26-12-2019, 04:25 PM
अब वह ठंडे दिमाग से सोचनी लगी की जो ख़तरा सामने है उससे कैसे छुटकारा पाया जाये और कैसे जीतूजी के करीब जाया जाये ताकि जीतूजी उसे उस तेज बहाव से उसे बाहर निकाल सकें। अब सवाल यह था की इतने तेज बहाव में कैसे अपने बहने की गति कम की जाए ताकि जीतूजी के करीब पहुंचा जासके। अपर्णा जानती थी की उसे ना तो तैराकी आती थी नाही उसके अंदर इतनी क्षमता थी की पानी के बहाव के विरूद्ध वह तैर सके।
उसे अपने आप को डूबनेसे भी बचाना था। उसके लिए एक ही रास्ता था। जो जीतूजी ने उसे उस दिन झरने में तैरने के समय सिखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डूबने का डर बिलकुल मन में ना रहे। अपर्णा ने तैरने की कोशिश ना करके अपने बदन को पानी में खुल्ला छोड़ दिया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुर्दा सोता है। पानी का बहाव उसे स्वयं अपने साथ खींचे जा रहा था। अब उसकी प्राथमिकता थी की अपनी गति को कम करे अथवा कहीं रुक जाए। अपने बलबूते पर तो अपर्णा यह कर नहीं सकती थी। कहावत है ना की "हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा।" यानी अगर आप हिम्मत करेंगे तो खुदा भी आपकी मदद करेगा। उसी समय उसको दूर एक पेड़ जैसा दिखाई दिया जो नदी में डूबा हुआ था पर नदी के साथ बह नहीं रहा था। इसका मतलब यह हुआ की पेड़ जमीन में गड़ा हुआ था और अगर अपर्णा उस पेड़ के पास पहुँच पायी तो उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है जिससे जीतूजी जो पीछे से बहते हुए आ रहे थे वह उसे मिल पाएंगे। अपर्णा ने अपने आपको पेड़ की सीध में लिया ताकि कोशिश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से टकराने से बचाना भी था। बहते बहते अपर्णा पेड़ के पास पहुँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंचें आयीं और उस चक्कर में उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की अपर्णा अपनी गति रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती हुई अपना स्थान कायम कर सकी। अपर्णा ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ रक्खा। अब सारा पानी तेजी से उसके पास से बहता हुआ जा रहा था। पर क्यूंकि उसने अपने आपको पेड़ की डालों के बिच में फाँस रक्खा था तो वह बह नहीं रही थी। अपर्णा ने कई डालियाँ, पौधे और कुछ लकड़ियां भी बहते हुए देखीं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खिंच रहा था पर वह टस की मस नहीं हो रही थी।
हालांकि उसके हाथ अब पानी के सख्त बहाव का अवरोध करते हुए कमजोर पड़ रहे थे। अपर्णा की हथेली छील रही थी और उसे तेज दर्द हो रहा था। फिर भी अपर्णा ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ही देर में अपर्णा को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। जीतूजी जोर शोर से "अपर्णा..... अपर्णा.... तुम कहाँ हो?" की आवाज से चिल्ला रहे थे और इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा को दूर जीतूजी का इधर उधर फैलता हुआ हाथ का साया दिखाई दिया। अपर्णा फ़ौरन जीतूजी के जवाब में जोर शोर से चिल्लाने लगी, "जीतूजी!! जीतूजी....... जीतूजी..... मैं यहां हूँ।" चिल्लाते चिल्लाते अपर्णा अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से हिलाने लगी। अपर्णा को जबरदस्त राहत हुई जब जीतूजी ने जवाब दिया, "तुम वहीँ रहो। मैं वहीँ पहुंचता हूँ। वहाँ से मत हिलना।"
पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही अपर्णा ने अपने हाथ हिलाने के लिए ऊपर किये और जीतूजी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और देखते ही देखते वह पानी के तेज बहाव में फिर से बहने लगी। जीतूजी ने भी देखा की अपर्णा फिर से बहाव में बहने लगी थी। उन्हें कुछ निराशा जरूर हुई पर चूँकि अब अपर्णा को उन्होंने देख लिया था तो उनमें एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया था की जरूर वह अपर्णा को बचा पाएंगे। उन्होंने अपने तैरने की गति और तेज कर दी। अपर्णा और उनके बिच का फासला कम हो रहा था क्यूंकि अपर्णा बहाव के सामने तैरने की कोशिश कर रही थी और जीतूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। देखते ही देखते जीतूजी अपर्णा के पास पहुंचे ही थे की अचानक अपर्णा एक भँवर में जा पहुंची और उस के चक्कर में फँस गयी। जीतूजीने देखा की अपर्णा पानी के अंदर रुक गयी पर एक ही जगह भँवर के कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी में खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर में फंसना मतलब अच्छे खासे तैराक के लिए भी जानका खतरा हो सकता था।
