26-12-2019, 04:01 PM
थोड़ा सा आगे बढ़ते ही अपर्णा ने दोनों युवाओँ को एक दूसरे की बाँहों में कस के खड़े हुए प्रगाढ़ चुम्बन में मस्त होते हुए देखा। गौरव अंकिता के ब्लाउज के ऊपर से ही अंकिता की चूँचियों को दबा रहे थे और मसल रहे थे। अंकिता गौरव का सर अपने दोनों हाथों में पकडे गौरव के होँठों को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई सपेरा किसीको सांप डंस गया हो तो उसका जहर निकालने के लिए घाव चूस रहा हो। गौरव साहब का एक हाथ अंकिता के बूब्स दबा रहा था तो दुसरा हाथ अंकिता की गाँड़ के गालों को भींच रहा था। इस उत्तेजनात्मक दृश्य देख कर जीतूजी और अपर्णा वहीं रुक गए। अपर्णा ने अपनी उंगली अपनी नाक पर लगा कर जीतूजी को एकदम चुप रहने को इशारा किया। जीतूजी समझ गए की अपर्णा नहीं चाहती की इन वासना में मस्त हुए पंखियों को ज़रा भी डिस्टर्ब किया जाए। जीतूजी ने अपर्णा के कानों में कहा, "इन दोनों को हम यहां अकेला नहीं छोड़ सकते।" यह सुनकर अपर्णा ने अपनी भौंहों को खिंच कर कुछ गुस्सा दिखाते हुए जीतूजी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "तो ठीक है, हम यहीं खड़े रहते हैं जब तक यह दोनों अपनी काम क्रीड़ा पूरी नहीं करते।" अपर्णा ने वहाँ से हट कर एक घनी झाडी के पीछे एक पत्थर पर जीतूजी को बैठने का इशारा किया जहाँसे जीतूजी प्रेम क्रीड़ा में लिप्त उस युवा युगल को भलीभांति देख सके, पर वह उन दोनों को नजर ना आये। चुकी वहाँ दोनों को बैठने की जगह नहीं थी इस लिए अपर्णा जीतूजी के आगे आकर खड़ी हो गयी। वहाँ जमीन थोड़ी नीची थी इस लिए अपर्णा ने जीतूजी की टाँगे फैलाकर उन के आगे खड़ी हो गयी। जीतूजी ने अपर्णा को अपनी और खींचा अपनी दो टांगों के बिच में खड़ा कर दिया। अपर्णा की कमर जीतूजी की टांगों के बिच में थीं। घनी झाड़ियों के पीछे दोनों अब अंकिता और गौरव की प्रेम क्रीड़ा अच्छी तरह देख सकते थे।
इन से बेखबर, अंकिता और गौरव काम वासना में लिप्त एक दूसरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक अंकिता ने घूम कर गौरव से पूछा, "गौरव क्या कर्नल साहब हम को न देख कर हमें ढूंढने की कोशिश तो नहीं करेंगे ना?"
गौरव ने अंकिता को जो जवाब दिया उसे सुनकर जीतूजी का सर चकरा गया। गौरव ने कहा, "अरे कर्नल साहब के पास हमारे बारेमें समय कहाँ? उनका तो खुदका ही अपर्णाजी से तगड़ा चक्कर चल रहा है। अभी तुमने देखा नहीं? कैसे वह दोनों एक दूसरे से चिपक कर चल रहे थे? और उस रात ट्रैन में वह दोनों एक ही बिस्तर में क्या कर रहे थे? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज निकली।"
जीतूजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छुरी से काटो तो खून ना निकले। इन युवाओँ की बात सुनकर जीतूजी का मुंह लाल हो गया। पर करेतो क्या करे? उन्होंने अपर्णाकी ओर देखा। अपर्णा ने मुस्कुरा कर फिर एक बार अपने होँठों और नाक पर उंगली रख कर जीतूजी को चुप रहने का इशारा किया। अपर्णा ने जीतूजी के कान में बोला, "आप चुप रहिये। अभी उनका समय है। पर यह बच्चे बात तो सही कह रहे हैं।" उस समय जीतूजी की शकल देखने वाली थी।
अंकिता ने निचे की बहती नदी की और देख कर गौरव के हाथ पकड़ उन्हें अपनी गोद में रखते हुए गौरव के करीब खिसक कर कहा, "गौरव, देखो तो! कितना सुन्दर नजारा दिख रहा है। यह नदी, ये बर्फीले पहाड़ यह बादल! मन करता है यहीं रह जाऊं, यहां से वापस ही ना जाऊं! काश वक्त यहीं थम जाए!"
