26-12-2019, 04:23 PM
वैसे ही चारों और काफी अन्धेरा था। आकाश में काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी। आगे रास्ता साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। दिन की गर्मी की जगह अब ठंडा मौसम हो रहा था। जीतूजी ने रोहित का हाथ थामा और उनके हाथोंमें कालिया की बंदूक थमा दी। जीतू जी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा तुम सबसे आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। आखिर में रोहित चलेंगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलेंगे और एक दूसरे के बिच में कुछ फैसला रखेंगे ताकि यदि दुश्मन की गोली का फायरिंग हो तो छुप सकें और अगर एक को लग जाए तो दुसरा सावधान हो जाए।" फिर जीतूजी रोहित की और घूम कर बोले, "रोहित अगर हमें कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इस्तेमाल करने से चूकना नहीं। अब हमें बड़ी फुर्ती से भाग निकलना है। हमारे पास ज्यादा से ज्यादा सुबह के पांच बजे तकका समय है। शायद उतना समय भी ना मिले। पर सुबह होते ही सब हमें ढूंढने में लग जाएंगे। तब तक कैसे भी हमें सरहद पार कर हमारे मुल्क की सरहद में पहुँच जाना है।"
रोहित ने बंदूक अपने हाथ में लेते हुए कहा, "यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नहीं। मुझे बंदूक चलाना आता ही नहीं।" जीतूजी थोड़ा सा चिढ कर बोल उठे, "काश! यहां आपको बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने का थोड़ा ज्यादा समय होता। खैर यह देखिये......." ऐसा कह कर जीतूजी ने रोहित को करीब पाँच मिनट बंदूक का सेफ्टी कैच कैसे खोलते हैं, गोली दागने के समय कैसे पोजीशन लेते हैं, गोली का निशाना कैसे लेतेहैं वह सब समझाया। जीतूजी ने आखिर में कहा, "रोहित, हम सबको नदी के किनारे किनारे ही चलना है क्यूंकि आगे चलकर इसी नदी के किनारे हमारा कैंप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की आराम करने के लिए भी हम लोग किसी झाडी में छुप कर ही आराम करेंगे ताकि अगर दुश्मन हमारे करीब पहुँच जाए तो भी वह आसानी से हमें ढूंढ ना सके।" काफी अँधेरा था और रोहित को क्या समझ आया क्या नहीं वह तो वह ही जाने पर आखिर में रोहित ने कहा, "जीतूजी, फिलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही रखिये। वक्त आने पर मैं इसे आप से ले लूंगा। अब मैं सबसे आगे चलता हूँ आप अपर्णा के पीछे पीछे चलिए।"
रोहित ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे अपर्णा और सबसे पीछे जीतूजी गन को हाथ में लेकर चल दिए। बारिश काफी तेज होने लगी थी। रास्ता चिकना और फिसलन वाला हो रहा था। तेज बारिश और अँधेरे के कारण रास्ता ठीक नजर नहीं आ रहा था। कई जगह रास्ता ऊबड़खाबड़ था। वास्तव में रास्ता था ही नहीं। रोहित नदीके किनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ध्यान से देख कर चल रहे थे। नदीमें पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रास्ता थोड़ी दूर चला जाता था तो कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।
उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया होगा। वह काफी आगे निकल चुके थे। रोहित काफी थकान महसूस कर रहे थे। चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। ऐसे ही चलते चलते रोहित एक नदी के बिलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे थे। रोहित आगे निकल गए, पर अपर्णा का पाँव फिसला क्यूंकि अपर्णा के पाँव के निचे की मिटटी नदी के बहाव में धँस गयी और देखते ही देखते अपर्णा को जैसे जमीन निगल गयी। पीछे आ रहे जीतूजी ने देखा की अपर्णा के पाँव के निचे से जमीन धँस गयी थी और अपर्णा नदी के बहावमें काफी निचे जा गिरी। गिरते गिरते अपर्णा के मुंह से जोरों की चीख निकल गयी, "जीतूजी बचाओ.......... जीतूजी बचाओ........." जोर जोर से चिल्लाने लगी, और कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी के बहाव में अपर्णा गायब हो गयी।" उसी समय जीतूजीने जोरसे चिल्लाकर अपर्णा को कहा, "अपर्णा, डरना मत, मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।"
रोहित ने बंदूक अपने हाथ में लेते हुए कहा, "यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नहीं। मुझे बंदूक चलाना आता ही नहीं।" जीतूजी थोड़ा सा चिढ कर बोल उठे, "काश! यहां आपको बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने का थोड़ा ज्यादा समय होता। खैर यह देखिये......." ऐसा कह कर जीतूजी ने रोहित को करीब पाँच मिनट बंदूक का सेफ्टी कैच कैसे खोलते हैं, गोली दागने के समय कैसे पोजीशन लेते हैं, गोली का निशाना कैसे लेतेहैं वह सब समझाया। जीतूजी ने आखिर में कहा, "रोहित, हम सबको नदी के किनारे किनारे ही चलना है क्यूंकि आगे चलकर इसी नदी के किनारे हमारा कैंप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की आराम करने के लिए भी हम लोग किसी झाडी में छुप कर ही आराम करेंगे ताकि अगर दुश्मन हमारे करीब पहुँच जाए तो भी वह आसानी से हमें ढूंढ ना सके।" काफी अँधेरा था और रोहित को क्या समझ आया क्या नहीं वह तो वह ही जाने पर आखिर में रोहित ने कहा, "जीतूजी, फिलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही रखिये। वक्त आने पर मैं इसे आप से ले लूंगा। अब मैं सबसे आगे चलता हूँ आप अपर्णा के पीछे पीछे चलिए।"
रोहित ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे अपर्णा और सबसे पीछे जीतूजी गन को हाथ में लेकर चल दिए। बारिश काफी तेज होने लगी थी। रास्ता चिकना और फिसलन वाला हो रहा था। तेज बारिश और अँधेरे के कारण रास्ता ठीक नजर नहीं आ रहा था। कई जगह रास्ता ऊबड़खाबड़ था। वास्तव में रास्ता था ही नहीं। रोहित नदीके किनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ध्यान से देख कर चल रहे थे। नदीमें पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रास्ता थोड़ी दूर चला जाता था तो कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।
उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया होगा। वह काफी आगे निकल चुके थे। रोहित काफी थकान महसूस कर रहे थे। चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। ऐसे ही चलते चलते रोहित एक नदी के बिलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे थे। रोहित आगे निकल गए, पर अपर्णा का पाँव फिसला क्यूंकि अपर्णा के पाँव के निचे की मिटटी नदी के बहाव में धँस गयी और देखते ही देखते अपर्णा को जैसे जमीन निगल गयी। पीछे आ रहे जीतूजी ने देखा की अपर्णा के पाँव के निचे से जमीन धँस गयी थी और अपर्णा नदी के बहावमें काफी निचे जा गिरी। गिरते गिरते अपर्णा के मुंह से जोरों की चीख निकल गयी, "जीतूजी बचाओ.......... जीतूजी बचाओ........." जोर जोर से चिल्लाने लगी, और कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी के बहाव में अपर्णा गायब हो गयी।" उसी समय जीतूजीने जोरसे चिल्लाकर अपर्णा को कहा, "अपर्णा, डरना मत, मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।"