26-12-2019, 04:39 PM
आयेशा ने शरारत भरे अंदाज में कहा, "कोई बात नहीं। तुम बगैर कपडे ही ऊपर आ जाना, मैं नहीं देखूंगी, बस!" ऐसा कह बिना रोहित के जवाब का इंतजार किये आयेशा ने रोहित का हाथ थामा और उन्हें खींच कर हलके कदमों से गुफा के पीछे निचे एक झरने के पास ले गयी।
वहाँ पहुँचते ही उसने धक्का मारकर रोहित को झरने में जब धकेला तो रोहित ने भी आयेशा को कस के पकड़ा और अपने साथ आयेशा को लेकर धड़ाम से झरने में गिर पड़े। आयेशा हंसती हुई रोहित स लिपट गयी और बोली, "परदेसी, तुम तो बड़े ही रोमांटिक भी हो यार!" रोहित ने आयेशा को भी जकड कर पकड़ा। उनका मन उस समय कई पारस्परिक विरोधी भावनाओं से पीड़ित था। विधि का विधान भी कैसा विचित्र है? एक दुश्मन के मुल्क की औरत उनकी सबसे बड़ी दोस्त और हितैषी बन गयी थी। उस समय के रोहित के मन के भावों की कल्पना करना भी मुश्किल था। वह सिपाही तो थे नहीं। उन्हें तो यही सिखाया गया था की "अहिंसा परमो धर्म।" अहिंसा ही परम धर्म है। सिपाही का खून और उसका मृत शरीर देख कर रोहित को उलटी जैसा होने लगा था। जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रखा था। पर जब आयेशा ने उनकी बहादुरी की प्रशंशा की तो उनको रोना आ गया और वह फुट फुट कर रोने लगे। आयेशा रोहित के मनके भाव समझ रही थी। वह जानती थी की एक साधारण इंसान के लिए ऐसा खूनखराबा देखना कितना कठिन था। वह खुद भी तो उस नरसंहार के पहले एक आम औरत की तरह अपना जीवन बसर करना चाहती थी। पर विधाता ने उसे भी मरने मारने के लिए मजबूर कर दिया था और जब पहली बार उसने वह सिपाही को मार डाला था तब उसे भी ऐसे ही फीलिंग हुई थी।
आयेशा ने आगे बढ़कर रोहित को अपनी बाँहों में ले लिया हुए प्रगाढ़ आलिंगन करके (कस के जफ्फी लगा कर) रोहित के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली, "ओ परदेसी, मैं समझ सकती हूँ तुम्हारे मन में क्या हो रहा है। मैं भी तो इस दौर से गुजर चुकी हूँ। पर हम लड़ाई के माहौल में है। क्या करें, या तो हम उनके हाथों मारे जाएँ, या फिर उनको मार दें। यहां शान्ति और अमन के लिए जगह ही नहीं छोड़ी है उन्होंने। मेरी माँ को मार दिया, मेरे अब्बू को मार दिया और मेरी इज्जत लूटने पर आमादा हो गए थे वह।" आयेशा ने रोहित का सर अपनी छाती पर रख दिया। आयेशा का पूरा जवान गीला बदन, उसकी छाती पर उभरे हुए आयेशा के स्तन की नरमी रोहित के गालों को छू रही थी। आयेशा के बदन पर वैसे ही कम कपडे थे। जो थे वह गीले हो चुके थे और आयेशा के बदन को प्रदर्शित कर रहेथे। रोहित की आँखों के सामने आयेशा के स्तनों के उभार, आयेशा के बूब्स के बिच की खायी, यहां तक की उसकी निप्पलेँ भी दिख रहीं थीं। रोहित ने देखा की आयेशा भी शायद उनके शरीर के स्पर्श से उत्तेजित हो गयी थी और उसकी निप्पलेँ उत्तेजना के मारे फूल कर एकदम सख्त होरही थीं। आयेशाकी नशीली आँखें रोहितकी आँखों को एकटक निहार रही थीं। रोहित कीआँखों में सावन भादो की तरह पछतावे के आंसू बहे जा रहे थे। आयेशा अपने मदमस्त स्तनों से रोहित की आँखें बार बार पोंछ रही थी, और कहे जा रही थी, "बस परदेसी, काफी हो गया। मैं औरत हूँ। मैंने भी एक सिपाही को जान के घाट उतार दिया था। मुझे भी बहुत बुरा लगा था। पर मैं ऐसे नहीं रोई। तुम तो मर्द हो। बस भी करो।" ऐसा कह आयेशा ने अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी। रोहितने जब देखा की आयेशाने अपनी कमीज़ उतार दी और वह सिर्फ ब्रा में ही पानी में खड़ीथी, तो वह स्तब्ध हो गए। आयेशाकी कमीज काफी लम्बी थी और करीब करीब पुरे बदन को ढक रही थी। उसके हटने से आयेशा का पतला पेट और पतली छोटी सी कमर बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी। रोहित चुप हो गए। अब उनका ध्यान आयेशा की खिली हुई जवानी पर था। आयेशा की ब्रा उसके उभरे पूरी तरह फुले हुए स्तनोँ को बांध सकनेमें पूरी तरह नाकामियाब थी। पानीमें भीग जाने की वजहसे ब्रा भी आयेशा के स्तनोँ का गोरापन और फुलाव छिपा नहीं पा रही थी।
