद कर अपर्णा ने दो थालियों में खाना परोसा। जीतूजी और अपर्णा वाकई में काफी भूखे थे। उन्होंने बड़े चाव से खाना खाया और बर्तन साफ कर रख दिए। सुनिता ने फिर बाथरूम में जा कर देखा तो पानी गरम करने के लिए बिजली का रोड रखा था और बाल्टी थी। पानी एकदम ठंडा था। जीतूजी ने कहा की वह पहले नहाना चाहते थे। जीतूजी ने अपर्णा से पूछा, "अपर्णा तुमने मुझे क्यों रोका, जब डॉ. साहब ने तुम्हें मेरी पत्नी बताया?" अपर्णाने कहा, "जीतूजी, मैं एक बात बताऊँ? आज जब आपने मुझे अपनी जान जोखिम में डालकर बचाया तो आपने वह किया जो मेरे पति भी नहीं कर सके जिससे मेरी माँ को दिया हुआ वचन पूरा हो गया। माँ ने मुझसे वचन लिया था की जो मर्द अपनी जान की परवाह ना कर के और मुझे खुशहाल रखना चाहेगा मैं उसे ही अपना सर्वस्व दूंगी। अब कोई मुझे आपकी बीबी समझे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।" यह कह कर अपर्णा जीतूजी को बाँहोंमें लिपट गयी। जीतूजी की आँखें शायद उस सफरमें पहली बार अपर्णा की बात सुनकर नम हुयी। पर अपने आपको सम्हालते हुए जीतू जी बोले, "अपर्णा, सच तो यह है की मैं भी थक गया हूँ। खाना खाने के बाद मुझे सख्त नींद आ रही है। पहले मैं नहाता हूँ और फिर आप नहाने जाना।" अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "आप अपने सारे कपडे बाल्टी में डाल देना। मैं उनको धो कर सूखा दूंगी।"
अपर्णाने बाल्टीमें पानी भर कर रोडसे गरम करने रख दिया और अपर्णा के गरम किये हुए पानी से जीतूजी नहाये और जब उन्होंने डॉ. खानके लाये हुए कपडे देखे तो पाया की उनमेंसे एकभी उनको फिट नहीं हो रहा था। उनके कपडे काफी बड़े थे। कुर्ता और पजामा उनको बिल्कु फिट नहीं हो रहा था। सारे कपडे इतने ढीले थे की शायद उस पाजामे और कुर्ते में जीतूजी जैसे दो आदमी आ सकते थे। जीतूजी ने एक कुर्ता और ढीलाढाला पजामा पहना पर वह इतने ढीले थे की उनको पहनना ना पहनना बराबर ही था। जैसे तैसे जीतू जी ने कपडे पहने और फुर्ती से पलंग की चद्दरों और कम्बलों के बिच में घुस गए।
अपर्णा डॉ. खान साहब की बेटी के कपडे लेकर बाथरूममें गयी तो देखाकी जीतूजी के गंदे कपडे बाल्टी में डले हुए थे। अपर्णा ने महसूस किया की उनके कपड़ों में जीतूजी के बदन की खुशबु आ रही थी। अपर्णा ने जनाना उत्सुकता से जीतूजी निक्कर सूंघी तो उसे जीतूजी के वीर्य की खुशबु भी आयी। अपर्णा जान गयी की उसके बदन के करीब चिपकने से जीतूजी का वीर्य भी स्राव तो हो रहा था। अपर्णा ने फटाफट अपने और जीतू जी के कपडे धोये और नहाने बैठ गयी। अपने नग्न बदन को आईने में देख कर खुश हुई। इतनी थकान के बावजूद भी उसके चहरे की रौनक बरकरार थी। कमर के ऊपर और के निचे घुमाव बड़ा ही आकर्षक था। अपर्णा को भरोसा हो गया की वह उतनी ही आकर्षक है जितना पहले थी। अपर्णा की गाँड़ पीछे से कमर के निचे गिटार की तरह उभर कर दिख रहीथी जिसको देख कर और स्पर्श कर अच्छे अच्छे मर्दों का भी वीर्य स्खलित हो सकताथा। अपर्णाके बूब्स कड़क और एकदम टाइट पर पुरे फुले हुए मदमस्त खड़े लग रहे थे। उन स्तनोँ को दबाते हुए अपर्णा ने महसूस किया की उसकी निप्पलं