26-12-2019, 04:10 PM
रास्ते से भटक जाने के लिए पहले शायद वह कैप्टेन गौरव को आड़े हाथों ले लेते। पर उन्होंने जब दोनों के बिच का आकर्षण और उत्कट प्यार देखा तो गौरव को थोड़ी सी डाँट लगा कर छोड़ दिया। कर्नल साहब अब धीरे धीरे समझ रहे थे की जो कामबाण उनके और अपर्णा के ह्रदय को घायल कर रहा था वही कामबाण कप्तान गौरव और अंकिता के ह्रदय कोभी घायल कर रहा था। जब प्यार के कामबाण का तीर चलता है तो वह उम्र, जाती, समय, समाज का लिहाज नहीं करता। शादीशुदा हो या कंवारे, बच्चों के माँ बाप हों हो या विधवा हो, इंसान घायल हो ही जाता है। हाँ, यह सच है की समाज ऐसी हरकतों को पसंद नहीं करता और इसी लिए अक्सर यह सब कारोबार चोरी छुप्पी चलता है। आखिर कर्नल साहब और अपर्णा भी तो शादीशुदा थे। अंकिता और गौरव की मैथुन लीला देखने के बाद कर्नल साहब का नजरिया कुछ बदल गया। वह कर्नल साहब नहीं जीतूजी के नजरिये से अंकिता और गौरव का प्यार देखने लगे। अपर्णा यह परिवर्तन देख कर खुश हुई।
धीरे धीरे पूरा कारवाँ गंतव्य स्थान की और आगे बढ़ने लगा। अपर्णा के पूछने पर जीतूजी ने बताया की करीब आधा रास्ता ही तय हुआ था। कुछ आगे जाने पर दूर से जीतूजी ने ऊपर की और नजर कर के अपर्णा को दिखाया की उसके पति रोहित श्रेया पास पास में एक पत्थर लेटे हुए सूरज की रौशनी अपने बदन को सेकते हुए आराम कर रहे थे। इतने सर्द मौसम में भी रोहित के पसीने छूट रहे थे। पहाड़ों की चढ़ाई के कारण वह बार बार रुक रहे थे। अपर्णा और श्रेया भी करीब चार किलो मीटर चलने के बाद थके हुए नजर आ रहे थे। अंकिता और गौरव ज्यादा दूर नहीं गए थे। वह एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, खेलते हुए आगे बढ़ रहे थे। पर जैसे चढ़ाई आने लगी, अंकिता भी थकान और हाँफ के कारण थोड़ा चलकर रुक जाती थी। चुदाई में हुए परिश्रम से वह काफी थकी हुई थी।
कैप्टेन गौरव और कर्नल साहब को ऐसे चलने की आदत होने के कारण उनपर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ था पर असैनिक नागरिकों के धीरे धीरे चलने के कारण सैनिकों को भी धीरे धीरे चलना पड़ता था। अचानक ही सब को वही जँगली कुत्तों की डरावनी भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज ज्यादा दूर से नहीं आ रही थी। लगता था जैसे कुछ जंगली भेड़िये पहाड़ों में काफी करीबी से दहाड़ रहें हों। काफिला तीन हिस्सों में बँटा था। आगे श्रेया और रोहित थे। उसके थोड़ा पीछे अंकिता और कैप्टेन गौरव चल रहे थे और आखिर में उनसे करीब १०० मीटर पीछे अपर्णा और जीतूजी चल रहे थे।
भेड़ियों की डरावनी चिंघाड़ सुनकर ख़ास तौर से महिलाओं की सिट्टीपिट्टी गुम होगयी। वह भाग कर अपने साथी के करीब पहुँच कर उनसे चिपक गयीं। अंकिता गौरव से, अपर्णा जीतूजी से और श्रेया रोहित से चिपक कर डरावनी नज़रों से अपने साथी से बिना कुछ बोले आँखों से ही प्रश्न कर रहीं थीं की "यह क्या था? और अब क्या होगा?" तब जीतूजी अपर्णा को अपने से अलग कर, अचानक ही बिना कुछ बोले, भागते हुए रास्ते के करीब थोड़ी ही दुरी पर एक पेड़ था उस पर चढ़ गए। सब अचरज से जीतूजी क्या कर रहे थे यह देखते ही रहे की जीतूजी ने अपने बैकपैक (झोले) से एक जूता निकाला और उसको एक डाल पर फीते से बाँध कर लटका