26-12-2019, 04:10 PM
सब फुर्ती से आगे बढ़ने लगे। जीतूजी ने सब को एकसाथ रहने हिदायत दी तो पूरा ग्रुप एक साथ हो गया। जीतूजी और कैप्टेन गौरव ने अपनी अपनी पिस्तौल निकाल लीं। कर्नल साहब (जीतूजी) ने कैप्टेन गौरव को सबसे आगे रह कर निगरानी करने को कहा। उन्होंने अंकिता और बाकी सबको बिच में एकजुट रहने के लिए कहा और खुद सबसे पीछे हो लिए। जब जीतूजी सबसे पीछे हो लिए तब अपर्णा भी जीतूजी के साथ हो ली। जीतूजी ने जब अपर्णा को सब के साथ चलने को कहा तो अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "मैं आप के साथ ही रहूंगी। हमने तय किया था ना की इस ट्रिप दरम्यान मैं आप के साथ रहूंगी और श्रेया रोहित के साथ। तो मैं आप के साथ ही रहूंगी।" जीतूजी ने अपने कंधे हिलाकर लाचारी में अपनी स्वीकृति दे दी।
काफिला करीब एक या दो किलोमीटर आगे चला होगा की सब को फिर वही जंगली कुत्तों की भयानक आवाज दुबारा सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज निचे की तरफ से आ रही थी। सब ने निचे की और देखा तो पाया की जिस पेड़ पर जीतूजी ने अपना एक जूता लटकाया था उस पेड़ के आजुबाजु दो भयानक बड़े जंगली कुत्ते भौंक रहे थे और उस पेड़ के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे थे। तब जीतूजी ने कहा, "मेरा शक ठीक निकला। वह भेड़िये नहीं, हाउण्ड हैं। अब यह साफ़ हो गया है की दुश्मन के कुछ सिपाही हमारी सरहद में घुसने में कामियाब हो गए हैं और दुश्मन कुछ चाल चल रहा है। धीरे धीरे सारी कहानी समझ आ जायेगी। फिलहाल हमें ऊपर के कैंप पर फ़ौरन पहुंचना है।"
आर्मी के हाउण्ड की चिंघाड़ने की डरावनी आवाज सुनकर और हकीकत में उन भयानक बड़े डरावने जंगली कुत्तों को देख कर सब सैलानियों में जैसे बिजली का करंट लग गया। सबके पॉंव में पहिये लग गए हों ऐसे सब की गति तेज हो गयी। सबकी थकान और आराम करने की इच्छा गायब ही हो गयी, दिल की धड़कनें तेज हो गयी। कैप्टेन गौरव को किसीको तेज चलने के लिए कहना नहीं पड़ा। सब प्रकाश के सामान गति से ऊपर के कैंप की और लगभग दौड़ने लगे। अगर उस समय कोई गति नापक यंत्र होता तो शायद तेज चलने के कई रिकॉर्ड भी टूट सकते थे। रास्ते में चलते चलते कर्नल साहब ने सब के साथ जुड़कर ख़ास तौर से अपर्णा की और देख कर कहा, "आप लोगों के मन में यह प्रश्न था ना की मैं किस उधेड़बुन में था और मैंने पेड़ पर जूता क्यों लटकाया? और यह जंगली भेड़िये जैसे भयानक कुत्ते क्या कर रहे है? तो याद करो, क्या तुम्हें याद है की कुछ हफ्ते पहले मेरे घर में चोरी हुई थी जिसमें मेरा एक पुराना लैपटॉप और सिर्फ एक ही जूता चोरी हुआ था? घर में इतना सारा माल पड़ा हुआ था पर चोरी सिर्फ दो चीज़ों की ही हुई थी? वह चोरी दुशमनों की खुफिया एजेंसीज ने करवाई थी ताकि मेरे लैपटॉप से उन्हें कोई जानकारी मिल सके। एक जूता इस लिए चुराया था जिससे उस जूते को वह लोग अपने हाउण्ड को सुंघा सके जो मेरी गंध सूंघ कर मुझे पकड़ सके। मुझे इसके बारेमें पहले से कुछ शक पहले से ही हो गया था। पर मैं भी इतना समझ नहीं पाया की दुश्मन की इतनी जुर्रत कहाँ से हुई की वह हमारी ही सरहद में घुसकर ऐसी हरकतें कर सके? जरूर इसमें हमारे ही कुछ लोग मिले हुए हैं। मैंने दूसरे जूते को सम्हाल कर रक्खा हुआ था, ताकि जरुरत पड़ने पर मैं उन हाउण्ड को बहका कर भुलावा दे सकूँ और उनको गुमराह कर सकूँ। आज सुबह जब मैंने देखा की वह हाउण्ड मेरा ही पीछा कर रहे थे तब मैंने पेड़ पर वह जूता लटका कर कुछ घंटों के लिए उन हाउण्ड को गुमराह करने की कोशिश की और वह कोशिश कामयाब रही। वह हाउण्ड मेरा पीछा करने के बजाय उस पेड़ के ही चक्कर काट रहे थे यह लड़ाई मेरे और उनके बिच की है। आप में सी किसी को कुछ भी नहीं होगा।"
