26-12-2019, 04:21 PM
पलंग पर से दोनों मर्दों की खर्राटें सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही गद्दा बिछा हुआ था। उस गद्दे पर अपर्णा सोइ होगी ऐसा कालिया ने मान लिया। उसे अँधेरे में कुछ ज्यादा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। अंदर आते ही कालिया ने अपनी बन्दुक दरवाजे से थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे रक्खी और अपर्णा को अपनी बाहों में लेनेके लिये अपर्णाकी और कमरेके अंदर आगे बढ़ा। कालिया जैसे ही अपर्णा के करीब पहुंचा की जीतूजी और रोहित दोनों पलंग पर रक्खे गद्दे को लेकर कालिया पर टूट पड़े। एक ही जबर दस्त झटके में दोनों ने कालिया को गिरा दिया और गद्दे में दबोच लिया जिससे उसके मुंह से कोई आवाज निकल ना सके।
अपर्णा ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। जीतूजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और अपर्णा के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, "अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?" कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, "ठीक है।" कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, "चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।" कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे रोहित और अपर्णा चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने अपर्णा को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।
अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे। जब कालियाने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए। हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था। जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा। कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।
रोहित और अपर्णा ने जीतूजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, "यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।" जीतूजी का सोचने का तरिका सुनकर अपर्णा जीतूजी की कायल हो गयी। जीतूजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। रोहित भी जीतूजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।
अपर्णा ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। जीतूजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और अपर्णा के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, "अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?" कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, "ठीक है।" कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, "चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।" कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे रोहित और अपर्णा चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने अपर्णा को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।
अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे। जब कालियाने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए। हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था। जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा। कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।
रोहित और अपर्णा ने जीतूजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, "यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।" जीतूजी का सोचने का तरिका सुनकर अपर्णा जीतूजी की कायल हो गयी। जीतूजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। रोहित भी जीतूजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।