26-12-2019, 04:12 PM
एक मोटा सा काला सिपाही अपर्णा के पास आया। उसके बदसूरत काले मुंह में से उसके सफ़ेद दांत काली रात में तारों की तरह चमक रहे थे। अपर्णा को देख कर उसके मुंह में से एक बेहूदी और कामुक हंसी निकल गयी। उसने अपर्णा के दोनों हाथ और पाँव पकड़ कर बाँध दिए। काफिले का सरदार जल्दी में था। उसने वही कालिये को कहा, "इस नचनिया को तुम अपने साथ जकड कर बाँध कर ले चलो। वक्त जाया मत करो। कभी भी इनके सिपाही आ सकते हैं।" बाकी दो साथियों की और इशारा करके मुखिया बोला, "इस कर्नल को और इन रिपोर्टर साहब को बाँध कर तुम दोनों अपने साथ ले चलो।" मुखिया के हुक्म के अनुसार रोहित, कर्नल साहब और अपर्णा को कस के बाँध कर तीनों सिपाहियों ने अपने घोड़े पर बिठा दिया। अपर्णा को मोटे बदसूरत सिपाही ने अपने आगे अपने बदन के साथ कस के बांधा और अपना घोडा दौड़ा दिया। देखते ही देखते सब पहाड़ों में गायब हो गए। काफिले के पीछे उनके पालतू हाउण्ड घोड़ों के साथ साथ दौड़ पड़े और देखते ही देखते काफिला सब की आंखोंसे ओझल होगया। उस समय सुबह के करीब ११.३० बज रहे थे।
श्रेया, कैप्टेन गौरव और अंकिता बाँवरे से जीतूजी, अपर्णा और रोहित को आतंक वादियों के साथ कैदी बनकर जाते हुए देखते ही रह गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था की वह करे तो क्या करे? कैप्टेन गौरव ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "हमें तेजी से चलकर सबसे पहले हमारे तीन साथीदारों की अगुआई की खबर ऊपर कैंप में जाकर देनी होगी। हो सकता है वहाँ उनके पास वायरलेस हों ताकि यह खबर सब जगह फ़ैल जाए। जिससे पूरा आर्मी हमारे साथीदारों को ढूंढने में लग जाए।" असहाय से वह तीनो भागते हुए थके, हारे परेशान ऊपर के कैंप में पहुंचे। उनके पहुँचते एक घंटा और बीत चुका था।
इधर अपर्णा, जीतूजी और रोहित के हाथ पाँव बंधे हुए थे और आँखों पर पट्टी लगी हुई थी। जीतूजी आँखों पर पट्टी बंधे हुए भी पूरी तरह सतर्क थे। उनके दोनों हाथ कस के बंधे हुए थे। घुड़सवार इधर उधर घोड़ों को घुमाते हुए कोई नदी के किनारे वाले रास्ते जा रहे थे क्यूंकि रास्ते में जीतूजी को पहाड़ों से निचे की और बहती हुई नदी के पानी के तेजी से बहने की आवाज का शोर सुनाई दे रहा था। अपर्णा का हाल सबसे बुरा था। उस मोटे बदसूरत काले बन्दे ने अपर्णा को अपनी जाँघों के बिच अपने आगे बिठा रखा था। अपर्णा के दोनों हाथ पीछे कर के बाँध रखे थे। कालिये के लण्ड को अपर्णा के हाथ बार बार स्पर्श कर रहे थे। जाहिर है इतनी खूबसूरत औरत जब गोद में बैठी हो तो भला किस मर्द का लण्ड खड़ा न होगा? कालिये का लण्ड अजगर तरह फुला और खड़ा था जो अपर्णा अपने हांथों में महसूस कर रही थी। घोड़े को दौड़ाते दौड़ाते कालिया बार बार अपना हाथ अपर्णा की छाती पर लगा देता था और मौक़ा मिलने पर अपर्णा की चूँचियाँ जोरसे दबा देता था। कालिया इतने जोर से अपर्णा के बूब्स दबाता था की अपर्णा के मुंह से चीख निकल जाती थी। पर उस शोर शराबे में भला किसी को क्या सुनाई देगा? कालिया ने महसूस किया की उसका लण्ड अपर्णा की गाँड़ पर टक्कर मार रहा था तब उसने अपने पाजामे को ढीला किया और घोड़े को दौड़ाते हुए ही अपना मोटा हाथी की सूंढ़ जैसा काला लंबा तगड़ा लण्ड पाजामे से बाहर निकाल दिया। जैसे ही उसने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया की वह सीधा ही अपर्णा के हाथों में जा पहुंचा। अपर्णा वैसे ही कालिये के लण्ड से उसकी गाँड़ में धक्के मारने के कारण बहुत परेशान थी ऊपरसे कालिये के लण्ड का स्पर्श होते ही वह काँप उठी। उसके हाथों में कालिये का लण्ड ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई अजगर हो।
