26-12-2019, 03:27 PM
कर्नल साहब (जीतूजी) ने काफी समय पहले ही कैंप के मैनेजमेंट से दो कमरों का एक बड़ा फ्लैट टाइप सुईट बुक करा दिया था। उसमें उनके दोनों बैडरूम को जोड़ता हुआ परदे से ढका एक किवाड़ था। वह किवाड़ दोनों तरफ से बंद किया जा सकता था। जब तक दोनों कमरों में रहने वाले ना चाहें तब तक वह किवाड़ अक्सर बंद ही रहता था। अगर वह किवाड़ खुला हो तो एक दूसरे के पलंग को दोनों ही जोड़ी देख सकती थी। दोनों ही बैडरूम में एक एक वाशरूम जुड़ा हुआ था। बैडरूम का दुसरा दरवाजा एक साँझा बड़े ड्रॉइंग कम डाइनिंग रूम में खुलता था। सुईट के अंदर प्रवेश उसी ड्रॉइंगरूम से ही हो सकता था। ड्रॉइंगरूम में प्रवेश करने के बाद ही कोई अपने कमरे में जा सकता था। जब कैंप में आगमन के तुरंत बाद सुबह में पहली बार दोनों कपल कमरों में दाखिल हुए थे (चेक इन किया था) तब सबसे पहले रोहितने सुईटकी तारीफ़ करते हुए जीतूजी से कहा था, "जीतूजी, यह तो आपने कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! कितना बड़ा और बढ़िया है! खिड़कियों से हिमालय के बर्फीले पहाड़ और खूबसूरत वादियाँ भी साफ़ साफ़ दिखती हैं। मेरी सबसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूँ की जब तक हम यहां रहेंगे, दोनों कमरों को जोड़ते हुए इस किवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखेंगे। मैं हम दोनों कपल के बिच कोई पर्दा नहीं चाहता। आप क्या कहते हैं?"
जीतूजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। श्रेया जी फ़ौरन रोहित से सहमति जताते हुए बोली थी, "मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा न करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन अपर्णा के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर आ सकती हूँ ना?" उस वक्त श्रेया ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना? अपर्णा सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति रोहितको अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, "तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।" अपनी पत्नी की जिद देख कर रोहितने अपनी बीबी अपर्णा के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, "डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?" यह सुन कर अपर्णा का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह जीतूजी और श्रेया से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने श्रेयासे यह वादा जरूर किया था। तो क्या श्रेया ने उनदोनों के बिच की बातचीत रोहित को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। रोहित की बात सुन कर हार कर अपर्णा चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।
दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। श्रेया पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे रोहितसे चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति जीतूजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचनेमें लगेथे की जो राज़था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे। अपर्णा मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ जीतूजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे जीतूजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह जीतूजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी।
जीतूजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। श्रेया जी फ़ौरन रोहित से सहमति जताते हुए बोली थी, "मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा न करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन अपर्णा के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर आ सकती हूँ ना?" उस वक्त श्रेया ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना? अपर्णा सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति रोहितको अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, "तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।" अपनी पत्नी की जिद देख कर रोहितने अपनी बीबी अपर्णा के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, "डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?" यह सुन कर अपर्णा का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह जीतूजी और श्रेया से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने श्रेयासे यह वादा जरूर किया था। तो क्या श्रेया ने उनदोनों के बिच की बातचीत रोहित को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। रोहित की बात सुन कर हार कर अपर्णा चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।
दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। श्रेया पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे रोहितसे चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति जीतूजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचनेमें लगेथे की जो राज़था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे। अपर्णा मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ जीतूजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे जीतूजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह जीतूजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी।