26-12-2019, 04:19 PM
अपर्णा जीतूजी के करारे बदन को देखती ही रही। उनके बाजुओंके शशक्त माँसपेशियाँ, उनका लंबा कद, उनके घने घुंघराले बाल और छाती पर बालों का घना जंगल कोई भी स्त्री को मोहित करने वाला था। निक्कर में से उनका फनफनाते लण्ड का आकार साफ़ साफ़ दिख रहा था। जीतूजी की सपाट गाँड़ और चौड़े सीने के निचे सिमटा हुआ कई सिलवटदार पेट जीतूजी की फिटनेस का गवाह था। जाहिर था की वह किसी भी औरत को चुदाई कर के पूरी तरह संतुष्ट करने में शक्षम लग रहे थे। रोहित भी नहाकर जीतूजी की ही तरह निक्कर पहनकर आगये। रोहित की निक्कर गीली होने से उनका लण्ड तो जैसे नंगा सा ही दिख रहा था। अपर्णा ने उन्हें एक हल्का सा धक्का मारकर हलकी सी हंसी दे कर जीतूजी ना सुने ऐसे कहा, "अरे तुम देखो तो, तुम्हारा यह घण्टा कैसा नंगा दिखता है।" रोहित ने भी हंसी हंसी में अपर्णा के कानों में कहा, "अच्छा? तू हम दोनों के घण्टे ही देखती रहती हो क्या?" फिर वह पलंग पार जा कर लेट गए। अपने पति की बात सुनकर शर्म से लाल लाल हुई अपर्णा आखिर में नहाने गयी।
अपर्णा का पूरा बदन दर्द कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रास्ते में कालिया का मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ को कुरेद रहा था। अगर अपर्णा के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कालिया अपर्णा की पैंटी ऊपर करके अपना मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ में डाल ही देता। हर बार जब कालिया अपर्णा की कमर से उसका स्कर्ट ऊपर और पैंटी निचे खिसका ने की कोशिश करता, अपर्णा उसका हाथ पकड़ लेती, जिससे कालिया अपर्णा के चिल्लाने के डर से कुछ नहीं कर पाया था। अपर्णा ने बाथरूम में जाने के पहले कमरे की सारी बत्तियां बुझा दीं। फिर बाथरूम का दरवाजा बंद कर सारे कपडे निकाल कर पानी और साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ किया। वह कालिये की पसीने और उसके लण्ड की चिकनाहट की बदबू से निजाद पाने की कोशिश में थी। अच्छी तरह साफ़ होने के बाद अपर्णा सिर्फ अपनी पैंटी पहन कर बाहर निकली। उसने अपनी स्कर्ट और टॉप अच्छी तरह धो कर निचोड़ कर अपने साथ लेली ताकि उसे कहीं सूखा सके। नहा कर बाहर निकलते हुए अपर्णा ने जब हलके से बाथरूम का दरवाजा खोल कर देखा की कमरे में अन्धेरा था। अपर्णा चुपचाप पलंग की और अपने पति के पास पहुंची।
जैसे जैसे अपर्णा की आँखें अँधेरे से वाकिफ हुईं तो उसे कुछ कुछ दिखने लगा। अपर्णा ने देखा की जीतूजी सोये नहीं थे बल्कि बैठे हुए थे। ब्रा और पैंटी पहने हुए होने के कारण अपर्णा को बड़ी शर्म महसूस हो रही थी। शायद जीतूजी की आँखें बंद थीं। अपर्णा बिना आवाज किये कम्बल के अंदर अपने पति के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पति की निक्कर में फ़ैल रहे लण्ड से टकराया। जीतूजी रोहित की दूसरी तरफ बैठे हुए कुछ गहरी सोचमें डूबे हुए लग रहे थे। अपर्णा के पलंग में घुसते ही रोहित ने अपर्णा की भारी सी चूँचियों को सहलाने लगे। इतनी ही देर में सब चौंक गए जब बाहर से कालिया की "अपर्णा.... अपर्णा" गुर्राने की आवाज सुनाई पड़ी।