कुमर ने चारों और देख कर कहा, "मैं तो इस समय सिर्फ यह देख रहा हूँ की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा?"
अंकिता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा, "गौरव तुम कितने बोर हो! मैं यहां इतने सुन्दर नजारों बात कर रही हूँ और तुम कुछ और ही बात कर रहे हो!"
गौरव ने अंकिता का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेलियों में लिया और बोले, "मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ज्यादा सुन्दर कोई भी नजारा नहीं लग रहा है। मैं इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता हूँ। मैं इस गोरे कमसिन बदन को देखता ही रहूं ऐसा मन करता है। मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूं। हमारे ढेर सारे बच्चें हों और हमारी जिंदगी का आखरी वक्त तक हम एक दूसरे के साथ रहें।" फिर एक गहरी साँस लेते हुए गौरव ने कहा, "पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?"
इन से बेखबर, अंकिता और गौरव काम वासना में लिप्त एक दूसरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक अंकिता ने घूम कर गौरव से पूछा, "गौरव क्या कर्नल साहब हम को न देख कर हमें ढूंढने की कोशिश तो नहीं करेंगे ना?"
गौरव ने अंकिता को जो जवाब दिया उसे सुनकर जीतूजी का सर चकरा गया। गौरव ने कहा, "अरे कर्नल साहब के पास हमारे बारेमें समय कहाँ? उनका तो खुदका ही अपर्णाजी से तगड़ा चक्कर चल रहा है। अभी तुमने देखा नहीं? कैसे वह दोनों एक दूसरे से चिपक कर चल रहे थे? और उस रात ट्रैन में वह दोनों एक ही बिस्तर में क्या कर रहे थे? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज निकली।"
जीतूजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छुरी से काटो तो खून ना निकले। इन युवाओँ की बात सुनकर जीतूजी का मुंह लाल हो गया। पर करेतो क्या करे? उन्होंने अपर्णाकी ओर देखा। अपर्णा ने मुस्कुरा कर फिर एक बार अपने होँठों और नाक पर उंगली रख कर जीतूजी को चुप रहने का इशारा किया। अपर्णा ने जीतूजी के कान में बोला, "आप चुप रहिये। अभी उनका समय है। पर यह बच्चे बात तो सही कह रहे हैं।" उस समय जीतूजी की शकल देखने वाली थी।
अंकिता ने निचे की बहती नदी की और देख कर गौरव के हाथ पकड़ उन्हें अपनी गोद में रखते हुए गौरव के करीब खिसक कर कहा, "गौरव, देखो तो! कितना सुन्दर नजारा दिख रहा है। यह नदी, ये बर्फीले पहाड़ यह बादल! मन करता है यहीं रह जाऊं, यहां से वापस ही ना जाऊं! काश वक्त यहीं थम जाए!"
कुमर ने चारों और देख कर कहा, "मैं तो इस समय सिर्फ यह देख रहा हूँ की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा?"
अंकिता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा, "गौरव तुम कितने बोर हो! मैं यहां इतने सुन्दर नजारों बात कर रही हूँ और तुम कुछ और ही बात कर रहे हो!"
गौरव ने अंकिता का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेलियों में लिया और बोले, "मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ज्यादा सुन्दर कोई भी नजारा नहीं लग रहा है। मैं इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता हूँ। मैं इस गोरे कमसिन बदन को देखता ही रहूं ऐसा मन करता है। मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूं। हमारे ढेर सारे बच्चें हों और हमारी जिंदगी का आखरी वक्त तक हम एक दूसरे के साथ रहें।" फिर एक गहरी साँस लेते हुए गौरव ने कहा, "पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?"