26-12-2019, 04:26 PM
पानी के तेज बहावमें बहते बहते भी अपर्णा जीतूजी से ऐसे लिपट गयी जैसे सालों से कोई बेल एक पेड़ से लिपट रही हो। अपर्णा को यह चिंता नहीं थी की उसका कौनसा अंग जीतूजी के कौनसे अंगसे रगड़ रहाथा। उसके शरीर पर से कपडे फट चुके थे उसका भी उसे कोई ध्यान नहीं था। अपर्णा का टॉप और ब्रा तक फट चूका था। वह जीतूजी के गीले बदन से लिपट कर इतनी अद्भुत सुरक्षा महसूस कर रही थी जितनी उसने शायद ही पहले महसूस की होगी। भँवर में से निकल ने के बाद जीतूजी अब काफी कुछ सम्हल गए थे। अब उनका ध्येय था की कैसे पानी की बहाव का साथ लिए धीरे धीरे कोशिश कर के किनारे की और बढ़ा जाए।
उन्होंने अपर्णा के सर में चुम्बन कर के कहा, "अपर्णा अब तुम मुझे छोड़ कर पानी में तैर कर बह कर किनारे की और जाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे साथ ही हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा।" पर अपर्णा कहाँ मानने वाली थी? अपर्णा को अब कोई तरह की चिंता नहीं थी। अपर्णा ने कहा, "अब इस मुसीबत से आप अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। अब मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूँ। वैसे भी मुझमें तैरने की हिम्मत और ताकत नहीं है। अब आपको किनारे ले जाना है तो ले जाओ और डुबाना है तो डुबाओ।" इतना बोल कर अपर्णा जीतूजी के बदन से लिपटी हुई ही बेहोश हो गयी। अपर्णा काफी थकी हुई थी और उसने काफी पानी भी पी लिया था। जीतूजी धीरे धीरे अपर्णा को अपने बदन से चिपकाए हुए पानी को काटते हुए कम गहराई वाले पानी में पहुँचने लगे और फिर तैरते, हाथ पाँव मारते हुए गिरते सम्हलते कैसे भी किनारे पहुँच ही गए। किनारे पहुँचते ही जीतूजी अपर्णा के साथ ही गीली मिटटी में ही धड़ाम से गिर पड़े। अपर्णा बेहोशी की हालत में थी। जीतूजी भी काफी थके हुए थे। वह भी थकान के मारे गिर पड़े। अपर्णा ने बेहोशी की हालत में भी जीतूजी का बदन कस के जकड रखा था और किनारे पर भी वह जीतूजी के साथ ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी गोंद से उसे जीतू जी से चिपका दिया गया हो। दोनों एक दूसरे से के बाजू में एकदूसरे से लिपटे हुए भारी बारिश में लेटे हुए थे।
उस समय उन दोनों में से किसी को यह चिंता नहीं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नहीं था। बल्कि उन्हें यह भी चिंता नहीं थी की कई रेंगते हुए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे। जीतूजी ने बेहोश अपर्णा को धीरे से अपने से अलग किया। उन्होंने देखा की अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। जीतूजी ने पानी में से निकलने के बाद पहली बार अपर्णा के पुरे बदन को नदी के किनारे पर बेफाम लेटे हुए देखा। अपर्णा का स्कर्ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघें पूरी तरह से नंगी दिख रही थी। अपर्णा की छोटी से पैंटी उसकी चूत के उभार को छुपाये हुए थी। अपर्णा का टॉप पूरा फट गया था और अपर्णाकी छाती पर बिखरा हुआ था। उसकी ब्रा को कोई अतापता नहीं था। अपर्णाके मदमस्त स्तन पूरी तरह आज़ाद फुले हुए हलके हलके झोले खा रहे थे। पर जीतूजी को यह सब से ज्यादा चिंता थी अपर्णा के हालात की। उन्होंने फ़ौरन अपर्णा के बदन को अपनी दो जाँघों के बिच में लिया और वह अपर्णा के ऊपर चढ़ गए। दूर से देखने वाला तो यह ही सोचता की जीतूजी अपर्णा को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़े हुए थे। अपर्णा का हाल भी तो ऐसा ही था। वह लगभग नंगी लेटी हुई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को छिपाने वाला पैंटी का एक फटा हुआ टुकड़ा ही था और फटा हुआ टॉप इधरउधर बदन पर फैला हुआ था जिसे जीतूजी चाहते तो आसानी से हटा कर फेंक सकते थे।