अपर्णा को यह ही समझ नहीं आ रहा था की वह कहाँ से शुरू हो रहा था और कहाँ ख़तम हो रहा था। अपर्णा को लगा की जिस किसी भी औरत को यह कालिया ने चोदा होगा वह बेचारी तो उसका लंड उसकी चूत में घुसते ही चूत फट जाने के कारण खून से लथपथ हो कर मर ही गयी होगी।
श्रेया, कैप्टेन गौरव और अंकिता बाँवरे से जीतूजी, अपर्णा और रोहित को आतंक वादियों के साथ कैदी बनकर जाते हुए देखते ही रह गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था की वह करे तो क्या करे? कैप्टेन गौरव ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "हमें तेजी से चलकर सबसे पहले हमारे तीन साथीदारों की अगुआई की खबर ऊपर कैंप में जाकर देनी होगी। हो सकता है वहाँ उनके पास वायरलेस हों ताकि यह खबर सब जगह फ़ैल जाए। जिससे पूरा आर्मी हमारे साथीदारों को ढूंढने में लग जाए।" असहाय से वह तीनो भागते हुए थके, हारे परेशान ऊपर के कैंप में पहुंचे। उनके पहुँचते एक घंटा और बीत चुका था।
इधर अपर्णा, जीतूजी और रोहित के हाथ पाँव बंधे हुए थे और आँखों पर पट्टी लगी हुई थी। जीतूजी आँखों पर पट्टी बंधे हुए भी पूरी तरह सतर्क थे। उनके दोनों हाथ कस के बंधे हुए थे। घुड़सवार इधर उधर घोड़ों को घुमाते हुए कोई नदी के किनारे वाले रास्ते जा रहे थे क्यूंकि रास्ते में जीतूजी को पहाड़ों से निचे की और बहती हुई नदी के पानी के तेजी से बहने की आवाज का शोर सुनाई दे रहा था। अपर्णा का हाल सबसे बुरा था। उस मोटे बदसूरत काले बन्दे ने अपर्णा को अपनी जाँघों के बिच अपने आगे बिठा रखा था। अपर्णा के दोनों हाथ पीछे कर के बाँध रखे थे। कालिये के लण्ड को अपर्णा के हाथ बार बार स्पर्श कर रहे थे। जाहिर है इतनी खूबसूरत औरत जब गोद में बैठी हो तो भला किस मर्द का लण्ड खड़ा न होगा? कालिये का लण्ड अजगर तरह फुला और खड़ा था जो अपर्णा अपने हांथों में महसूस कर रही थी। घोड़े को दौड़ाते दौड़ाते कालिया बार बार अपना हाथ अपर्णा की छाती पर लगा देता था और मौक़ा मिलने पर अपर्णा की चूँचियाँ जोरसे दबा देता था। कालिया इतने जोर से अपर्णा के बूब्स दबाता था की अपर्णा के मुंह से चीख निकल जाती थी। पर उस शोर शराबे में भला किसी को क्या सुनाई देगा? कालिया ने महसूस किया की उसका लण्ड अपर्णा की गाँड़ पर टक्कर मार रहा था तब उसने अपने पाजामे को ढीला किया और घोड़े को दौड़ाते हुए ही अपना मोटा हाथी की सूंढ़ जैसा काला लंबा तगड़ा लण्ड पाजामे से बाहर निकाल दिया। जैसे ही उसने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया की वह सीधा ही अपर्णा के हाथों में जा पहुंचा। अपर्णा वैसे ही कालिये के लण्ड से उसकी गाँड़ में धक्के मारने के कारण बहुत परेशान थी ऊपरसे कालिये के लण्ड का स्पर्श होते ही वह काँप उठी। उसके हाथों में कालिये का लण्ड ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई अजगर हो।
अपर्णा को यह ही समझ नहीं आ रहा था की वह कहाँ से शुरू हो रहा था और कहाँ ख़तम हो रहा था। अपर्णा को लगा की जिस किसी भी औरत को यह कालिया ने चोदा होगा वह बेचारी तो उसका लंड उसकी चूत में घुसते ही चूत फट जाने के कारण खून से लथपथ हो कर मर ही गयी होगी।