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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
दहशतगर्दों का काफिला काफी घंटों तक चलता और दौड़ता ही रहा। कभी एकदम तेज चढ़ाव तो कभी एकदम ढलाव आता जाता रहा। पर पुरे सफर दरम्यान एक बात साफ़ थी की नदी के पानी के बहाव का शोर हर जगह रहा था। इससे साफ़ जाहिर होता था की काफिला कोई नदी के किनारे किनारे आगे चल रहा था। रोहित और अपर्णा काफी थक चुके थे। घोड़े भी हांफने लगे थे। काफी घंटे बीत चुके थे। शाम ढल चुकी थी। अपर्णा को महसूस हुआ की काफिला एक जगह रुक गया। तुरंत अपर्णा की आँखों से पट्टी हटा दी गयी। अपर्णा ने देखा की पूरा काफिला एक गुफा के सामने खड़ा था। वहाँ काफी कम उजाला था। कुछ देर में अपर्णा के हाथों से भी रस्सी खोल दी गयी।

अपर्णाने जीतूजी और रोहितको भी देखा। उनके हाथों और पाँवकी रस्सी निकाली जारही थी। सब काफी थके हुए लग रहे थे। काफिले के मुखिया ने गुफा के अंदर से किसी को बाहर बुलाया। दुशमन की सेना के यूनिफार्म में सुसज्जित एक अफसर आगे आया और जीतूजी से हाथ मिलाता हुआ बोला, "मेरा नाम कर्नल नसीम है। कर्नल अभिजीत सिंहजी आपका और रोहित वर्माजी का स्वागत है। आप बिलकुल निश्चिन्त रहिये। यहाँ आपको हमसे कोई खतरा नहीं है। हम सिर्फ आपसे कुछ बातचीत करना और कुछ जानकारी हासिल करना चाहते हैं। अब आप हिंदुस्तान की सरहद के दूसरी और चुके हैं। अगर आप सहयोग करेंगे तो हम आपको कोई तकलीफ नहीं पहुंचाएंगे।" फिर अपर्णा की और देख कर वह थोड़े अचरज में पड़े और उन्होंने मुखिया से पूछा, "अरे यह औरत कौन है? इन्हें क्यों उठाकर लाये हो?" मुखिया ने उनसे कहा, "यह अपर्णा है जनाब। यह बड़ी जाँबाज़ औरत है और जब हमने इन दोनों को कैद किया तो यह अकेले ही हम से भिड़ने लगी। मैंने सोचा सरदार को यह जवान औरत पेश करेंगे तो वह खुश हो जाएंगे।" तब रोहित ने आगे बढ़कर कहा, "जनाब यह मेरी बेगम हैं। आपके लोग उन्हें भी उठाकर ले आये हैं।" कर्नल नसीम ने अपना सर झुकाते हुए माफ़ी मांगते हुए कहा, "मैं मुआफी माँगता हूँ। यह बेवकूफ लोगों ने बड़ी घटिया हरकत की है।" उस आर्मी अफसर ने कहा, "अरे बेवकूफों, यह क्या किया तुमने? कहीं जनरल साहब नाराज ना हो जाएँ तुम्हारी इस हरकत से।"

फिर थोड़ा रुक कर वह अफसर कुछ देर चुप रहा और कुछ सोच कर बोला, "खैर चलो देखो, आज रात को इस मोहतरमा को इन साहबान के साथ ही रहने दो। सुबह जब जनरल साहब जाएंगे तब देखेंगे।" फिर उस अफसर ने जीतूजी की और घूमकर कहा, "अब आप आराम कीजिये। आपको हमारे जनरल साहब से सुबह मिलना होगा। वह आपसे कुछ ख़ास बातचीत करना चाहते हैं। हमने आपके लिए रात को आराम के लिए कुछ इंतेझामात किये हैं। इस वीरान जगह में हमसे ज्यादा कुछ हो नहीं पाया है। इंशाअल्लाह अगर आप हमसे को-आपरेट करेंगे तो फिर आप हमारी खातिरदारी देखियेगा। फिलहाल हमें उम्मीद है आप इसे कुबूल फरमाएंगे। चलिए प्लीज।" कर्नल नसीम एक बड़े से हाल में उनको ले गए। अंदर जाने का एक दरवाजा था जो लकड़ी का था और उसके आगे एक और लोहे की ग्रिल वाला दरवाजा था। अंदर हॉल में एक बड़ा पलंग था और साथ में एक गुसलखाना था। एक बड़ा मेज था। दो तीन कुर्सियां रखीं थीं। बाकी कमरा खाली था।

कर्नल नसीम ने बड़ी विनम्रता से जीतूजी से कहा, "मुझे माफ़ कीजिये, पर मोहतरमा के आने का कोई प्लान नहीं था इसलिए उनके लिए कोई ख़ास इंतेजामात कर नहीं पाए हैं। उम्मीद है आप इसी में गुजारा कर लेंगे।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 04:15 PM



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