जीतूजी ने अपर्णा के बूब्स के ऊपर अपने दोनों हाथलियाँ टिकायीं और अपने पुरे बदन का वजन देकर दोनों ही बूब्स को जोर से दबाते हुए पानी निकालने की कोशिश शुरू की। पहले वह बूब्स को ऊपर से वजन देकर दबाते और फिर उसे छोड़ देते। तीन चार बार ऐसा करने पर एकदम अपर्णा ने जोर से खांसी खाते हुए काफी पानी उगल ना शुरू किया। पानी उगल ने के बाद अपर्णा फिर बेहोश हो गयी।
उन्होंने अपर्णा के सर में चुम्बन कर के कहा, "अपर्णा अब तुम मुझे छोड़ कर पानी में तैर कर बह कर किनारे की और जाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे साथ ही हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा।" पर अपर्णा कहाँ मानने वाली थी? अपर्णा को अब कोई तरह की चिंता नहीं थी। अपर्णा ने कहा, "अब इस मुसीबत से आप अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। अब मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूँ। वैसे भी मुझमें तैरने की हिम्मत और ताकत नहीं है। अब आपको किनारे ले जाना है तो ले जाओ और डुबाना है तो डुबाओ।" इतना बोल कर अपर्णा जीतूजी के बदन से लिपटी हुई ही बेहोश हो गयी। अपर्णा काफी थकी हुई थी और उसने काफी पानी भी पी लिया था। जीतूजी धीरे धीरे अपर्णा को अपने बदन से चिपकाए हुए पानी को काटते हुए कम गहराई वाले पानी में पहुँचने लगे और फिर तैरते, हाथ पाँव मारते हुए गिरते सम्हलते कैसे भी किनारे पहुँच ही गए। किनारे पहुँचते ही जीतूजी अपर्णा के साथ ही गीली मिटटी में ही धड़ाम से गिर पड़े। अपर्णा बेहोशी की हालत में थी। जीतूजी भी काफी थके हुए थे। वह भी थकान के मारे गिर पड़े। अपर्णा ने बेहोशी की हालत में भी जीतूजी का बदन कस के जकड रखा था और किनारे पर भी वह जीतूजी के साथ ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी गोंद से उसे जीतू जी से चिपका दिया गया हो। दोनों एक दूसरे से के बाजू में एकदूसरे से लिपटे हुए भारी बारिश में लेटे हुए थे।
उस समय उन दोनों में से किसी को यह चिंता नहीं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नहीं था। बल्कि उन्हें यह भी चिंता नहीं थी की कई रेंगते हुए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे। जीतूजी ने बेहोश अपर्णा को धीरे से अपने से अलग किया। उन्होंने देखा की अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। जीतूजी ने पानी में से निकलने के बाद पहली बार अपर्णा के पुरे बदन को नदी के किनारे पर बेफाम लेटे हुए देखा। अपर्णा का स्कर्ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघें पूरी तरह से नंगी दिख रही थी। अपर्णा की छोटी से पैंटी उसकी चूत के उभार को छुपाये हुए थी। अपर्णा का टॉप पूरा फट गया था और अपर्णाकी छाती पर बिखरा हुआ था। उसकी ब्रा को कोई अतापता नहीं था। अपर्णाके मदमस्त स्तन पूरी तरह आज़ाद फुले हुए हलके हलके झोले खा रहे थे। पर जीतूजी को यह सब से ज्यादा चिंता थी अपर्णा के हालात की। उन्होंने फ़ौरन अपर्णा के बदन को अपनी दो जाँघों के बिच में लिया और वह अपर्णा के ऊपर चढ़ गए। दूर से देखने वाला तो यह ही सोचता की जीतूजी अपर्णा को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़े हुए थे। अपर्णा का हाल भी तो ऐसा ही था। वह लगभग नंगी लेटी हुई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को छिपाने वाला पैंटी का एक फटा हुआ टुकड़ा ही था और फटा हुआ टॉप इधरउधर बदन पर फैला हुआ था जिसे जीतूजी चाहते तो आसानी से हटा कर फेंक सकते थे।
जीतूजी ने अपर्णा के बूब्स के ऊपर अपने दोनों हाथलियाँ टिकायीं और अपने पुरे बदन का वजन देकर दोनों ही बूब्स को जोर से दबाते हुए पानी निकालने की कोशिश शुरू की। पहले वह बूब्स को ऊपर से वजन देकर दबाते और फिर उसे छोड़ देते। तीन चार बार ऐसा करने पर एकदम अपर्णा ने जोर से खांसी खाते हुए काफी पानी उगल ना शुरू किया। पानी उगल ने के बाद अपर्णा फिर बेहोश हो गयी।