उसे अपने आप को डूबनेसे भी बचाना था। उसके लिए एक ही रास्ता था। जो जीतूजी ने उसे उस दिन झरने में तैरने के समय सिखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डूबने का डर बिलकुल मन में ना रहे। अपर्णा ने तैरने की कोशिश ना करके अपने बदन को पानी में खुल्ला छोड़ दिया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुर्दा सोता है। पानी का बहाव उसे स्वयं अपने साथ खींचे जा रहा था। अब उसकी प्राथमिकता थी की अपनी गति को कम करे अथवा कहीं रुक जाए। अपने बलबूते पर तो अपर्णा यह कर नहीं सकती थी। कहावत है ना की "हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा।" यानी अगर आप हिम्मत करेंगे तो खुदा भी आपकी मदद करेगा। उसी समय उसको दूर एक पेड़ जैसा दिखाई दिया जो नदी में डूबा हुआ था पर नदी के साथ बह नहीं रहा था। इसका मतलब यह हुआ की पेड़ जमीन में गड़ा हुआ था और अगर अपर्णा उस पेड़ के पास पहुँच पायी तो उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है जिससे जीतूजी जो पीछे से बहते हुए आ रहे थे वह उसे मिल पाएंगे। अपर्णा ने अपने आपको पेड़ की सीध में लिया ताकि कोशिश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से टकराने से बचाना भी था। बहते बहते अपर्णा पेड़ के पास पहुँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंचें आयीं और उस चक्कर में उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की अपर्णा अपनी गति रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती हुई अपना स्थान कायम कर सकी। अपर्णा ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ रक्खा। अब सारा पानी तेजी से उसके पास से बहता हुआ जा रहा था। पर क्यूंकि उसने अपने आपको पेड़ की डालों के बिच में फाँस रक्खा था तो वह बह नहीं रही थी। अपर्णा ने कई डालियाँ, पौधे और कुछ लकड़ियां भी बहते हुए देखीं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खिंच रहा था पर वह टस की मस नहीं हो रही थी।
हालांकि उसके हाथ अब पानी के सख्त बहाव का अवरोध करते हुए कमजोर पड़ रहे थे। अपर्णा की हथेली छील रही थी और उसे तेज दर्द हो रहा था। फिर भी अपर्णा ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ही देर में अपर्णा को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। जीतूजी जोर शोर से "अपर्णा..... अपर्णा.... तुम कहाँ हो?" की आवाज से चिल्ला रहे थे और इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा को दूर जीतूजी का इधर उधर फैलता हुआ हाथ का साया दिखाई दिया। अपर्णा फ़ौरन जीतूजी के जवाब में जोर शोर से चिल्लाने लगी, "जीतूजी!! जीतूजी....... जीतूजी..... मैं यहां हूँ।" चिल्लाते चिल्लाते अपर्णा अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से हिलाने लगी। अपर्णा को जबरदस्त राहत हुई जब जीतूजी ने जवाब दिया, "तुम वहीँ रहो। मैं वहीँ पहुंचता हूँ। वहाँ से मत हिलना।"
पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही अपर्णा ने अपने हाथ हिलाने के लिए ऊपर किये और जीतूजी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और देखते ही देखते वह पानी के तेज बहाव में फिर से बहने लगी। जीतूजी ने भी देखा की अपर्णा फिर से बहाव में बहने लगी थी। उन्हें कुछ निराशा जरूर हुई पर चूँकि अब अपर्णा को उन्होंने देख लिया था तो उनमें एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया था की जरूर वह अपर्णा को बचा पाएंगे। उन्होंने अपने तैरने की गति और तेज कर दी। अपर्णा और उनके बिच का फासला कम हो रहा था क्यूंकि अपर्णा बहाव के सामने तैरने की कोशिश कर रही थी और जीतूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। देखते ही देखते जीतूजी अपर्णा के पास पहुंचे ही थे की अचानक अपर्णा एक भँवर में जा पहुंची और उस के चक्कर में फँस गयी। जीतूजीने देखा की अपर्णा पानी के अंदर रुक गयी पर एक ही जगह भँवर के कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी में खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर में फंसना मतलब अच्छे खासे तैराक के लिए भी जानका खतरा हो सकता था।