काफिला करीब एक या दो किलोमीटर आगे चला होगा की सब को फिर वही जंगली कुत्तों की भयानक आवाज दुबारा सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज निचे की तरफ से आ रही थी। सब ने निचे की और देखा तो पाया की जिस पेड़ पर जीतूजी ने अपना एक जूता लटकाया था उस पेड़ के आजुबाजु दो भयानक बड़े जंगली कुत्ते भौंक रहे थे और उस पेड़ के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे थे। तब जीतूजी ने कहा, "मेरा शक ठीक निकला। वह भेड़िये नहीं, हाउण्ड हैं। अब यह साफ़ हो गया है की दुश्मन के कुछ सिपाही हमारी सरहद में घुसने में कामियाब हो गए हैं और दुश्मन कुछ चाल चल रहा है। धीरे धीरे सारी कहानी समझ आ जायेगी। फिलहाल हमें ऊपर के कैंप पर फ़ौरन पहुंचना है।"
आर्मी के हाउण्ड की चिंघाड़ने की डरावनी आवाज सुनकर और हकीकत में उन भयानक बड़े डरावने जंगली कुत्तों को देख कर सब सैलानियों में जैसे बिजली का करंट लग गया। सबके पॉंव में पहिये लग गए हों ऐसे सब की गति तेज हो गयी। सबकी थकान और आराम करने की इच्छा गायब ही हो गयी, दिल की धड़कनें तेज हो गयी। कैप्टेन गौरव को किसीको तेज चलने के लिए कहना नहीं पड़ा। सब प्रकाश के सामान गति से ऊपर के कैंप की और लगभग दौड़ने लगे। अगर उस समय कोई गति नापक यंत्र होता तो शायद तेज चलने के कई रिकॉर्ड भी टूट सकते थे। रास्ते में चलते चलते कर्नल साहब ने सब के साथ जुड़कर ख़ास तौर से अपर्णा की और देख कर कहा, "आप लोगों के मन में यह प्रश्न था ना की मैं किस उधेड़बुन में था और मैंने पेड़ पर जूता क्यों लटकाया? और यह जंगली भेड़िये जैसे भयानक कुत्ते क्या कर रहे है? तो याद करो, क्या तुम्हें याद है की कुछ हफ्ते पहले मेरे घर में चोरी हुई थी जिसमें मेरा एक पुराना लैपटॉप और सिर्फ एक ही जूता चोरी हुआ था? घर में इतना सारा माल पड़ा हुआ था पर चोरी सिर्फ दो चीज़ों की ही हुई थी? वह चोरी दुशमनों की खुफिया एजेंसीज ने करवाई थी ताकि मेरे लैपटॉप से उन्हें कोई जानकारी मिल सके। एक जूता इस लिए चुराया था जिससे उस जूते को वह लोग अपने हाउण्ड को सुंघा सके जो मेरी गंध सूंघ कर मुझे पकड़ सके। मुझे इसके बारेमें पहले से कुछ शक पहले से ही हो गया था। पर मैं भी इतना समझ नहीं पाया की दुश्मन की इतनी जुर्रत कहाँ से हुई की वह हमारी ही सरहद में घुसकर ऐसी हरकतें कर सके? जरूर इसमें हमारे ही कुछ लोग मिले हुए हैं। मैंने दूसरे जूते को सम्हाल कर रक्खा हुआ था, ताकि जरुरत पड़ने पर मैं उन हाउण्ड को बहका कर भुलावा दे सकूँ और उनको गुमराह कर सकूँ। आज सुबह जब मैंने देखा की वह हाउण्ड मेरा ही पीछा कर रहे थे तब मैंने पेड़ पर वह जूता लटका कर कुछ घंटों के लिए उन हाउण्ड को गुमराह करने की कोशिश की और वह कोशिश कामयाब रही। वह हाउण्ड मेरा पीछा करने के बजाय उस पेड़ के ही चक्कर काट रहे थे यह लड़ाई मेरे और उनके बिच की है। आप में सी किसी को कुछ भी नहीं होगा।"