दिया। फिर फुर्ती से निचे उतरे और जल्दी से सब को अपने रास्ते पर जल्दी से चलने को कहा। जाहिर था जीतूजी को कुछ खतरे की आशंका थी। सब सैलानियों का हाल बुरा था। सब ने जीतूजी को पूछना चाहा की वह क्या कर रहे थे? उन्होंने अपना एक जूता डाली पर क्यों लटकाया? पर जीतूजी ने उस समय उसका कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, "अब एकदम तेजी से हम अपनी मंजिल, याने ऊपर वाले कैंप में पहुँच जाएंगे, उसके बाद मैं आपको बताऊंगा।"
धीरे धीरे पूरा कारवाँ गंतव्य स्थान की और आगे बढ़ने लगा। अपर्णा के पूछने पर जीतूजी ने बताया की करीब आधा रास्ता ही तय हुआ था। कुछ आगे जाने पर दूर से जीतूजी ने ऊपर की और नजर कर के अपर्णा को दिखाया की उसके पति रोहित श्रेया पास पास में एक पत्थर लेटे हुए सूरज की रौशनी अपने बदन को सेकते हुए आराम कर रहे थे। इतने सर्द मौसम में भी रोहित के पसीने छूट रहे थे। पहाड़ों की चढ़ाई के कारण वह बार बार रुक रहे थे। अपर्णा और श्रेया भी करीब चार किलो मीटर चलने के बाद थके हुए नजर आ रहे थे। अंकिता और गौरव ज्यादा दूर नहीं गए थे। वह एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, खेलते हुए आगे बढ़ रहे थे। पर जैसे चढ़ाई आने लगी, अंकिता भी थकान और हाँफ के कारण थोड़ा चलकर रुक जाती थी। चुदाई में हुए परिश्रम से वह काफी थकी हुई थी।
कैप्टेन गौरव और कर्नल साहब को ऐसे चलने की आदत होने के कारण उनपर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ था पर असैनिक नागरिकों के धीरे धीरे चलने के कारण सैनिकों को भी धीरे धीरे चलना पड़ता था। अचानक ही सब को वही जँगली कुत्तों की डरावनी भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज ज्यादा दूर से नहीं आ रही थी। लगता था जैसे कुछ जंगली भेड़िये पहाड़ों में काफी करीबी से दहाड़ रहें हों। काफिला तीन हिस्सों में बँटा था। आगे श्रेया और रोहित थे। उसके थोड़ा पीछे अंकिता और कैप्टेन गौरव चल रहे थे और आखिर में उनसे करीब १०० मीटर पीछे अपर्णा और जीतूजी चल रहे थे।
भेड़ियों की डरावनी चिंघाड़ सुनकर ख़ास तौर से महिलाओं की सिट्टीपिट्टी गुम होगयी। वह भाग कर अपने साथी के करीब पहुँच कर उनसे चिपक गयीं। अंकिता गौरव से, अपर्णा जीतूजी से और श्रेया रोहित से चिपक कर डरावनी नज़रों से अपने साथी से बिना कुछ बोले आँखों से ही प्रश्न कर रहीं थीं की "यह क्या था? और अब क्या होगा?" तब जीतूजी अपर्णा को अपने से अलग कर, अचानक ही बिना कुछ बोले, भागते हुए रास्ते के करीब थोड़ी ही दुरी पर एक पेड़ था उस पर चढ़ गए। सब अचरज से जीतूजी क्या कर रहे थे यह देखते ही रहे की जीतूजी ने अपने बैकपैक (झोले) से एक जूता निकाला और उसको एक डाल पर फीते से बाँध कर लटका दिया। फिर फुर्ती से निचे उतरे और जल्दी से सब को अपने रास्ते पर जल्दी से चलने को कहा। जाहिर था जीतूजी को कुछ खतरे की आशंका थी। सब सैलानियों का हाल बुरा था। सब ने जीतूजी को पूछना चाहा की वह क्या कर रहे थे? उन्होंने अपना एक जूता डाली पर क्यों लटकाया? पर जीतूजी ने उस समय उसका कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, "अब एकदम तेजी से हम अपनी मंजिल, याने ऊपर वाले कैंप में पहुँच जाएंगे, उसके बाद मैं आपको बताऊंगा।"