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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
जीतूजी ने जब देखा की अपर्णा फिर बेहोश हो गयी तो वह घबड़ाये। उन्होंने अपर्णा की छाती पर अपने कान रखे तो उन्हें लगा की शायद अपर्णा की साँस रुक गयी थी। जीतूजी ने फ़ौरन अपर्णा को कृत्रिम साँस (आर्टिफिशल रेस्पिरेशन) देना शुरू किया। जीतू जी ने अपना मुंह अपर्णा के मुंह पर सटा लिया और उसे अपने मुंह से अपनी स्वास उसे देने की कोशिश की। अचानक जीतूजी ने महसूस किया की अपर्णा ने अपनी बाँहें उठाकर जीतूजी का सर अपने हाथों में पकड़ा और जीतूजी के होँठों को अपने होँठों पर कस के दबा कर जीतूजी के होँठों को चूसने लगी।

जीतूजी समझ गए की अपर्णा पूरी तरह से होश में गयी थी और अब वह कुछ रोमांटिक मूड में थी। जीतूजी ने अपना मुँह हटा ने की कोशिश की और बोले, "छोडो, यह क्या कर रही हो?" तब अपर्णा ने कहा, "अब तो मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ तुम अब देखना।"

उधर....

रोहित की आँखों के सामने कितने समय के बाद भी अपर्णा के फिसल कर नदी में गिर जाने का और जीतूजी के छलाँग लगा कर नदी में कूदने का ने का दृश्य चलचित्र की तरह बार बार रहा था। उन्हें बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की उनमें उतना आत्मविश्वास या यूँ कहिये की साहस नहीं था की वह अपनी जान जोखिममें डालकर अपनी बीबी को बचाएं। वह अपने आपको कोस रहे थे की जो वह नहीं कर सके वह जीतूजी ने किया। रोहित ने मन ही मन तय किया की अगर मौक़ा मिला तो वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर अपने अजीज़ को बचाने से चूकेंगे नहीं। आखिर देश की आजादी के लिए कुरबानियां देनी ही पड़तीं हैं। अब आगे अंजाम क्या होगा: अपर्णा ज़िंदा बचती है या नहीं, जीतूजी अपर्णा को बचा पाते हैं या नहीं और क्या जीतूजी खुद बच पाते हौं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा। अब रोहित को तो सिर्फ अपने आप को बचाना था। अचानक ही तीन में से दो लोग जाते रहे। उन्हें ना तो रास्ते का पता था और ना तो कौनसी दिशा में जाना है उसका पता था। जीतूजी के बताये हुए निर्देश पर ही उन्होंने चलना ठीक समझा। रोहित ने अपनी आगे बढ़ने की गति और तेज कर दी। उन्हें सम्हाल के भी चलना था क्यूंकि उन्होंने देखा था की नदी के एकदम करीब चलने में बड़ा ही खतरा था। रोहित की चाल दौड़ में बदल गयी। अब उन्हें बचाने वाले जीतूजी नहीं थे। अब जो भी करना था उन्हें ही करना था। साथ में उनके पास गन भी थी।

अँधेरे में पेड़ों को ढूंढते हुए गिरते लुढ़कते पर जितना तेज चल सके उतनी तेजी से वह आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में कई पत्थर और कीचड़ उनकी गति को धीमी कर देते थे। पर वह चलते रहे चलते रहे। उन्हें कोई दर्द की परवाह नहीं करनी थी, क्यूंकि अगर दुश्मनों ने उनको पकड़ लिया तो उन्हें मालुम था की जो दर्द वह देंगे उसके सामने यह दर्द तो कुछ भी नहीं था। एक तरीके से देखा जाए तो अपर्णा और जीतूजी नदी के तूफ़ान में जरूर फँसे हुए थे पर कमसे कम दुश्मनोंकी फ़ौज से पकडे जाने का डरतो उन्हें नहीं था। ऐसी कई चीज़ों को सोचते हुए अपनी पूरी ताकत से रोहित आगे बढ़ते रहे। चलते चलते करीब चार घंटे से ज्यादा वक्त हो चुका था। सुबह के चार बजने वाले होंगे, ऐसा अनुमान रोहित ने लगाया। रोहित की हिम्मत जवाब देने लगी थी। उनकी ताकत कम होने लगी थी। अब वह चल नहीं रहे थे उनका आत्मबल ही उन्हें चला रहा था। उनको यह होश नहीं था की वह कौनसे रास्ते पर कैसे चल रहे थे। अचानक उन्होंने दूर क्षितिज में बन्दुक की गोलियों की फायरिंग की आवाज सुनी। उन्होंने ध्यान से देखा तो काफी दुरी पर आग की लपटें उठी हुई थी और काफी धुआं आसमान में देखा जा रहा था। साथ ही साथ में दूर से लोगों की दर्दनाक चीखें और कराहट की आवाज भी हल्की फुलकी सुनाईदे रही थी।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 04:27 PM



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