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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
एक और वह अंकिता की चुदाई देख रहे थे तो दूसरी और अपर्णा उनके लण्ड को बड़े प्यार से हिला रही थी। जीतूजी ने अपर्णा के गाल पर जोरदार चूँटी भरते हुए कहा, "मेरी बल्ली, मुझसे म्याऊं? तू मेरी ही चेली है और मुझसे ही मजाक कर रही है? अपर्णा, मेरे लिए यह बात मेरे दिल के अरमान, फीलिंग्स और इमोशंस की है। मेरे मन में क्या है, यह तू अच्छी तरह जानती है। अब बात को आगे बढ़ाने से क्या फायदा? जिस गाँव में जाना नहीं उसका रास्ता क्यों पूछना?" अपर्णा को यह सुनकर झटका सा लगा। जिस इंसान ने उसके लिए इतनी क़ुरबानी की थी और जो उससे इतना बेतहाशा प्यार करता था उसके हवाले वह अपना जिस्म नहीं कर सकती थी। हालांकि अपर्णा को खुदके अलावा कोई रोकने वाला नहीं था। अपर्णा का ह्रदय जैसे किसी ने कटार से काट दिया ही ऐसा उसे लगा। वह जीतूजी की बात का कोई जवाब नहीं दे सकती थी। अपर्णा ने सिर्फ अपना हाथ फिर जबरदस्ती जीतूजी की टाँगों के बिच में रखा और उनके लण्ड को पतलून के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "मैं मजाक नहीं कररही जीतूजी। क्या सजा आप को अकेले को मिल रही है? क्या आप को नहीं लगता की मैं भी इसी आग में जल रही हूँ?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी की आँख थोड़ी सी गीली हो गयी। उन्होंने अपर्णा का हाथ थामा और बोले, "मैं तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ। मैं तुम्हारे वचन का और तुम्हारी मज़बूरी का भी सम्मान करता हूँ और इसी लिए कहता हूँ की मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। क्यों मुझे उकसा रही हो?" अपर्णा ने जीतूजी के पतलून के ऊपर से ही उनके लण्डपर हाथ फिराते उसे हिलाते हुए कहा, "जीतूजी, मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं। अगर सब कुछ सही तो थोड़ा ही सही। मैं आपको छू तो सकती हूँ ना? मैं आपके नवाब (लण्ड) से खेल तो सकती हूँ ना? की यह भी मुझसे नकारोगे?"

अपर्णा की बात का जीतूजी ने जवाब तो नहीं दिया पर अपर्णा का हाथ अपनी टांगों से बिच से हटाया भी नहीं। अपर्णाने फ़ौरन जीतूजीकी ज़िप खोली और निक्कर हटा कर उनके लण्ड को अपनी कोमल उँगलियों में लिया और अंकिता की अच्छी सी हो रही चुदाई देखते हुए अपर्णा की उँगलियाँ जीतूजी के लण्ड और उसके निचे लटके हुए उसके अंडकोष की थैली में लटके हुई बड़े बड़े गोलों से खेलनी लगी। अपर्णा की उँगलियों का स्पर्श होते ही जीतूजी का लण्ड थनगनाने लगा। जैसे एक नाग को किसीने छेड़ दिया हो वैसे देखते ही देखते वह एकदम खड़ा हो गया और फुंफकारने लगा। अपर्णा की उँगलियों में जीतूजी के लण्ड का चिकना पूर्व रस महसूस होने लगा। देखते ही देखते जीतूजी का लण्ड चिकनाहट से सराबोर हो गया। जीतूजी मारे उत्तेजना से अपनी सीट पर इधरउधर होने लगे।

उधर गौरव बड़े प्यार से और बड़ी फुर्ती से अंकिता की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहा था। कभी धीरे से तो कभी जोरदार झटके से वह अपनी गाँड़ से पीछे से ऐसा धक्का मारता की अंकिता का पूरा बदन हिल जाता। तो कभी अपना लण्ड अंकिता की चूत में अंदर घुसा कर वहीँ थम कर अंकिता के खूबसूरत चेहरे की और देख कर अंकिता की प्रतिक्रिया का इंतजार करता। जब अंकिता हल्का देकर उसे प्रोत्साहित करती तो वह भी मुस्कुराता और फिर अपर्णा की चुदाई जारी रखता। कुछ देर में अंकिता का जोश और हिम्मत बढ़ी और वह गौरव के निचे से बैठ खड़ी हुई। उसने गौरव को निचे लेटने को कहा। अंकिता ने कहा, "अब तक तो तुम मुझे चोदते थे। अब कप्तान साहब मैं तुम्हें चोदती हूँ। तुमभी क्या याद रखोगे की किसी लड़की ने मुझे चोदा था।" और फिर अंकिता ने गौरव के ऊपर चढ़कर गौरव का फुला हुआ मोटा लण्ड अपनी उँगलियों से अपनी चूत में घुसेड़ा और कूद कूद कर उसे इतने जोश से चोदने लगी की गौरव की भी हवा निकल गयी। गौरव का लण्ड, अंकिता की चूत में पूरा उसकी बच्चे दानी तक पहुँच जाता।

यह दृश्य देखकर अपर्णा भी मारे उत्तेजना के जीतूजी का लण्ड जोर से हिलाने लगी। जीतूजी की समझ में नहीं रहा था की वह आँखें मूँद कर अपर्णा की उँगलियों से अपने लण्ड को हिलवाने का मझा लें या आँखें खुली रख कर अंकिता की चुदाई देखने का। दोनों ही उनको पागल कर देने वाली चीज़ें थीं। जीतूजी अपर्णा की आँखों में देखने लगे की उनका लण्ड हिलाते वक्त अपर्णा के चेहरे पर कैसे भाव आते थे। अपर्णा यह देखने की कोशिश कर रही थी की जीतूजी के चेहरे पर कैसे भाव थे। अपर्णा गौरव की चुदाई देख रही थी। उस समय उसके मन में क्या भाव थे यह समझना बहुत मुश्किल था। क्या वह अंकिता की जगह खुद को रख रही थी? तो फिर गौरव की जगह कौन होगा? जीतूजी या फिर अपर्णा के पति रोहित?
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 04:05 PM



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