भी उत्तेजना के मारे फूल गयी थीं। अपर्णा के स्तनों के चॉकलेटी रंग के एरोला पर भी रोमांच के मारे कई छोटी छोटी फुंसियां भी दिख रही थीं। अपर्णा उत्तेजना से अपने दोनों स्तनोँ को अपने ही हाथों से दबाती हुई उस रात को क्या होगा उसकी कल्पना करके रोमांचित हो रही थी। अपर्णा ने साबुन से सारे कपडे अच्छी तरह धोये और निचोड़ कर कमरे में ही हीटर के पास सुखाने के लिए रख दिये। उसमें उसके भी कपडे थे। तौलिये से अपना साफ़ करने के बाद जब अपर्णा ने डॉ. खान के लाये हुए कपड़ों को देखा तो पाया की वह बहुत ही छोटे थे। सलवार बिलकुल फिट नहीं बैठ रही थी और कमीज इतनी छोटी थी की बाँहों में भी नहीं घुस रही थी।
अपर्णाने बाल्टीमें पानी भर कर रोडसे गरम करने रख दिया और अपर्णा के गरम किये हुए पानी से जीतूजी नहाये और जब उन्होंने डॉ. खानके लाये हुए कपडे देखे तो पाया की उनमेंसे एकभी उनको फिट नहीं हो रहा था। उनके कपडे काफी बड़े थे। कुर्ता और पजामा उनको बिल्कु फिट नहीं हो रहा था। सारे कपडे इतने ढीले थे की शायद उस पाजामे और कुर्ते में जीतूजी जैसे दो आदमी आ सकते थे। जीतूजी ने एक कुर्ता और ढीलाढाला पजामा पहना पर वह इतने ढीले थे की उनको पहनना ना पहनना बराबर ही था। जैसे तैसे जीतू जी ने कपडे पहने और फुर्ती से पलंग की चद्दरों और कम्बलों के बिच में घुस गए।
अपर्णा डॉ. खान साहब की बेटी के कपडे लेकर बाथरूममें गयी तो देखाकी जीतूजी के गंदे कपडे बाल्टी में डले हुए थे। अपर्णा ने महसूस किया की उनके कपड़ों में जीतूजी के बदन की खुशबु आ रही थी। अपर्णा ने जनाना उत्सुकता से जीतूजी निक्कर सूंघी तो उसे जीतूजी के वीर्य की खुशबु भी आयी। अपर्णा जान गयी की उसके बदन के करीब चिपकने से जीतूजी का वीर्य भी स्राव तो हो रहा था। अपर्णा ने फटाफट अपने और जीतू जी के कपडे धोये और नहाने बैठ गयी। अपने नग्न बदन को आईने में देख कर खुश हुई। इतनी थकान के बावजूद भी उसके चहरे की रौनक बरकरार थी। कमर के ऊपर और के निचे घुमाव बड़ा ही आकर्षक था। अपर्णा को भरोसा हो गया की वह उतनी ही आकर्षक है जितना पहले थी। अपर्णा की गाँड़ पीछे से कमर के निचे गिटार की तरह उभर कर दिख रहीथी जिसको देख कर और स्पर्श कर अच्छे अच्छे मर्दों का भी वीर्य स्खलित हो सकताथा। अपर्णाके बूब्स कड़क और एकदम टाइट पर पुरे फुले हुए मदमस्त खड़े लग रहे थे। उन स्तनोँ को दबाते हुए अपर्णा ने महसूस किया की उसकी निप्पलं भी उत्तेजना के मारे फूल गयी थीं। अपर्णा के स्तनों के चॉकलेटी रंग के एरोला पर भी रोमांच के मारे कई छोटी छोटी फुंसियां भी दिख रही थीं। अपर्णा उत्तेजना से अपने दोनों स्तनोँ को अपने ही हाथों से दबाती हुई उस रात को क्या होगा उसकी कल्पना करके रोमांचित हो रही थी। अपर्णा ने साबुन से सारे कपडे अच्छी तरह धोये और निचोड़ कर कमरे में ही हीटर के पास सुखाने के लिए रख दिये। उसमें उसके भी कपडे थे। तौलिये से अपना साफ़ करने के बाद जब अपर्णा ने डॉ. खान के लाये हुए कपड़ों को देखा तो पाया की वह बहुत ही छोटे थे। सलवार बिलकुल फिट नहीं बैठ रही थी और कमीज इतनी छोटी थी की बाँहों में भी नहीं घुस रही थी।