कालिया की आवाज सुनकर अपर्णा डर के मारे कम्बल में घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर जीतूजी बोले, "मेरी बात ध्यान से सुनो। हम यहां से बाहर निकल कर भाग सकते हैं। और वह भेड़िये हाउण्ड भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित और अपर्णा अचम्भे से उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गए। जीतूजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "अगर अपर्णा हमारी मदद करे तो।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित बोले, "हाँ अपर्णा मदद क्यों नहीं करेगी? क्या रास्ता है, बताओ तो?" जीतूजी ने कहा, "अपर्णा को कालिया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।" जीतूजी की बात सुनकर अपर्णा अकुला कर बोली, "कभी नहीं। अगर मैं उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह राक्षस मुझे छोड़ेगा नहीं। मैं जानती हूँ पुरे रास्ते मैंने क्या भुगता है। वह वहीं का वहीं मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डालेगा।"
अपर्णा का पूरा बदन दर्द कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रास्ते में कालिया का मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ को कुरेद रहा था। अगर अपर्णा के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कालिया अपर्णा की पैंटी ऊपर करके अपना मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ में डाल ही देता। हर बार जब कालिया अपर्णा की कमर से उसका स्कर्ट ऊपर और पैंटी निचे खिसका ने की कोशिश करता, अपर्णा उसका हाथ पकड़ लेती, जिससे कालिया अपर्णा के चिल्लाने के डर से कुछ नहीं कर पाया था। अपर्णा ने बाथरूम में जाने के पहले कमरे की सारी बत्तियां बुझा दीं। फिर बाथरूम का दरवाजा बंद कर सारे कपडे निकाल कर पानी और साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ किया। वह कालिये की पसीने और उसके लण्ड की चिकनाहट की बदबू से निजाद पाने की कोशिश में थी। अच्छी तरह साफ़ होने के बाद अपर्णा सिर्फ अपनी पैंटी पहन कर बाहर निकली। उसने अपनी स्कर्ट और टॉप अच्छी तरह धो कर निचोड़ कर अपने साथ लेली ताकि उसे कहीं सूखा सके। नहा कर बाहर निकलते हुए अपर्णा ने जब हलके से बाथरूम का दरवाजा खोल कर देखा की कमरे में अन्धेरा था। अपर्णा चुपचाप पलंग की और अपने पति के पास पहुंची।
जैसे जैसे अपर्णा की आँखें अँधेरे से वाकिफ हुईं तो उसे कुछ कुछ दिखने लगा। अपर्णा ने देखा की जीतूजी सोये नहीं थे बल्कि बैठे हुए थे। ब्रा और पैंटी पहने हुए होने के कारण अपर्णा को बड़ी शर्म महसूस हो रही थी। शायद जीतूजी की आँखें बंद थीं। अपर्णा बिना आवाज किये कम्बल के अंदर अपने पति के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पति की निक्कर में फ़ैल रहे लण्ड से टकराया। जीतूजी रोहित की दूसरी तरफ बैठे हुए कुछ गहरी सोचमें डूबे हुए लग रहे थे। अपर्णा के पलंग में घुसते ही रोहित ने अपर्णा की भारी सी चूँचियों को सहलाने लगे। इतनी ही देर में सब चौंक गए जब बाहर से कालिया की "अपर्णा.... अपर्णा" गुर्राने की आवाज सुनाई पड़ी।
कालिया की आवाज सुनकर अपर्णा डर के मारे कम्बल में घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर जीतूजी बोले, "मेरी बात ध्यान से सुनो। हम यहां से बाहर निकल कर भाग सकते हैं। और वह भेड़िये हाउण्ड भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित और अपर्णा अचम्भे से उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गए। जीतूजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "अगर अपर्णा हमारी मदद करे तो।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित बोले, "हाँ अपर्णा मदद क्यों नहीं करेगी? क्या रास्ता है, बताओ तो?" जीतूजी ने कहा, "अपर्णा को कालिया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।" जीतूजी की बात सुनकर अपर्णा अकुला कर बोली, "कभी नहीं। अगर मैं उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह राक्षस मुझे छोड़ेगा नहीं। मैं जानती हूँ पुरे रास्ते मैंने क्या भुगता है। वह वहीं का वहीं मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डालेगा।"