26-12-2019, 04:03 PM
अंकिता गौरव की और गौरसे और गंभीरता से देखती रही और बोली, "क्या तुम मेरे साथ हरदम रहना चाहते हो?"
गौरव ने दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा बोले, "हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।"
अंकिता ने कहा, "देखो, कहनेके लिए तो मैं शादीशुदा मिसिस खन्ना हूँ, पर वास्तव में मिस खन्ना ही हूँ। ब्रिगेडियर साहब मेरे पति नहीं वास्तव में वह मेरे पिता हैं और मुझे बेटी की ही तरह रखते हैं। उन्होंने मुझे बदनामी से बचाने के लिए ही मेरे साथ शादी की। शादी के बाद हमारा शारीरिक सम्बन्ध मुश्किल से शुरू के कुछ महीनों तक का भी नहीं रहा होगा। उसके बाद उनका स्वास्थ्य लड़खड़ाया और तबसे उन्होंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे लिए एक पिता की तरह मेरे लिए जोड़ीदार ढूंढ रहे हैं। चूँकि वह सरकारी रिकॉर्ड में ऑफिशियली मेरे पति हैं, तो अगर कोई मेरा मनपसंद पुरुष मुझे स्वीकार करता है तो वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार हैं। मैं जानती हूँ की तुम्हारे माता पिता शायद मुझे स्वीकार ना करें। मैं इसकी उम्मीद भी नहीं करती। पर अगर वास्तव में तुम तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करने लिए तैयार हो और सचमें तुम मेरे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते हो तो मेरे पिता (खन्ना साहब) से बात करिये।"
अंकिता इतना कह कर रुक गयी। वह गौरव की प्रतिक्रिया देखने लगी। अंकिता की बात सुनकर गौरव कुछ गंभीर हो गए थे। उनका गम्भीर चेहरा देख कर अंकिता हँस पड़ी और बोली, "गौरव साहब, मैं आपसे कोई लेनदेन नहीं कर रही हूँ। मैं आप से यह उम्मीद नहीं रख रही हूँ की आप अथवा आपका परिवार मुझे स्वीकार करेगा। उन बातों को छोड़िये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या नहीं; हम यहां जिस हेतु से वह तो काम पूरा करें? वरना क्या पता हमें ना देख कर कर्नल साहब कहीं हमारी खोज शुरू ना करदें।" यह कह अंकिता ने गौरव की पतलून में हाथ डाला।
गौरव का लण्ड अंकिता का स्पर्श होते ही कड़ा होने लगा था। गौरव ने अपने पतलून की झिप खोली और अपनी निक्कर में से अपना लण्ड निकाला। अंकिता गौरव का लण्ड हाथ में लेकर उसे सहलाने लगी। अंकिता ने हँसते हुए कहा, "गौरव यह तो एकदम तैयार है। तुमतो वाकई बड़े ही रोमांटिक मूड में लग रहे हो।
गौरव ने अंकिता के होठोँ को चूमते हुए अपना एक हाथ अंकिता की स्कर्ट को ऊपर उठा कर उसकी पेंटी को निचे खिसका कर उसकी एक टाँग को ऊपर उठा कर अंकिता की जाँघों के बिच उसकी चूत में उंगली डालते हुए कहा, "तुम भी तो काफी गरम हो और पानी बहा रही हो।"
बस इसके बाद दोनों में से कोई भी कुछभी बोलने की स्थिति में नहीं थे। वहीं पत्थर के सहारे खड़े खड़े गौरव और अंकिता गहरे चुम्बन और आलिंगन में जकड़े हुए थे। गौरव का एक हाथ अंकिता की मस्त गाँड़ को सेहला रहा था और दुसरा हाथ अंकिता की उद्दंड चूँचियों को मसलने में लगा हुआ था।
अंकिता ने गौरव से कहा, "जो करना है जल्दी करो वरना वह कर्नल साहब आ जाएंगे तो कहीं रंग में भंग ना कर दें।"
जीतूजी गौरव और अंकिता की बात सुनकर एक तरह शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय वह आर्मी के यूनिफार्म में थे। अपर्णा ने पीछे घूम कर जीतूजी की पतलून में उनकी टाँगों के बिच देखा तो पाया की अंकिता और गौरव की प्रेम क्रीड़ा देख कर जीतूजी का लण्ड भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून में एक तम्बू बना रहा था। मन ही मन अपर्णा को हंसी आयी। अपर्णा जीतूजी का हाल समझ सकती थी। जीतूजी एक पत्थर पर निचे टाँगें लटका कर बैठे हुए घनी झाडी के पीछे अंकिता और गौरव को देख रहे थे। अपर्णा उनकी टाँगों के बिच में कुछ नीची जमीन पर खड़ी हुई थी। अपर्णा की पीठ जीतूजी के लौड़े से सटी हुई थी। जीतूजी की दोनों टांगें अपर्णा के कमर के आसपास फैली हुई अपर्णा को जकड़ी हुई थीं। जीतूजी का हाथ अनायास ही अपर्णा के बूब्स को छू रहा था। जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के बूब्स से छूने से बचाते रहते थे। अपर्णाने जीतूजी का खड़ा लण्ड अपनी पीठ पर महसूस किया। सहज रूप से ही अपर्णा ने अपनी कोहनी पीछे की और जीतूजी की जाँघों के बिच में टिका दीं। अपर्णा ने अपनी कोहनी से जीतूजी का लण्ड छुआ और कोहनी को हिलाते हुए वह जीतूजी का लण्ड भी हिला रही थी। अपर्णा की कोहनी के छूते ही जीतूजी का लण्ड उनकी पतलून में फर्राटे मारने लगा...
