26-12-2019, 03:55 PM
कप्तान गौरव ने झुक कर खन्ना साहब का अभिवादन किया और उनकी बात को स्वीकार कर अंकिता की जिम्मेदारी लेने का वादा किया। सब ट्रैकिंग में जाने के लिए तैयार हो गए थे। कर्नल अभिजीत सिंह का इंतजार था, सो कुछ ही देर में वह भी आ पहुंचे और सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से ट्रैकिंग में जाने के लिए निकल पड़े।
श्रेया ने देखा की अपर्णाने अंकिताको आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर अंकिता शर्मा गयी और मुस्कुरा दी। श्रेया जी ने अपर्णा को कोहनी मारकर धीरेसे पूछा, "क्या बातहै अपर्णा? तुम्हारे और अंकिता के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?" अपर्णा ने शरारत भरी आँखों से श्रेया की और देखते हुए, "दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?" श्रेया ने अपर्णा की और आश्चर्य से देखा और पूछा, "फिर अंकिता ने क्या कहा?" अपर्णा ने हाथ फैलाते हुए श्रेया के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, "दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।" श्रेया ने आगे बढ़कर अपर्णा के कान पकडे और बोली, "मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!" अपर्णा ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरेसे बोली, "दीदी मैं चेलीतो आपकी ही हूँ ना?" कर्नल अभिजीत सिंह (जीतूजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।
एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान गौरव और अंकिता को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सबकी अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें। पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद अंकिता और गौरव थे। अंकिता फुर्तीसे दौड़ कर गौरव को चुनौती देती हुई आगे भागती और गौरव उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। जीतूजी और अपर्णा, अंकिता और गौरव की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।
आखिर में श्रेया और रोहित चल रहे थे। रोहित को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे। श्रेया उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे। रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।
अपर्णा इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण जीतूजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था। रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर अंकिता रुक गयी और गौरव से बोली, "कप्तान साहब, सॉरी, गौरव! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।"
श्रेया ने देखा की अपर्णाने अंकिताको आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर अंकिता शर्मा गयी और मुस्कुरा दी। श्रेया जी ने अपर्णा को कोहनी मारकर धीरेसे पूछा, "क्या बातहै अपर्णा? तुम्हारे और अंकिता के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?" अपर्णा ने शरारत भरी आँखों से श्रेया की और देखते हुए, "दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?" श्रेया ने अपर्णा की और आश्चर्य से देखा और पूछा, "फिर अंकिता ने क्या कहा?" अपर्णा ने हाथ फैलाते हुए श्रेया के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, "दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।" श्रेया ने आगे बढ़कर अपर्णा के कान पकडे और बोली, "मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!" अपर्णा ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरेसे बोली, "दीदी मैं चेलीतो आपकी ही हूँ ना?" कर्नल अभिजीत सिंह (जीतूजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।
एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान गौरव और अंकिता को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सबकी अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें। पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद अंकिता और गौरव थे। अंकिता फुर्तीसे दौड़ कर गौरव को चुनौती देती हुई आगे भागती और गौरव उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। जीतूजी और अपर्णा, अंकिता और गौरव की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।
आखिर में श्रेया और रोहित चल रहे थे। रोहित को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे। श्रेया उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे। रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।
अपर्णा इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण जीतूजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था। रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर अंकिता रुक गयी और गौरव से बोली, "कप्तान साहब, सॉरी, गौरव! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।"