वहाँ पहुँचते ही उसने धक्का मारकर रोहित को झरने में जब धकेला तो रोहित ने भी आयेशा को कस के पकड़ा और अपने साथ आयेशा को लेकर धड़ाम से झरने में गिर पड़े। आयेशा हंसती हुई रोहित स लिपट गयी और बोली, "परदेसी, तुम तो बड़े ही रोमांटिक भी हो यार!" रोहित ने आयेशा को भी जकड कर पकड़ा। उनका मन उस समय कई पारस्परिक विरोधी भावनाओं से पीड़ित था। विधि का विधान भी कैसा विचित्र है? एक दुश्मन के मुल्क की औरत उनकी सबसे बड़ी दोस्त और हितैषी बन गयी थी। उस समय के रोहित के मन के भावों की कल्पना करना भी मुश्किल था। वह सिपाही तो थे नहीं। उन्हें तो यही सिखाया गया था की "अहिंसा परमो धर्म।" अहिंसा ही परम धर्म है। सिपाही का खून और उसका मृत शरीर देख कर रोहित को उलटी जैसा होने लगा था। जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रखा था। पर जब आयेशा ने उनकी बहादुरी की प्रशंशा की तो उनको रोना आ गया और वह फुट फुट कर रोने लगे। आयेशा रोहित के मनके भाव समझ रही थी। वह जानती थी की एक साधारण इंसान के लिए ऐसा खूनखराबा देखना कितना कठिन था। वह खुद भी तो उस नरसंहार के पहले एक आम औरत की तरह अपना जीवन बसर करना चाहती थी। पर विधाता ने उसे भी मरने मारने के लिए मजबूर कर दिया था और जब पहली बार उसने वह सिपाही को मार डाला था तब उसे भी ऐसे ही फीलिंग हुई थी।
आयेशा ने आगे बढ़कर रोहित को अपनी बाँहों में ले लिया हुए प्रगाढ़ आलिंगन करके (कस के जफ्फी लगा कर) रोहित के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली, "ओ परदेसी, मैं समझ सकती हूँ तुम्हारे मन में क्या हो रहा है। मैं भी तो इस दौर से गुजर चुकी हूँ। पर हम लड़ाई के माहौल में है। क्या करें, या तो हम उनके हाथों मारे जाएँ, या फिर उनको मार दें। यहां शान्ति और अमन के लिए जगह ही नहीं छोड़ी है उन्होंने। मेरी माँ को मार दिया, मेरे अब्बू को मार दिया और मेरी इज्जत लूटने पर आमादा हो गए थे वह।" आयेशा ने रोहित का सर अपनी छाती पर रख दिया। आयेशा का पूरा जवान गीला बदन, उसकी छाती पर उभरे हुए आयेशा के स्तन की नरमी रोहित के गालों को छू रही थी। आयेशा के बदन पर वैसे ही कम कपडे थे। जो थे वह गीले हो चुके थे और आयेशा के बदन को प्रदर्शित कर रहेथे। रोहित की आँखों के सामने आयेशा के स्तनों के उभार, आयेशा के बूब्स के बिच की खायी, यहां तक की उसकी निप्पलेँ भी दिख रहीं थीं। रोहित ने देखा की आयेशा भी शायद उनके शरीर के स्पर्श से उत्तेजित हो गयी थी और उसकी निप्पलेँ उत्तेजना के मारे फूल कर एकदम सख्त होरही थीं। आयेशाकी नशीली आँखें रोहितकी आँखों को एकटक निहार रही थीं। रोहित कीआँखों में सावन भादो की तरह पछतावे के आंसू बहे जा रहे थे। आयेशा अपने मदमस्त स्तनों से रोहित की आँखें बार बार पोंछ रही थी, और कहे जा रही थी, "बस परदेसी, काफी हो गया। मैं औरत हूँ। मैंने भी एक सिपाही को जान के घाट उतार दिया था। मुझे भी बहुत बुरा लगा था। पर मैं ऐसे नहीं रोई। तुम तो मर्द हो। बस भी करो।" ऐसा कह आयेशा ने अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी। रोहितने जब देखा की आयेशाने अपनी कमीज़ उतार दी और वह सिर्फ ब्रा में ही पानी में खड़ीथी, तो वह स्तब्ध हो गए। आयेशाकी कमीज काफी लम्बी थी और करीब करीब पुरे बदन को ढक रही थी। उसके हटने से आयेशा का पतला पेट और पतली छोटी सी कमर बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी। रोहित चुप हो गए। अब उनका ध्यान आयेशा की खिली हुई जवानी पर था। आयेशा की ब्रा उसके उभरे पूरी तरह फुले हुए स्तनोँ को बांध सकनेमें पूरी तरह नाकामियाब थी। पानीमें भीग जाने की वजहसे ब्रा भी आयेशा के स्तनोँ का गोरापन और फुलाव छिपा नहीं पा रही थी।