गौरव ने दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा बोले, "हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।"
अंकिता ने कहा, "देखो, कहनेके लिए तो मैं शादीशुदा मिसिस खन्ना हूँ, पर वास्तव में मिस खन्ना ही हूँ। ब्रिगेडियर साहब मेरे पति नहीं वास्तव में वह मेरे पिता हैं और मुझे बेटी की ही तरह रखते हैं। उन्होंने मुझे बदनामी से बचाने के लिए ही मेरे साथ शादी की। शादी के बाद हमारा शारीरिक सम्बन्ध मुश्किल से शुरू के कुछ महीनों तक का भी नहीं रहा होगा। उसके बाद उनका स्वास्थ्य लड़खड़ाया और तबसे उन्होंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे लिए एक पिता की तरह मेरे लिए जोड़ीदार ढूंढ रहे हैं। चूँकि वह सरकारी रिकॉर्ड में ऑफिशियली मेरे पति हैं, तो अगर कोई मेरा मनपसंद पुरुष मुझे स्वीकार करता है तो वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार हैं। मैं जानती हूँ की तुम्हारे माता पिता शायद मुझे स्वीकार ना करें। मैं इसकी उम्मीद भी नहीं करती। पर अगर वास्तव में तुम तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करने लिए तैयार हो और सचमें तुम मेरे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते हो तो मेरे पिता (खन्ना साहब) से बात करिये।"
अंकिता इतना कह कर रुक गयी। वह गौरव की प्रतिक्रिया देखने लगी। अंकिता की बात सुनकर गौरव कुछ गंभीर हो गए थे। उनका गम्भीर चेहरा देख कर अंकिता हँस पड़ी और बोली, "गौरव साहब, मैं आपसे कोई लेनदेन नहीं कर रही हूँ। मैं आप से यह उम्मीद नहीं रख रही हूँ की आप अथवा आपका परिवार मुझे स्वीकार करेगा। उन बातों को छोड़िये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या नहीं; हम यहां जिस हेतु से वह तो काम पूरा करें? वरना क्या पता हमें ना देख कर कर्नल साहब कहीं हमारी खोज शुरू ना करदें।" यह कह अंकिता ने गौरव की पतलून में हाथ डाला।
गौरव का लण्ड अंकिता का स्पर्श होते ही कड़ा होने लगा था। गौरव ने अपने पतलून की झिप खोली और अपनी निक्कर में से अपना लण्ड निकाला। अंकिता गौरव का लण्ड हाथ में लेकर उसे सहलाने लगी। अंकिता ने हँसते हुए कहा, "गौरव यह तो एकदम तैयार है। तुमतो वाकई बड़े ही रोमांटिक मूड में लग रहे हो।
गौरव ने अंकिता के होठोँ को चूमते हुए अपना एक हाथ अंकिता की स्कर्ट को ऊपर उठा कर उसकी पेंटी को निचे खिसका कर उसकी एक टाँग को ऊपर उठा कर अंकिता की जाँघों के बिच उसकी चूत में उंगली डालते हुए कहा, "तुम भी तो काफी गरम हो और पानी बहा रही हो।"
बस इसके बाद दोनों में से कोई भी कुछभी बोलने की स्थिति में नहीं थे। वहीं पत्थर के सहारे खड़े खड़े गौरव और अंकिता गहरे चुम्बन और आलिंगन में जकड़े हुए थे। गौरव का एक हाथ अंकिता की मस्त गाँड़ को सेहला रहा था और दुसरा हाथ अंकिता की उद्दंड चूँचियों को मसलने में लगा हुआ था।
अंकिता ने गौरव से कहा, "जो करना है जल्दी करो वरना वह कर्नल साहब आ जाएंगे तो कहीं रंग में भंग ना कर दें।"
जीतूजी गौरव और अंकिता की बात सुनकर एक तरह शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय वह आर्मी के यूनिफार्म में थे। अपर्णा ने पीछे घूम कर जीतूजी की पतलून में उनकी टाँगों के बिच देखा तो पाया की अंकिता और गौरव की प्रेम क्रीड़ा देख कर जीतूजी का लण्ड भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून में एक तम्बू बना रहा था। मन ही मन अपर्णा को हंसी आयी। अपर्णा जीतूजी का हाल समझ सकती थी। जीतूजी एक पत्थर पर निचे टाँगें लटका कर बैठे हुए घनी झाडी के पीछे अंकिता और गौरव को देख रहे थे। अपर्णा उनकी टाँगों के बिच में कुछ नीची जमीन पर खड़ी हुई थी। अपर्णा की पीठ जीतूजी के लौड़े से सटी हुई थी। जीतूजी की दोनों टांगें अपर्णा के कमर के आसपास फैली हुई अपर्णा को जकड़ी हुई थीं। जीतूजी का हाथ अनायास ही अपर्णा के बूब्स को छू रहा था। जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के बूब्स से छूने से बचाते रहते थे। अपर्णाने जीतूजी का खड़ा लण्ड अपनी पीठ पर महसूस किया। सहज रूप से ही अपर्णा ने अपनी कोहनी पीछे की और जीतूजी की जाँघों के बिच में टिका दीं। अपर्णा ने अपनी कोहनी से जीतूजी का लण्ड छुआ और कोहनी को हिलाते हुए वह जीतूजी का लण्ड भी हिला रही थी। अपर्णा की कोहनी के छूते ही जीतूजी का लण्ड उनकी पतलून में फर्राटे मारने लगा...