26-12-2019, 04:14 PM
छोटी मोटी औरततो उस भैंसे जैसे कालिये से चुदवा ही नहीं सकती होगी। कालिये को चोदने के लिए भी तो उसके ही जैसी भैंस ही चाहिए होगी। यह सब सोच कर अपर्णा की जान निकले जा रही थी। उस दिन तकतो अपर्णा यह समझती थी की जीतूजी का लण्ड ही सबसे बड़ा था। पर इस मोटे का लण्ड तो जीतूजी के लण्ड से भी तगड़ा था। ऊपर से उस लण्ड से इतनी ज्यादा चिकनाहट निकल रही थी की अपर्णा के बंधे हुए हाथ उस चिकनाहट से पूरी तरह लिपट चुके थे। अपर्णा को डर था की कहीं कालिया के मन में काफिले से अलग हो कर जंगल में घोड़ा रोक कर अपर्णा को चोदने का कोई ख़याल ना आये। अपर्णा बारबार अपने कानों से बड़े ध्यान से यह सुनने की कोशिश कर रही थी की कहीं वह मोटा काफिले को आगे जानेदे और खुद पीछे ना रह जाए, वरना अपर्णा की जान को मुसीबत आ सकती थी। कुछ देर बाद अपर्णा को महसूस हुआ की काफिले के बाकी घुड़सवार शायद आगे निकले जारहे थे और कालिये का घोड़ा शायद पिछड़ रहा था। मारे डर के अपर्णा थर थर काँपने लगी। उसे किसी भी हाल में इस काले भैंसे से चुदवाने की कोई भी इच्छा नहीं थी। अपर्णा ने "बचाओ, बचाओ" बोल कर जोर शोरसे चिल्लाना शुरू किया। अचानक अपर्णा की चिल्लाहट सुनकर कालिया चौंक गया। वह एकदम अपर्णा की चूँचियों पर जोर से चूँटी भरते हुए बोला, "चुप हो जाओ। मुखिया खफा हो जाएगा।" अपर्णा समझ गयी की उसे सरदार से चुदवाने के लिए ले जाया जा रहा था। जाहिर है सरदार को खुद अपर्णा को चोदने से पहले कोई और चोदे वह पसंद नहीं होगा। इस मौके का फायदा तो उठाना ही चाहिए। दुसरा कालिया सरदार से काफी डरता था। अपर्णा ने और जोर से चिल्लाना शुरू किया, "बचाओ, बचाओ।"
कालिया परेशान हो गया। आगे काफिले में से किसीने अपर्णा के चिल्लाने की आवाज सुनली तो काफिला रुक गया। सब कालिया की और देखने लगे। कालिया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी वक्त अपर्णा को जीतूजी की आवाज सुनाई दी। जीतूजी जोर से चिल्ला कर बोल रहे थे, "अपर्णा तुम कहाँ हो? क्या तुम ठीक तो हो?" अपर्णाने सोचा की अगर उन्होंने जीतूजी को अपना सच्चा हाल बताभी दिया तो वह कर कुछ भी नहीं पाएंगे, पर बेकार परेशान ही होंगें। तब अपर्णा ने जोर से चिल्लाकर जवाब दिया "मैं यहां हूँ। मैं ठीक हूँ।" अपर्णा ने फिर पीछे की और घूम कर कालिये से कहा, "अगर तुम मुझे और परेशान करोगे तो मैं तुम्हारे सरदार को बता दूंगी की तुम मुझे परेशान कर रहे हो।" कालियेने कहा, "ठीक है। पर तुम चिल्लाना मत। राँड़, अगर तू चिल्लायेगी तो अभी तो मैं कुछ नहीं करूँगा पर मौक़ा मिलते ही मैं तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर जंगल में भेड़ियों को खिलाने के लिए डाल दूंगा और किसीको पता भी नहीं चलेगा। तू मुझे जानती नहीं। अगर तू चुप रहेगी तो मैं तुझे ज्यादा परेशान नहीं करूँगा। बस तू सिर्फ मेरा लण्ड सहलाती रह।" कालिये की धमकी सुनकर अपर्णा की हवा ही निकल गयी। उसकी बात भी सच थी। मौक़ा मिलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कहीं उसे जंगल में दोनों हाथ और पाँव बाँध कर डाल दिया तो भेड़िये भले ही उसे ना मारें, पर पड़े पड़े चूंटियाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा सकते थे। इससे बेहतर है की थोड़ा बर्दाश्त कर इस जानवरसे पंगा ना लिया जाए। अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर "ठीक है। अब मैं आवाज नहीं करुँगी।" कह दिया। उसके बाद कालिये ने अपर्णा की चूँचियों को जोर से मसलना बंद कर दिया पर अपना लण्ड वहाँ से नहीं हटाया। अपर्णा ने तय किया की अगर कालिया ऐसे ही काफिले के साथ साथ चलता रहा तो वह नहीं चिल्लायेगी। अपर्णा ने अपनी उंगलयों से जितना हो सके, कालिये के लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया।
कालिया परेशान हो गया। आगे काफिले में से किसीने अपर्णा के चिल्लाने की आवाज सुनली तो काफिला रुक गया। सब कालिया की और देखने लगे। कालिया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी वक्त अपर्णा को जीतूजी की आवाज सुनाई दी। जीतूजी जोर से चिल्ला कर बोल रहे थे, "अपर्णा तुम कहाँ हो? क्या तुम ठीक तो हो?" अपर्णाने सोचा की अगर उन्होंने जीतूजी को अपना सच्चा हाल बताभी दिया तो वह कर कुछ भी नहीं पाएंगे, पर बेकार परेशान ही होंगें। तब अपर्णा ने जोर से चिल्लाकर जवाब दिया "मैं यहां हूँ। मैं ठीक हूँ।" अपर्णा ने फिर पीछे की और घूम कर कालिये से कहा, "अगर तुम मुझे और परेशान करोगे तो मैं तुम्हारे सरदार को बता दूंगी की तुम मुझे परेशान कर रहे हो।" कालियेने कहा, "ठीक है। पर तुम चिल्लाना मत। राँड़, अगर तू चिल्लायेगी तो अभी तो मैं कुछ नहीं करूँगा पर मौक़ा मिलते ही मैं तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर जंगल में भेड़ियों को खिलाने के लिए डाल दूंगा और किसीको पता भी नहीं चलेगा। तू मुझे जानती नहीं। अगर तू चुप रहेगी तो मैं तुझे ज्यादा परेशान नहीं करूँगा। बस तू सिर्फ मेरा लण्ड सहलाती रह।" कालिये की धमकी सुनकर अपर्णा की हवा ही निकल गयी। उसकी बात भी सच थी। मौक़ा मिलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कहीं उसे जंगल में दोनों हाथ और पाँव बाँध कर डाल दिया तो भेड़िये भले ही उसे ना मारें, पर पड़े पड़े चूंटियाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा सकते थे। इससे बेहतर है की थोड़ा बर्दाश्त कर इस जानवरसे पंगा ना लिया जाए। अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर "ठीक है। अब मैं आवाज नहीं करुँगी।" कह दिया। उसके बाद कालिये ने अपर्णा की चूँचियों को जोर से मसलना बंद कर दिया पर अपना लण्ड वहाँ से नहीं हटाया। अपर्णा ने तय किया की अगर कालिया ऐसे ही काफिले के साथ साथ चलता रहा तो वह नहीं चिल्लायेगी। अपर्णा ने अपनी उंगलयों से जितना हो सके, कालिये के लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया।