26-12-2019, 03:58 PM
वहाँ पहुँच कर गौरव ने कस कर अंकिता को अपनी बाँहों में दबोच लिया और उसके होँठों पर दबा कर अपने होँठ रख दिए। दोनों एक शिला का टेक लेकर खड़े एक दूसरे का रस चूसने में लग गए। अंकिता के मुंहमें गौरव ने अपनी जीभ डाल दी। अंकिता गौरव की जिह्वा को चूसकर उसकी लार निगलती गयी। गौरव अंकिता के रसीले होँठों का सारा रस चूस कर जैसे अपनी प्यास तृप्त करना चाहता था। पिछले दो तीन दिनों से गौरव इन होँठों को चूमने और चूसने के सपने दिन रात देखता रहता था। आज वही होँठ उसकी प्यास बुझाने के लिए उसके सामने अपने आप प्रस्तुत हो रहे थे। गौरव का एक हाथ अंकिता ने गर्व से उन्मत्त कड़क स्तनोँ को उसके टॉप के ऊपर से मसलने में लगा था। इन अल्लड़ मद मस्त स्तनोँ ने गौरव की रातों की नींद हराम कर रखी थी। गौरव इन स्तनोँ को दबाने, मसलने और चूसने के लिए बेताब था। वह उन पर अपना सर मलना चाहता था वह उन स्तनों पर मंडित प्यारी निप्पलों को चूमना, चूसना और काटना चाहता था।
उधर अंकिता गौरव से मिलकर उससे मिलन कर अपने जीवन की सबसे प्यारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी किसी युवा से सम्भोग नहीं किया था। अंकिता ने सिर्फ ब्रिगेडियर साहब से कुछ सालों पहले सेक्स किया था। उसे याद भी नहीं था की वह उसे वह उसे कैसा लगा था। अंकिता भूल चुकी थी की जवानी क्या होती है और बदन की भूख क्या होती है। गौरव से मिलने पर जो अंकिता को महसूस हुआ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। अंकिता ने अपनी चूत में सरसराहट और गीलापन काफी समय के बाद या शायद पहली बार महसूस किया था।
गौरव और अंकिता के पीछे चल रहे जीतूजी ने अचानक ही अंकिता और गौरव को मुख्य पगदंडी से हट कर निचे झरने के करीब कंदराओं की और जाते हुए देखा तो वह जोर से चिल्लाकर उन्हें सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो सकता था। पर उनके जोर से चिल्लाने पर भी उनकी की आवाज गौरव और अंकिता के कानों तक पहुँच ना सकी। नदी के पानी के तेज बहाव की कलकलाहट के शोर में भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते दिल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे? जीतूजी वहीँ रुक गए। उन्होंने पीछ चल रही अपर्णा की और देखा। तेज चढ़ाई चढ़ते हुए कदम कदम पर अपर्णा का फ्रॉक उसकी जाँघों तक चढ़ जाता था। जब अपर्णा आगे की और झुकती तो उसके ब्लाउज के पीछे छिपे हुए उसके अल्लड़ स्तनोँ के काफी बड़े हिस्सों की झांकीहो जाती थी। जीतू जी रुक गए और जैसे ही अपर्णा करीब आयी, जीतूजी ने अपर्णा का हाथ थामा और उसे ऊपर चढ़ाई चढ़ने में मदद की। सर्दीके बावजूद, अपर्णा के गुलाबी चेहरे पर पसीने की नदियाँ सी बह रहीं थीं।
जीतूजी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा, मैंने अभी वहाँ दूर गौरव और अंकिता को पगदंडी से हट कर निचे नदी की और जाते हुए देखा है। वह लोग मुख्य रास्ता छोड़ कर उस तरफ क्यों गए? क्या उन्हें पता नहीं है की ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है? अब हम क्या करें?"
अपर्णा जीतूजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "तो? तो क्या हुआ? जीतूजी, क्या आप को दो धड़कते दिलों की आवाज अंकिता और गौरव में सुनाई नहीं दी? यह तो होना ही था।"
जीतूजी अपर्णा की बात समझ नहीं पाए और अचम्भे से अपर्णा की और देखते रह गए। तब अपर्णा ने जीतूजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा, "मेरे बुद्धू जीतूजी! आप कुछ नहीं समझते। अरे भाई अंकिता और गौरव हम उम्र होने के बजाय एक दूसरे से काफी आकर्षित हैं? क्या आपने उनकी आँखों में बसा प्यार नहीं देखा?" जीतूजी की आँखें यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयीं। वह बोल पड़े, "क्या? पर अंकिता तो शादीशुदा है?"
अपर्णा से हँसी रोकी नहीं जा रही थी। वह बोली, " हम दोनों भी तो शादीशुदा हैं? तो क्या हम दोनों....." यह बोल कर अपर्णा अचानक चुप हो गयी। उसे ध्यानआया की कहीं इधरउधर बोल देने से जीतूजी आहत ना हों। अपर्णा जीतूजी के घाव पर नमक छिड़कने का काम अपर्णा नहीं करना चाहती थी।
जीतूजी ने कहा, "इस कदर इस जंगल में अकेले इधर उधर घूमना ठीक नहीं।"
उधर अंकिता गौरव से मिलकर उससे मिलन कर अपने जीवन की सबसे प्यारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी किसी युवा से सम्भोग नहीं किया था। अंकिता ने सिर्फ ब्रिगेडियर साहब से कुछ सालों पहले सेक्स किया था। उसे याद भी नहीं था की वह उसे वह उसे कैसा लगा था। अंकिता भूल चुकी थी की जवानी क्या होती है और बदन की भूख क्या होती है। गौरव से मिलने पर जो अंकिता को महसूस हुआ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। अंकिता ने अपनी चूत में सरसराहट और गीलापन काफी समय के बाद या शायद पहली बार महसूस किया था।
गौरव और अंकिता के पीछे चल रहे जीतूजी ने अचानक ही अंकिता और गौरव को मुख्य पगदंडी से हट कर निचे झरने के करीब कंदराओं की और जाते हुए देखा तो वह जोर से चिल्लाकर उन्हें सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो सकता था। पर उनके जोर से चिल्लाने पर भी उनकी की आवाज गौरव और अंकिता के कानों तक पहुँच ना सकी। नदी के पानी के तेज बहाव की कलकलाहट के शोर में भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते दिल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे? जीतूजी वहीँ रुक गए। उन्होंने पीछ चल रही अपर्णा की और देखा। तेज चढ़ाई चढ़ते हुए कदम कदम पर अपर्णा का फ्रॉक उसकी जाँघों तक चढ़ जाता था। जब अपर्णा आगे की और झुकती तो उसके ब्लाउज के पीछे छिपे हुए उसके अल्लड़ स्तनोँ के काफी बड़े हिस्सों की झांकीहो जाती थी। जीतू जी रुक गए और जैसे ही अपर्णा करीब आयी, जीतूजी ने अपर्णा का हाथ थामा और उसे ऊपर चढ़ाई चढ़ने में मदद की। सर्दीके बावजूद, अपर्णा के गुलाबी चेहरे पर पसीने की नदियाँ सी बह रहीं थीं।
जीतूजी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा, मैंने अभी वहाँ दूर गौरव और अंकिता को पगदंडी से हट कर निचे नदी की और जाते हुए देखा है। वह लोग मुख्य रास्ता छोड़ कर उस तरफ क्यों गए? क्या उन्हें पता नहीं है की ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है? अब हम क्या करें?"
अपर्णा जीतूजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "तो? तो क्या हुआ? जीतूजी, क्या आप को दो धड़कते दिलों की आवाज अंकिता और गौरव में सुनाई नहीं दी? यह तो होना ही था।"
जीतूजी अपर्णा की बात समझ नहीं पाए और अचम्भे से अपर्णा की और देखते रह गए। तब अपर्णा ने जीतूजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा, "मेरे बुद्धू जीतूजी! आप कुछ नहीं समझते। अरे भाई अंकिता और गौरव हम उम्र होने के बजाय एक दूसरे से काफी आकर्षित हैं? क्या आपने उनकी आँखों में बसा प्यार नहीं देखा?" जीतूजी की आँखें यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयीं। वह बोल पड़े, "क्या? पर अंकिता तो शादीशुदा है?"
अपर्णा से हँसी रोकी नहीं जा रही थी। वह बोली, " हम दोनों भी तो शादीशुदा हैं? तो क्या हम दोनों....." यह बोल कर अपर्णा अचानक चुप हो गयी। उसे ध्यानआया की कहीं इधरउधर बोल देने से जीतूजी आहत ना हों। अपर्णा जीतूजी के घाव पर नमक छिड़कने का काम अपर्णा नहीं करना चाहती थी।
जीतूजी ने कहा, "इस कदर इस जंगल में अकेले इधर उधर घूमना ठीक नहीं।"