26-12-2019, 03:26 PM
अपर्णा को गले लगाते हुए श्रेया की आँखों में आंसूं छलक आये। श्रेया अपर्णा को छाती पर चीपका कर बोली, "अपर्णा! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे जीतूजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।" अपर्णा ने श्रेया जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, "दीदी, जीतूजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।"
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे। खाना खाने के समय अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। अपर्णा ने सोचा की शायद जीतूजी उससे नाराज थे। भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब जीतूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। अपर्णा को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की जीतूजी जैसे रंगीले जांबाज़ को अपर्णा ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था। अपर्णा भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। श्रेया सबसे पहले भोजन कर "थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी" यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी। उसके पीछे पीछे रोहित भी, "आराम तो करना ही पड़ेगा" यह कह कर उठ कर चल पड़े। जब दोनों निकल पड़े तब अपर्णा जीतूजी के करीब जा बैठी और हलकेसे जीतूजी से बोली, "आप मेरे कारण दुखी हैं ना?" जीतूजी ने अपर्णा की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, "नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?" "तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?" अपर्णा ने पूछा l "मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।" जीतूजी ने जवाब दिया। "गुत्थी? कैसी गुत्थी?" अपर्णा ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की जीतूजी आने आप पर अपर्णा के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।" "मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?" जीतूजी कुछ गंभीर सोच में थे यह अपर्णा समझ गयी। जीतूजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।"
अपर्णा बुद्धू की तरह जीतूजीको देखती ही रही। उसकी समझमें कुछभी नहीं आ रहा था। जीतूजी ने अपर्णा के उलझन भरे चेहरे की और देखा और अपर्णा का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, "अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव रोहित का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था l फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास आ कर हम से पूछ-ताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है l क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?" अपर्णा के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब जीतूजी ने देखे तो वह बोले, "कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।" कह कर जीतूजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए। साथ साथ में अपर्णा भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे। खाना खाने के समय अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। अपर्णा ने सोचा की शायद जीतूजी उससे नाराज थे। भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब जीतूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। अपर्णा को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की जीतूजी जैसे रंगीले जांबाज़ को अपर्णा ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था। अपर्णा भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। श्रेया सबसे पहले भोजन कर "थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी" यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी। उसके पीछे पीछे रोहित भी, "आराम तो करना ही पड़ेगा" यह कह कर उठ कर चल पड़े। जब दोनों निकल पड़े तब अपर्णा जीतूजी के करीब जा बैठी और हलकेसे जीतूजी से बोली, "आप मेरे कारण दुखी हैं ना?" जीतूजी ने अपर्णा की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, "नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?" "तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?" अपर्णा ने पूछा l "मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।" जीतूजी ने जवाब दिया। "गुत्थी? कैसी गुत्थी?" अपर्णा ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की जीतूजी आने आप पर अपर्णा के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।" "मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?" जीतूजी कुछ गंभीर सोच में थे यह अपर्णा समझ गयी। जीतूजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।"
अपर्णा बुद्धू की तरह जीतूजीको देखती ही रही। उसकी समझमें कुछभी नहीं आ रहा था। जीतूजी ने अपर्णा के उलझन भरे चेहरे की और देखा और अपर्णा का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, "अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव रोहित का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था l फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास आ कर हम से पूछ-ताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है l क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?" अपर्णा के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब जीतूजी ने देखे तो वह बोले, "कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।" कह कर जीतूजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए। साथ साथ में अपर्णा भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।