26-12-2019, 04:23 PM
यह कह कर उन्होंने रोहित की और बंदूक फेंकी और जोर से चिल्लाते हुए रोहित से कहा, "आप इसे सम्हालो, आप बिलकुल चिंता मत करो मैं अपर्णा को बचा कर ले आऊंगा। आप तेजी से आगे बढ़ो और नदी के किनारे किनारे पेड़ के पीछे छुपते छुपाते आगे बढ़ते रहो और सरहद पार कर कैंप में पहुंचो। भगवान् ने चाहा तो मैं आपको अपर्णा के साथ कैंप में मिलूंगा।" ऐसा कह कर जीतूजी ने ऊपर से छलाँग लगाई और निचे नदी के पुरजोर बहाव में कूद पड़े। रोहित को पानी में जीतूजी के गिरने की आवाज सुनाई दी और फिर नदी के बहाव के शोर के कारण और कुछ नहीं सुनाई दिया।
रोहितका सर इतनी तेजीसे हो रहे सारे घटनाचक्र के कारण चकरा रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे की अचानक यह क्या हो रहा था? एक सेकंड में ही कैसे बाजी पलट जाती है। जिंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते हैं? क्या हम कह सकते हैं की अगले पल क्या होगा? जिंदगी के यह उतार चढ़ाव "कभी ख़ुशी, कभी गम" और "कल हो ना हो" जैसे लग रहे थे। वह थोड़ी देर स्तब्ध से वहीँ खड़े रहे। फिर उनको जीतूजी की सिख याद आयी की उन्हें फुर्ती से बिना समय गँवाये आगे बढ़ना था। रोहित की सारी थकान गायब हो गयी और लगभग दौड़ते हुए वह आगे की और अग्रसर हुए। जहां तक हो सके वह नदी के किनारे पेड़ों और जंगल के रास्ते ही चल रहे थे जिससे उन्हें आसानी से देखा ना जा सके। अँधेरा छटने तक रास्ता तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उन्हें कहीं छुपना भी पड़े।
जीतूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी में कूद पड़े। पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी में कई जगह पानी में चक्रवात (माने भँवर) भी थे जिसमें अगर फ़ँस गए तो किसी नौसिखिये के लिए तो वह मौत का कुआं ही साबित हो सकता था। ऐसे भँवर में तो अच्छे अच्छे तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते हुए जीतूजी आगे तैर रहे थे। किस्मत से पानी का बहाव उनके पक्षमें था। माने उनको तैरने के लिए कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं थी। पर उन्हें अपर्णा को बचाना था। वह दूर दूर तक नजर दौड़ा कर अपर्णा को ढूंढ ने लगे। पर उनको अपर्णा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश में था। अपर्णा के फिसलने और जीतूजी के कूदने के बिच जो दो मिनट का फासला रहा उसमें नदी के बहाव में पता नहीं अपर्णा कितना आगे बह के निकल गयी होगी। जीतूजी को यह डर था की अपर्णा को तैरना तो आता नहीं था तो फिर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी चिंता उन्हें खाये जा रही थी। जीतूजी ने जोर से पानी में आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ में यह देखते भी रहे की पानी के बहाव में अपर्णा कहीं किनारे की और तो नहीं चली गयी? पानी का बहाव जितना जीतूजी को आगे अपर्णा के करीब ले जा रहा था उतना ही अपर्णा को भी तेजी से जीतूजी से दूर ले जा रहा था। अपर्णा ने जीतूजी के चिल्लाने की और उसे बचाने के लिए वह आ रहे हैं, यह कहते हुए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नहींथा की नदी का इतना भयावह रूप देख कर वह अपनी जान इस तरह जोखिम में डालेंगे।
थोड़ी दूर निकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव में बहते हुए अपर्णा ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के देखा तो अँधेरे में ही जीतूजी की परछाईं नदी में कूदते हुए देखि। उसे पूरा भरोसा नहींथा की जीतूजी उसके पीछे कूदेंगे। इतने तेज पानी के बहाव में कूदना मौत के मुंह में जाने के जैसा था। पर जब अपर्णा ने देखा की जीतूजी ने अपनी जान की परवाह नाकर उसे बचाने के लिए इतने पुरजोश बहाव में पागल की तरह बहती नदी में कूद पड़े तो अपर्णा के ह्रदय में क्या भाव हुए वह वर्णन करना असंभव था। उस हालात में अपर्णा को अपने पति से भी उम्मीद नहीं थी की वह उसे बचाने के लिए ऐसे कूद पड़ेंगे। अपर्णा को तब लगा की उसे जितना अपने पति पर भरोसा नहीं था उतना जीतूजी के प्रति था। उसे पूरा भरोसा हो गया की जीतूजी उसे जरूर बचा लेंगे। वह जानती थी की जीतूजी कितने दक्ष तैराक थे। अपर्णा का सारा डर जाता रहा। उसका दिमाग जो एक तरहसे अपनी जान बचाने के लिए त्रस्त था, परेशान था; अब वह अपनी जान के खतरे से निश्चिन्त हो गया।
रोहितका सर इतनी तेजीसे हो रहे सारे घटनाचक्र के कारण चकरा रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे की अचानक यह क्या हो रहा था? एक सेकंड में ही कैसे बाजी पलट जाती है। जिंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते हैं? क्या हम कह सकते हैं की अगले पल क्या होगा? जिंदगी के यह उतार चढ़ाव "कभी ख़ुशी, कभी गम" और "कल हो ना हो" जैसे लग रहे थे। वह थोड़ी देर स्तब्ध से वहीँ खड़े रहे। फिर उनको जीतूजी की सिख याद आयी की उन्हें फुर्ती से बिना समय गँवाये आगे बढ़ना था। रोहित की सारी थकान गायब हो गयी और लगभग दौड़ते हुए वह आगे की और अग्रसर हुए। जहां तक हो सके वह नदी के किनारे पेड़ों और जंगल के रास्ते ही चल रहे थे जिससे उन्हें आसानी से देखा ना जा सके। अँधेरा छटने तक रास्ता तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उन्हें कहीं छुपना भी पड़े।
जीतूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी में कूद पड़े। पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी में कई जगह पानी में चक्रवात (माने भँवर) भी थे जिसमें अगर फ़ँस गए तो किसी नौसिखिये के लिए तो वह मौत का कुआं ही साबित हो सकता था। ऐसे भँवर में तो अच्छे अच्छे तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते हुए जीतूजी आगे तैर रहे थे। किस्मत से पानी का बहाव उनके पक्षमें था। माने उनको तैरने के लिए कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं थी। पर उन्हें अपर्णा को बचाना था। वह दूर दूर तक नजर दौड़ा कर अपर्णा को ढूंढ ने लगे। पर उनको अपर्णा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश में था। अपर्णा के फिसलने और जीतूजी के कूदने के बिच जो दो मिनट का फासला रहा उसमें नदी के बहाव में पता नहीं अपर्णा कितना आगे बह के निकल गयी होगी। जीतूजी को यह डर था की अपर्णा को तैरना तो आता नहीं था तो फिर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी चिंता उन्हें खाये जा रही थी। जीतूजी ने जोर से पानी में आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ में यह देखते भी रहे की पानी के बहाव में अपर्णा कहीं किनारे की और तो नहीं चली गयी? पानी का बहाव जितना जीतूजी को आगे अपर्णा के करीब ले जा रहा था उतना ही अपर्णा को भी तेजी से जीतूजी से दूर ले जा रहा था। अपर्णा ने जीतूजी के चिल्लाने की और उसे बचाने के लिए वह आ रहे हैं, यह कहते हुए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नहींथा की नदी का इतना भयावह रूप देख कर वह अपनी जान इस तरह जोखिम में डालेंगे।
थोड़ी दूर निकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव में बहते हुए अपर्णा ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के देखा तो अँधेरे में ही जीतूजी की परछाईं नदी में कूदते हुए देखि। उसे पूरा भरोसा नहींथा की जीतूजी उसके पीछे कूदेंगे। इतने तेज पानी के बहाव में कूदना मौत के मुंह में जाने के जैसा था। पर जब अपर्णा ने देखा की जीतूजी ने अपनी जान की परवाह नाकर उसे बचाने के लिए इतने पुरजोश बहाव में पागल की तरह बहती नदी में कूद पड़े तो अपर्णा के ह्रदय में क्या भाव हुए वह वर्णन करना असंभव था। उस हालात में अपर्णा को अपने पति से भी उम्मीद नहीं थी की वह उसे बचाने के लिए ऐसे कूद पड़ेंगे। अपर्णा को तब लगा की उसे जितना अपने पति पर भरोसा नहीं था उतना जीतूजी के प्रति था। उसे पूरा भरोसा हो गया की जीतूजी उसे जरूर बचा लेंगे। वह जानती थी की जीतूजी कितने दक्ष तैराक थे। अपर्णा का सारा डर जाता रहा। उसका दिमाग जो एक तरहसे अपनी जान बचाने के लिए त्रस्त था, परेशान था; अब वह अपनी जान के खतरे से निश्चिन्त हो गया।